यह बात सोच कर ही हैरत होती है कि जहां धरती के नीचे सोने का अकूत भंडार है उस केजीएफ कस्बे में रहने वाले लोग बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं.
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चिराग तले अंधेरा होने की कहावत तो सबने सुनी ही होगी. कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड्स यानी केजीएफ पर यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है. किसी दौर में यहां से निकलने वाले सोने के कारण ही देश को सोने की चिड़िया और इस जगह को मिनी इंग्लैंड कहा जाता था. लेकिन वह सब पांच दशक पुरानी बात है. अब यहां रहने वाले लोगों की आंखों में पलने वाले सपनों का रंग बिखर गया है और वे दो जून की रोटी जुटाने के लिए जूझ रहे हैं. दक्षिण की सुपरहिट फिल्म केजीएफ चैप्टर 2 की भारी कामयाबी ने एक बार को इस उनींदे-से कस्बे को सुर्खियों में ला दिया है और इसके जख्म हरे हो गए हैं.
कोलार का इतिहास
कोलार गोल्ड फील्ड्स की खदानें दक्षिण कोलार जिले के मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर रोबर्ट्सनपेट तहसील के पास है. यह कस्बा बेंगलुरु-चेन्नई एक्सप्रेस वे पर राजधानी बेंगलुरु से लगभग सौ किलोमीटर दूरी पर है. वर्ष 1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में तत्कालीन अंग्रेजों ने शासक टीपू सुल्तान को मार कर कोलार की खदानों पर कब्जा कर लिया था. न्यूजीलैंड से भारत आए ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने 1871 में कोलार के लिए बैलगाड़ी से 60 मील की यात्रा की थी.
अपने शोध के दौरान उन्होंने खनन के लिए कई संभावित स्थानों की पहचान की और सोने के भंडार के निशान खोजने में भी सफल रहें. दो साल से अधिक के शोध के बाद 1873 में लेवेली ने मैसूर के महाराज की सरकार को पत्र लिखकर कोलार में खुदाई का लाइसेंस मांगा. 2 फरवरी 1875 को कोलार में 20 सालों तक खुदाई करने के लिए लेवेली को लाइसेंस मिला और इसी के साथ भारत में आधुनिक खनन के युग की शुरुआत हुई.
सोने की सबसे बड़ी खदान के बाहर गरीबी की छटपटाहट
एक बड़ी कंपनी विशाल मशीनों से खुदाई कर सोना निकालती है और गंदगी को नदी में बहा देती है. गरीब उसी गंदगी से सोना छानने की कोशिश में लड़ते मरते हैं.
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सामने खड़ा विरोधाभास
इंडोनेशिया के पापुआ प्रांत के टिमिका इलाके में सोने की सबसे बड़ी खदान ग्रासबेर्ग माइन है. यहां फ्रीपोर्ट कंपनी खनन करती है. खदान के पास एकवा नदी भी बहती है. स्थानीय लोग मछली पकड़कर और नदी से सोना इकट्ठा कर अपना घर चलाते हैं.
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चिराग तले, अंधेरा
एकवा नदी से सोना निकालने के चक्कर में यहां दूर दूर से आए लोग भी बस गये हैं. इंडोनेशिया सरकार की हर साल सोने की खुदाई से 70 अरब डॉलर की आय होती है. लेकिन इस मुनाफे में स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी बहुत कम है.
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बेरोजगारों से घिरी खदान
खदान के विस्तार के चलते मूल निवासियों को विस्थापित होना पड़ा. सोने की खुदाई करने वाली फ्रीपोर्ट कंपनी के मुताबिक उसने 30,000 लोगों को नौकरी दी है. लेकिन स्थानीय लोगों की संख्या इसमें भी सिर्फ 30 फीसदी है.
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अकूत संसाधन
ग्रासबेर्ग खदान दुनिया में सोने की सबसे बड़ी खदान है. तांबे के मामले में यह तीसरे नंबर पर है. यहां हर दिन 2,38,000 टन खनिज की प्रोसेसिंग होती हैं. हर दिन 300 किलोग्राम सोना मिलता है.
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पर्यावरण की फिक्र किसे
खदान इंडोनेशिया की सबसे ऊंची चोटी पुनसाक जया के पास है. हर दिन खदान 200,000 टन कचरा नदी में बहाती है. कचरे के चलते नदी का दम घुट चुका है.
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गंदे पानी से रोजी रोटी
नदी में बहाये जाने वाले कचरे में सोने के बारीक कण भी होते हैं. नदी के ऊपरी इलाकों में सोना जमा करने वाले हर दिन एक ग्राम सोना जुटा लेते हैं.
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गैरकानूनी खुदाई
खदान के आस पास गैरकानूनी खनन भी होता है. 2015 में पुलिस ने 12,000 गैरकानूनी खनिकों पर कार्रवाई की. प्रांतीय सरकार इस खनन को रोकना चाहती है. लेकिन आलोचक सरकार की नीतियों को कंपनी को फायदा पहुंचाने वाला बताते हैं.
