अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर ने एक अध्ययन के आधार पर कहा है कि भारत के लोग विभिन्न धर्मों के सम्मान में तो यकीन रखते हैं लेकिन बड़े धार्मिक समुदाय कहते हैं कि एक दूसरे में समानताएं बहुत कम हैं.
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मंगलवार को जारी प्यू रिसर्च सेंटर की एक शोध रिपोर्ट 30 हजार लोगों से हुई बातचीत पर आधारित है. 2019 के आखिरी और 2020 के शुरुआती महीनों में यानी कोविड महामारी की शुरुआत से कुछ पहले यह अध्ययन 17 भाषाओं के लोगों के बीच किया गया था. सर्वे के मुताबिक ज्यादातर लोगों ने कहा कि वे अपने अपने धर्मों के पालन को लेकर स्वतंत्र हैं.
रिपोर्ट कहती है, "ज्यादातर लोग कहते हैं कि सभी धर्मों के लोगों के लिए ‘सच्चा भारतीय' होना सबसे जरूरी है और सहनशीलता धार्मिक और नागिरक सिद्धांत है. भारतीय लोग इस बात को लेकर एकमतत हैं कि एक दूसरे के धर्मों का सम्मान बहुत जरूरी है.”
समानताएं
विभिन्न धर्मों के लोगों से जब एक जैसे सवाल पूछे गए तो कुछ सवालों के जवाब एक जैसे मिले. जैसे कि...
77 प्रतिशत हिंदू और लगभग इतने ही मुस्लिम कर्मफल में यकीन करते हैं.
33 प्रतिशत भारतीय ईसाई गंगाजल की पवित्र करने की शक्ति को मानते हैं. हिदुओं में यह संख्या 81 प्रतिशत है.
उत्तर भारत में 12 प्रतिशत हिंदू, 10 प्रतिशत सिख और 37 प्रतिशत मुस्लिम सूफीज्म में यकीन करते हैं.
सभी धर्मों के ज्यादातर लोग कहते हैं कि बुजुर्गों का सम्मान करना बहुत जरूरी है.
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विभिन्नताएं
भारत में आम जनजीवन में बहुत सी समानताओं के बावजूद इस अध्ययन में धार्मिक समूहों के बीच कई विभिन्नताएं बहुत स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आई हैं. मसलन, बड़े धर्मों के ज्यादातर लोग कहते हैं कि उनका धर्म दूसरे से अलग है.
66 फीसदी हिंदू कहते हैं कि उनका धर्म इस्लाम से एकदम अलग है. 64 प्रतिशत मुसलमान भी ऐसा ही मानते हैं.
हालांकि दो तिहाई जैन और लगभग 50 प्रतिशत सिख कहते हैं कि हिंदू धर्म के साथ उनकी बहुत समानताएं हैं.
सामाजिक संपर्क
सर्वे में शामिल ज्यादातर हिंदुओं ने कहा कि उनके दोस्त भी हिंदू हैं. वैसे, यही स्थिति कमोबेश बाकी धर्म के लोगों भी हैं. लेकिन कम लोगों ने कहा कि वे दूसरे धर्मों के लोगों को अपने घरों और गांवों में आने भी नहीं देना चाहते. 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे दूसरे धर्म के लोगों को अपने घरों या गांवों में आने से नाखुश होंगे.
पर जब एक खास धर्म के बारे में पूछा गया तो स्थिति कुछ अलग थी. करीब एक तिहाई हिंदू (36 प्रतिशत) कहते हैं कि उन्हें मुस्लिम पड़ोसी स्वीकार नहीं. जैन धर्म के लोगों में यह संख्या 54 प्रतिशत है जो मुसलमान पड़ोसी नहीं चाहते. जबकि हिंदू पड़ोसी के लिए 92 प्रतिशत जैनियों को कोई दिक्कत नहीं थी.
तस्वीरों मेंः किस धर्म में क्या खाने पर पाबंदी
किस धर्म में क्या खाने पर है पाबंदी
हर धर्म में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है जिसे खाने की सख्त मनाही होती है, भले ही दूसरे धर्म के लोग उसे चाव से खाते हों. इस पाबंदी के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार अब तक नहीं मिला है. देखिए, किस धर्म में क्या हराम है.
तस्वीर: ComZeal - Fotolia
अंडा
जैन धर्म के लोग मांस-मछली के साथ अंडा खाने से भी परहेज करते हैं. वेगन भी अंडा नहीं खाते.
तस्वीर: ComZeal - Fotolia
गाय
हिंदू धर्म में गाय का मांस खाने को बुरा माना जाता है.
तस्वीर: Reuters/R. Jadhav
सूअर
इस्लाम में सूअर का मांस खाने को हराम कहा गया है.
तस्वीर: Fredy Mercay/Avalon/picture alliance
चमगादड़
कुछ यहूदी तबकों में चमगादड़ खाने पर सख्त पाबंदी है.
तस्वीर: M. Woike/blickwinkel/picture alliance
भालू
यहूदी धर्म के लोग भालू का मांस खाना अच्छा नहीं मानते.
तस्वीर: Reuters/J. Urquhart
बिल्ली
इस्लाम और यहूदी धर्म के कारण पश्चिमी जगत के बड़े हिस्सों में बिल्ली का मांस नहीं खाया जाता.
तस्वीर: Susanne Danegger/Zoonar/picture alliance
मछली
सोमाली लोगों में मछली खाने को बहुत बुरा माना जाता है.
तस्वीर: Irfan Aftab/DW
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लेकिन मुसलमानों में हिंदू पड़ोसी को लेकर आपत्ति कम थी. सिर्फ 16 प्रतिशत मुसलमानों ने कहा कि उन्हें हिंदू पड़ोसी स्वीकार नहीं होगा.
विभिन्न धर्मो के बीच विवाह
भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच होने वाली शादियां विवाद का विषय रही हैं. प्यू रिसर्च के सर्वे में यह बात सामने आई है कि ज्यादातर धर्मों के लोग एक दूसरे के धर्म में शादियों के खिलाफ हैं. 67 प्रतिशत आबादी कहती है कि औरतों को दूसरे धर्मों में शादी से रोका जाना चाहिए.
67 प्रतिशत हिंदू, 80 प्रतिशत मुसलमान और 66 प्रतिशत जैन कहते हैं कि उनके धर्म की औरतों को दूसरे धर्मों में शादी करने से रोका जाना चाहिए. 59 फीसदी सिख, 46 फीसदी जैन और 37 ईसाई भी ऐसा ही सोचते हैं.
पुरुषों को दूसरे धर्म में शादी करने से रोकने वाले वाले भी कम नहीं हैं. 65 प्रतिशत आबादी कहती है कि पुरुषों को रोका जाना चाहिए. इनमें सबसे ज्यादा मुस्लिम हैं जिनकी संख्या 76 प्रतिशत है. 65 प्रतिशत हिंदू भी ऐसी ही मानते हैं.
देखिएः हर धर्म में सिर ढंकने की परंपरा
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
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टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
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चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
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माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
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नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Baumgarten
हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
तस्वीर: DW/S. Sanderson
बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
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शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/W. Rothermel
शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.