जर्मनी के प्रबंध मंडलों में महिलाओं की रिकॉर्ड संख्या
२८ अक्टूबर २०२१
इस साल विभिन्न व्यवसायों में वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर रहने वाली जर्मन महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है. एक सितंबर तक दो दर्जन से अधिक महिलाओं को कार्यकारी पदों पर नियुक्त किया गया जा चुका है.
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एक गैर-लाभकारी संगठन ऑल ब्राइट फाउंडेशन द्वारा संकलित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल अब तक 25 महिलाएं विभिन्न व्यावसायिक कंपनियों में कार्यकारी पदों पर बैठ चुकी हैं. ये महिलाएं बड़ी कंपनियों से संबंधित हैं जो फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं और व्यापारिक समुदाय में एक प्रमुख जगह रखती हैं.
ऑल ब्राइट फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती है जर्मनी में व्यापार में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं के रोजगार की दर में इस साल 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कुल मिलाकर 13.4 प्रतिशत की दर तक पहुंच गई है. 19 महिलाएं भी विभिन्न संगठनों के प्रबंधन बोर्डों का हिस्सा बनीं. इस बढ़ोतरी को असामान्य बताया गया है. हालांकि यह संख्या अभी भी बहुत कम मानी जाती है क्योंकि उच्च पदों पर 603 पुरुष हैं. अब भी आधे से अधिक जर्मन कंपनियों के बोर्ड में कोई महिला नहीं है.
मेरा शरीर, मेरी मर्जी
‘माई बॉडी माई चॉइस’ जैसे नारे लिखीं तख्तियां हाथों में लिए हजारों महिलाओं ने अमेरिका के 600 शहरों में प्रदर्शन किए.
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अपने शरीर पर अधिकार मांगतीं महिलाएं
अमेरिका के वॉशिंगटन में हजारों महिलाएं सड़कों पर उतरीं और अमेरिका में अबॉर्शन के अधिकारों के समर्थन में प्रदर्शन किया.
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टेक्सस कानून का विरोध
अमेरिका के टेक्सस में गर्भधारण के छह हफ्ते बाद गर्भपात कराने पर बैन लगा दिया गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को रोकने की अपील की है और कहा है कि इससे महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का हनन होता है.
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हार्टबीट बिल
टेक्सस के एक नये कानून के तहत प्रेग्नेंसी के छह सप्ताह बाद गर्भपात कराना मना है. टेक्सस के इस नये गर्भपात कानून को "हार्टबीट बिल” नाम दिया गया है.
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अबॉर्शन
अबॉर्शन
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सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही दोबारा शुरू होनी है. वहीं इस कानून पर अंतिम फैसला हो पाएगा.
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क्यों खतरनाक है कानून
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून की वजह से "टेक्सस में गर्भपात कराने वाले मरीजों में से 85 प्रतिशत को देखभाल नहीं मिल पाएगी" और कई गर्भपात क्लिनिक बंद भी हो जाएंगे.
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गर्भपात अपराध
19 मई को पारित किया गया कानून एक तरह से विचित्र भी है क्योंकि यह हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वो छह हफ्तों की समय सीमा के बाद गर्भपात कराने वाली महिला की मदद करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकें.
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छह हफ्ते नाकाफी हैं
ऐसा अक्सर गर्भ के छह सप्ताह पूरा होने पर पता चलने लगता है. कभी कभी यह समय आने तक महिलाओं को गर्भ का पता भी नहीं चलता.
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कानून के समर्थक भी
वैसे कानून का समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं है. हालांकि रविवार के प्रदर्शन के विरोध में कुछ ही ऐसे लोग नजर आए जिन्होंने ‘अबॉर्शन हत्या है’ जैसे नारे लगाए.
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महिलाओं को कार्यकारी पदों पर प्रमोशन करने या उन्हें प्रबंध मंडल का हिस्सा बनाने में जर्मनी कई अन्य विकसित देशों से पीछे है. उदाहरण के लिए अमेरिका में शीर्ष 30 कंपनियों में महिला अधिकारियों की संख्या 31 प्रतिशत से अधिक है. कार्यकारी पदों पर 27.4 प्रतिशत महिलाओं के साथ यूके दूसरे स्थान पर है. तीसरे स्थान पर स्वीडन है.
ऑल ब्राइट फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक विब्के अंकर्सन का कहना है, "कंपनियों को एक-दूसरे के पीछे छिपने की जरूरत नहीं है. उन्हें कार्रवाई करने की जरूरत है." उन्होंने यह भी कहा कि कंपनियों का परीक्षण इस संदर्भ में किया जाएगा कि क्या उनमें कोई वास्तविक परिवर्तन हुआ है.
