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आरबीआई कोई फैसला नहीं लेता, सब मोदी करते हैं: अमर्त्य सेन

११ जनवरी २०१७

रिजर्व बैंक के दो पूर्व गवर्नरों वाईवी रेड्डी और बिमल जालान के बाद अब नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भी भारत के केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर खतरे को लेकर चिंता जताई है.

Indien - Federal Reserve Bank of India
तस्वीर: Getty Images

अमर्त्य सेन ने कहा है कि अब केंद्रीय बैंक कोई फैसला नहीं लेता, सारे फैसले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेते हैं.

अमर्त्य सेन नोटबंदी के तीखे आलोचक हैं. उन्होंने कहा कि यह नीति काले धन को बाहर लाने में पूरी तरह नाकाम रही है लेकिन लोग उम्मीद के आधार पर प्रधानमंत्री का साथ दिए जा रहे हैं. समाचार चैनल इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में सेन ने कहा, "लोग सोचते हैं कि काले धन की समस्या को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री कुछ कर रहे हैं. उन्हें संदेह का लाभ मिलता रहेगा. गरीबों को यह बात अच्छी लगती है कि अमीरों को मुश्किल हो रही है."

तस्वीर: AP

बंद किए गए नोटों को 30 दिसंबर के बाद ना बदलने के आरबीआई के फैसले पर अमर्त्य सेन ने कहा आरबीआई तो अब कोई फैसला लेता ही नहीं. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि यह आरबीआई का फैसला है. प्रधानमंत्री ने यह फैसला लिया होगा. मुझे नहीं लगता अब आरबीआई कोई फैसला लेता है." 8 नवंबर 2016 के अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जो लोग 30 दिसंबर तक अपने पुराने नोट नहीं बदलवा पाएंगे, वे 31 मार्च 2017 तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ब्रांचों में एक फॉर्म भरकर नोट बदलवा सकते हैं. लेकिन 27 दिसंबर को आरबीआई ने ऐलान किया कि ऐसा नहीं हो पाएगा और 30 दिसंबर के बाद नोट नहीं बदले जाएंगे. सेन ने कहा कि रघुराम राजन के कार्यकाल में आरबीआई एक स्वतंत्र संस्थान था जिसमें आईजी पटेल और मनमोहन सिंह जैसे अलंकृत लोगों ने काम किया है.

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काले धन के बारे में सेन ने कहा कि मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि काले धन के सिर्फ 6 फीसदी हिस्से को खत्म करने के लिए सरकार ने देश की 86 फीसदी करंसी को खत्म करने का फैसला क्यों किया. उन्होंने कहा कि अमेरिका और जापान जैसे देशों में तो खूब कैश होता है. नकली नोटों को खत्म करने के मकसद को तो सेन ने सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, "भारत में नकली नोट कभी भी बहुत बड़ी समस्या नहीं रहे हैं. यह कोई ऐसी समस्या नहीं थी जिसके लिए आप पूरी अर्थव्यवस्था को ही बंधक बना लें." उन्होंने कहा कि यह फैसला कुछ लोगों के एक छोटे से समूह ने लिया था जबकि राज्यों से सलाह ली जानी चाहिए थी क्योंकि भारत एक संघीय राज्य है.

वीके/एके (पीटीआई)

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