2019 के अंत और 2020 के शुरुआती महीनों के बीच जर्मनी में शरणार्थियों की संख्या 60,000 कम हुई. कइयों का परमिट खत्म हुआ तो बहुतों को जर्मनी में प्रवेश करने की अनुमति ही नहीं मिली.
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गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार नौ साल में ऐसा पहली बार हुआ है जब जर्मनी में शरणार्थियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. 2019 के अंत में जहां देश में 18.3 लाख शरणार्थी थे, वहीं 2020 के पहले छह महीनों में यह संख्या घट कर 17.7 लाख रह गई यानी कुल 62,000 कम. ये आंकड़े तब सामने आए जब देश की वामपंथी पार्टी डी लिंके ने शरणार्थियों से जुड़ी कुछ जानकारी मांगी. पार्टी जानना चाहती थी कि देश में कितने शरणार्थियों के पास रहने की सुरक्षित जगह और परमिट है. मंत्रालय ने सूचना दी कि फिलहाल 13.1 लाख शरणार्थियों के पास रहने के लिए सुरक्षित जगह है. पिछले छह महीने की तुलना में यह करीब 50,000 कम है.
इनके अलावा जर्मनी में 4,50,000 वे लोग भी मौजूद हैं जिन्होंने यहां शरण का आवेदन दिया हुआ है लेकिन अभी उनके कागजों पर कोई फैसला नहीं लिया गया. पिछले साल यह संख्या 15,000 ज्यादा थी. गृह मंत्रालय के अनुसार आंकड़ों में कमी की मुख्य वजह यह रही कि बहुत से लोगों के परमिट खत्म हो गए या फिर उनके प्रोटेक्शन स्टेटस को खारिज कर दिया गया. इसके अलावा कोरोना महामारी के कारण यूरोप में सीमाएं बंद रहीं और हवाई यातायात ठप्प पड़ा रहा. इस कारण भी लोग देश में प्रवेश नहीं कर पाए.
गोल्डन यूरोप के चक्कर में फंसे बच्चे
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किसे मिलती है जर्मनी में शरण?
डी लिंके पार्टी की प्रवक्ता उला येल्पके ने इसकी आलोचना करते हुए कहा, "महामारी के कारण यात्राओं पर जो रोक लगी उसके कारण ऐसा हुआ कि मदद की आस में कम लोग जर्मनी आ सके. साफ बात यह है कि आज पहले से ज्यादा नहीं, बल्कि कम शरणार्थी जर्मनी में रह रहे हैं." येल्पके ने जर्मन सरकार से मांग की है कि दूसरे यूरोपीय देशों में फंसे शरणार्थियों को जर्मनी लाने का प्रयास किया जाए. उन्होंने कहा, "हमारे पास जगह है और आंकड़े यह बात दिखाते हैं. साथ ही दूसरे यूरोपीय देशों में शरण की आस में दसियों हजार लोग बुरी परिस्थितियों में फंसे हुए हैं."
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जर्मन कानून के तहत शरणार्थियों को अलग अलग श्रेणियों में देश में रहने की अनुमति मिलती है. सबसे आम हैं वे लोग जो जिनेवा कन्वेंशन के तहत मदद मांगते हैं. यदि कोई व्यक्ति यह साबित कर पाता है कि उसे अपने देश में अपने धर्म, जाति, राजनीतिक विचारों या किसी संगठन से जुड़े होने के कारण जान का खतरा है, तो जिनेवा कंवेंशन के तहत उसे शरण पाने का हक है. यह स्टेटस ना मिलने की स्थिति में लोग सब्सिडरी प्रोटेक्शन के लिए आवेदन देते हैं. इसमें उन्हें यह बताना होता है कि अब अगर वे अपने देश लौटे तो उनकी जान को खतरा होगा.
जल गया ग्रीस का रिफ्यूजी कैंप
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शरणार्थी नीति फिर घेरे में
सितंबर में ग्रीस के एक द्वीप पर शरणार्थी शिविर में लगी आग के बाद से एक बार फिर यूरोप के शरणार्थी नीति पर चर्चा शुरू हो गई है. 3,000 लोगों के रहने के लिए बनाए गए इस शिविर में आग लगने के बाद 13,000 लोग बेघर हो गए. यह आंकड़ा ही यह बताने के लिए काफी है कि लोग वहां किन परिस्थितियों में जी रहे होंगे.
इस हादसे के बाद जर्मनी ने ग्रीस से 1,553 शरणार्थियों और 150 बच्चों को लेने की बात कही थी. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इतना काफी नहीं है. येल्पके कहती हैं, "जर्मनी को ग्रीस और इटली जैसे देशों की मदद कर लोगों को स्वीकारना होगा. वह ऐसा करने की हालत में है और उसे ऐसा करना भी होगा. जिस कम संख्या में लोगों को लिया जा रहा है उसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता."
