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भारत और महारानी एलिजाबेथ: अनसुलझे सवालों की दास्तान

९ सितम्बर २०२२

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ का निधन ऐसे समय पर हुआ है जब भारत एक एक कर अंग्रेजी हुकूमत के समय के निशानों को मिटा रहा है. लेकिन कोहिनूर और जलियांवाला बाग समेत कई सवाल हैं जो महारानी की मौत के बाद अनसुलझे रह गए हैं.

भारत में महारानी एलिजाबेथतस्वीर: Pool/PA/dpa/picture-alliance

महारानी एलिजाबेथ के निधन के दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक ऐसी परियोजना का उद्घाटन किया जिसे वो ब्रिटिश राज के "उत्पीड़न और गुलामी का प्रतीक" बता चुके हैं. राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क 'राजपथ' को 'कर्त्तव्य पथ' का नया नाम देते हुए मोदी ने कहा, "गुलामी का प्रतीक राजपथ आज इतिहास बन गया."

एलिजाबेथ उसी "औपनिवेशिक सोच" की जीती जागती कड़ी थीं, जिसके निशानों को हटाने की बात मोदी ने 15 अगस्त 2022 को लाल किले से दिए अपने भाषण में कही थी. ऐसा ही कुछ उन्होंने पांच सितंबर को भारतीय नौसेना के नए विमान वाहक जहाज आईएनएस विक्रांत को कमीशन करते समय भी कहा था.

1961 में बनारस के रामनगर किले में हाथी पर सवार महारानी एलिजाबेथतस्वीर: United Archives/picture alliance

उस दिन उन्होंने भारतीय नौसेना के नए झंडे का भी उद्घाटन किया था. उसका उद्घाटन करते हुए भी मोदी ने यही कहा था कि वो देश के "औपनिवेशिक अतीत" को मिटा देगा. एक जीती जागती राजशाही होने की वजह से ब्रिटेन की राजशाही को इसी औपनिवेशिक अतीत का उत्तराधिकारी माना जाता है.

(पढ़ें: ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का निधन)

औपनिवेशिक अतीत के तार

सबसे लंबे समय तक इस राजशाही की गद्दी संभालने वाली के रूप में महारानी एलिजाबेथ का कभी कॉलोनी रहे भारत के साथ एक पहेलीनुमा रिश्ता था. उनके निधन पर भारत में 11 सितंबर को राजकीय शोक मनाने की घोषणा की गई है.

1952 में जब महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी हुई तब भारत एक आजाद देश बन चुका था. लेकिन उनकी ताजपोशी पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सम्मानित अतिथि के रूप में मौजूद थे. भारत अभी भी राष्ट्रमंडल समूह का सदस्य है, जिसकी मुखिया अपने निधन तक महारानी एलिजाबेथ थीं.

किस्मत से महारानी बनी थीं एलिजाबेथ द्वितीय

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अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ दशकों तक संघर्ष करने के बावजूद भारत ने ब्रिटेन और ब्रिटेन की राजशाही के प्रति कटुता का भाव नहीं दिखाया. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत के खिलाफ हुए अत्याचार से जुड़े सवालों से वो अनछुई नहीं रहीं.

कई इतिहासकार और राजनीतिक समीक्षक इस बात को मानते हैं कि आधुनिक ब्रिटेन को अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत समेत पूर्वी कॉलोनियों में किए गए "लूट पाट" के लिए माफी मांगनी चाहिए और उसकी कीमत चुकानी चाहिए. लेकिन भारत सरकार ने इस मांग से अपने आप को आधिकारिक रूप से कभी नहीं जोड़ा.

(पढ़ें: महारानी एलिजाबेथ के 'राज' की 70वीं सालगिरह पर विरोध)

भारत में विरोध

जुलाई 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी एक भाषण में यही बात कही थी. उसके बाद मोदी ने थरूर के भाषण की तारीफ की थी लेकिन वो इस मांग का समर्थन करते है या नहीं यह नहीं कहा था.

1983 में नई दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ महारानी एलिजाबेथ और उनके पतितस्वीर: Ron Bell/PA Wire/empics/picture alliance

इसके बावजूद इस तरह के सवाल हमेशा बने रहे और दूसरी पूर्व कॉलोनियों की तरह भारत में भी एलिजाबेथ और शाही परिवार के अन्य सदस्यों का पीछा करते रहे. एलिजाबेथ अपने राज के दौरान सिर्फ तीन बार भारत आईं.

वो आखिरी बार भारत 1997 में आई थीं, जिस साल भारत अंग्रेजी हुकूमत से अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा था. दिल्ली में उनके आगमन से पहले ब्रिटेन के उच्च आयोग के बाहर उनके खिलाफ इतना भारी प्रदर्शन हो रहा था कि पुलिस को प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा था.

लोग एलिजाबेथ की प्रस्तावित अमृतसर यात्रा को लेकर नाराज थे और प्रदर्शन कर रह थे. 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी जनरल आर डायर के आदेश पर अंग्रेजी सेना के सिपाहियों ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी थीं. हमले में कम से कम 379 लोग मारे गए थे.

(पढ़ें: कॉमनवेल्थ संगठन में नई जान फूंकने की कवायद कितनी कारगर?)

अक्टूबर 1997 में महारानी एलिजाबेथ की खिलाफ अमृतसर में प्रदर्शनतस्वीर: AP/picture alliance

क्या करेंगे चार्ल्स

वो हत्याकांड आज भी दोनों देशों के रिश्तों में एक कांटे की तरह है. एलिजाबेथ अपने पति प्रिंस फिलिप के साथ जलियांवाला बाग गईं, वहां सिर झुकाया, 30 सेकंड का मौन रखा और शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी, लेकिन माफी नहीं मांगी.

एक अलग कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे अतीत में कुछ कठिन प्रकरण हुए हैं और जलियांवाला बाग ऐसा ही एक परेशान कर देने वाला उदाहरण है. लेकिन हम कितना भी चाहें, इतिहास को दोबारा लिखा नहीं जा सकता."

टावर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में रखे एलिजाबेथ के शाही मुकुट में जड़ा कोहिनूर हीरा भी ब्रिटेन के औपनिवेशिक अतीत की एक कड़ी है. कोहिनूर दुनिया के सबसे बड़े तराशे हुए हीरों में से है और कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले उसकी खोज भारत की ही एक खदान में हुई थी.

जनवरी 1961 में जयपुर के महाराज और महारानी के साथ बाग का शिकार कर तस्वीर खिचवातीं महारानी एलिजाबेथतस्वीर: United Archives/picture alliance

अलाउद्दीन खिलजी से लेकर नादिर शाह तक कइयों के हाथों कब्जाए जाने के बाद जब 1849 में अंग्रेजों ने पंजाब पर हुकूमत कायम की, तब इसे एलिजाबेथ की पूर्वज महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया. अब कोहिनूर के स्वामित्व पर भारत के अलावा पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान भी दावा करते हैं लेकिन ब्रिटेन इसे सौंपने से आज तक इंकार करता रहा है.

(पढ़ें: महारानी को हटाकर गणतंत्र बना बार्बाडोस)

बताया जा रहा है कि जिस ताज में अब कोहिनूर जड़ा है उसे एलिजाबेथ के बेटे चार्ल्स की बतौर महाराज ताजपोशी के बाद उनकी पत्नी कैमिला पहनेंगी. लेकिन कोहिनूर और अंग्रेजी हुकूमत के औपनिवेशिक अतीत के अन्य विवादों का असल भार चार्ल्स के सिर पर ही आएगा. देखना होगा कि वो इस भार का क्या करते हैं.

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