प्लास्टिक के बैग और ढक्कनों को क्या समझकर खा जाते हैं कछुए
८ फ़रवरी २०२२
कछुए तब भी बच गए थे, जब धरती पर डायनासोरों का समूल नाश हुआ था, लेकिन अब प्लास्टिक इनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है. संयुक्त अरब अमीरात में दिखी यह सूरत डरावनी है.
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स्टील की जिस मेज पर पोस्टमॉर्टम किया जाता है, उस पर एक हॉक्सबिल समुद्री कछुआ पीठ के बल लेटा हुआ है. इसका लकड़ी जैसा दिखने वाला खोल राख के रंग का है और पेट तना हुआ है. यह युवा कछुआ एक सप्ताह पहले संयुक्त अरब अमीरात के पूर्वी तट के पास कलबा शहर के तट पर बहकर आ गया था.
एक वक्त था, जब इस तट पर मैंग्रोव के पेड़ दिखाई देते थे और इस जगह से कोई छेड़खानी नहीं करता था. अब यहां पास के ही कचरे के ढेर से लाया गया छोटा-छोटा कचरा बिखरा दिखाई देता है. पूरे ही तट पर प्लास्टिक के बैग, पैकेट, बोतलों के ढक्कन और कभी-कभी कछुओं की लाशें भी पड़ी दिखाई देती हैं.
फादी यागमूर समुद्री विशेषज्ञ हैं. मध्य पूर्व में अपना पहला शोध करते हुए उन्होंने करीब 200 कछुओं का परीक्षण किया था. शुरुआत में फादी ने इस कछुए की लाश में से स्क्विड बीक्स और ऑयस्टर निकाले. फिर उसकी लाश से जो निकला, वह उसकी हालत की वजह बता रहा था. फादी को उसके शरीर में से सूखे गुब्बारे और प्लास्टिक फोम मिला. आखिरी बार कछुए ने यही खाया था.
समुद्री जानवरों का गला घोंटता प्लास्टिक
फागी बताते हैं, "यह कछुआ संभवत: कुपोषित है. प्लास्टिक ने इसकी आंत के रास्ते बंद कर दिए थे, जिसकी वजह से यह भूखा ही रहा." यह कछुआ शारजाह इलाके में कलबा और खोर फक्कन के तटों पर मिले उन 64 कछुओं में से एक है, जो परीक्षण के लिए फागी की लैब में लाए गए हैं.
फागी की शोधकर्ताओं की टीम ने 'मरीन पल्यूशन बुलेटिन' में अपनी एक नई स्टडी छापी है. यह स्टडी संयुक्त अरब अमीरात और पूरी दुनिया में समुद्र में फेंके जाने वाले कचरे और खासकर प्लास्टिक में हो रही बढ़ोतरी से होने वाले नुकसान और खतरे को दिखाने वाला एक दस्तावेज है. समुद्र में फेंका जाने वाला प्लास्टिक समुद्री रास्तों को बंद कर देता है और व्हेल जैसे जानवरों तक का गला घोंट देता है.
देखिए 600 किलो का कछुआ
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स्टडी बताती है कि शारजाह में मृत पाए गए ग्रीन कछुओं में से 75 फीसदी और लॉगरहेड कछुओं में से 57 फीसदी कछुओं ने समुद्री कचरा खा रखा था. उनके पेट से प्लास्टिक के बैग, बोतलों के ढक्कन, रस्सी और मछली पकड़ने वाले जाल के हिस्से मिले हैं. इसके अलावा इस क्षेत्र के बारे में साल 1985 में जो शोध छपा था, उसमें बताया गया कि खाड़ी और ओमान के किसी भी कछुए ने प्लास्टिक नहीं खाया है.
डायनासोर के वक्त में भी बच गए, लेकिन...
फागी कहते हैं, "जब ज्यादातर कछुओं के शरीर से प्लास्टिक मिल रहा है, तो आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी समस्या है. अगर कभी कछुओं की चिंता किए जाने की जरूरत है, तो वह अभी है." लाखों साल पहले जब धरती पर रहनेवाले डायनासोरों का समूल नाश हो गया था, तब भी इन कछुओं का अस्तित्व बच गया था, लेकिन आज ये दुनियाभर में विलुप्त हो रहे हैं.
