भारत को घेरते चीन से निपटने में काम आएगा ऑस्ट्रेलिया का साथ?
७ अक्टूबर २०२५
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 9 और 10 अक्टूबर को ऑस्ट्रेलिया का दौरा करेंगे. मोदी सरकार के कार्यकाल में यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय रक्षा मंत्री आधिकारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया का दौरा करेंगे. भारतीय रक्षा मंत्रियों का ऑस्ट्रेलिया का दौरा करना आम बात नहीं थी. जून 2013 में जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ऑस्ट्रेलिया गए थे, तब यह किसी भारतीय रक्षा मंत्री की ऑस्ट्रेलिया की पहली आधिकारिक यात्रा थी. हिंद-प्रशांत के इलाके में चीन की बढ़ती मौजूदगी के चलते भारत-ऑस्ट्रेलिया के रक्षा संबंध अहम हो गए हैं. यही वजह है कि पिछले तीन सालों में विदेश मंत्री एस. जयशंकर चार बार ऑस्ट्रेलिया जा चुके हैं.
अपनी दो दिन की यात्रा के दौरान राजनाथ सिंह, ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स से मुलाकात करेंगे. यह दौरा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है. इस यात्रा के दौरान समुद्री सुरक्षा, सूचना साझा करने और संयुक्त सैन्य अभ्यासों से जुड़े महत्तवपूर्ण समझौतों पर फैसला लिया जाएगा.
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यह दौरा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी (सीएसपी)' के पांच साल पूरे होने के मौके पर हो रहा है. इसके लिए ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने राजनाथ सिंह को औपचारिक निमंत्रण भेजा था.
अमेरिका की सुरक्षा भूमिका घटने से बदला गणित
उम्मीद है कि इस दौरान भारत और ऑस्ट्रेलिया अपने रक्षा संबंधों को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे. चीन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. जबकि इस इलाके में अमेरिका की सुरक्षा भूमिका कमजोर होती दिख रही है. ऐसे में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर बात होगी. इसको ध्यान में रखते हुए दोनों देश आपसी सहयोग की रणनीति पर भी बात करेंगे. इसी साल 3 और 4 जून को रिचर्ड मार्ल्स ने नई दिल्ली का दौरा किया था. इस दौरान भी हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों को लेकर विचार-विमर्श हुआ था.
इस यात्रा के दौरान भारत रक्षा उत्पादन, तकनीकी सहयोग और संयुक्त अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में भी ऑस्ट्रेलिया से साझेदारी बढ़ाने का प्रयास करेगा. राजनाथ सिंह, सिडनी में एक बिजनेस राउंडटेबल की अध्यक्षता भी करेंगे. दोनों देशों के उद्योग जगत की शीर्ष कंपनियां और प्रतिनिधि इसमें हिस्सा लेंगे. राजनाथ सिंह ऑस्ट्रेलिया में मौजूद अन्य राष्ट्रीय नेताओं से भी मिलेंगे.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती चीन
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव दोनों ही देशों के लिए चुनौती है. दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से पर चीन अपना दावा करता है, जबकि यह कई अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक रणनीतिक रिश्ता है. दोनों क्वाड का भी हिस्सा हैं. जिसके कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता कायम रखना दोनों अपनी साझा जिम्मेदारी मानते हैं.
रिटायर्ड मेजर जनरल संजय सोई बताते हैं कि समुद्र में चीन की सैन्य मौजूदगी बढ़ रही है. वो छोटे देशों पर दबाव बना रहा है. ऐसे में राजनाथ सिंह का ऑस्ट्रेलिया दौरा अहम हो जाता है. उन्होंने डीडब्लू से कहा, "चीन ने कई अर्टिफिकल आइलैंड बना लिए हैं. उनकी आर्मी की संख्या बढ़ी है. वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया जैसे देशों में इससे तनाव की स्थिति बनी हुई है. भारत और ऑस्ट्रेलिया को साथ देखकर इन देशों का मनोबल बढ़ता है. आज भारत फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात कर रहा है. वियतनाम को गश्ती पोत और सोनार सिस्टम दिया है. अब राजनाथ सिंह का ऑस्ट्रेलिया जाना दिखाता है कि भारत चीन का सामना करने के लिए तैयार है."