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दम घोंटता पारा
कच्चे माल से सोना, चांदी और तांबा निकालने के लिये बड़ी मात्रा में पारे का इस्तेमाल किया जाता है. यह पारा नदी और पूरे इलाके को जहरीला कर रहा है.
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खदान के बाहर गैंगवॉर
वैध-अवैध खनन के साफ नियम न होने की वजह से इलाके में आए दिन अलग अलग गुटों के बीच झगड़ा भी होता रहता है. स्थानीय लोग पारंपरिक तरीकों से सोना खोजते हैं, वहीं बाहरी लोग मशीनों की मदद से. इसके चलते विवाद भी होते हैं.
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चमकते सोने की काला कारोबार
सोने के इस कारोबार ने इलाके में काला बाजारी को भी बढ़ावा दिया है. वहां एक समानांतर काली अर्थव्यवस्था चलती है, जिसे अपराधों से मजबूती मिलती है.
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लेवेली ने जब कोलार में काम शुरू किया तो महसूस किया कि वहां बिजली की बहुत जरूरत है. कोलार गोल्ड फील्ड की जरूरत पूरा करने के लिए वहां से 130 किलोमीटर दूर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया. इसके बाद केजीएफ बिजली पाने वाला भारत का पहला शहर बन गया. बिजली के बाद वहां काम दोगुना होने लगा. नतीजन वर्ष 1902 में केजीएफ से भारत का 95 फीसदी सोना निकलता था. वर्ष 1905 तक भारत सोने की खुदाई में विश्व में छठे स्थान पर पहुंच गया.
अंग्रेजों की पसंद
केजीएफ में सोना मिलने के बाद यह इलाका अंग्रेजों को काफी पसंद आ गया था. अंग्रेजों की बढ़ती आबादी के कारण केजीएफ को 'मिनी इंग्लैंड' भी कहा जाता था. अब बी वहां ब्रिटिश दौर के कई बंगले और पुरानी इमारतें नजर आती हैं. केजीएफ में पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए अंग्रेजों ने एक तालाब भी बनवाया था. वर्ष 1930 में केजीएफ में 30 हजार मजदूर काम करते थे.
भारत के आजाद होने के बाद सरकार ने इसे अपने अधिकार में ले लिया और वर्ष 1956 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया. वर्ष 1970 में भारत सरकार की भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (बीजीएमएल) कंपनी ने वहां अपना काम शुरू किया था. लेकिन 1979 के बाद उसे घाटा होने लगा था. स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि वह अपने मजदूरों को वेतन भी नहीं दे पा रही थी. उसके बाद वर्ष 2001 में कंपनी ने वहां सोने की खुदाई बंद कर दी. उसके बाद वह जगह ऐसे ही पड़ी है.
केजीएफ में 121 वर्षों से भी अधिक समय तक खुदाई हुई है. मोटे अनुमान के मुताबिक इस दौरान वहां से नौ सौ टन से भी ज्यादा सोना निकाला गया था. लेकिन इन खदानों के बंद होने के बाद ही इलाके के दुर्दिन शुरू हो गए. फिलहाल रोजाना यहां के करीब 25 हजार लोग नौकरी या रोजी-रोटी कमाने के लिए बेंगलुरु जाते हैं.
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वादों का क्या हुआ
वर्ष 2001 में बंद होने के बाद 15 वर्ष तक केजीएफ में सब कुछ ठप पड़ा रहा. वर्ष 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने यहां फिर से काम शुरू करने का संकेत दिया. उसी वर्ष केजीएफ के लिए नीलामी प्रक्रिया शुरू करने के लिए टेंडर निकालने का एलान किया गया था. लेकिन इस मामले में अब तक कोई प्रगति नहीं हो सकी है.
विनसेंट के दादा और पिता इन खदानों में काम करते थे. वह बताते हैं, "वह दौर बेहद अच्छा था. तब दूर-दूर से लोग यहां आकर बसते थे. लेकिन अब उल्टा हो रहा है. कई लोग इलाका छोड़ कर दूसरी जगह बस गए हैं. यहां रोजगार का कोई वैकल्पिक साधन नहीं है. अब सरकार ने दोबारा इन खदानों को खोलने का भरोसा दिया है. लेकिन अब नेताओं के वादों से भरोसा उठ गया है.”
बीते करीब दो दशकों से चुनाव के समय तमाम राजनीतिक दल इन खदानों को दोबारा खोलने का वादा करते रहे हैं. लेकिन चुनाव बीतते ही फिर सब कुछ जस का तस हो जाता है. भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (बीजीएमएल) इम्प्लाइज, सुपरवाइजर्स एंड ऑफिसर्स यूनाइटेड फोरम के संयोजक जी जयकुमार कहते हैं, "अब लोगों को इन खदानों के दोबारा शुरू होने का भरोसा नहीं है.” केजीएफ सिटीजंस फोरम के संयोजक दास चिन्ना सावरी कहते हैं, "खदानों के बंद होने से बेरोजगार कर्मचारियों का लगभग 52 करोड़ रुपया अब भी बकाया है.”
