2005 के बाद से समुद्र के तापमान में वृद्धि की दर दोगुनी हुई
४ अक्टूबर २०२४
यूरोपीय संघ की निगरानी संस्था कॉपरनिकस की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि से महासागरों के गर्म होने की गति 2005 के बाद से लगभग दोगुनी हो गई है.
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कॉपरनिकस समुद्री सेवा के निष्कर्षों से पता चलता है कि पृथ्वी के गर्म होने से महासागरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जो पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत भाग को ढके हुए हैं और वायुमंडल का संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
कॉपरनिकस की समुद्र विज्ञानी करीना फोन शुकमान ने संवाददाताओं को बताया कि 1960 के दशक से महासागरों का तापमान "लगातार बढ़ रहा है", लेकिन 2005 के बाद से इसमें तेज वृद्धि हुई है. पिछले दो दशकों में तापमान वृद्धि की गति लगभग दोगुनी हो गई है, जो दीर्घकालिक दर 0.58 वाट प्रति वर्ग मीटर से बढ़कर 1.05 वाट प्रति वर्ग मीटर हो गई है."
शुकमान ने कहा, "महासागरों के बढ़ते तापमान को वैश्विक तापमान वृद्धि के हमारे प्रहरी के रूप में देखा जा सकता है."
महासागरों में गर्म लहरें
ये निष्कर्ष इंटर-गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के विचारों से मेल खाते हैं, जो इंसानों द्वारा ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जनों के कारण महासागरों के दीर्घकालिक रूप से गर्म होने की बात कहते हैं. आईपीसीसी का कहना है कि 1970 के बाद से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण वायुमंडल में फंसी अतिरिक्त गर्मी का लगभग 90 प्रतिशत महासागरों द्वारा सोख लिया गया है.
गर्म महासागर वैश्विक मौसम पैटर्न और वर्षा के स्थानों को प्रभावित करके तूफान, चक्रवात और अन्य कठोर मौसम के लिए जिम्मेदार होते हैं. कॉपरनिकस की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दुनिया के 20 प्रतिशत से अधिक महासागरों में कम से कम एक बार गंभीर से चरम समुद्री ताप लहर का अनुभव हुआ, जिसका समुद्री जीवन और मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
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समुद्री प्रजाति पर भी असर
ऐसी गर्म लहरों के कारण कुछ प्रजातियों का पलायन और सामूहिक मौत हो सकती है, नाजुक ईकोसिस्टम को नुकसान पहुंच सकता है और गहरे और छिछले पानी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे पोषक तत्वों का वितरण बाधित हो सकता है.
शुकमान ने कहा कि महासागर का गर्म होना "जैव विविधता से लेकर रसायन विज्ञान, समुद्र विज्ञान प्रक्रियाओं, धाराओं और साथ ही वैश्विक जलवायु तक, समुद्री दुनिया के सभी पहलुओं को प्रभावित कर सकता है."
शुकमान ने एक शोध पत्र का हवाला देते हुए कहा कि पहले की आधार रेखा की तुलना में, आर्कटिक में उत्तर-पूर्वी बैरेंट्स सागर का तल "स्थायी समुद्री ताप लहर की स्थिति में प्रवेश कर चुका है."
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त 2022 में स्पेन के तटवर्ती बेलिएरिक द्वीप समूह के तटीय जल में 29.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो 40 वर्षों में सबसे गर्म था. उसी साल भूमध्य सागर में समुद्री गर्म लहर सतह से लगभग 1,500 मीटर नीचे तक फैल गई, जिससे यह पता चला कि किस प्रकार गर्मी गहरे समुद्र तक पहुंच सकती है.
एए/वीके (एएफपी)
धरती पर जीवन सागर से चलता है
पृथ्वी के सबसे बड़े हिस्से पर सागर है और यह जलवायु को नियंत्रित करता है. धरती के मौसम से लेकर रंग तक सब इस पर निर्भर है. जलवायु परिवर्तन का असर सागरों पर भी है लेकिन यह कितना है इसे वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए हैं.
हमारा नीला ग्रह
पृथ्वी को नीला ग्रह यूं ही नहीं कहा जाता. हमारी धरती की सतह का 71 फीसदी और जीवमंडल का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र है. यह जीवन के लिए जरूरी है और पृथ्वी पर मौजूद ऑक्सीजन का 50 से 80 फीसदी यहीं से आता है. कार्बन चक्र के लिए यह बेहद जरूरी है. पृथ्वी पर सागर कब बने यह अब भी नहीं पता है, लेकिन समझा जाता है कि यह करीब 4.4 अरब वर्ष पहले बने थे और शुरुआती जीवन में इन्होंने उत्प्रेरक की भूमिका निभाई थी.
तस्वीर: NASA
गहराई के रहस्य
विशाल आकार के बावजूद हम सागर के बारे में बहुत कम जानते हैं. वास्तव में अभी पानी के नीचे छिपी दुनिया का 80 फीसदी से ज्यादा ऐसा है जिसकी पड़ताल नहीं की गई है. वैज्ञानिक गहराई में छिपे रहस्यों को ढूंढने पर काम कर रहे हैं जिनसे शायद हमें पर्यावरण के परिवर्तनों को समझने में ज्यादा मदद मिलेगी. यह भी पता चल सकेगा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में सागर के संसाधन का प्रबंधन कैसे किया जाए.
