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रिकॉर्ड तोड़ प्रचंड गर्मी और जलवायु संकट में घिरी दुनिया

२२ जुलाई २०२२

पूरी दुनिया में अत्यधिक गर्मी पड़ने लगी है. ऐसे में प्रभावित इलाके, जीवन बचाए रखने के लिए नये हालात में खुद को कैसे ढालें? ये सवाल भी तेजी से उभर कर आया है.

Indien Hitzewelle
तस्वीर: AMIT DAVE/REUTERS

पूर्वी चीन में बाढ़ और बेतहाशा गर्मी से कई मौतें हुई हैं. वहां तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के ऊपर दर्ज किया गया था. पुर्तगाल और पश्चिमी स्पेन में भड़की जंगल की आग को बुझाने के लिए अग्निशमन दल जूझ रहे हैं जबकि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से पार जा चुका है और लू ने कहर बरपा दिया है.

इस साल भारत दर्जनों गर्म लहरों की चपेट में था और उनका असर व्यापक था. देश भर में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को छूने लगा था और करोड़ों लोग गर्मी की बीमारियों से जूझ रहे थे. गेहूं की फसल बर्बाद हो रही थी, बिजली का संकट बढ़ गया था और स्कूल बंद किए जाने लगे थे. लेकिन ऐसे हालात सिर्फ भारत में नहीं थे. पड़ोसी पाकिस्तान भी गर्मियों के आने से पहले ही बढ़ते तापमान से जूझने लगा था. इस साल के शुरू में, मध्य दक्षिण अमेरिका, धरती का सबसे गर्म स्थान बन गया था. बाद में ये कुख्याति पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के हिस्से आई.

जलवायु संकट ने पूरी दुनिया में गर्म लहरों को प्रचंड बना दिया है और तापमान में समय से पहले और अनापशनाप ढंग से आग उगलती बढ़ोत्तरी देखी जा रही है, ऐसे मे देशों के समक्ष सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर जीने योग्य स्थितियां किस तरह बनाए रखें.

लंदन में गर्मी के चलते लोगों को बाहर न निकलेंगे की चेतावनीतस्वीर: Kirsty Wigglesworth/AP Photo/picture alliance

बात है पैसों की और तैयारी की

एसी और पंखों का लगातार इस्तेमाल और ठंडे आरामदायक कमरों में बैठककर काम और बिजली के भारीभरकम बिलों का भुगतान- चुनिंदा विशेषाधिकार प्राप्त लोग तो ये सुविधा और इसका भार आसानी से वहन कर सकते हैं. यूसी सांटा बारबरास ब्रेन स्कूल ऑफ एनवायरेन्मेंटल साइंट एंड मैनेजमेंट में अर्थशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर टामा कार्लेटन कहती हैं, "जलवायु परिवर्तन की दास्तान एक आला दर्जे की गैरबराबरी की दास्तान है जिसे हम पहले से दुनिया के सबसे गरीब और सबसे गर्म मुल्कों में घटित होता देख ही रहे हैं."

टामा कार्लेटन 2022 के एक अध्ययन की सह-लेखक हैं. इस अध्ययन में तापमान की अत्यधिकता के दौरान मौतों के मामले न्यूनतम करने की शहर की सामर्थ्य को दो मुख्य कारकों से जोड़ा गयाः संपन्नता या अमीरी और गर्मी वाले दिनों की संख्या. पैसा ही तय करता है कि अपने सबसे असहाय लोगों को बचाए रखने के लिए शहर प्रशासन कौनसी प्रौद्योगिकियां इस्तेमाल कर सकता है. और, कार्लेटन के मुताबिक, जब अनुकूलन की कीमतों का भुगतान सरकार से नहीं होता, तो बोझ पड़ता है व्यक्तियों पर कि वे अपने बचाव के लिए अपना पैसा लगाए. ऐसे हालात की सबसे बुरी मार अंततः गरीबों पर ही पड़ती है. वे कहीं के नहीं रहते.

लेकिन अगर कोई कार्ययोजना न हो और तैयारी न हो तो संपन्न शहरों को भी भुगतना पड़ सकता है. ऐसा हुआ है अमेरिका के प्रशांत उत्तरपश्चिम इलाके में जो वैसे समृद्ध इलाका है और अपनी समशीतोष्ण, नरम जलवायु के लिए मशहूर भी. पिछले साल लू की चपेट में आकर वहां 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे. कार्लेटन कहती हैं, "हम लोग जब जलवायु परिवर्तन के अपने आकलनों में भविष्य की स्थिति को देखते हैं तो पाते हैं कि गरीब इलाकों में मृत्यु का जोखिम वाकई बढ़ा हुआ होगा और संपन्न इलाकों में अनुकूलन की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी."

बेतहाशा गर्मी से बचेंगे गरीबतस्वीर: ANUSHREE FADNAVIS/REUTERS

बचाव के तरीकों में तेजी की जरूरत

विकासशील देशों में मृत्यु का खतरा कितना बड़ा है, ये तभी स्पष्ट हो गया था जब गुजरात के अहमदाबाद शहर मे 2010 में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस पार कर गया और 1344 से ज्यादा लोगो की जान चली गई.  मौत के इस आंकड़े ने शहर प्रशासन को तेजी से हरकत में ला दिया. एक अध्ययन के मुताबिक, 2013 में एक योजना बनाई गई जिसके बाद से हर साल करीब 1100 मौतें रोकने में सफलता मिल पाई. 

