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समाज

गंगा की सफाई के लिए फूलों की रिसाइक्लिंग

२६ मार्च २०२१

फेस मास्क लगाए महिलाएं भूरे रंग के पेस्ट को लकड़ी पर लपेट कर अगरबत्तियां तैयार कर रही हैं. ये महिलाएं उन फूलों को रिसाइकिल करने में मदद कर रही हैं जिन्हें गंगा में बहा दिया जाता है.

तस्वीर: Sunil Kataria/REUTERS

एक सौ महिलाओं का यह सशक्त दल उद्यमी अंकित अग्रवाल के फूल डॉट को का हिस्सा है. ये दल कानपुर में गंगा नदी में से फूलों का कचरा हटाता है. भारत में मंदिरों में हर रोज लाखों टन फूल और फूल-मालाओं का इस्तेमाल होता है. लोग श्रद्धा के साथ फूल भगवान को चढ़ाते हैं लेकिन अंकित कहते हैं कि करीब हर साल 80 लाख टन फूलों का अंत देश की नदियों में होता है. नदियों में सीवेज, औद्योगिक और घरेलू कचरे भी पहुंचते हैं. अंकित कहते हैं, "फूलों को उगाने के लिए जो भी कीटनाशक का इस्तेमाल होता है वे नदी के पानी के साथ मिल जाते हैं जिससे पानी अत्यधिक जहरीला हो जाता है."

फूलों का इस्तेमाल अगरबत्ती बनाने के लिए होता है. तस्वीर: Sunil Kataria/REUTERS

अंकित की टीम में अधिकतर महिलाएं हैं, वे नदी के किनारों और मंदिरों से फूलों को उठाती हैं और उसे रिसाइकिल कर अगरबत्ती और धूप बनाती हैं. यही नहीं होली के लिए इन फूलों का इस्तेमाल बतौर रंग के तौर पर किया जाता है. अंकित कहते हैं कि कई भारतीय उन फूलों को जलस्रोतों में डंप करना पसंद करते हैं जो वे भगवान को चढ़ाते हैं, उनके मुताबिक लोग चढ़ावे वाले फूल को कचरे के डिब्बे में डालना अपवित्र मानते हैं.

अंकित की कंपनी चढ़ावे वाले फूल को नदियों में बहाने से हतोत्साहित करने के लिए अगरबत्ती बनाती है. अगरबत्ती के पैकेट पर किसी हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीर नहीं होती है. अगरबत्ती के लिए तुलसी के बीज का भी इस्तेमाल किया जाता है.

टीम की अधिकांश महिलाएं पहले मैला उठाने का काम करती थीं. तस्वीर: Sunil Kataria/REUTERS

'फूल डॉट को' को टाटा बिजनेस समूह के सामाजिक शाखा से निवेश मिला है. टीम की अधिकांश महिलाएं पहले या तो हाथ से मैला ढोती थीं या फिर बेरोजगार थीं. अब उनके पास रोजगार है जो पवित्र गंगा की सफाई का सम्मान देता है. टीम की सदस्य सुजाता देवी कहती हैं, "लोग मुझे एक स्वतंत्र महिला के रूप में देखते हैं, जो नौकरी कर सकती है और अपनी गृहस्थी भी चला सकती है. इस वजह से मेरी जिंदगी में एक बदलाव आया है."

एए/सीके (रॉयटर्स)

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