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राम मंदिर के उद्घाटन पर क्या सोचते हैं देश के मुसलमान

११ जनवरी २०२४

22 जनवरी को राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. एक ओर जहां हिंदुत्ववादी संगठन इसे सफल बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, वहीं इसको लेकर मुसलमानों के मन में कुछ सवाल हैं.

दिल्ली की जामा मस्जिद
दिल्ली की जामा मस्जिदतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर जहां एक ओर राजनीतिक बयानबाजी जोरों पर है, वहीं भारतीय मुसलमान भी इस घटनाक्रम पर करीबी से नजर बनाए हुए हैं. कई मुसलमानों का मानना है कि राम मंदिर का उद्घाटन कोई धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि बीजेपी का राजनीतिक कार्यक्रम है. उनका कहना है कि इससे भारत में निष्पक्ष विचारधारा वाले लोगों का आत्मविश्वास भी कम हो सकता है.

जैसे-जैसे राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख नजदीक आ रही है, मुसलमान समुदाय में कई लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है. मुसलमानों के कई धार्मिक और सामाजिक नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर समुदाय और देश के लोगों से शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करने की अपील की है.

राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं. पिछले महीने अयोध्या में एक जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने देश के हिंदुओं से 22 जनवरी को अपने घरों में राम ज्योति जलाने और दीपावली मनाने की अपील की थी. उन्होंने हिंदुओं से इस दिन अपने घरों में भी भगवान राम को याद करने का आग्रह किया.

अयोध्या दौरे के दौरान मोदी ने महर्षि वाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट और अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया था. साथ ही, पीएम ने 15,700 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास भी किया था.

अयोध्या में तेजी से हो रहा है विकास का कामतस्वीर: Goutam Hore/DW

मुसलमान समाज क्या कह रहा है

जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष, इंजीनियर मोहम्मद सलीम कहते हैं कि इस समारोह का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों और ध्रुवीकरण के लिए नहीं किया जाना चाहिए. डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में मोहम्मद सलीम ने कहा, "ऐसा लगता है कि राम मंदिर का उद्घाटन बीजेपी का चुनावी कार्यक्रम और प्रधानमंत्री की राजनीतिक रैली बनकर रह गया है."

सलीम कहते हैं, "श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव ने मंदिर के उद्घाटन की तुलना स्वतंत्रता दिवस से की है, जो गलत और आहत करने वाला है और यह बयान देश को धार्मिक आधार पर बांटने वाला है."

पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने मुसलमानों से अपील की कि वे अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के उद्घाटन के मौके पर मस्जिदों, दरगाहों और मदरसों में "श्री राम, जय राम, जय जय राम" का जाप करें. उन्होंने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जब अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हो, तब मस्जिदों, दरगाहों, मदरसों, चर्चों और गुरुद्वारों में शांति, सद्भाव और भाईचारे के लिए प्रार्थना का आयोजन किया जाए.

"सतर्क रहें मुसलमान"

इंद्रेश कुमार की इस अपील पर सलीम कहते हैं, "भारत में संवैधानिक रूप से हर व्यक्ति को अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन करने का अधिकार है और किसी को भी दूसरे धर्म के रीति-रिवाजों को मानने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है."

इस्लामिक मामलों के जानकार और मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर अख्तर-उल-वासे ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमें इन परिस्थितियों में उकसावे की कोशिशों को पूरी तरह से खारिज कर देना चाहिए और मुसलमानों को भी इससे बचना चाहिए."

मुस्लिम जानकारों का कहना है कि उकसावे की कोशिश को नकार देना चाहिएतस्वीर: Sharique Ahmad/DW

प्रोफेसर वासे ने यह भी रेखांकित किया कि मुसलमानों को सोशल मीडिया पर अनावश्यक बयानबाजी से बचना चाहिए. उन्होंने आशंका जताई कि सांप्रदायिक तत्व इस मौके का इस्तेमाल देश का माहौल खराब करने के लिए कर सकते हैं, ऐसे में मुस्लिम समुदाय को भी सतर्क रहना चाहिए.

पिछले हफ्ते ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने असम के बारपेटा में एक कार्यक्रम के दौरान चेताया, "हमें सावधान रहना होगा, मुसलमानों को 20 से 25 जनवरी तक ट्रेन से यात्रा नहीं करनी चाहिए. हमें घरों में ही रहना चाहिए."

"धर्म का मामला निजी होना चाहिए"

इस कार्यक्रम में अजमल ने कहा, "बीजेपी मुसलमानों से नफरत करती है और बीजेपी हमारे धर्म, अजान के खिलाफ है. 22 जनवरी को राम मंदिर में राम की मूर्ति रखी जाएगी और इस दिन मुसलमान कहीं आने-जाने या रेल की यात्रा करने से बचें."

अजमल के इस बयान के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि बीजेपी मुसलमानों से नफरत नहीं करती है. उन्होंने कहा, "हम सबका साथ, सबका विश्वास के मंत्र के साथ काम करते हैं. अजमल को बीजेपी से नफरत है. इकबाल अंसारी को भी राम मंदिर के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण भेजा गया है, तो मुसलमान कहां बीजेपी से डर रहे हैं."

अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन होना हैतस्वीर: SANJAY KANOJIA/AFP/Getty Images

वैज्ञानिक और शायर गौहर रजा डीडब्ल्यू से कहते हैं, "एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं निश्चित रूप से सोचता हूं कि जो लोग मस्जिद गिराकर, मंदिर बनाकर खुश हैं, वो इंसानियत की सीढ़ी में थोड़ा नीचे दिखाई देते हैं." रजा कहते हैं, "अगर ये आरोप लगा रहे हैं कि बाबर ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई थी, तो उन्होंने भी वही काम किया है. दोनों के बीच कोई फर्क नहीं है."

धर्म के राजनीतिकरण के मुद्दे पर रजा कहते हैं कि यह किसी भी समाज को बर्बाद कर सकता है. राजनीति में धर्म को घुसाए जाने के प्रति आगाह करते हुए रजा कहते हैं , "हमारे पास पाकिस्तान का उदाहरण मौजूद है. उसकी बर्बादी का कारण धर्म और उसका राजनीतिकरण है. मजहब एकदम निजी मामला होना चाहिए और समाज में फाइव स्टार मंदिर, फाइव स्टार मस्जिद या फाइव स्टार चर्च बनाना बंद होना चाहिए. हमारी प्राथमिकता बच्चों को शिक्षा देने की होनी चाहिए."

रजा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैं समझता हूं कि जब हिंदुस्तान का वैज्ञानिक इस काम में लगा हुआ है कि कैसे वह साइंस की नई ऊंचाइयों को छूने की कोशिश करे, तो समाज में इस तरह से हिंसक धर्म को फैलाना आने वाली पीढ़ियों और वैज्ञानिकों के लिए बहुत बुरा होने वाला है."

मुसलमानों के मन में इस बात को लेकर भी सवाल है कि क्या राम मंदिर के उद्घाटन बाद कोई नया विवाद तो नहीं पैदा हो जाएगा, जैसा कि ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह से जुड़ा मुद्दा फिलहाल कोर्ट में चल रहा है. भारत में ऐसी कई और मस्जिदें हैं, जिनपर हिंदुत्ववादी संगठन पहले हिंदू मंदिर होने का दावा करते हैं.

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