बिग बैंग से पांच गुना ज्यादा तेजी से फैल रहा है ब्रह्मांड
४ जुलाई २०२३क्वेजर्स यानी शुरुआती आकाशगंगाओं के केंद्र में पाये जाने वाले गैस के चमकते विशाल ब्लैक होल होते हैं. ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर जेरायंट लुईस ने इन रहस्यमयी आकाशीय पिंडों के एक राज का पता लगाया है. क्वेजर्स को प्रोफेसर लुईस ने घड़ी के तौर पर इस्तेमाल किया और ब्रह्मांड के शुरुआती वक्त का पता लगाया.
सिडनी इंस्टिट्यूट फॉर एस्ट्रोनॉमी के प्रोफेसर जेरायंट लुईस की यह खोज जर्मन वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन द्वारा ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में छोड़ी गयी कुछ पहेलियों में से एक का हल बताती है.
आइंस्टाइन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी कहती है कि ब्रह्मांड के शुरुआत के वक्त की गति हमें आज बहुत धीमी नजर आएगी. लेकिन समय में उतना पीछे जा पाना संभव नहीं हो पाया है, इसलिए आइंस्टाइन की कही बात का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं था. अब क्वेजर्स को घड़ी की तरह इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों ने इस पहेली को सुलझाने की कोशिश की है.
आइंस्टाइन की बात साबित हुई
इस कोशिश के लिए किये गये शोध के मुखिया प्रोफेसर जेरायंट लुईस समझाते हैं, "अगर हम तब के ब्रह्मांड को देखें, जब उसकी उम्र कोई एक अरब साल रही होगी, तो हम पाएंगे कि समय पांच गुना धीमा था. अगर आप उस शिशु ब्रह्मांड में होते तो एक सेकंड आपको एक सेकंड जितना ही लगता. लेकिन अब 12 अरब साल दूर से देखें तो वह पांच गुना ज्यादा लंबा नजर आएगा.”
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यह शोध पत्र मंगलवार चार जुलाई को नेचर एस्ट्रोनॉमी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ. इस शोध में प्रोफेसर लुईस के साथ ऑकलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. ब्रेंडन ब्रूअर थे. उन्होंने करीब 200 क्वेजर्स से मिले आंकड़ों का अध्ययन किया.
प्रोफेसर लुईस कहते हैं, "आइंस्टाइन की वजह से हम जानते हैं कि समय और दूरी आपस में जुड़े हुए हैं. और बिंग बैंग के साथ समय की शुरुआत होने से ही ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है. यह विस्तार बताता है कि आज से जब हम ब्रह्मांड की शुरुआत को नापेंगे तो वह बहुत धीमा चलता नजर आएगा. अपने शोध में हमने बिग बैंग के एक अरब साल बाद को लेकर यह स्थापित किया है.”
पहले से अलग तरीका
पहले भी खगोलविद समय के इस अंतर को स्थापित करते रहे हैं लेकिन अब तक वे ब्रह्मांड की आधी आयु यानी लगभग छह अरब साल पहले तक ही पहुंच पाये थे. इसके लिए अब तक सुपरनोवा यानी विस्फोट से गुजर रहे सितारों को घड़ी की तरह इस्तेमाल किया गया था. हालांकि सुपरनोवा बहुत अधिक चमकदार होते हैं लेकिन उन्हें इतनी दूरी से देख पाना मुश्किल होता है.
इसके उलट क्वेजर्स के आकलन के सहारे समय में और ज्यादा पीछे जा पाना संभव हो पाया है और यह स्थापित हो पाया है कि जैसे जैसे ब्रह्मांड की आयु बढ़ रही है, उसकी गति भी बढ़ती जा रही है.
प्रोफेसर लुईस कहते हैं, "सुपरनोवा प्रकाश की एकाएक आई चमक की तरह होते हैं और उनका अध्ययन कर पाना आसान होता है लेकिन क्वेजर्स ज्यादा जटिल होते हैं. वे एक के बाद एक पटाखों के फूटने जैसे होते हैं. हमने इस आतिशबाजी की जटिलताओं को सुलझाया है और दिखाया है कि क्वेजर्स को भी शुरुआती ब्रह्मांड के लिए घड़ी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.”
दो दशकों तक अध्ययन
इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 190 क्वेजर्स का दो दशकों से ज्यादा समय तक अध्ययन किया है. उन्होंने हरे, लाल और इंफ्रारेड में अलग-अलग प्रकाश रंगों की वेवलेंथ का आकलन किया और क्वेजर्स के एक-एक पल को नापा.
इस शोध के नतीजे आइंस्टाइन के फैलते ब्रह्मांड के सिद्धांत की पुष्टि करते हैं लेकिन इससे पहले हुए अध्ययनों को खारिज भी करते हैं, जो क्वेजर्स का अध्ययन करने में नाकाम रहे थे.
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प्रोफेसर लुईस कहते हैं, "अब तक जो अध्ययन हुए उन्होंने यह सवाल खड़ा कर दिया था कि क्वेजर्स वाकई आकाशीय पिंड हैं भी या नहीं. इस विचार पर भी सवालिया निशान लग गये थे कि ब्रह्मांड फैल रहा है.”
नये आंकड़ों और विश्लेषण से यह साबित हो गया है कि आइंस्टाइन ने जो अनुमान लगाया था, वह सही था.