सुबह-सुबह बुरी खबरें पढ़ने से पूरा दिन हो सकता है खराब
३ नवम्बर २०२३
हम हर दिन कई बुरी खबरें पढ़ते हैं. कभी युद्ध की, तो कभी प्राकृतिक आपदाओं से लोगों के मरने की. क्या आपको पता है कि ये बुरी खबरें हमारे सेहत पर किस तरह असर डाल रही हैं?
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फोन पर किसी तरह की सूचना आते ही हम उसे तुरंत खबर पढ़ने लगते हैं. चाह कर भी ज्यादा देर तक अपने डिवाइस से दूरी नहीं रख पाते. हम अक्सर बुरी खबरों के चक्र में वापस लौट आते हैं. हिंसा, युद्ध और आपदा हमारे न्यूज फीड पर हावी हैं.
बुरी खबरें पढ़ने का दौर लगातार पिछले कई वर्षों से जारी है. 2019 के आखिर और 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी, उसके बाद यूक्रेन युद्ध, फिर कई देशों में भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं और अब मध्य-पूर्व में इस्राएल-हमास के बीच युद्ध. बुरी खबरों का दौर खत्म ही नहीं हो रहा है. ये सभी खबरें दिल दहलाने और हताश करने वाली कहानियों और तस्वीरों से भरी होती हैं. इन खबरों को लगातार पढ़ने की लत इंसानों को बीमार कर रही हैं.
डूमस्क्रोलिंग क्या है?
डूमस्क्रोलिंग का मतलब है, बुरी खबरों को स्क्रॉल करते रहना. तब भी जब यह हमें परेशान करती हैं. यह शब्द ‘डूम' और ‘स्क्रोलिंग' से मिलकर बना है. डूम का मतलब होता है आपदा, विनाश, अंत, भय. स्क्रोलिंग का मतलब है, इंटरनेट पर कुछ खोजना. डूमस्क्रोलिंग शब्द का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया जा रहा है कि लोग किस तरह लगातार बुरी खबरें देख और पढ़ रहे हैं. यह शब्द वास्तव में महामारी के दौरान प्रचलन में आया.
कहां न्यूज पर सबसे ज्यादा भरोसा है, और कहां सबसे कम
हाल के सालों में समाचार माध्यमों पर लोगों का भरोसा घटने की बात लगातार चर्चा में रही है. देखिए, किन देशों में सबसे ज्यादा भरोसा है, और कहां सबसे कम.
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP/Getty Images
दुनिया में घटा न्यूज पर भरोसा
रॉयटर्स इंस्टिट्यूट डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2022 के मुताबिक अध्ययन किये गए 46 देशों में से 21 में लोगों का समाचार साधनों पर भरोसा गिरा, जबकि 18 में कोई बदलाव नहीं हुआ.
तस्वीर: Nyein Chan Naing/dpa/picture alliance
फिनलैंड सबसे ऊपर
रॉयटर्स ने 46 देशों के 93 हजार उपभोक्ताओं से बातचीत के बाद यह रिपोर्ट जारी की है. फिनलैंड में पिछली रिपोर्ट के मुकाबले भरोसे में 4 फीसदी की बढ़त हुई और वहां 69 फीसदी लोगों ने कहा कि वे न्यूज पर भरोसा करते हैं.
तस्वीर: Anne Kauranen/Reuters
अमेरिका सबसे नीचे
अमेरिका इस सूची में स्लोवाकिया के साथ सबसे नीचे है और वहां 26 फीसदी लोगों ने न्यूज पर भरोसा जताया, जो बीते साल से 4 फीसदी कम है.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images
अफ्रीका और अमेरिका
दक्षिण अमेरिका में ब्राजील (-6 प्रतिशत) और कोलंबिया में (-3 फीसदी) में भी लोगों का भरोसा घटा है, जबकि अफ्रीका में नाईजीरिया (4 प्रतिशत) और दक्षिण अफ्रीका (9 फीसदी) में भरोसा बढ़ा है.
