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जर्मनी में घटी शरणार्थियों की संख्या

६ अक्टूबर २०२०

2019 के अंत और 2020 के शुरुआती महीनों के बीच जर्मनी में शरणार्थियों की संख्या 60,000 कम हुई. कइयों का परमिट खत्म हुआ तो बहुतों को जर्मनी में प्रवेश करने की अनुमति ही नहीं मिली.

Migranten Symbolbild
तस्वीर: Imago Images/E. Krenkel

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार नौ साल में ऐसा पहली बार हुआ है जब जर्मनी में शरणार्थियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. 2019 के अंत में जहां देश में 18.3 लाख शरणार्थी थे, वहीं 2020 के पहले छह महीनों में यह संख्या घट कर 17.7 लाख रह गई यानी कुल 62,000 कम. ये आंकड़े तब सामने आए जब देश की वामपंथी पार्टी डी लिंके ने शरणार्थियों से जुड़ी कुछ जानकारी मांगी. पार्टी जानना चाहती थी कि देश में कितने शरणार्थियों के पास रहने की सुरक्षित जगह और परमिट है. मंत्रालय ने सूचना दी कि फिलहाल 13.1 लाख शरणार्थियों के पास रहने के लिए सुरक्षित जगह है. पिछले छह महीने की तुलना में यह करीब 50,000 कम है.

इनके अलावा जर्मनी में 4,50,000 वे लोग भी मौजूद हैं जिन्होंने यहां शरण का आवेदन दिया हुआ है लेकिन अभी उनके कागजों पर कोई फैसला नहीं लिया गया. पिछले साल यह संख्या 15,000 ज्यादा थी. गृह मंत्रालय के अनुसार आंकड़ों में कमी की मुख्य वजह यह रही कि बहुत से लोगों के परमिट खत्म हो गए या फिर उनके प्रोटेक्शन स्टेटस को खारिज कर दिया गया. इसके अलावा कोरोना महामारी के कारण यूरोप में सीमाएं बंद रहीं और हवाई यातायात ठप्प पड़ा रहा. इस कारण भी लोग देश में प्रवेश नहीं कर पाए.

गोल्डन यूरोप के चक्कर में फंसे बच्चे

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किसे मिलती है जर्मनी में शरण?

डी लिंके पार्टी की प्रवक्ता उला येल्पके ने इसकी आलोचना करते हुए कहा, "महामारी के कारण यात्राओं पर जो रोक लगी उसके कारण ऐसा हुआ कि मदद की आस में कम लोग जर्मनी आ सके. साफ बात यह है कि आज पहले से ज्यादा नहीं, बल्कि कम शरणार्थी जर्मनी में रह रहे हैं." येल्पके ने जर्मन सरकार से मांग की है कि दूसरे यूरोपीय देशों में फंसे शरणार्थियों को जर्मनी लाने का प्रयास किया जाए. उन्होंने कहा, "हमारे पास जगह है और आंकड़े यह बात दिखाते हैं. साथ ही दूसरे यूरोपीय देशों में शरण की आस में दसियों हजार लोग बुरी परिस्थितियों में फंसे हुए हैं."

जर्मन कानून के तहत शरणार्थियों को अलग अलग श्रेणियों में देश में रहने की अनुमति मिलती है. सबसे आम हैं वे लोग जो जिनेवा कन्वेंशन के तहत मदद मांगते हैं. यदि कोई व्यक्ति यह साबित कर पाता है कि उसे अपने देश में अपने धर्म, जाति, राजनीतिक विचारों या किसी संगठन से जुड़े होने के कारण जान का खतरा है, तो जिनेवा कंवेंशन के तहत उसे शरण पाने का हक है. यह स्टेटस ना मिलने की स्थिति में लोग सब्सिडरी प्रोटेक्शन के लिए आवेदन देते हैं. इसमें उन्हें यह बताना होता है कि अब अगर वे अपने देश लौटे तो उनकी जान को खतरा होगा.

जल गया ग्रीस का रिफ्यूजी कैंप

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शरणार्थी नीति फिर घेरे में

सितंबर में ग्रीस के एक द्वीप पर शरणार्थी शिविर में लगी आग के बाद से एक बार फिर यूरोप के शरणार्थी नीति पर चर्चा शुरू हो गई है. 3,000 लोगों के रहने के लिए बनाए गए इस शिविर में आग लगने के बाद 13,000 लोग बेघर हो गए. यह आंकड़ा ही यह बताने के लिए काफी है कि लोग वहां किन परिस्थितियों में जी रहे होंगे.

इस हादसे के बाद जर्मनी ने ग्रीस से 1,553 शरणार्थियों और 150 बच्चों को लेने की बात कही थी. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इतना काफी नहीं है. येल्पके कहती हैं, "जर्मनी को ग्रीस और इटली जैसे देशों की मदद कर लोगों को स्वीकारना होगा. वह ऐसा करने की हालत में है और उसे ऐसा करना भी होगा. जिस कम संख्या में लोगों को लिया जा रहा है उसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता."

रिपोर्ट: ली कार्टर/आईबी/सीके

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