विश्व संरक्षण संघ बताता है कि कछुओं की हॉक्सबिल प्रजाति गंभीर खतरे में है. वहीं ग्रीन और लॉगरहेड प्रजातियां लुप्तप्राय हैं. ये तीनों प्रजातियां फारस की खाड़ी के गर्म, उथले पानी के साथ-साथ होर्मुज के दूसरी तरफ ओमान की खाड़ी में पाई जाती हैं. 'साइंस अडवांस' में पांच साल पहले हुआ एक शोध बताता है कि दुनिया में कचरा इतना बढ़ रहा है कि 2050 तक इसकी मात्रा 12 अरब मीट्रिक टन हो जाएगी.
कचरा तो उन तमाम खतरों में से एक है, जो इंसानों ने समुद्री कछुओं के लिए पैदा कर दिए हैं. इसके अलावा समुद्र का तापमान भी बढ़ रहा है, जिससे कोरल रीफ यानी मूंगे की चट्टानें खत्म हो रही हैं. समुद्री तटों के हद से ज्यादा विकास और बहुत ज्यादा मछलियां पकड़े जाने से कछुओं का नुकसान हो रहा है. बात बस इतनी सी है कि कलबा तट पर जो हो रहा है, उसे हम अपनी आंखों से देख पा रहे हैं.
कछुए के बारे में 10 दिलचस्प बातें
कछुआ धरती के सबसे पुराने जीवों में हैं. इतना ही नहीं इसका जीवन बहुत लंबा भी है लेकिन फिर भी बहुत सी बातें हैं जो उनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते. इस विलक्षण जीव के बारे में 10 बातें.
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धरती पर बहुत लंबे समय से हैं कछुए
कछुए देखने से ही धरती के बहुत पुराने जीव मालूम पड़ते हैं. वैज्ञानिकों को अब तक जो सबूत मिले हैं, उनके मुताबिक पहला जीव करीब 36 करोड़ साल पहले धरती पर आया. पहली बार यहां आने के कुछ ही दिनों बाद धरती पर से 90 फीसदी जीवन का सफाया हो गया. कछुओं की किस्मत अच्छी थी कि वे पानी में भी रह सकते थे. इस तरह वे खुद को धरती पर नई परिस्थितियों में भी बचाए रखने में सफल हुए.
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लंबा जीवन
पृथ्वी पर मौजूद जीवों में सबसे लंबा जीवन कछुओं का ही है. हालांकि यह बहुत हद तक उनकी अलग अलग प्रजातियों पर निर्भर करता है लेकिन इनमें से ज्यादातर लंबा जीवन जीते हैं. पालतू कछुए की उम्र 10 से 80 साल तक हो सकती है जबकि कुछ बड़े कछुए 100 साल से भी ज्यादा समय तक जीते हैं. एक शताब्दी से ज्यादा के जीवन की ठीक ठीक गणना तो मुश्किल है लेकिन रिसर्चर मानते हैं कि बहुत से कछुए 100 साल से ज्यादा जीते हैं.
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अलग अलग रंग और आकार
फिलहाल कछुओं की 356 प्रजातियों के बारे में जानकारी है. कछुए सरीसृप हैं और आमतौर पर उनकी पीठ पर कार्टिलेज का कठोर कवच होता है. हालांकि यहीं पर उनमें फर्क भी शुरू हो जाता है. इन कवचों के आधार पर ही इनको अलग किया जा सकता है. सी टर्टल, लेदरबैक टर्टल, स्नैपिंग टर्टल, पॉन्ड टर्टल, सॉफ्ट शेल्ड टर्टल (तस्वीर में) और फिर टॉरटॉइज, ये सब इनके अलग अलग प्रकार हैं.
आमतौर पर धारणा है कि कछुए पानी में रहते हैं लेकिन ऐसा है नहीं. धरती पर अलग अलग आवासों में कछुए रहते हैं और उन्हें टॉरटॉइज कहा जाता है जबकि पानी में या पानी के पास रहने वाले कछुए टर्टल कहलाते हैं और वे सिर्फ अंडा देने के लिए धरती पर आते हैं. जाहिर है कि तकनीकी रूप से सारे टॉरटॉइज तो टर्टल हैं लेकिन सारे टर्टल, टॉरटॉइज नहीं हैं.
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शाकाहारी और मांसाहारी
पानी में या पानी के आसपास रहने वाले ज्यादातर कछुए (टर्टल) सर्वाहारी हैं, हालांकि मुट्ठी भर प्रजातियां ऐसी हैं जो अपने खान पान में नखरे दिखाते हैं. जमीन पर रहने वाले कछुए साग भाजी से काम चलाते हैं. उन्हें पत्तेदार सब्जियां और फल पसंद हैं. एक प्रजाति डरावने एलिगेटर टर्टल की भी है जो पूरी तरह से मांसाहारी है. मछलियों और छोटे स्तनधारियों का शिकार करने के फिराक में यह कई बार किनारों तक भी चला आता है.