तस्वीर: AP
एशिया
एशिया में मलयेशिया (-5 प्रतिशत) और ताइवान (-4 फीसदी) में भरोसे में गिरावट आई जबकि फिलीपींस (5 फीसदी) और जापान (2) फीसदी में भरोसा कुछ बढ़ा.
तस्वीर: Charly Triballeau/AFP/Getty Images
यूरोप में
युनाइटेड किंग्डम (34 प्रतिशत) और फ्रांस (29) भी उन देशों में शामिल हैं जहां लोग न्यूज पर कम ही भरोसा करते हैं.
तस्वीर: Bertrand Guay/AFP/Getty Images
भारत
भारत में पिछले साल के मुकाबले समाचार माध्यमों पर भरोसा 3 फीसदी बढ़ा है और वहां 41 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे समाचार चैनलों पर भरोसा करते हैं.
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP/Getty Images
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पाषाण युग के निशान
डूमस्क्रोलिंग पूरी तरह से नकारात्मक पूर्वाग्रह के बारे में है. इंसानों का झुकाव नकारात्मकता की ओर ज्यादा होता है. उदाहरण के लिए, प्रशंसा की तुलना में आलोचना इंसानों के व्यवहार पर ज्यादा असर डालती है. यही बात अच्छी खबर की तुलना में बुरी खबर के लिए भी लागू होती है. न्यूरो साइंटिस्ट मारेन उर्नर ने कहा, "हमारा मस्तिष्क सकारात्मक शब्दों की तुलना में नकारात्मक शब्दों को तेजी से और बेहतर तरीके से प्रोसेस करता है. इसका मतलब है कि हम उन्हें ज्यादा याद रखते हैं.”
यह बात विकासवादी जीवविज्ञान के परिप्रेक्ष्य से समझ में आती है. उर्नर ने कहा, "नुकीले और बड़े दांत वाली बिल्लियों की प्रजातियां या मैमथ के समय में खतरे से अनजान रहना नुकसानदायक था.” हमारा दिमाग अभी भी व्यवस्थित रूप से जानकारी इकट्ठा करके अनिश्चितता को दूर करने में हमारी मदद करने की कोशिश कर रहा है. हम उन खतरों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहते हैं जो हमारा इंतजार कर रहे हैं. जितनी अधिक बुरी खबरें हम सुनते हैं, उतना ही बेहतर तैयार महसूस करते हैं. हालांकि, यह एक भ्रांति है. हो सकता है कि इस तरह की सोच मैमथ के समय काम करती हो, लेकिन एप्लिकेशन और न्यूज फीड के युग में यह बेकार है.
भारत में डिजिटल न्यूज की खपत किस तरह हो रही है
गूगल न्यूज इनिशिएटिव ने कांतार द्वारा किए गए एक शोध के निष्कर्षों का खुलासा किया है. इसमें उन तरीकों को सूचीबद्ध किया है जिनमें भारत में लोग ऑनलाइन समाचार सामग्री का उपभोग कर रहे हैं.
तस्वीर: Rouf Fida/DW
ऑनलाइन न्यूज में देसी भाषाओं का ज्यादा इस्तेमाल
भारतीय पाठक अपनी भाषा में खबरें पढ़ना या देखना पसंद करते हैं. कांतार और गूगल की रिपोर्ट के मुताबिक 10 में से 7 ऑनलाइन खबरें पढ़ने और देखने वालों का कहना है कि वे अपने क्षेत्र से जुड़ी खबरें जानने में ज्यादा रूचि रखते हैं.
तस्वीर: Arun Sankar/AFP/Getty Images
क्षेत्रीय भाषाओं का जोर
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय भाषाओं के इंटरनेट यूजर की संख्या 72 करोड़ से भी ज्यादा है और करीब 37 करोड़ लोग भारतीय भाषाओं में खबरें पढ़ते और देखते हैं. इनमें 15 करोड़ लोग सक्रिय यूजर हैं.
तस्वीर: RealityImages/Zoonar/picture alliance
शहरों के मुकाबले गांवों में रूचि ज्यादा
रिपोर्ट में पाया गया कि शहरी केंद्रों में 37 प्रतिशत इंटरनेट यूजर की तुलना में ग्रामीण भारत में समाचार उपभोग में रुचि अधिक (63 प्रतिशत या 23.8 करोड़) है.
