आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक इसी अवधि में सिस्टम द्वारा पकड़े गए 2,000 रुपये मूल्यवर्ग के नकली नोटों की संख्या 28 प्रतिशत घटकर 9,806 नोट रह गई.
हालांकि बैंकिंग क्षेत्र में पकड़े गए नकली भारतीय मुद्रा नोटों की कुल संख्या पिछले वित्तीय वर्ष में 2,30,971 नोटों की तुलना में 2022-23 में घटकर 2,25,769 नोट रह गई. उल्लेखनीय है कि यह 2021-22 में बढ़ गया था.
आरबीआई ने 19 मई को घोषणा की थी कि 2000 रुपये के नोट चलन से वापस ले लिए जाएंगे. 2000 के नोट बदलने या जमा करने के लिए 30 सितंबर तक का समय दिया गया है. आरबीआई ने वित्त वर्ष 2018-2019 से 2000 नोट की छपाई बंद कर दी थी.
आरबीआई का यह भी कहना है कि इन नोटों की आयु चार से पांच साल तक ही थी. चूंकि करीब 89 प्रतिशत 2,000 के नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए गए थे, इसलिए इनकी आयु समाप्त ही होने वाली है.
2000 के मुकाबले 500 के नकली नोट ज्यादा मिले
आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में 20 रुपये के मूल्यवर्ग में पाए गए नकली नोटों में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि और 500 रुपये (नए डिजाइन) मूल्यवर्ग में 14.4 प्रतिशत की वृद्धि पर भी प्रकाश डाला गया है.
वहीं 10 रुपये, 100 रुपये और 2,000 रुपये के नकली नोटों में क्रमश: 11.6 प्रतिशत, 14.7 प्रतिशत और 27.9 प्रतिशत की गिरावट आई है. आरबीआई ने इस दौरान 78,699 नकली 100 रुपये के नोट और 27,258 नकली 200 रुपये के नोटों की सूचना दी.
वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, "रिजर्व बैंक सक्रिय रूप से बैंक नोटों के लिए नई और उन्नत सुरक्षा सुविधाओं की शुरूआत की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है."
वार्षिक रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2022-23 के दौरान सुरक्षा मुद्रण पर खर्च 4,682.80 करोड़ रुपये था, जबकि पिछले वर्ष यह 4,984.80 करोड़ रुपये था.
बाजार में कहां से आ रहे हैं नकली नोट
भारत में नकली नोटों की खेप ज्यादातर सीमापार से आती है. पाकिस्तान और नेपाल के जरिए ऐसे नकली नोट भारत में लाए जाते हैं. नकली नोट को लेकर एनआईए ने भी हाल के सालों में कई राज्यों में छापेमारी की है और इससे जुड़े मामले भी दर्ज किए हैं. बाजार में अब ऐसे भी नकली नोट मौजूद हैं जिनकी पहचान आसानी से नहीं की जा सकती है.
नकली नोटों से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक समय-समय पर सुरक्षा फीचर्स नोटों में जोड़ता रहता है.
करारे नोट सबको अच्छे लगते हैं. भारत का रुपया हो या यूरोप का यूरो या फिर अमेरिका का डॉलर, ये सब कपास से बनते हैं. जी हां, कागज से नहीं कपास से. चलिए देखते हैं कैसे.
तस्वीर: Getty Imagesभारत समेत कई देशों में नोट बनाने के लिए कपास को कच्चे माल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. कागज की तुलना में कपास ज्यादा मुश्किल हालात झेल सकता है. लेकिन नोट बनाने के लिए कपास को पहले एक खास प्रक्रिया से गुजरना होता है.
तस्वीर: tobias kromke/Fotoliaकपास की ब्लीचिंग और धुलाई करने के बाद उसकी लुग्दी बनाई जाती है. इसका असली फॉर्मूला सीक्रेट है. इसके बाद सिलेंडर मोल्ड पेपर मशीन उस लुग्दी को कागज की लंबी शीट में बदलती है. इसी दौरान नोट में वॉटरमार्क जैसे कई सिक्योरिटी फीचर डाल दिये जाते हैं.
तस्वीर: Giesecke & Devrientयूरोजोन की मुद्रा यूरो में 10 से ज्यादा सिक्योरिटी फीचर होते हैं. इनकी मदद से जालसाजी या नकली मुद्रा के चलन को रोकने की कोशिश होती है. जालसाजी को रोकने के लिए निजी प्रिंटरों पर नकेल कसी जाती है.
तस्वीर: Giesecke & Devrientतमाम कोशिशों के बावजूद जालसाज नकली नोट बाजार में पहुंचा ही देते हैं. 2015 में रिकॉर्ड संख्या में नकली यूरो सामने आए. यूरोपीय सेंट्रल बैंक के मुताबिक इस वक्त दुनिया भर में 9,00,000 यूरो के नोट नकली हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Hoppeयूरो के नोट डियाजन करने का जिम्मा राइनहोल्ड गेर्स्टेटर का है. उन्हें हर यूरो के नोट पर यूरोप के इतिहास का जिक्र करने में मजा आता है. 5 से 500 यूरो तक के हर नोट पर यूरोपीय इतिहास से जुड़ी छवि जरूर मिलेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFPदुनिया के करीब सभी देशों में हर नोट बिल्कुल अनोखा होता है. उसका अपना नंबर होता है. यूरो के नोटों में भी ऐसा नंबर होता है. नोट छापने वाली 12 प्रिटिंग प्रेसें अलग अलग अंदाज में नंबर छापती है. नंबरों के आधार पर ही तय होता है कि कौन से नोट यूरोजोन के किस देश को भेजे जाएंगे.
तस्वीर: Giesecke & Devrientयूरोजोन में एक नोट छापने की कीमत करीब 16 सेंट आती है. बड़े नोट थोड़े ज्यादा महंगे पड़ते हैं. लागत के हिसाब से सिक्के ज्यादा महंगे पड़ते हैं. उन्हें बनाने में ज्यादा खर्च आता है.
तस्वीर: Giesecke & Devrientजर्मनी का संघीय बैंक अब नोट छपाई को आउटसोर्स करना चाह रहा है. खर्च कम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है. बीते साल जर्मन प्रिंटर गीजेके डेवरियेंट को अपनी म्यूनिख प्रेस से 700 कर्मचारियों की छुट्टी करनी पड़ी. कंपनी को मलेशिया और लाइपजिग में नोट छापना सस्ता पड़ रहा है.
तस्वीर: Giesecke & Devrientएक नोट को जस का तस बाजार में बहुत समय तक नहीं रखा जा सकता. ऐसा करने से नकली नोट बनाने वालों को मौका मिलता है. लिहाजा समय समय पर नोटों का डिजायन बदला जाता है. आम तौर पर 5,10,20,50,100 और 500 के नोटों को अलग अलग सालों में बदला जाता है.
तस्वीर: EZB