राजस्थान के सरकारी अस्पताल में कुछ ही घंटों में 9 नवजातों की मौत का सनसनीखेज मामला सामने आया है. सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के आदेश दिए हैं. 2019 में इसी अस्पताल में 100 से अधिक नवजातों की मौत हुई थी.
कोटा के जेके लोन अस्पताल में पांच नवजात शिशुओं की मौत बुधवार रात को हुई जबकि चार और नवजातों की मौत गुरुवार को हुई. मरने वाले सभी नवजात 1-4 दिन के बताए जा रहे हैं. सरकारी अस्पताल में कुछ ही घंटों के अंतराल में इतने बच्चों की मौत से राज्य सरकार भी हरकत में आ गई है. राज्य के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने नवजात शिशुओं की उचित देखभाल के लिए अस्पताल प्रशासन को सख्त निर्देश दिए हैं और लापरवाही के लिए सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी है. शर्मा ने ट्विटर पर जारी बयान में कहा, "तीन बच्चे मृत ही लाए गए थे, तीन बच्चों को जन्मजात बीमारी थी और 3 बच्चों की मौत फेफड़ों में दूध जाने के कारण हुई है."
जेके लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एससी दुलारा के हवाले से एक अखबार ने लिखा कि इस अस्पताल में रोजाना 30 से ज्यादा डिलीवरी होती है और औसत दो से तीन नवजातों की मौत होती है. उन्होंने कहा, "हालांकि 24 घंटे में नवजात शिशुओं की नौ मौतों को सामान्य नहीं कहा जा सकता है."
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे ने ट्वीट कर राजस्थान सरकार पर हमला बोला है और इसे प्रशासन की लापरवाही बताया है. उन्होंने कहा, "जेके लोन अस्पताल में प्रशासन की लापरवाही के चलते पिछले वर्ष भी केवल एक माह में ही सैकड़ों बच्चों की मौत हुई थी. लेकिन सरकार ने अपनी किरकिरी से बचने के लिए उस समय भी दोषियों को बचाने का काम किया था. वर्तमान स्वास्थ्य संकट के दौर में प्रशासन को पहले ही अलर्ट हो जाना चाहिए."
पिछले साल नवंबर और दिसंबर के महीने में करीब 110 नवजातों की मौत इसी अस्पताल में हुई थी और उस वक्त बच्चों की मौत पर बहुत बवाल हुआ था और राज्य सरकार पर भी सवाल उठ खड़े हुए थे. कुछ जानकारों का कहना है कि अब भी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी है. जेके लोन अस्पताल में आसपास के जिलों से आए नवजातों का भी इलाज होता है.
बच्चे के जन्म के बाद पहला साल बहुत अहम होता है. इस दौरान बच्चे की नींद और पोषण दोनों पर ध्यान देना जरूरी है. जानिए, शिशु की सेहत के लिए कुछ जरूरी टिप्स.
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वजन पर दें ध्यान
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन चार किलोग्राम या उससे ज्यादा होता है, वह बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं. इसीलिए इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि गर्भवती महिलाएं अत्यधिक खानपान से दूर रहें, कसरत करती रहें और उन्हें डायबिटीज न हो.
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मां से जुड़ाव
बच्चे मां का स्पर्श, उसकी खुशबू को पहचानते हैं. अक्सर कहा जाता हैं कि मां बच्चे की रुलाई पिता से बेहतर पहचानती है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं, मां और बाप दोनों अपने बच्चे की रोने की आवाज यकीन के साथ और समान रूप से पहचान सकते हैं.
हर बच्चे की नींद का पैटर्न अलग होता है, लेकिन कुल मिला कर नवजात शिशुओं को करीब 16 घंटे की नींद की जरूरत होती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती है यह कम होती जाती है.
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मां का दूध
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जन्म के बाद छह महीने तक तो बच्चे को केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए. थाईलैंड में सिर्फ पांच फीसदी महिलाएं बच्चों को अपना दूध पिलाती हैं. भारत अभी भी इससे बचा है. यूनिसेफ ने कहा कि इस मामले में दुनिया को भारत से सीख लेनी चाहिए.
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हाई टेक बच्चे
इन दिनों बहुत कम उम्र के बच्चों के लिए भी कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर ऐप उपलब्ध हैं, जो बच्चों के विकास में मददगार हैं. पहले दो सालों में दिमाग का आकार तीन गुना बढ़ जाता है, जो कि चीजों को छूने, फेंकने, पकड़ने, काटने, सूंघने, देखने और सुनने जैसी गतिविधियों से मुमकिन होता है.
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मां का तनाव
गर्भावस्था के समय कई बातों का सीधा असर पैदा होने वाले बच्चे और उसके आगे के जीवन पर पड़ता है. यदि गर्भवती महिला तनाव में है तो बच्चे तक पोषक तत्व नहीं पहुंचते. इसी तरह जन्म के बाद भी मां का अपनी सेहत पर ध्यान देना जरूरी है.
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दवाओं से दूर
छोटे बच्चों को अक्सर दवाओं से दूर रखने की कोशिश की जाती है. खास तौर से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक होता है. इनसे शरीर के फायदेमंद जीवाणु मर जाते हैं. मोटापा, दमा और पेट की बीमारियां बढ़ती हैं.
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स्वस्थ जीवन
बच्चों के लिए दुनिया बेहतर बन रही है. पिछले एक दशक में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है.