तस्वीर: DW/Natalie Mayroth
खबरों तक कैसे पहुंचते हैं भारतीय
इंडिया लैंग्वेजेस: अंडरस्टैंडिंग इंडियाज डिजीटल न्यूज कंज्यूमर रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय भाषाओं में 52 प्रतिशत या 37.9 करोड़ इंटरनेट यूजर अलग-अलग न्यूज ऐप/वेबसाइटों, सोशल मीडिया पोस्ट, मैसेज फॉरवर्ड, यूट्यूब आदि के जरिए ऑनलाइन समाचार तक पहुंचते हैं.
तस्वीर: Rouf Fida/DW
न्यूज के लिए वीडियो पहली पसंद
ऑनलाइन न्यूज यूजर के लिए खबरें जानने का पसंदीदा फॉर्मेट वीडियो है. उसके बाद टेक्स्ट और ऑडियो की बारी आती है.
तस्वीर: Adobe Stock
यूट्यूब है लोकप्रिय
वीडियो स्ट्रीमिंग साइट यूट्यूब 93 प्रतिशत रुचि के साथ ऑनलाइन न्यूज तक पहुंचने के लिए सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद सोशल मीडिया 88 प्रतिशत, चैट ऐप्स 82 प्रतिशत, सर्च इंजन 61 प्रतिशत जबकि न्यूज पब्लिशर्स की वेबसाइट या ऐप में 45 प्रतिशत ही रूचि रखते हैं.
तस्वीर: STRF/STAR MAX/picture alliance
ऑनलाइन न्यूज में क्या पढ़ना पसंद करते हैं
ऑनलाइन न्यूज में मनोरंजन, अपराध, हेडलाइंस सबसे पसंदीदा टॉपिक रहते हैं. सेहत, तकनीक और फैशन से जुड़ी खबरें भी लोग पढ़ना पसंद करते हैं.
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न्यूज तक पहुंचने के लिए कितने प्लेटफॉर्म
रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय भाषाओं के न्यूज उपभोक्ता ऑनलाइन खबरें पाने के लिए औसतन 5.05 डिजीटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
न्यूज के लिए भुगतान को तैयार
रिपोर्ट में बताया गया है कि सात में से एक (15 प्रतिशत) उपभोक्ता ऑनलाइन समाचारों के लिए भुगतान करने को तैयार है.
तस्वीर: Ralph Peters/imago images
कैसे तैयार हुई रिपोर्ट
कांतार ने कहा कि उसने भारतीय भाषा के डिजीटल न्यूज उपभोक्ताओं की समाचार खपत की आदतों को समझने के लिए 16 शहरों में 4,600 से अधिक व्यक्तिगत इंटरव्यू और 64 गुणात्मक चर्चाओं का आयोजन किया. कांतार ने 14 राज्यों के 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों से बात कर रिपोर्ट तैयार की.
तस्वीर: DW/Aaquib Khan
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चिप्स के बैग जैसे एप्लिकेशन
हमारे समाचार एप्लीकेशन हमें जुड़े रहने के लिए डिजाइन किए गए हैं. ‘कभी न खत्म होने वाले स्क्रोल' का विचार कोई भूल नहीं थी. यह एक मनोवैज्ञानिक चाल है जिसे 2000 के दशक की शुरुआत में शोधकर्ता ब्रायन वैनसिंक के ‘बॉटमलेस सूप बाउल एक्सपेरिमेंट' की मदद से चित्रित किया गया था.
इस प्रयोग में, प्रतिभागियों के एक समूह को सूप के ऐसे बाउल मिले जिसका कोई निचला हिस्सा नहीं था. इन बाउल में सूप को लगातार इस तरह से भरा गया कि प्रतिभागियों को पता नहीं चला. प्रयोग के नतीजे से यह जानकारी मिली कि इस समूह के लोगों ने उस दूसरे समूह की तुलना में 73 फीसदी अधिक सूप का सेवन किया जिन्हें तय मात्रा में सूप दिया गया था. ज्यादा सूप का सेवन करने वाले समूह के लोग ना तो यह बता सके कि उन्होंने अधिक सूप का सेवन किया और ना ही यह कहा कि उन्हें पेट भरा हुआ महसूस हुआ.
