राज्यसभा चुनाव: 16 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला आज
चारु कार्तिकेय
१० जून २०२२
राज्यसभा चुनावों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और हरियाणा की 16 सीटें के लिए मतदान हो रहा है. कुल 57 सीटें भरी जानी हैं, लेकिन उनमें से 41 पर उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए गए हैं.
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राज्यसभा की 57 सीटें खाली हैं जिनमें से 16 सीटों पर चुनावों के लिए मतदान शुरू हो चुका है. खाली पड़ी हुई 57 सीटें उत्तर प्रदेश (11), महाराष्ट्र (6), तमिलनाडु (6), बिहार (5), कर्नाटक (4), राजस्थान (4), आंध्र प्रदेश (4), मध्य प्रदेश (3), ओडिशा (3), पंजाब (2), झारखंड (2), हरियाणा (2), छत्तीसगढ़ (2), तेलंगाना (2) और उत्तराखंड (1) से हैं.
41 सीटों पर उम्मीदवार बिना किसी विरोध के जीत चुके हैं. बाकी 16 सीटों के लिए बीजेपी और विपक्षी पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है. जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टियों ने पिछले कुछ दिनों से अलग अलग राज्यों में अपने अपने विधायकों को होटलों में रखा था. राजस्थान और महाराष्ट्र में टक्कर सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि दोनों राज्यों में उन पार्टियों की सरकारें हैं जो केंद्र में विपक्ष में हैं.
कैसे होते हैं राज्यसभा चुनाव
जहां लोकसभा हर पांच साल पर भंग कर दी जाती है और फिर उसकी सभी 543 सीटों के लिए चुनाव होते हैं, राज्यसभा एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं किया जाता है. सदन की निरंतरता जारी रहे इसलिए हर दूसरे साल इसके 243 सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य रिटायर हो जाते हैं और फिर उन सीटों को भरने के लिए एक साल छोड़ कर चुनाव होते हैं.
243 सदस्यों में से 12 तो राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं और 233 सीटों के लिए चुनाव होते हैं. चूंकि राज्यसभा मूल रूप से राज्यों की परिषद है, ये 233 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं. इनका चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है, यानी इन्हें सीधे जनता नहीं बल्कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि यानी राज्यों के विधायक करते हैं.
चुनावों में जीत खाली सीटों की संख्या और राज्य की विधान सभा में कुल सीटों की संख्या पर निर्भर करती है. मिसाल के तौर पर अगर सिर्फ एक सीट के लिए चुनाव होना है और उस राज्य की विधान सभा में 100 वोट डाले गए हैं, तो राज्य सभा सीट के उम्मीदवार को 100 बटा दो जमा एक, यानी 51 वोटों की जरूरत पड़ेगी.
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दो मीडिया बैरन रेस में
अगर एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव होने हैं तो हर वोट को 100 का मूल्य दे दिया जाता है, फिर सभी उम्मीदवारों को मिले वोटों के मूल्य की गिनती की जाती है, कुल मूल्य को खाली सीटों की संख्या से एक ज्यादा आंकड़े से विभाजित कर उसमें फिर एक और जोड़ दिया जाता है.
यूरोप के सबसे शानदार संसद भवन
यूरोपीय देशों के संसद भवनों का इतिहास 13वीं सदी तक जाता है. लेकिन कई इमारतें हाल ही में बनी हैं और आधुनिकता का प्रतीक हैं. देखिए, दस सबसे सुंदर इमारतें...
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बुखारेस्ट, रोमानिया
रोमानिया की संसद को रोमानिया के कम्यूनिस्ट तानाशाह निकोलाई चोउशेस्को ने बनवाया था. इसे दुनिया का सबसे बड़ा संसद भवन माना जाता है. 1,000 कमरों वाले इस भवन का निर्माण 1989 में पूरा हुआ.
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वॉरसा, पोलैंड
पोलैंड नेशनल असेंबली में दो सदन हैं. एक तरफ निचला सदन यानी सेम (तस्वीर में) है जबकि दूसरे में सेनेट. जब संसद सत्र नहीं चल रहा होता तो आम लोग इस इमारत की यात्रा कर सकते हैं.
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विलनियस, लिथुआनिया
लिथुआनिया का संसद भवन 1967 से 1980 के बीच एक खेल स्टेडियम की जगह बनाया गया था. तब देश पर सोवियत संघ का नियंत्रण था.
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टालिन, एस्टोनिया
एस्टोनिया की संसद के आर्किटेक्चर को लेकर काफी विवाद रहा क्योंकि इसे अत्याधुनिक माना गया. माना जाता है कि अपनी तरह का यह दुनियाभर में अकेला संसद भवन है.
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हेलसिंकी, फिनलैंड
इस इमारत को आर्किटेक्ट योहान जीगफ्रीड सिरेन ने डिजाइन किया था. 1931 में खुला यह भवन राजधानी हेलसिंकी के केंद्र में स्थित है और शहर की पहचान भी है.
चार साल के पुनरोद्धार के बाद जर्मन संसद की यह इमारत 1999 में तत्कालीन संसदीय अध्यक्ष वॉल्फगांग थिएरसे को सौंपी गई थी. इसके साथ बॉन से जर्मनी की राजधानी वापस बर्लिन ले जाने की औपचारिकता भी पूरी हो गई थी. इसका शीशे का बना डोम और छत पर बाग चर्चा का विषय रहे हैं.
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द हेग, नीदरलैंड्स
यह ऐतिहासिक इमारत 13वीं सदी से देश की पहचान है. अब इसकी तुरंत मरम्मत की जरूरत है क्योंकि इमारत की हालत काफी खराब हो चुकी है. इसलिए पुनरोद्धार का काम शुरू हो गया है.