तस्वीर: Colourbox/S. Dmytro
पृथ्वी का जलवायु नियंत्रक
हम यह जानते हैं कि पृथ्वी के जलवायु के नियंत्रण में सागर बड़ी भूमिका निभाते हैं. अब यह चाहे सौर विकिरण को अवशोषित करना हो, तापमान का वितरण हो या फिर मौसम के चक्र को चलाना हो. हालांकि जलवायु परिवर्तन ने इस संतुलन को बिगाड़ना पहले ही शुरू कर दिया है. इससे सागर के इकोसिस्टम से जुड़े कामों की क्षमता पर असर पड़ रहा है जैसे कि कार्बन का भंडारण और ऑक्सीजन का निर्माण.
सागर में जीवन
सागर में कम से कम 230,000 ज्ञात जीव रहते हैं. कोरल रीफ जैसे समुद्र तल केकड़ों, स्टारफिश, घोंघे के साथ ही रंग बिरंगी रीफ मछलियों को पनाह देते हैं. छिछली गहराइयों में कई तरह की वनस्पतियों का गुजर बसर होता है. ज्यादा गहराई वाले इलाकों में शार्क, व्हेल और डॉल्फिन अठखेलियां करती हैं. यानी सागर के पग पग पर जीवन है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
अनोखे और शानदार जीव
वैज्ञानिकों के इस दावे पर कोई हैरानी नहीं होती कि दो तिहाई से ज्यादा सागर के जीवों की अब तक खोज नहीं हुई है. हालांकि रिसर्चरों को हर साल कुछ नए जीव मिल रहे हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया. अब इस स्क्वीडवर्म को ही देखिए. इसे 2007 में सेलिब्स सी में खोजा गया. अभी और क्या सामने आना है इसके बारे में हर कोई कयास लगा सकता है.
तस्वीर: Laurence Madin, WHOI
खतरे का संकेत
इतनी विशालता के बावजूद सागर दबाव में है. इसका सबसे सहज उदाहण है दुनिया भर में कोरल रीफ की सफाई की बढ़ती घटनाएं. बढ़ते तापमान और प्रदूषण के कारण कोरल पर तबाव बढ़ रहा है और वहां से खास किस्म का शैवाल बाहर जा रहा है. यह शैवाल ही उन्हें बढ़ने और प्रजनन करने देता है. ऐसे में पीछे बस डरावने कंकाल ही बच जा रहे हैं. कुछ कोरल इससे उबर सकते हैं लेकिन लगातार दबाव बना रहा तो उनकी मौत का खतरा बढ़ जाएगा.
तस्वीर: XL Catlin Seaview Survey
कोई आसरा नहीं
जलवायु परिवर्तन का असर समुद्री जीवों पर भी हो रहा है. हाल की एक रिसर्च दिखाती है कि मछली, घोंघा और केकड़ों की स्थानीय आबादी धरती पर लुप्त हो रहे जीवों की तुलना में दोगुनी तेजी से गायब हो रही है. इसका मुख्य कारण है अधिकतम तापमान का बढ़ना. सागर में गर्मी बढ़े तो बचने के लिए कोई कहां जाए. दुखद यह है कि ज्यादातर समुद्री जीव खुद को इतना नहीं ढाल पाएंगे कि बदलती परिस्थितियों का सामना कर सकें.
भारी पिघलन
पृथ्वी का वह हिस्सा जो ठोस पानी यानी हिम और बर्फ से ढंका है वह गर्मी के कारण पिघल रहा है. कहीं बर्फ पिघल रही है तो कहीं ग्लेशियर. मौजूदा पिघलन से ही दुनिया भर में समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और समुद्रों की अम्लीयता भी बढ़ रही है. इसकी वजह है आर्कटिक सागर के तल के पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाली मीथेन गैस.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
टूटती जीवनरेखा
मनुष्य बहुत गहराई से समुद्र से जुड़ा हुआ है. हजारों सालों से मानव समुदाय सागर किनारों पर बसते आए हैं. वो भोजन और रोजगार के लिए उस पर निर्भर हैं. आज करीब एक अरब से ज्यादा की आबादी निचले तटवर्ती इलाकों में रहती है जो समुद्र के जलस्तर के बढ़ने की वजह से खतरे में आने वाला है.
तस्वीर: imago
खत्म होते बियाबान
हालांकि इंसानों से संपर्क की कीमत सागरों ने चुकाई है. दुनिया के सागर क्षेत्र का महज 13 फीसदी इलाका ही ऐसा है जहां इंसानी गतिविधियां नहीं चल रही हैं. तटवर्ती इलाकों से लगते क्षेत्र में तो अब कोई बियाबान बचा ही नहीं. तकनीकी रूप से आगे बढ़ने का मतलब यह है कि आर्कटिक महासागर के सुदूर इलाके भी अब अनछुए नहीं रह गए हैं. बाकी बचे बियाबानों को बचा पाना आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.