डाटा प्रोटेक्शन बिल से भारत में क्या बदलाव आएगा
केंद्र सरकार मानसून सत्र में डिजिटल व्यक्तिगत सूचना संरक्षण (डीपीडीपी) विधेयक, 2022 को संसद में पेश करने जा रही है. आखिर डाटा सुरक्षा को लेकर को लेकर लोगों के मन में क्यां चिंताएं हैं.
तस्वीर: Henrik Josef Boerger/dpa/picture alliance
भारत में नहीं है कानून
भारत में डाटा सुरक्षा को लेकर अभी कोई कानून नहीं है. दुनिया के कई देशों में डाटा प्राइवेसी से जुड़े कानून मौजूद हैं. कठोर कानून की गैरमौजूदगी में कंपनियों पर डाटा का फायदा उठाने के आरोप लगते रहे हैं.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
क्यों है कानून की जरूरत
भारत में कई बार ग्राहकों के वित्तीय जानकारी जैसे कि बैंक, क्रेडिट कार्ड और लोन आदि की जानकारी लीक होने की रिपोर्टें आती रहती हैं. ऐसे में इस तरह के कानून से डाटा लीक होने को रोका जा सकता है.
तस्वीर: Henrik Josef Boerger/dpa/picture alliance
डिजिटल लेनदेन में भारत है अव्वल
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में साल 2022 में 8.95 करोड़ डिजिटल लेनदेन हुए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2022 में दुनिया में कुल हो रहे डिजिटल लेनदेन में 46 फीसदी रियल पेमेंट्स का हिस्सा सिर्फ भारत से आ रहा है. आंकड़ों के मुताबिक भारत ब्राजील, चीन, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से कहीं आगे है.
तस्वीर: Payel Samanta/DW
सख्त कानून की मांग
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियम के मुताबिक वित्तीय डाटा को भारत में सुरक्षित रखना जरूरी है. अभी सरकारी डाटा को लेकर सिर्फ पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट, 1993 का ही कानून है जिसे न मानने पर पांच साल की सजा और आर्थिक जुर्माने का प्रावधान है.
तस्वीर: Punit Paranjpe/Getty Images/AFP
पिछले मसौदे की हो चुकी है आलोचना
मसौदे के नए संस्करण में ऑफलाइन डाटा का भी जिक्र है क्योंकि उसे न शामिल किए जाने को लेकर पिछले ड्राफ्ट की तीखी आलोचना हुई थी. नए विधेयक में कहा गया है कि सहमति के बाद ही किसी व्यक्ति का डाटा लिया जा सकेगा. डाटा देने वाले व्यक्ति के पास अपना डाटा साझा करने या हटाने का अधिकार होगा.
तस्वीर: Rouf Fida/DW
कंपनियों की जवाबदेही तय होगी
अब नए मसौदे के मुताबिक डाटा कलेक्ट करने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वह डाटा को सुरक्षित रखे. अगर कंपनी ऐसा करने में नाकाम रहती है तो उस पर कार्रवाई हो सकती है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
बच्चों का डाटा सुरक्षित हो पाएगा?
कई कंपनियां बच्चा का डाटा भी जुटाती हैं. जैसे गेमिंग और सोशल मीडिया कंपनियां. अगर वे बच्चों का डाटा जुटाना चाहेंगी तो उन्हें माता-पिता की सहमति लेनी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लेकिन कुछ सवाल भी हैं
इस विधेयक को लेकर कुछ संशय भी हैं. अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सेक्शन 18 (2) एजेंसियों को व्यापक छूट देता है. आलोचक कहते हैं कि ड्राफ्ट बिना किसी जायज वजह के सर्विलांस को गलत नहीं मानता, जबकि पुराने ड्राफ्ट में ऐसा नहीं था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Klose
क्या कमजोर हो जाएगा आरटीआई कानून
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता इसके सेक्शन 30 (2) का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे आरटीआई कानून कमजोर हो सकता है. आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आरटीआई को सूचना से वंचित करने का अधिकार बना देगा.
