देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना से मृतकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है साथ ही उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी नया संकट खड़ा होता दिख रहा है. दिल्ली में 2 जून तक 523 लोगों की मौत कोविड-19 के कारण हो चुकी है.
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देश की राजधानी दिल्ली के सबसे बड़े श्मशान घाट निगमबोध घाट के बाहर एंबुलेंस की कतार लगी हुई है. दिल्ली में कोरोना वायरस के कारण मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. भारत अब करीब दो लाख मामलों के साथ दुनिया में सातवें स्थान पर पहुंच गया है. भारत में 2 जून तक कोविड-19 के कारण 5,598 मरीजों की मौत हो चुकी है और पिछले 24 घंटे के भीतर 8,171 नए मामले सामने आए हैं. सरकार ने एक जून से पाबंदियों में बहुत सारी ढील दी हैं लेकिन इस बीच इस महामारी के कारण अंतिम संस्कार को लेकर भी चिंताजनक हालात हैं. देश में कोरोना से मृतकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है.
दिल्ली के सबसे बड़े श्मशानघाट निगम बोध घाट पर कोविड-19 के कारण मृतकों के अंतिम संस्कार की संख्या बढ़ती जा रही है. यमुना नदी के किनारे बने इस श्मशानघाट पर मौजूद रिश्तेदारों और कर्मचारियों का कहना है कि मृतकों के शव को संभालने में प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की कमी के कारण अंतिम संस्कार में देरी हो रही है. कोविड-19 के कारण एक मृतक के भाई सुरेंद्र मोहन गुप्ता ने कहा कि परिवार ने निजी एंबुलेंस कंपनी को 20,000 रुपये शव लाने के लिए दिए. मृतक विरेंद्र गुप्ता के भाई सुरेंद्र गुप्ता कहते हैं, "निजी एंबुलेंसी बहुत महंगी है. फिर भी हमें सेवा लेनी पड़ रही है." दूसरी तरफ परिवार के अन्य सदस्यों की अंतिम संस्कार में देरी को लेकर कर्मचारियों से बहस हो रही है.
निगम बोध घाट के बाहर एक एंबुलेंस के ड्राइवर ने बताया कि किस तरह से अंतिम संस्कार में देरी हो रही हैं और शवों का आखिरी समय में भी इंतजार करना पड़ रहा है. एंबुलेंस ड्राइवर जय कुमार कहते हैं, "शव को नंबर आने तक एंबुलेंस में ही रखना पड़ता है. कई बार तो मुझे पांच घंटे तक इंतजार करना पड़ता है."
एक अंग्रेजी अखबार ने 28 मई को एक रिपोर्ट छापी थी जिसके मुताबिक श्मशान घाट को आठ शव वापस अस्पताल भेजने पड़े थे क्योंकि कई इलेक्ट्रिक शवदाह काम नहीं कर रहे थे. इसके बाद से ही श्मशान घाट ने शवदाह का पारंपरिक तरीका अपना लिया है जिसमें लकड़ी का इस्तेमाल होता है. अब इस श्मशान घाट में रोजाना 20 शवों का अंतिम संस्कार इसी तरीके से हो रहा है.
मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है. चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है.
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विकास से विघटन तक
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है. 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है. 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है.
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भीतर खत्म होता जीवन
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है. जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है. शरीर में लचक कम होती चली जाती है.
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कोशिकाओं का बदलता संसार
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं. यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है. उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं.
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बीमारियों का जन्म
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं. हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है. धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं.
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लापरवाही से बढ़ता खतरा
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है. वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं.
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शट डाउन
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है. मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है. स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है.
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आखिरकार मौत
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है. धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है. ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु या प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं.
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मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है. शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है.
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विघटन शुरू
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है. ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं.
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बच नहीं, सिर्फ टाल सकते हैं
मौत को टालना संभव नहीं है. ये आनी ही है. लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं.