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समलैंगिक रिश्तों को सुप्रीम कोर्ट ने माना परिवार

२९ अगस्त २०२२

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एलजीबीटीक्यू रिश्तों और बिना शादी के बनाए गए रिश्तों को भी परिवार समझा जाना चाहिए. इसे अदालत द्वारा एलजीबीटीक्यू लोगों को शादी करने का अधिकार देने की राह में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

गे प्राइड परेड, कोलकाता
गे प्राइड परेड में एक जोड़ातस्वीर: Avishek Das/ZUMA Wore/IMAGO

समलैंगिक रिश्तों को कानूनी मान्यता देने के सालों बाद यह संभवतः पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने 'क्वियर' रिश्तों को भी परिवार की संज्ञा देने की अनुशंसा की है. यह महत्वपूर्ण इसलिए माना जा रहा है कि क्योंकि भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता अभी भी नहीं मिली है.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा है कि परिवार की परिभाषा अब बदल गई है और कानून और समाज को भी इस नई परिभाषा के प्रति अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परिवार का "असामान्य" रूप भी उतना ही असली है जितना उसका पारंपरिक रूपतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की एक पीठ ने कहा कि परिवार को लेकर आम धारणा "एक एकल, न बदलने वाली इकाई की है जिसमें एक माता, एक पिता और उनके बच्चे होते हैं और ये माता-पिता समय के साथ बदलते नहीं हैं."

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परिवार की बदलती परिभाषा

लेकिन पीठ ने कहा कि "यह मान्यता इस बात को नजरअंदाज करती है कि कई हालात होते हैं जिनकी वजह से परिवार के ढांचे में बदलाव आ सकता है और यह भी कि कई परिवार इस तरह की अपेक्षाओं को मानते ही नहीं हैं."

पीठ ने आगे कहा, "पारिवारिक संबंध घरेलु, अविवाहित साझेदारियों और क्वियर रिश्तों का रूप भी ले सकते हैं." पीठ ने कहा कि एक पारिवारिक इकाई का "असामान्य" रूप भी उतना ही असली है जितना उसका पारंपरिक रूप और उसे कानूनी संरक्षण मिलना ही चाहिए.

पीठ ने ये बातें एक मामले पर फैसला देने के दौरान कहीं. मामला एक महिला को मातृत्व अवकाश ना दिए जाने का था. महिला ने एक ऐसे व्यक्ति से शादी की थी जिसने दोबारा शादी की थी और उसे उसकी पहली पत्नी के साथ दो बच्चे हैं.

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महिला ने उन बच्चों का ख्याल रखने के लिए पहले अवकाश लिया था लेकिन उसके बाद उसने अपने बच्चे को जन्म दिया. जब उसने अपने बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश का आवेदन किया तब उसे यह कह कर ठुकरा दिया गया कि अवकाश तो वो पहले ले चुकी है.

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महिलाओं पर बोझ

सुप्रीम कोर्ट ने महिला को मातृत्व अवकाश दिए जाने का आदेश देते हुए कहा कि समाज की अपेक्षाओं और लिंग आधारित भूमिकाओं को निर्धारित कर दिए जाने की वजह से बच्चों का ख्याल रखने का बोझ अनुपातहीन रूप से महिलाओं पर लाद दिया जाता है.

और ऐसे में अगर मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाएं ना दी जाएं तो महिलाओं को मजबूरन काम करना छोड़ना पड़ता है. इसलिए पीठ ने कहा कि इस मामले में भी प्रभावित महिला को मातृत्व अवकाश दिया ही जाना चाहिए.

इस फैसले और अदालत की टिप्पणी को महिलाओं के अधिकारों के साथ साथ एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. भारत में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता 2018 में ही मिल गई थी लेकिन कानून समलैंगिक व्यक्तियों को आज भी ना शादी करने की इजाजत देता है और ना बच्चे गोद लेने की.

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