पहली बार, कोयला खनन को कोर्ट ने कहा ‘मानवाधिकार उल्लंघन‘
विवेक कुमार
२५ नवम्बर २०२२
ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में एक लैंड कोर्ट ने कोयले की खदान की मंजूरी रद्द करते हुए कहा है कि यह भविष्य की पीढ़ियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. यह खदान उसी इलाके में शुरू होनी थी, जहां गौतम अडाणी की विवादित खदान है.
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ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड लैंड कोर्ट ने कहा है कि कोयले की खदान का आर्थिक लाभ इतना नहीं है कि भविष्य की पीढ़ी के मानवाधिकारों को दांव पर लगाया जा सके. देश के अरबपति उद्यमी क्लाइव पामर की कंपनी वाराताह कोल ने राज्य के गैलीली बेसिन की सबसे बड़ी कोयला खदान में खुदाई का प्रस्ताव रखा था.
यह कोयला खदान शुरू होती है, तो 30 साल तक खनन होगा और इससे हर साल चार करोड़ टन कोयला निकालकर दक्षिण-पूर्व एशिया भेजा जाएगा. इस प्रस्ताव को आदिवासी समूह ‘यूथ वर्डिक्ट' के नेतृत्व में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चुनौती दी थी. उनकी याचिका का आधार यह था कि कोयला खदान जलवायु परिवर्तन बढ़ाएगी और इससे आदिवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा.
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Diederich
कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
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पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Martin Bernetti/AFP
न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
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समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
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ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी पर्यावरण समूह ने कोयला खदान को जलवायु परिवर्तन में योगदान देकर मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार साबित किया है. क्वींसलैंड लैंड कोर्ट की अध्यक्ष फ्लोएर किंगहैम ने कहा कि वह वाराताह कोल की अर्जी को मंजूरी की सिफारिश नहीं करेंगी. उन्होंने कोर्ट में कहा कि यह खदान जीवन के अधिकार, आदिवासियों के सांस्कृतिक आधार, बच्चों के अधिकार, संपत्ति के अधिकार, निजता के अधिकार और समान रूप से मानवाधिकारों को सीमित करती है.
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मानवाधिकार ज्यादा अहम
वाराताह कोल की दलील थी कि गैलीली कोल प्रोजेक्ट अपने 30 साल के दौरान सालाना ढाई अरब डॉलर का आर्थिक योगदान करेगा. किंगहैम ने कहा कि मानवाधिकारों की सुरक्षा की अहमियत दक्षिण-पूर्व एशिया की ऊर्जा सुरक्षा और कोयला खदान से होने वाले आर्थिक लाभ पर भारी पड़ती है.
किंगहैम ने कहा, "थर्मल कोयले की मांग कम हो रही है. लिहाजा बहुत संभव है कि अपने जीवनकाल में यह खदान गैरजरूरी हो जाए और सारे आर्थिक लाभ पूरे ना कर पाए. खनन का पर्यावरणीय नुकसान और क्वींसलैंड के लोगों को जलवायु परिवर्तन के कारण जो कीमत चुकानी होगी, उसे भी ध्यान में नहीं रखा गया है.”
अदालत के फैसले पर कार्यकर्ताओं ने खुशी जताई. ‘यूथ वर्डिक्ट' की अगुआ मुरवाह जॉनसन ने कहा कि फैसला सुनकर उनकी आंखें गीली हो गई थीं. आदिवासी मूल की जॉनसन ने कहा, "मैं बहुत खुश हूं. तीन साल लगे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि सरकार लैंड कोर्ट की सिफारिशों को सुनेंगी."
अडाणी की परियोजना
अपनी तरह के दुनिया के इस पहले फैसले पर पर्यावरणविदों ने भी खुशी जताई है और कहा है कि इसका असर भविष्य में कोयला खनन की परियोजनाओं पर हो सकता है. हालांकि, वाराताह कोल ने अभी किसी तरह की टिप्पणी नहीं की है, लेकिन राज्य सरकार ने कहा है कि वह "कोर्ट की सिफारिशों पर ध्यानपूर्वक विचार करेगी."
पवन ऊर्जा का भविष्य
बिजली उत्पादन में हवा की अहमियत बढ़ती ही जा रही है. बड़ी बड़ी टरबाइनें यानी पवनचक्कियां बनने लगी हैं- ज्यादा ऊंची और ज्यादा कारगर. दुनिया में करीब सात प्रतिशत बिजली पवन ऊर्जा से मिल ही रही है. तो आगे क्या?