चीन की इन गतिविधियों को लेकर भारत, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहते. इस मुद्दे पर अमेरिका पूरी तरह पीछे नहीं हटा है लेकिन उसकी भूमिका में कुछ बदलाव आए हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका ट्रम्प की अगुआई में घरेलू मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रहा है.
ओ.पी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर एलिजाबेथ रोश कहती हैं कि भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे एक जैसी सोच वाले देशों का मिलकर खड़ा होना जरूरी है. उन्होंने डीडब्लू से कहा, "अमेरिका अब पूरी दुनिया की सुरक्षा और शांति स्थापित करने वाली अपनी पारंपरिक छवि को बदल रहा है. दशकों तक अमेरिका को वैश्विक सुरक्षा का संरक्षक माना गया. लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में यह स्थिति बदल रही है. ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका की रक्षा साझेदारी 'ऑकस' पर भी पुनर्विचार किया जा रहा है. बदलते माहौल में समान सोच रखने वाले देशों को एक साथ आकर यह विचार करना होगा कि इन परिस्थितियों से कैसे सामूहिक रूप से निपटा जाए. ऐसे में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और दक्षिण कोरिया जैसे देश एक साथ मिलकर संकट से निपटने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.”
और कौन से समझौते हो सकते हैं?
राजनाथ सिंह और रिचर्ड मार्ल्स तीन समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले हैं. ये इंटेलिजेंस शेयरिंग, समुद्री सुरक्षा और संयुक्त रक्षा अभियानों में सहयोग को मजबूत करेंगे. इनमे इंटेलिजेंस शेयरिंग अहम निर्णय होगा. भारत हिंद महासागर का मुख्य देश है. इस इलाके में बहुत सारे अहम समुद्री रास्ते हैं. ऑस्ट्रेलिया का स्थान भी बहुत रणनीतिक है. यह भारतीय और प्रशांत महासागरों के बीच स्थित है.
एलिजाबेथ रोश बताती हैं कि दोनों के लिए ये समुद्री क्षेत्र सुरक्षा और व्यापार के लिहाज से बहुत जरुरी है. यह समझौता जलमार्गों की निगरानी बढ़ाने में मदद करेगा. इन जलमार्गों से बहुत बड़ी मात्रा में व्यापार होता है. इसलिए इन्हें सुरक्षित रखना जरूरी है. समुद्री डकैती, आतंकवाद, अवैध मछली पकड़ना, तस्करी जैसी खतरनाक गतिविधियों को रोकने में सूचना साझा करना मदद करता है. दोनों देशों की नौसेनाएं मिलकर इस क्षेत्र की निगरानी कर सकती हैं. अगर दोनों देश एक-दूसरे के साथ जानकारी साझा करें, तो खतरे जल्दी पता चलेंगे और समय पर कार्रवाई हो सकेगी. खासकर चीन की समुद्री गतिविधियों और रणनीतिक विस्तार के कारण भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए सतर्क रहना जरूरी है.
दोनों देश साथ में करते रहते हैं युद्धाभ्यास
भारत और ऑस्ट्रेलिया का फोकस रक्षा संबंधों और समुद्री सहयोग पर है. भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही समुद्री मार्गों से भारी व्यापार करते हैं. इसी कारण वे एक स्वतंत्र, खुला और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र की मांग करते रहे हैं.
भारत और ऑस्ट्रेलिया की सशस्त्र सेनाओं के बीच पहले से ही व्यापक सहयोग हो रहा है. पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच 'एयर-टू-एयर' रिफ्यूलिंग का समझौता हुआ था. इसके अलावा, द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास जैसे 'ऑस्ट्राहिंद' भी नियमित रूप से आयोजित किया जाता है. इसी तरह, भारतीय नौसेना और रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी के बीच 'ऑसिंडेक्स' नामक अभ्यास होता है.
