सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एलजीबीटीक्यू रिश्तों और बिना शादी के बनाए गए रिश्तों को भी परिवार समझा जाना चाहिए. इसे अदालत द्वारा एलजीबीटीक्यू लोगों को शादी करने का अधिकार देने की राह में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
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समलैंगिक रिश्तों को कानूनी मान्यता देने के सालों बाद यह संभवतः पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने 'क्वियर' रिश्तों को भी परिवार की संज्ञा देने की अनुशंसा की है. यह महत्वपूर्ण इसलिए माना जा रहा है कि क्योंकि भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता अभी भी नहीं मिली है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा है कि परिवार की परिभाषा अब बदल गई है और कानून और समाज को भी इस नई परिभाषा के प्रति अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की एक पीठ ने कहा कि परिवार को लेकर आम धारणा "एक एकल, न बदलने वाली इकाई की है जिसमें एक माता, एक पिता और उनके बच्चे होते हैं और ये माता-पिता समय के साथ बदलते नहीं हैं."
लेकिन पीठ ने कहा कि "यह मान्यता इस बात को नजरअंदाज करती है कि कई हालात होते हैं जिनकी वजह से परिवार के ढांचे में बदलाव आ सकता है और यह भी कि कई परिवार इस तरह की अपेक्षाओं को मानते ही नहीं हैं."
पीठ ने आगे कहा, "पारिवारिक संबंध घरेलु, अविवाहित साझेदारियों और क्वियर रिश्तों का रूप भी ले सकते हैं." पीठ ने कहा कि एक पारिवारिक इकाई का "असामान्य" रूप भी उतना ही असली है जितना उसका पारंपरिक रूप और उसे कानूनी संरक्षण मिलना ही चाहिए.
पीठ ने ये बातें एक मामले पर फैसला देने के दौरान कहीं. मामला एक महिला को मातृत्व अवकाश ना दिए जाने का था. महिला ने एक ऐसे व्यक्ति से शादी की थी जिसने दोबारा शादी की थी और उसे उसकी पहली पत्नी के साथ दो बच्चे हैं.
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महिला ने उन बच्चों का ख्याल रखने के लिए पहले अवकाश लिया था लेकिन उसके बाद उसने अपने बच्चे को जन्म दिया. जब उसने अपने बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश का आवेदन किया तब उसे यह कह कर ठुकरा दिया गया कि अवकाश तो वो पहले ले चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट ने महिला को मातृत्व अवकाश दिए जाने का आदेश देते हुए कहा कि समाज की अपेक्षाओं और लिंग आधारित भूमिकाओं को निर्धारित कर दिए जाने की वजह से बच्चों का ख्याल रखने का बोझ अनुपातहीन रूप से महिलाओं पर लाद दिया जाता है.
और ऐसे में अगर मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाएं ना दी जाएं तो महिलाओं को मजबूरन काम करना छोड़ना पड़ता है. इसलिए पीठ ने कहा कि इस मामले में भी प्रभावित महिला को मातृत्व अवकाश दिया ही जाना चाहिए.
इस फैसले और अदालत की टिप्पणी को महिलाओं के अधिकारों के साथ साथ एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. भारत में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता 2018 में ही मिल गई थी लेकिन कानून समलैंगिक व्यक्तियों को आज भी ना शादी करने की इजाजत देता है और ना बच्चे गोद लेने की.
एलजीबीटीक्यू+ जहां खुल कर घूम सकते हैं
लेस्बियन, गे, ट्रांसजेंडर, बायसेक्शुअल या क्वीयर- चाहे कोई किसी भी तरह की लैंगिक पहचान या यौन वरीयता वाला इंसान हो, दुनिया में कहीं भी उनके जाने पर रोक तो नहीं होनी चाहिए. देखिए कौन से हैं सबसे क्वीयर-फ्रेंडली ठिकाने.
तस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopres/picture alliance
कनाडा
कनाडा को विश्व का सबसे क्वीयर-फ्रेंडली देश कहना गलत नहीं होगा. वर्ल्ड ट्रैवल एवार्ड्स में इसे टॉप LGBTQ+ फ्रेंडली ठिकाना पाया गया. समलैंगिक शादियों को यहां 2005 से ही कानूनी मान्यता मिली हुई है. इसके अलावा यहां साल भर समुदाय की रंगबिरंगी पहचान का उत्सव मनाने के लिए कार्यक्रम होते रहते हैं. जैसे जून में होने वाला टोरंटो प्राइड (फोटो में) या अगस्त में मॉन्ट्रियाल प्राइड फेस्टिवल.
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माल्टा
भूमध्य सागर में बसा यह छोटा सा द्वीपीय देश यूरोप के कुछ सबसे प्रगतिशील देशों में से एक है. LGBTQ+ समुदाय के लिए यहां इतना काम हुआ है कि 2004 में यहां किसी भी यौन वरीयता या लैंगिक पहचान वाले इंसान के साथ भेदभाव पर रोक लग गई. 2016 में गे कनवर्जन थेरेपी को गैरकानूनी घोषित करने वाला भी यह पहला देश है.