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अंडा देने के लिए धरती
कछुओं की सारी प्रजातियों की गर्भवती मादाएं अंडा देने के लिए धरती का रुख करती हैं. अंडा देने से ठीक पहले वे अपने आवास के करीब किनारों पर घोसलां बनाती है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वे अंडे से निकले बच्चों को पालती पोसती हैं. एक बार अंडे से बाहर निकलने के बाद नन्हें कछुओं को अपनी जरूरतें खुद ही पूरी करनी पड़ती हैं.
तस्वीर: Imago/Nature Picture Library
तापमान से तय होता है लिंग
घड़ियाल और दूसरे एलिगेटरों की तरह ही कछुओं का लिंग भी निषेचन के बाद तय होता है. अगर कछुए का अंडा 27.7 डिग्री सेल्सियस के तापमान से कम पर रहे, तो उनमें से निकलने वाला कछुआ नर होगा. अगर तपामान 31 डिग्री से ज्यादा हो तो वह मादा होगी. समंदर का तापमान बढ़ने के साथ ही कछुए ज्यादा से ज्यादा मादाओं को जन्म दे रहे हैं.
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जबर्दस्त दिशाज्ञान
समुद्री कछुओं में अपने जन्मस्थान वाले किनारों पर सालों बाद भी वापस आने की विलक्षण क्षमता होती है. कई दूसरे जीवों की तरह कछुए सागर में चुंबकीय क्षेत्रों की रेखाओं का आभास कर अपनी दिशा तय करते हैं. हालांकि वे समुद्रतटों के चुंबकीय क्षेत्रों को भी याद रखते हैं और उसमें मामूली से हेरफेर को भी पकड़ लेते हैं. इसी के दम पर वे अपने घरों को वापस लौटने में सफल होते हैं.
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मजबूत दृष्टि
कछुए पानी के भीतर भी बिल्कुल साफ साफ देख सकते हैं. रिसर्चरों ने पता लगाया है कि वे अलग अलग रंगों को भी पहचानते हैं और रंगों को लेकर उनकी पसंद नापसंद भी है. सागर के भीतर भले ही कछुए अपने आंतरिक जीपीएस के लिए विख्यात हैं लेकिन सबूतों से पता चलता है कि जमीन पर वे बहुत साफ साफ नहीं देख पाते.
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कई प्रजातियां खतरे में
करोड़ों सालों तक धरती पर जीवन जीते रहने के बावजूद आज कम से कम सात में से छह प्रजातियों को इंसानी गतिविधियों के कारण जोखिम में या फिर लुप्तप्राय सूची में डाला गया है. हर साल हजारों कछुए कारोबारी स्तर पर पकड़ी जाने वाली मछलियों के जाल में फंस जाते हैं. इसी तरह बहुत से कछुओं को उनकी खाल, अंडे या फिर मांस के लिए भी मार दिया जाता है.
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कचरा कैसे खा जाते हैं कछुए
शारजाह में मरे पाए गए कछुओं के शरीर में बहुत सारा कचरा निकल रहा है. एक के शरीर में से तो प्लास्टिक कचरे के 325 टुकड़े मिले थे. दूसरे के शरीर में से मछली पकड़नेवाले जाल के 32 टुकड़े मिले थे. ये चीजें कछुओं के शरीर के भीतर जानलेवा रुकावटें पैदा कर सकती हैं और पाचन तंत्र में कई गैसें पैदा कर सकती हैं.
शोध में यह भी पाया गया कि समुद्री कछुए प्लास्टिक के जिन बैगों और रस्सियों को खाते हैं, दरअसल ये चीजें उनके प्राकृतिक खाने जैसी दिखती हैं. ये कछुए कटलफिश और जेलीफिश खाते हैं. लॉगरहेड कछुए बोतलों के ढक्कन और सख्त प्लास्टिक के छोटे टुकड़ों को घोंघे समझकर खा जाते हैं. यहां मिले सबसे युवा कछुए ने सबसे ज्यादा प्लास्टिक खाया हुआ था. कचरा बढ़ता जा रहा है और इसकी कीमत कछुए चुका रहे हैं.