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समलैंगिक विवाह: "प्यार को मान्यता" देने की मांग

१६ मई २०२३

भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है. 20 याचिकाओं में देश में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है.

कोलकाता में आयोजित प्राइड परेड
कोलकाता में आयोजित प्राइड परेड तस्वीर: picture alliance / Pacific Press

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान बेंच ने बीते दिनों समलैंगिक शादी के मामले में दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था. लेकिन देश में आज भी समलैंगिक शादी की इजाजत नहीं है. इसे कानूनी मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं थी. जिस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. भारत सरकार इस रिश्ते को कानूनी मान्यता दिए जाने के खिलाफ है.

भारतीय गे कपल सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग शादी के बाद भी एक-दूसरे को पुकारने के लिए "पति" शब्द का इस्तेमाल करने में झिझकत हैं, वे यह जानते हैं कि उनका देश समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता है. हैदराबाद में अपने घर पर थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को दिए इंटरव्यू में चक्रवर्ती ने कहा, "अगर कोई हमसे पूछता है कि क्या हम शादीशुदा हैं, तो मैं फैसला लेने के लिए दो से तीन सेकंड का वक्त लेता हूं, क्या मैं हां कहूं या ना?" वे कहते हैं, "क्योंकि कानूनी तौर पर हम शादीशुदा नहीं हैं."

डेटिंग ऐप पर मुलाकात

इन दोनों की मुलाकात एक डेटिंग ऐप पर हुई थी और उसके बाद दोनों करीब एक दशक से साथ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने वाले में ये दोनों भी शामिल हैं. इनके अलावा 19 याचिकाकर्ताओं ने सेम सेक्स मैरिज, ट्रांसजेंडर और नॉन बाइनरी जोड़ों की शादी को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है.

अगर अदालत उनके पक्ष में फैसला सुनाती है, तो भारत एलजीबीटीक्यू+ जोड़ों को समान विवाह अधिकार देने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन जाएगा और ताइवान के बाद एशिया में दूसरे स्थान पर होगा. 3 जुलाई को अदालत की गर्मी की छुट्टी खत्म होने के बाद फैसला आने की उम्मीद है.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था.

"कानून की नजर में अजनबी"

लेकिन समान-सेक्स जोड़ों का कहना है कि समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध उन्हें चिकित्सा सहमति, पेंशन, बच्चा गोद लेने या यहां तक कि क्लब की सदस्यता से जुड़े अधिकारों से वंचित करता है.

पेशेवर वेडिंग प्लानर 33 साल के चक्रवर्ती कहते हैं, "हम एक-दूसरे के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं, लेकिन हम अभी भी कानून की नजर में अजनबी हैं."

दोनों की शादी भारतीय परंपरा के मुताबिक हुई थी. जिसमें हल्दी, मेहंदी से लेकर संगीत तक हर रस्म को निभाया गया था.

कानूनी मान्यता के विरोध में केंद्र

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को एक "शहरी, संभ्रांतवादी" विचार बताते हुए उसका विरोध किया है. केंद्र ने कहा है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं "शहरी संभ्रांतवादी" विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं. केंद्र ने कहा कि विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से विधायी कार्य है और कोर्ट को इस पर फैसला करने बचना चाहिए.

डांग और चक्रवर्ती कहते हैं कि वे हमेशा से शादी करना चाहते थे. कोविड महामारी के दौरान उन्होंने वकीलों से परामर्श करना शुरू किया कि कैसे अपने सपने को साकार करें.

डांग कहते हैं, "कोविड ने हमें बताया कि जीवन बहुत नाजुक है. अगर हममें से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो क्या होगा? दूसरे व्यक्ति के पास कोई अधिकार नहीं है, शायद अंतिम संस्कार करने का अधिकार भी नहीं है."

सुप्रीम कोर्ट पर एलजीबीटीक्यू की नजरें

इस बीच उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को इकट्ठा कर शादी करने का फैसला किया. चक्रवर्ती कहते हैं कि जब लोगों को पता चला कि शादी एक गे कपल की है तो कई लोगों ने यह कहते हुए बहाना बनाया कि वे उस तारीख को उपलब्ध नहीं हैं.

चक्रवर्ती बताते हैं कि उन्होंने शादी वाले दिन किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में बाउंसरों और सुरक्षा गार्डों को तैनात किया था.

दोनों कहते हैं कि अदालत का फैसला चाहे जो भी है देश में एलजीटीक्यू+ लोगों और उनके अधिकारों के बारे में चर्चा और बातचीत को आम किया है.

डांग कहते हैं, "शादी का एक पहलू यह है कि सभी कानूनी अधिकार इसमें मिल जाते हैं, लेकिन यह हमें विषमलैंगिक विवाहित जोड़ों के समान मंच पर रखने के बारे में भी है, जिनको गरिमा के साथ मूल अधिकार मिलना चाहिए."

उन्होंने कहा, "आज कानून की नजर में हम सिर्फ दोस्त की तरह हैं. अगर सेम सेक्स शादी को मान्यता मिलती है तो हमें भी गरिमा मिलेगी."

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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