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पुर्तगाल
लिस्बन और पोर्तो (फोटो में) को पुर्तगाल का सबसे विविधता से भरा और खुले विचारों वाला शहर कहा जा सकता है. यहां समलैंगिक शादियों को 2010 से ही वैधता मिली हुई है. इसके कुछ साल बाद समान सेक्स वाले जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार भी मिल गया. लेकिन ट्रांसजेंडर लोगों की सुरक्षा और तथाकथित कनवर्जन थेरेपी पर बैन लगाने जैसे कदम अभी बाकी हैं.
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स्वीडन
इसकी गिनती विश्व के सबसे प्रगतिशील देशों में होती है. यहां एलजीबीटीक्यू समुदाय की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं. इस स्कैंडिनेवियन देश में समान सेक्स के लोगों के बीच सेक्स को 75 साल पहले ही अपराध के दायरे से बाहर निकाल लिया गया था. अब तो यहां किसी को संबोधित करने के लिए एक ही न्यूट्रल सर्वनाम चलता है - "hen". पहले महिलाओं के लिए hon ("she") और पुरुषों के लिए han ("he") सर्वनाम चलन में थे.
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उरुग्वे
लैटिन अमेरिका के सबसे सहनशील देश के रूप में उरुग्वे का नाम आता है क्योंकि यह समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाला पहला देश था. इस छोटे से देश में 1934 से ही समान सेक्स के लोगों के बीच सहमति से होने वाले सेक्स को अपराध के दायरे से बाहर निकाल लिया गया था. 2004 में यहां LGBTQ+ समुदाय को सुरक्षा देने वाले कई कानून बनाए गए.
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ऑस्ट्रेलिया
घूमने फिरने वालों के दिमाग में ऑस्ट्रेलिया की छवि खूबसूरत समुद्री तटों और रंगबिरंगी संस्कृति वाले शहरों से जुड़ी होगी. लेकिन अब भी शायद यह नहीं पता होगा कि यह बेहद सहनशील देश भी है. यहां भेदभाव विरोधी कानून 1984 में ही पास हो गए थे. इनका मकसद किसी भी इंसान को उसकी लैंगिक पहचान या यौन वरीयता के आधार पर दुर्व्यवहार से बचाना था. 2017 से यहां समलैंगिक विवाह भी वैध हैं.
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जर्मनी
इंटरसेक्स लोगों के अधिकारों के लिए हाल के सालों में जर्मनी में काफी तरक्की हुई है. बड़े शहरों जैसे कोलोन (फोटो में) और राजधानी बर्लिन में समाज काफी हद तक क्वीयर-फ्रेंडली माना जा सकता है लेकिन देश के बाकी हिस्से इतने खुले विचारों वाले नहीं कहे जा सकते. एक ही लिंग के लोगों की आपस में शादी को यहां 2017 में ही कानूनी मान्यता मिल गई थी. इंटरसेक्स लोग भी अपनी अलग कानूनी पहचान रखते हैं.
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आइसलैंड
आर्कटिक के इस कम आबादी वाले देश आइसलैंड में ना केवल प्रकृति के अद्भुत नजारे और जाड़ों का स्वर्ग है बल्कि यहां क्वीयर लोगों की भी जन्नत है. ऐसे में LGBTQ+ लोगों के लिए इससे दोस्ताना, सुरक्षित और स्वागत करने वाला घूमने का ठिकाना खोजना मुश्किल होगा. राजधानी रिक्याविक (फोटो में) में 1999 से ही सालाना प्राइड फेस्टिवल होता आता है. समान-सेक्स शादियां 2010 से वैध हैं.
तस्वीर: IBL Schweden/picture alliance
ताइवान
LGBTQ+ लोगों के अधिकारों के मामले में एशिया के सबसे प्रगतिशील देश के रूप में ताइवान का नाम आता है. इस द्वीपीय देश में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ कई कानून बनाए गए हैं. समान सेक्स के लोगों की आपस में शादी को 2019 में कानूनी मान्यता देने वाला यह एशिया का पहला देश बना. और इस तरह उनके घूमने फिरने का सुरक्षित ठिकाना भी.
तस्वीर: Ceng Shou Yi/NurPhoto/picture alliance
कोलंबिया
कोलंबिया की संस्कृति वैसे तो कैथोलिक आस्था वाली और समाज में पुरुषवादी रवैया कूट कूट के भरा दिखता है लेकिन फिर भी इसकी गिनती लैटिन अमेरिका के सबसे प्रगतिवादी देशों में होती है. उरुग्वे के बाद यहां एलजीबीटीक्यू+ स्पेक्ट्रम के लोगों को सबसे ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में समलैंगिक शादियों को भी कानूनी मान्यता दे दी.(जोफी डिसेमोंड/आरपी)
तस्वीर: Sofia Toscano/colprensa/dpa/picture alliance