दिल्ली के आदर्श नगर के पास एक पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी बस्ती है. बस्ती में करीब 600 हिंदू शरणार्थी रहते हैं. नागरिकता संशोधन बिल के संसद में पास हो जाने के बाद भारत को अपना घर बनाने की उनकी इच्छा पूरी होती दिख रही है.
तस्वीर: DW/A. Ansari
नागरिकता की मांग
हिंदू शरणार्थी करीब 6 साल पहले वीजा लेकर भारत आए थे और दिल्ली के आदर्श नगर के पास बस गए. इस झुग्गी बस्ती में करीब 600 लोग रहते हैं जिनमें बच्चे, बूढे़ और महिलाएं शामिल हैं. शरणार्थियों का कहना है कि वह भारत में बसना चाहते हैं और भारत ही उनका मुल्क है.
तस्वीर: DW/A. Ansari
वीजा के झंझट से छुटकारा
शरणार्थी शिविर में रहने वाले लोगों का कहना है कि भारतीय नागरिकता मिल जाने के बाद उन्हें बार-बार वीजा बढ़ाने के लिए दौड़ भाग नहीं करना पड़ेगा. उनकी मांग है कि सरकार उन्हें नागरिकता दे और सही तरीके से उनका पुनर्वास करे.
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पाकिस्तान की कड़वी यादें
बस्ती में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि पाकिस्तान में उनका सम्मान नहीं होता था और उनके साथ धार्मिक भेदभाव होता था. महिलाएं कहती हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं का रहना मुश्किल है और वह वापस नहीं लौटना चाहती हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
जुदाई का दर्द
हिंदू शरणार्थी सोनारी के परिवार के कुछ सदस्य अभी भी पाकिस्तान में हैं और वह चाहती हैं कि उनके परिवार के बाकी सदस्य भी हिंदुस्तान आ जाएं ताकि सभी लोग साथ एक इसी देश में रह सके. सगे-संबंधियों का जिक्र आते ही उनकी पलकें भींग जाती हैं.
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'धार्मिक आजादी'
दिल्ली के इस शरणार्थी शिविर में रहने वाले लोग बताते हैं कि वह अब भारत में आजादी के साथ अपने धर्म का पालन कर सकते हैं. बस्ती में बने मंदिर में वह सुबह शाम पूजा भी करते हैं.
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उज्ज्वल होगा बच्चों का भविष्य
इस शरणार्थी शिविर में बच्चों की पढ़ाई के लिए एक छोटा स्कूल है जिसमें उन्हें प्राथमिक शिक्षा दी जाती है. कुछ बच्चों ने बताया कि वह पढ़ने के लिए सरकारी स्कूल में जाते हैं.
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मुश्किल से गुजारा
बस्ती में रहने वाले पुरुष मेट्रो स्टेशन के पास मोबाइल कवर जैसी छोटी मोटी चीजें बेचते हैं, कुछ लोग सब्जी बेचकर या फिर रिक्शा चलाकर अपना गुजारा करते हैं. जिनकी उम्र अधिक है वह बस्ती में ही रहते हैं और घर के काम में हाथ बंटाते हैं.
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सुविधा की कमी
महिलाएं खाना बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे जलाती हैं, बिजली या गैस कनेक्शन नहीं होने के कारण उन्हें खाना पकाते वक्त हानिकारक धुएं से भी जूझना पड़ता है. घरों में रोशनी का भी जरिया भी मिट्टी तेल से जलने वाली बत्ती ही है.
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तिनका-तिनका जिंदगी
पिछले 6 साल से हिंदू शरणार्थी कभी टेंट, कभी प्लास्टिक तो कभी टिन की चादरों से बनी छत के नीचे किसी तरह से गुजर बसर कर रहे हैं. वक्त के साथ शरणार्थियों ने मिट्टी और ईंट के सहारे चारदीवारी बना ली. बस्ती में सफाई की कमी के कारण कई बार लोग बीमार हो जाते हैं. सर्दी और बारिश के मौसम में इनकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं.
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दिल्ली में हिंदू शरणार्थी
पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों की बस्तियां दिल्ली में कई जगह आबाद हैं. आदर्श नगर के अलावा मजनूं का टीला और सिग्नेचर ब्रिज के पास सैकड़ों शरणार्थी इसी तरह से रहते हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
भारत में हिंदू शरणार्थी
दिल्ली के अलावा भारत के कई और इलाकों में भी पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी रहते हैं. भारत पाकिस्तान की सीमा पर राजस्थान और दूसरे राज्यों में दसियों हजार ऐसे लोग रहते हैं. इन्हें स्थानीय लोगों के साथ रहने की इजाजत नहीं है. नागरिकता के लिए कम से कम 7 साल भारत में रहना जरूरी है.