तस्वीर: Jan Oelker
तब और अब
पवन ऊर्जा का इस्तेमाल सदियों से होता रहा है. उससे पानी खींचा जाता है, अनाज पीसा जाता है, लकड़ी काटी जाती है और जहाजों को उनके ठिकानों तक वही पहुंचाती हैं. यूरोप में 19वीं सदी के दौरान सैकड़ों हजारों पवनचक्कियां लगाई गई थीं. नीदरलैंड्स के लोग उसका इस्तेमाल अधिकतर दलदल को सुखाने में करते हैं. आज पवन ऊर्जा से साफ बिजली पैदा होती है. वे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ImageBroker/J. Tack
कोयले को मात देती हवा
पवनचक्कियां अक्सर सबसे सस्ती ऊर्जा पैदा करती हैं. नये कोयले या एटमी ऊर्जा संयंत्र से मिलने वाली बिजली आज दो से तीन गुना ज्यादा महंगी पड़ती है जबकि पवन ऊर्जा विशेष रूप से सस्ती है. भविष्य के अनुमानों के मुताबिक पवन ऊर्जा की लागत और गिरेगी- यानी 2030 तक, अच्छे हवादार ठिकानों में महज 0.04 डॉलर प्रति किलोवॉट घंटा की लागत मिलेगी.
तस्वीर: picture alliance / Zoonar
20 गुना अधिक बिजली
उत्तरी जर्मनी में विल्हेल्मशाफेन के पास लगाई गई एक विशाल पवनचक्की 6,000 किलोवॉट बिजली पैदा करती है और वहां के 10,000 लोगों की घरेलू बिजली की जरूरतों को पूरा करती है. 25 साल पुराने मॉडलों से सिर्फ 500 किलोवॉट ही मिल पाती थी- करीब 500 लोगों के लिए उतनी बिजली पर्याप्त थी. आधुनिक टरबाइनें अब आसमान में 180 मीटर तक ऊंची उठी रहती हैं. जितनी ऊंची होंगी उतनी हवा खींचेंगी.
तस्वीर: Ulrich Wirrwar/Siemens AG
समंदर में धंसे विशाल डैने
समंदर में हवा ज्यादा भरोसेमंद और ताकतवर होती है. दुनिया की कुल पवन ऊर्जा का करीब पांच फीसदी हिस्सा, तट पर बने पवनचक्की पार्कों से आता है. जैसे ये नीदरलैंड्स के तट पर बना एक पवन पार्क है. ऐसी टरबाइनों से करीब 10,000 किलोवॉट बिजली मिल जाती है. 2025 से उनकी क्षमता 15,000 किलोवॉट तक बढ़ने का अनुमान है. तब 40,000 से ज्यादा लोगों को बिजली मिल सकती है.
तस्वीर: Siemens Gamesa
सबसे आगे है चीन
दुनिया की तमाम नयी पवनचक्कियों में से आधी इस समय चीन में स्थापित हैं. अकेले 2020 में देश ने 52 गीगावॉट क्षमता वाली पवनचक्कियां निर्मित की हैं. ये 50 एटमी ऊर्जा संयंत्रों से मिलने वाली बिजली के बराबर है. पवन विस्तार में अग्रणी देश डेनमार्क और जर्मनी हैं. डेनमार्क अपने यहां बिजली की करीब 50 फीसदी मांग पवन ऊर्जा से पूरी करता है. जर्मनी को 25 फीसदी बिजली पवन ऊर्जा से मिलती है.
पूरी दुनिया में पवन ऊर्जा उद्योग में करीब 13 लाख लोग काम करते हैं. इनमें से साढ़े पांच लाख लोग चीन में, एक लाख दस हजार लोग अमेरिका में, 90 हजार जर्मनी में, 45 हजार भारत में और 40 हजार ब्राजील में हैं. पवन चक्कियां लगाना और चलाना, कोयले से हासिल ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा महंगा पड़ता है. लिहाजा पवन ऊर्जा का विस्तार ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा कर रहा है.