दक्षिण एशिया में गर्मी से निपटने की पहली कार्ययोजना के तहत एक पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की गई, वंचित आबादी तक सामुदायिक पहुंच बनाई गई और गर्मी या लू की चपेट में आने के संभावित लक्षणों के बारे में स्वास्थ्यकर्मियों को शिक्षित किया गया. इस कार्ययोजना के तहत अन्य कार्रवाइयों के अलावा, मंदिरों और मॉल्स जैसी इमारतों में कूलिंग सेंटर खोले गए और खुले में काम करने वाले मजदूरों के लिए काम के घंटे घटाए या शिथिल किए गए.

भारत में वसंत और ग्रीष्म के समय, तापमान बेसलाइन को लगातार पार करता रहा है. इस लिहाज से अहमदाबाद के हीट प्लान ने देश के 23 राज्यों में तैयार उस जैसे ही मॉडलों के लिए टेम्प्लेट की तरह काम किया है.  नेचुरल रिसोर्सेस डिफेंस काउंसिल के इंडिया प्रोग्राम में एयर पॉल्युशन एंड क्लाइमेट रिजिल्यन्स के प्रमुख पोलाश मुखर्जी के मुताबिक तापमान की तीव्रता बनी हुई है लिहाजा इन मॉडलों को भी नियमित अपडेट की जरूरत पड़ती है. अहमदाबाद की कार्ययोजना को विकसित करने में मुखर्जी के एनजीओ ने ही मदद की थी.

मुखर्जी कहते हैं, "मनुष्य स्वास्थ्य के बचाव और बेतहाशा गर्मी से मृत्यु की दर में कमी तक ही बात सीमित नहीं रह गयी है बल्कि पिछले दो साल में उल्लेखनीय रूप से अब ज्यादा प्रोएक्टिव उपायों पर भी ध्यान दिया जाने लगा है. इनमें इमारत निर्माण के बाइलॉज में बदलाव शामिल हैं ताकि नये निर्माण में ठंडक के बेहतर उपाय हों और कूल रूफ प्रोग्राम भी इसमें शामिल है."

इनडोर तापमान को कम करने का कम लागत वाला समाधान है- कूल रूफ प्रोग्राम यानी ठंडी छतें तैयार करना. इस कार्यक्रम का प्राथमिक लक्ष्य झुग्गियों में गर्मी से बचाव के लिहाज से खराब ढंग से बने घरों को दुरुस्त करने का है जहां छोटेमोटे कारीगर, मजदूर आदि और दूसरे गरीब वंचित समूह रहते हैं. छत पर चूने की पुताई की जाती है या सफेद तिरपाल बिछाई जाती है तो वे ज्यादा परावर्तित होकर कम तपिश सोखती हैं. 

बीते 22 साल में भारत में तापमान में उतार चढ़ाव

ठंडे फुटपाथ और हरे गलियारे 

दुनिया भर में इस तरह के विचार सामने आ रहे हैं. जापान की राजधानी टोक्यो में ठंडे फुटपॉथ लगाए गए हैं जिनमें तापरोधी परत लगी होती है. कोलम्बिया के मेडेलिन में वनस्पति से भरपूर हरित गलियारे निकाले गए हैं. जिनसे सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा छाया मिलने लगी है. कनाडा के टोरंटो शहर में लोगो को हरित या ठंडी छतें लगाने के लिए ग्रांट दी जाती है. कुछ शहरों में हीट दफ्तर भी खोले गए हैं जिनका काम है- तापमान से निपटने के उपायों का समन्वय.

सिएरा लियोन के फ्रीटाउन शहर की हीट अधिकारी के पद पर तैनात इयुगेनिया काग्बो अफ्रीकी महाद्वीप की पहली हीट ऑफिसर हैं. वो खुले में सामान बेचने वाली महिला विक्रेताओं को धूप से बचाव वाले शेड मुहैया कराती हैं. राजधानी को और रहने लायक बनाने के लिए इयुगेनिया ने वृक्षारोपण कार्यक्रम भी शुरू किया है. जिसमें पौधे लगाने के इच्छुक लोग एक ऐप पर माइक्रो-भुगतान जमा कर सकते हैं.  इयुगेनिया काग्बो ने डीडब्लू के ईकोअफ्रीका कार्यक्रम को बताया, "अपने बच्चों का और फ्रीटाउन के सभी बच्चों का मैं ऐसा ही भविष्य चाहती हूं. एक सुरक्षित पर्यावरण को बेतहाशा गर्मी के जोखिम की परवाह नहीं होती."

गर्मी से निपटने के लिए खास ऑफिसर

04:53

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जलवायु संकट पर फोकस

कुछ इलाके चिलचिलाती गर्मी के असर को कम करने के तरीके ढूंढ ही रहे हैं, उधर वैज्ञानिकों का जोर है कि सरकारों को तामपान वृद्धि की मूल वजहों को नहीं भूलना चाहिएः और वो है जलवायु संकट. "इम्पैक्ट्स, अडैपटेशन एंड वलनरेबलिटी" नाम से आईपीसीसी की एक आकलन रिपोर्ट में एक अध्याय की सह-लेखक अदिति मुखर्जी कहती हैं कि समाधान की तलाश का जिम्मा सबसे प्रभावित इलाकों या वहां के लोगों पर नहीं थोपना चाहिए, क्योंकि उन इलाकों ने ऐतिहासिक रूप से सबसे कम मात्रा में सीओटू उत्सर्जन किया है.

वो कहती हैं, "मुझे लगता है जब इस तरह की गर्मी की पराकाष्ठा वाले मामलों की बात आती है तब अकेला समाधान तो यही है कि ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देश तत्काल प्रभाव से अपने उत्सर्जनों को रोक दें और जीवाश्म ईंधनो को जलाना बंद करें."

रिपोर्टः बिएट्रिस क्रिस्टोफारो

इतनी गर्मी, वो भी यूरोप में

07:30

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