फिलहाल यह कस्बा और यहां के लोग अपने सुनहरे अतीत और अनिश्चित भविष्य के बीच दिन काटने पर मजबूर हैं.
सोने की चमक के पीछे छुपे 7 राज
चाहे सोना इकट्ठा करना आपका शौक हो या केवल इस महंगी चमकदार धातु के प्रति आपको आकर्षण हो, सोने के जुड़ी ये सात दिलचस्प बातें शायद आपको भी ना पता हों.
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सोने से इलाज
गहने बनाने के लिए सदियों से पहली पसंद रहा सोना कई बीमारियों के इलाज में भी उपयोगी है. रुमेटॉइड आर्थराइटिस को ठीक करने के एक तरीके में जोड़ों में सीधे सोने के कण इंजेक्ट किए जाते हैं. सोने के नैनो कणों का इस्तेमाल प्रोस्टेट कैंसर, एचआईवी और मलेरिया की टेस्टिंग के अलावा कुछ खास कैंसर को सोने के रेडियोएक्टिव आइसोटोप की मदद से नष्ट करने में भी होता है. सोने के नकली दांत भी लगते हैं.
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बाहरी दुनिया से आया
माना जाता है कि सोना और इसके जैसी कुछ अन्य कीमती धातुएं करीब 4 अरब साल पहले एक उल्का पिंड के धरती से टकराने से पैदा हुईं. इंग्लैंड की ब्रिस्टल युनिवर्सिटी की एक टीम ने अपनी स्टडी में पाया कि धरती के ठंडा होने के बाद उससे टकराने वाले क्षुद्रग्रहों के साथ आई चीजें धरती पर रह गईं. मिट्टी के साथ मिली ये चीजें बारिश के पानी के कारण धरती की भीतरी सतहों तक पहुंच गईं, जिन्हें अब खनन करके निकाला जाता है.
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खाने की चीज
आपको जान कर हैरानी होगी कि शुद्ध सोना शरीर के अंदर जाने पर भी जहरीला नहीं होता. सोने जैसी बेशकीमती धातुएं ऑक्सिडाइज नहीं होतीं, उन पर जंग नहीं लगती और कई रासायनिक पदार्थों से प्रतिक्रिया भी नहीं करती. शुद्ध सोने के लच्छे खाए भी जा सकते हैं, हालांकि उनसे कोई पोषण नहीं मिलेगा. इस चॉकलेट पर सोना छिड़का हुआ है.
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बड़े काम का सोना
करीब अठहत्तर प्रतिशत सोने का इस्तेमाल गहने बनाने में ही होता है. इसके अलावा बिजली का एक बहुत अच्छा सुचालक होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में भी इसकी खूब उपयोगिता है. इस पर जंग नहीं लगती और इसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है. हर तरह के निर्माण कार्य में इसका ये गुण बाकी धातुओं के मुकाबले इसे खास बनाता है.
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मोबाइल में सोना
दुनिया भर जितनी तेजी से मोबाइल फोनों की संख्या बढ़ी है उतना ही उनका कचरा भी. पुराना होने पर फेंक दिए जाने वाले ये मोबाइल सेट असल में कीमती सोने का स्रोत हैं. यूएनईपी की 2009 की रिपोर्ट में बताया गया था कि मोबाइल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक कचरे के प्रति एक टन में कम से कम 340 ग्राम सोना होता है. क्या आप भी कोशिश करना चाहेंगे, घर पर पड़े पुराने मोबाइल फोन से सोना निकाल कर अमीर बनने की.
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सोना निकालना खतरनाक
सोने के अयस्क को खोद कर निकाला जाता है और फिर सायनाइड से धोकर उसकी फोर्जिंग होती है. सोना तो मिल जाता है लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान निकले जहरीले पदार्थों का भी रेडियोएक्टिव कचरे की ही तरह निपटारा किया जाना चाहिए. बड़े स्तर पर इसे निकालने की प्रक्रिया में सायनाइड के प्रदूषण का भी खतरा है, जो अत्यंत जहरीला है.
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एक आउंस सोने से ढका कमरा
अगर एक आउंस सोने की जाली जैसी पतली झिल्ली बना दी जाए तो उससे एक छोटे कमरे की पूरी चौड़ाई को ढका जा सकता है. सोने का इतना पतला तार बनाया जा सकता है जिसकी चौड़ाई इंसान के बाल की भी एक तिहाई हो. एक आउंस सोने से करीब आठ किलोमीटर लंबा धागा बनाया जा सकता है.