तस्वीर: fotolia/junial enterprises
यूरोपीय संघ में है सख्त कानून
यूरोपीय संघ में डाटा सुरक्षा को लेकर सख्त कानून है. ईयू में जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) लागू है. जीडीपीआर ने डाटा कलेक्शन, स्टोरेज, उसके इस्तेमाल के लिए दिशानिर्देश तय किए हैं. जीडीपीआर के तहत हर व्यक्ति को अपने डाटा पर कंट्रोल का अधिकार है.
तस्वीर: SuperOfficeNetwork
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इसके अलावा, एप्लिकेशन डिजाइनर एक और ट्रिक इस्तेमाल करते हैं. वह है ‘पुल-टू-रिफ्रेश' फंक्शन. इस विचार को कैसिनों से लिया गया है. जैसे ही आप स्क्रीन को नीचे की ओर खींचते हैं, पेज फिर से लोड हो जाता है और आप इस उत्साह के साथ इंतजार करते हैं कि कोई नई खबर मिलने वाली है.
यह ठीक उसी तरह है जैसे पहले के जमाने में जुए की मशीनों को घुमाने के लिए लीवर को नीचे की ओर खींचना होता था. उस समय लोग यह उम्मीद करते थे कि इस बार उन्हें कुछ न कुछ इनाम मिलेगा. इस जीत की उम्मीद के इंतजार के दौरान हमारा दिमाग खुशी वाला हार्मोन डोपामाइन रिलीज करता है और हम जीत की उम्मीद में बार-बार ऐसा करना चाहते हैं. यही कारण है कि लोग हारने पर भी जुआ खेलते रहते हैं.
वायरल वीडियो से बढ़ रही है क्रिएटर्स की आय
आज के जमाने में सोशल मीडिया पर कोई भी वीडियो बहुत ही तेजी से वायरल होता है. ऐसे में क्रिएटर्स की आमदनी भी बढ़ रही है.
तस्वीर: Imago/photothek/T. Trutschel
बढ़ रही आमदनी
यूट्यूब के एक सर्वे के मुताबिक करीब 49 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले 12 महीने में किसी वायरल वीडियो या मीम को अपने अंदाज में पेश किया. इसके जरिए उनके वीडियो की पहुंच बढ़ती है और उनकी लोकप्रियता में इजाफा होता है.
तस्वीर: Imago/imagebroker/V. Wolf
यूट्यूब पर क्या-क्या करते हैं लोग
यूट्यूब पर क्रिएटर्स फिल्मी गानों, डॉयलॉग या मीम को अपने अंदाज में पेश करते हैं. जिन्हें लोग देखते हैं और जिससे उनके फॉलोअर्स भी बढ़ते हैं.
तस्वीर: Ozan Kose/AFP/Getty Images
मजबूत होती क्रिएटर्स इकोनॉमी
यूट्यूब का कहना है कि भारत में प्रशंसकों और क्रिएटर्स के बीच बढ़ते इस जुड़ाव से क्रिएटर्स इकोनॉमी को मजबूती मिल रही है.
तस्वीर: Reuters/D. Ruvic
क्या पसंद करते हैं दर्शक
यूट्यूब के सर्वे में शामिल 71 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें शॉर्ट वीडियो, लॉन्ग वीडियो, पॉडकास्ट और लाइव स्ट्रीम देखना पसंद है.
तस्वीर: Reuters/D. Ruvic
कंटेंट क्रिएशन बना करियर ऑप्शन
यूट्यूब इंडिया के निदेशक इशान जॉन चटर्जी के मुताबिक 69 फीसदी नई पीढ़ी चाहती है कि उनके पसंदीदा कलाकार या क्रिएटर्स अलग-अलग फॉर्मेट में कंटेंट बनाए. उन्होंने कहा कंटेंट क्रिएशन अब पूरी तरह से करियर ऑप्शन बन चुका है.