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कार्डिफ, वेल्स
यूरोप की आधुनिक संसदीय इमारतों में से एक वेल्स की यह इमारत 2006 में खोली गई थी. इसके निर्माण में स्लेट पत्थर और वेल्श ओक जैसी स्थानीय सामग्री का विशेष प्रयोग किया गया. यह एक ग्रीन इमारत है और कुदरती साधनों का ज्यादा प्रयोग करती है.
2015 में माल्टा को नया संसद भवन मिला था. इसे इटली के आर्किटेक्ट रेंजो पियानो ने डिजाइन किया है. लाइमस्टोन से बनी इस इमारत को इस तरह बनाया गया है कि ऊर्जा की खपत कम से कम हो. छत पर सोलर पैनल लगे हैं और नीचे की मंजिल पर एक आर्ट गैलरी भी है.
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इस बार इन चुनावों में दो उम्मीदवार आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. पहले हैं जी मीडिया समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा जिन्हें बीजेपी ने राजस्थान से पांचवें उम्मीदवार के रूप में उतारा है. दूसरे हैं इंडिया न्यूज और न्यूजएक्स समाचार चैनलों के मालिक कार्तिकेय शर्मा. शर्मा राजनेता विनोद शर्मा के बेटे और मॉडल जेसिका लाल की हत्या के दोषी पाए गए मनु शर्मा के भाई हैं. वो हरियाणा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरे हैं लेकिन उन्हें बीजेपी का समर्थन प्राप्त है.
इन चुनावों की अहमियत राष्ट्रपति के लिए 18 जुलाई को होने वाले चुनावों में भी सामने आएगी. बीजेपी पहले ही राज्यसभा में 100 से ज्यादा सीटें हासिल कर चुकी हैं लेकिन पार्टी को उम्मीद है कि अगर और सीटें मिल जाएं तो वो राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार को आसानी से जीत दिला सकेगी.
किसने खोए और किसने पाए सबसे ज्यादा दलबदलू नेता
दलबदलू नेताओं पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट में कई दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं. जानिए पिछले पांच सालों में कितने विधायक और सांसद चुने गए किसी और पार्टी के टिकट पर और बाद में चले गए किस और पार्टी में.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
बड़ी संख्या
एडीआर के मुताबिक पिछले पांच सालों में कम से कम 433 सांसदों और विधायकों ने चुनाव जीतने के बाद पार्टी बदल ली और अगला चुनाव इसी नई पार्टी के टिकट पर लड़ा.
तस्वीर: imago images/Hindustan Times
गिरा देते हैं सरकार
हाल में मध्य प्रदेश, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक में विधायकों के दल बदलने की वजह से सरकारें गिर गईं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/M. Faruqui
किसने खोए सबसे ज्यादा नेता
2016 से 2020 के बीच हुए चुनावों के दौरान इनमें से सबसे ज्यादा, यानी 170 (42 प्रतिशत), विधायक कांग्रेस ने गंवा दिए. बीजेपी ने सिर्फ 18 विधायक (4.4 प्रतिशत) गंवाए. बीएसपी और टीडीपी ने 17, एनपीएफ और वाईएसआरसीपी ने 15, एनसीपी ने 14, एसपी ने 12 और आरजेडी ने 10 विधायक खोए. सबसे कम विधायक सीपीआई (1), डीएमके (1) और आरएलडी (2) जैसी पार्टियों ने खोए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup
सबसे लोकप्रिय ठिकाना
इन दलबदलू नेताओं में से सबसे ज्यादा नेता बीजेपी में गए. इस अवधि में इनमें से 405 विधायकों ने दोबारा चुनाव लड़ा, जिनमें 182 (44.9%) विधायक अपनी अपनी पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए. कुल 38 विधायक (9.4%) कांग्रेस में गए जबकि 25 विधायक (6.2%) टीआरएस में शामिल हुए.
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लोक सभा में बीजपी को नुकसान
2019 के लोक सभा चुनावों के दौरान बीजेपी के पांच लोक सभा सदस्यों ने (41.7%) ने दूसरी पार्टी का दामन थामा. कुल 12 लोक सभा सदस्यों ने अपनी पार्टी छोड़ी और उनमें से पांच (41.7%) कांग्रेस में शामिल हुए.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
राज्य सभा में कांग्रेस का पलड़ा हल्का
2019 के चुनावों के दौरान कांग्रेस के सात राज्य सभा सदस्यों (43.8%) ने पार्टी को छोड़ दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. कुल 16 राज्य सभा सदस्यों ने अपनी पार्टी छोड़ी और उनमें से 10 (62.5%) बीजेपी में शामिल हुए.
तस्वीर: DW/A. Ansari
दलबदलू नेताओं का हश्र
2019 लोक सभा चुनावों में जिन 12 सांसदों ने अपनी पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा उनमें से एक भी सांसद चुनाव जीत नहीं पाया. पिछले पांच सालों में अलग अलग राज्यों में 357 विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ दी, लेकिन उनमें से सिर्फ 170 विधायक ही दोबारा चुनाव जीत पाए. विधान सभाओं के उप-चुनावों में 48 विधायकों ने पार्टी बदली, लेकिन उनमें से सिर्फ 39 जीत पाए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
राज्य सभा की कहानी अलग
मौजूदा राज्य सभा में 16 ऐसे सदस्य हैं जो इससे पहले भी राज्य सभा में थे, लेकिन दूसरी पार्टी में. पार्टी बदलने के बावजूद ये सब दोबारा चुनाव जीत गए.