इसके अलावा मल्टीनेशनल एयर वॉरफेयर 'पिच ब्लैक' जैसे बहुपक्षीय अभ्यास भी होते हैं. समुद्र अभ्यास 'मालाबार' में भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया हिस्सा लेते हैं.
दोनों देशों ने अपने प्रधानमंत्री के बीच वार्षिक शिखर बैठकें आयोजित करने की परंपरा स्थापित की है. रक्षा और विदेश मंत्रियों की संयुक्त बैठकें भी होती हैं. भारत ने इसे '2+2' नाम दिया है. इस तरह के बातचीत का फॉर्मेट सबसे पहले अमेरिका के साथ शुरू हुआ था. भारत ने अमेरिका के साथ पहली 2+2 वार्ता 2018 में की थी. इसके बाद भारत ने जापान, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों के साथ भी इसी मॉडल को अपनाया.
ऑस्ट्रेलिया के साथ बढ़ते भारत के आर्थिक रिश्ते
दोनों देशों के बीच संबंध केवल डिफेंस तक सीमित नहीं. ऑस्ट्रलिया और भारत के बीच आर्थिक संबंधों में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है. साल 2022 में भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) के साइन होने के बाद से भारत और ऑस्ट्रेलिया के निर्यात में काफी बढ़ोतरी हुई है.
इस समझौते से दोनों देशों के बीच वस्तुओं का व्यापार लगभग दोगुना हो गया. इसे लेकर ऑस्ट्रेलिया के व्यापार और पर्यटन मंत्री डॉन फैरेल ने कहा था कि ईसीटीए के लागू होने के एक वर्ष में हमने ऑस्ट्रेलिया के कई निर्यातकों को बड़ा लाभ होते देखा है. इनमे किसान, निर्माता और विश्वविद्यालय भी शामिल हैं. यह एक ऐसा संबंध है जिसमें ऑस्ट्रलिया निवेश करना चाहता है, और वह भारत के साथ मिलकर दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते को अगले स्तर तक ले जाने के लिए तत्पर है.
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते के लागू होने के बाद से भारत का ऑस्ट्रेलिया को निर्यात 14 फीसदी बढ़ा है. इस वृद्धि में विशेष रूप से कपड़े, केमिकल, और कृषि उत्पादों का योगदान रहा है. व्यापार में यह सकारात्मक गति 2024–25 के पहले आठ महीनों अप्रैल से नवंबर में भी जारी रही. दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 16.3 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है.
दोनों देश एक-दूसरे को बेचना चाहते हैं हथियार
दुनिया की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएं- अमेरिका, चीन, जापान और भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं. इस क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत और चीन भी हैं. ऐसे में भारत अब अपने रक्षा उत्पादों का निर्यात भी बढ़ाना चाहता है ताकि वह वैश्विक रक्षा बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी बन सके. इसके लिए भारत 'मेक इन इंडिया' के तहत देश के अंदर ही हथियार और रक्षा उपकरण बनाना चाहता है. इससे भारत की सुरक्षा मजबूत होगी और विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम होगी.
इंडिया-ऑस्ट्रेलिया इंस्टीट्यूट में फेलो डॉ. प्रकाश गोपाल डीडब्लू को बताते हैं, 'ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों अपने-अपने रक्षा उद्योगों को विकसित करने के इच्छुक हैं. लेकिन स्पष्ट है कि हर देश की अपनी सीमाएं हैं और वे वास्तव में कितना हासिल कर सकते हैं, इसकी हदें होती हैं. इसलिए यह बहुत फायदेमंद होगा अगर वे ऐसे क्षेत्रों की पहचान करें जहां भारत ऑस्ट्रेलिया के लिए उत्पाद (मेक फॉर ऑस्ट्रेलिया) बना सके और ऑस्ट्रेलिया भारत के लिए (मेक फॉर इंडिया) बना सके. इससे दोनों देशों को बड़ा लाभ होगा.”
अगर ऐसा संभव हुआ तो दोनों ही देश बिना होड़ किए एक-दूसरे के रक्षा हितों में सहयोग करने में सक्षम रहेंगे.