तस्वीर: Imago Images/photothek
कोने-कोने से उभरते क्रिएटर्स
यूट्यूब का कहना है कि वीडियो कंटेंट की बदौलत अब देश के कोने-कोने से नयी प्रतिभा सामने आ रही है, जिन्हें यूट्यूब से अंतरराष्ट्रीय मंच मिल रहा है.
तस्वीर: Reuters/L. Nicholson
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दिमाग में लगातार तनाव
परेशान करने वाली खबरें देखने और पढ़ने से हमारे सेरोटोनिन लेवल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हम थका हुआ, तनावग्रस्त, चिड़चिड़ा, मूडी महसूस करते हैं और सही से नींद नहीं आती है. ऐसी स्थिति में तनाव वाला हार्मोन कोर्टिसोल सक्रिय होता है. जब हम तनाव महसूस करते हैं, तो कोर्टिसोल हमें अस्थायी रूप से प्रोडक्टिव और सक्रिय महसूस करने में मदद कर सकता है. हालांकि, कोर्टिसोल का बढ़ा हुआ स्तर हानिकारक हो सकता है, क्योंकि इससे हम लगातार तनाव वाली स्थिति में आ सकते हैं.
डूमस्क्रॉलिंग अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है. अध्ययनों के मुताबिक, बुरी खबरेंज्यादा पढ़ने से लोग अवसाद और तनाव का शिकार हो सकते हैं. ये लक्षण पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर वाले लोगों में दिखते हैं. मनोवैज्ञानिकों और मीडिया संस्थान हफिंगटन पोस्ट के संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने सुबह-सुबह बुरी खबरें पढ़ने में तीन मिनट बिताए थे, उनके छह से आठ घंटे बाद यह कहने की संभावना 27 फीसदी अधिक थी कि उनका दिन खराब रहा. उसी अध्ययन में शामिल एक अन्य समूह ने तथाकथित ‘समाधान-आधारित' समाचार पढ़ा और उनमें से 88 फीसदी ने कहा कि उनका दिन अच्छा गुजरा.
रूसी ट्रोलों की भरमार: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इन्हें रोकते क्यों नहीं
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बुरी खबरें और मीडिया
मीडिया कंपनियों को पता है कि बुरी खबरों से उन्हें ज्यादा क्लिक मिल सकता है. ज्यादा क्लिक का मतलब है ज्यादा प्रसार और ज्यादा कमाई. हालांकि, सवाल यह है कि जब डूमस्क्रॉलिंग इतनी ज्यादा खतरनाक है, तो मीडिया घरानों को स्थिति में सुधार के लिए क्या करना चाहिए?
शोधकर्ता मारेन उर्नर ने कहा कि पत्रकारों को खुद से पूछना चाहिए कि ‘आगे क्या करना है'. कहानियां बताते समय किसी समस्या की जानकारी देना जरूरी है, लेकिन समाधान खोजना भी शोध का हिस्सा होना चाहिए.
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खबर पढ़ने की आदत करें विचार
दुनिया में क्या चल रहा है, इस बारे में अपडेट रहना जरूरी है. हालांकि, आप हर समय अपडेट रहें, यह जरूरी नहीं है. इसलिए, दिन की शुरुआत करने का एक अच्छा तरीका यह है कि बिस्तर से उठते ही घर के सभी डिवाइसों को चालू करने से बचें. इस बात पर विचार करें कि आप कितनी खबरें पढ़ते हैं और ये खबरें कब पढ़नी चाहिए.
साथ ही, भरोसेमंद स्रोत, पूरी जानकारी वाली खबरें और कम क्लिकबेट वाली हेडलाइनें चुनकर डूमस्क्रॉल की इच्छा से लड़ें. समाचार पढ़ने के लिए एक समय तय करें, जैसे कि दोपहर में 20 से 30 मिनट. पूरे दिन लगातार स्क्रॉल करने से बचें. नोटिफिकेशन और ब्रेकिंग न्यूज अलर्ट बंद कर दें.