तस्वीर: Paul Langrock/Siemens AG
नागरिक भी चाहते हैं लाभ कमाना
सघन आबादी वाले इलाकों में पवन ऊर्जा को लेकर अक्सर विरोध देखा जाता है. लेकिन ये धारणा बदल सकती है अगरचे नागरिकों को भी स्थानीय परियोजनाओं में शामिल होने का मौका मिले. जैसे, जर्मनी के फ्रैंकफुर्ट शहर के नजदीक श्टार्कनबुर्ग में बहुत सारे निवासी पवन ऊर्जा के विस्तार के पक्ष में हैं. वे नयी टरबाइनों में निवेश कर रहे हैं. और बिजली बेचकर लाभ भी कमा रहे हैं.
तस्वीर: Energiegenossenschaft Starkenburg eG
पाल जहाजों से डीजल की बचत
अतीत में, पाल नौकाओं और जहाजों से दुनिया भर में माल की ढुलाई होती थी लेकिन फिर डीजल इंजन आ गए. आज आधुनिक नौचालन फिर से हरकत में आ गया है. हवा के अतिरिक्त धक्के के साथ मालवाहक जहाजों की ऊर्जा खपत 30 फीसदी तक कम की जा सकती है. इसके अलावा जहाज भविष्य में हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल ईंधन के रूप में कर पाएंगे.
तस्वीर: Skysails
पानी में तैरती पवनचक्कियां
पवन ऊर्जा के लिए समुद्र में पर्याप्त जगह है. लेकिन कई जगहों पर पानी इतना गहरा होता है कि समुद्र तल पर नींव नहीं पड़ सकती. इसका विकल्प है बुईज़ यानी पानी की सतह पर तैरते उत्प्लवों पर टरबाइनें रख दी जाती हैं. ये उत्प्लव समुद्र तल से लंबी कड़ियों के सहारे बांधे जाते हैं. तैरती पवनचक्कियां यूरोप और जापान में पहले से हैं. ये तूफानों में भी स्थिर रहती हैं.
तस्वीर: vestas.com
घरों के लिए पवन ऊर्जा
लंदन में 147 मीटर ऊंची स्ट्राटा एसई1 नाम की गगनचुंबी इमारत में लगीं टरबाइनें भी ध्यान खींचती हैं. लेकिन ऐसे रूफटॉप इन्स्टॉलेशन आमतौर पर किफायती नहीं होते क्योंकि शहरों में हवा अक्सर काफी कमजोर रहती है. छतों पर तो सौर प्लेटें ही ज्यादा कारगर साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Global Warming Images/A. Cooper
सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा
तीन से 11 महीने में पवनचक्कियां उतनी ऊर्जा पैदा कर देती हैं जितनी उन्हें बनाने में खर्च होती है. इस बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में सीओटू तो नहीं निकलती लेकिन आसपास का सूरतेहाल बदल जाता है. दूसरे ऊर्जा स्रोतों की तुलना में, अब भी पवन ऊर्जा का पर्यावरणीय ग्राफ बेहतर है. जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक पवनचक्कियों की पर्यावरणीय लागत, कोयले की ऊर्जा से 70 गुना कम है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Tack
सौर ऊर्जा की जगह क्या है?
पवन और सौर ऊर्जा संयंत्र मिलकर दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरी कर सकते हैं. पवनचक्कियां 10 किमी प्रति घंटा की रफ्तार वाली हवाओं से बिजली पैदा करती हैं. तीखी धूप वाले इलाकों में सौर प्लेटें सबसे सस्ता ऊर्जा स्रोत हैं. इक्वेटर से और उत्तर और दक्षिण की ओर, पवन और सौर ऊर्जा की मिलीजुली जरूरत होती है. हवादार इलाकों में खासकर, पवनचक्कियां ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकती हैं.
तस्वीर: www.vestas.com
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जिस गैलीली बेसिन में यह कोयला खदान प्रस्तावित है, वह ऑस्ट्रेलिया का एक विशाल इलाका है, जिसमें खनिजों की भरमार है. लेकिन इस इलाके में अभी सिर्फ एक कंपनी को ही खनन की इजाजत मिली है और वह है भारत की अडाणी माइन्स. कई साल तक चले विवादों के बाद कारमाइकल इलाके में अडाणी की खानें अब सुचारू हो चुकी हैं और पिछले साल उसने कोयले की पहली खेप भारत भेज दी थी.
कारमाइकल में कोयला खनन को लेकर आज भी ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं. ताजा फैसले के बाद यदि वाराताह कोल का प्रस्ताव प्रभावित होता है, तो अडाणी विरोधी आंदोलन को नई ऊर्जा मिल सकती है.