हाल ही के एक कानून के बाद 2,000 या अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों के पास अपने गवर्निंग बोर्ड में कम से कम एक महिला बोर्ड सदस्य होना चाहिए. इसी तरह जिन कंपनियों के गवर्निंग बोर्ड को महिला सदस्य की आवश्यकता नहीं लगती है, उन कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के लिए अब कानूनी रूप से अनिवार्य है कि वह इसका कारण सरकारी प्राधिकरण को बताएं.
एए/सीके (डीपीए)
कमाई के मामले में अपने पतियों से भी पीछे हैं महिलाएं
पति-पत्नी की आय में अंतर पर किए गए एक वैश्विक अध्ययन में सामने आया है कि दुनिया में कहीं भी महिलाएं अपने पतियों के बराबर नहीं कमा पा रही हैं. अध्ययन आईआईएम बैंगलोर के शोधकर्ताओं ने किया है.
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45 देश, 43 सालों की अवधि
परिवारों के अंदर आय में लैंगिक असमानता पर पहले वैश्विक सर्वे के लिए 45 देशों के 1973 से लेकर 2016 तक के डेटा का अध्ययन किया गया. आईआईएम बैंगलोर के हेमा स्वामीनाथन और दीपक मलघन ने यह शोध किया.
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हर उम्र के जोड़े शामिल
यह डाटा 18 से 65 साल की उम्र के हेट्रोसेक्सुअल जोड़ों वाले 28.5 लाख परिवारों का था. डाटा इकट्ठा किया लाभकारी संस्था लक्समबर्ग इनकम स्टडी (एलआईएस) ने.
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पूरी दुनिया का एक ही हाल
शोधकर्ताओं ने देशों को सामान्य रूप से व्याप्त विषमता और परिवारों के अंदर असमानता की कसौटियों पर परखा. उन्होंने पाया कि लैंगिक असमानता सभी देशों में, हर कालखंड में और गरीब हो या अमीर सभी परिवारों में मौजूद है. एक देश भी ऐसा नहीं है जहां महिलाओं की आय उनके पतियों के बराबर हो.
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नॉर्डिक देश भी पिछड़े
उत्तरी यूरोप के नॉर्डिक देशों में यूं तो दुनिया में सबसे कम लैंगिक असमानताएं हैं, लेकिन वहां भी हर जगह परिवार की आय में पत्नी की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से कम पाई गई.
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क्यों कम कमा पाती हैं महिलाएं
इसके कई कारण वैश्विक हैं. पुरुषों को पारम्परिक रूप से रोजी-रोटी कमाने वालों और महिलाओं को गृहिणियों के रूप में देखा जाता है. कई महिलाओं को मां बनने के बाद काम से अवकाश लेना या काम छोड़ देना पड़ता है. कार्यस्थलों में एक जैसे काम के लिए आज भी कई स्थानों पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम पैसे मिलते हैं.
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घर के अवैतनिक काम
आज भी घर के अवैतनिक काम और परिवार का ख्याल रखना महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है. रिपोर्ट ने कहा कि ख्याल रखने का अवैतनिक काम "महिलाओं को श्रमिक बल में प्रवेश करने, बने रहने और तरक्की करने से रोकने वाला मुख्य अवरोधक है."
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कम आय के नुकसान
शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं की कम आय की वजह से परिवार में लैंगिक असंतुलन भी होता है. महिलाओं के पास बचत कम होती है, वो कम संपत्ति अर्जित कर पाती हैं और बुढ़ापे में पेंशन के रूप में भी उनकी कमाई कम ही रहती है.
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अच्छी आय के फायदे
बतौर गृहिणी महिलाओं का योगदान अदृश्य है जबकि नकद आय दिखती है. पारिवारिक आय में ठोस नकद का योगदान करने वाली महिलाओं का एक विशेष दर्जा होता है, वो आत्मनिर्भर होती हैं और परिवार के अंदर वो अपनी बात कह सकती हैं. आय बढ़ने से उनकी क्षमता बढ़ती है और वो एक शोषण भरी स्थिति से खुद को निकाल भी सकती हैं.
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आशा की एक किरण
हालांकि 43 सालों की इस अवधि में परिवारों के अंदर की असमानता में 20 प्रतिशत गिरावट देखी गई है. दुनिया के अधिकांश हिस्सों में श्रमिक वर्ग में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, महिलाओं के अनुकूल कई नीतियां बनी हैं और लैंगिक फासला कम हुआ है.
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लंबा सफर बाकी है
इसके बावजूद यह फासला अभी भी बहुत बड़ा है और अभी भी इसे कम करने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है. शोधकर्ताओं का कहना है कि सरकारों को और बेहतर नीतियां लाने की जरूरत है, कंपनियों को और महिलाओं को नौकरी देने की जरूरत है और जो कामकाजी महिलाओं को घर का अवैतनिक काम करने और परिवार का ख्याल रखने के लिए दंड देना बंद करने की जरूरत है.