कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी के दो मामले, दो नजरिए
१५ मई २०२५
सात मई को ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेश सचिव के साथ भारतीय सेना की दो महिला अधिकारियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसकी काफी चर्चा हुई. ये अधिकारी थीं- कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह.
इसे लेकर कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की काफी तारीफ हुई लेकिन सोशल मीडिया पर कर्नल सोफिया कुरैशी की मौजूदगी को लेकर कई सवाल भी उठने लगे, आपत्तिजनक बयान तक आने लगे.
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ऐसा ही एक बयान मंगलवार को मध्य प्रदेश के जनजातीय कल्याण मंत्री विजय शाह ने दिया. एक कार्यक्रम में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा करते हुए विजय शाह कर्नल सोफिया कुरैशी को कथित तौर पर आतंकवादियों की ‘बहन' बता बैठे. उनके इस बयान को लेकर हंगामा मच गया, कांग्रेस पार्टी ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, सोशल मीडिया पर आलोचना होने लगी, उन्हें बर्खास्त करने और गिरफ्तार करने की मांग होने लगी लेकिन विजय शाह की पार्टी ने उफ तक न की.
आखिरकार अगले दिन यानी बुधवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और उनके खिलाफ चार घंटे के भीतर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. देर रात विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई लेकिन वो इसे चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए.
अली खान महमूदाबाद ने क्या कहा?
दूसरी तरफ, एक मामला सोनीपत स्थित अशोका यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद का है. अली खान ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट लिखी थी जिसे बाद में उन्होंने हटा भी लिया. इस पोस्ट को लेकर हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने उनसे जवाब तलब कर लिया. महिला आयोग ने अपने नोटिस में कहा कि उन्होंने वर्दी वाली महिलाओं का अपमान किया है, साथ ही उनकी पोस्ट में सांप्रदायिक अशांति को भड़काने की संभावित कोशिश की गई है.
अली खान महमूदाबाद ने अपनी पोस्ट में लिखा था, "दो महिला सैनिकों द्वारा अपने निष्कर्षों को प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह दृष्टिकोण जमीनी स्तर पर वास्तविकता में भी दिखना चाहिए, अन्यथा यह केवल पाखंड है.”
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अपनी पोस्ट में अली खान महमूदाबाद ने 'मॉब लिंचिंग' और 'मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने' की भी निंदा की. हरियाणा महिला आयोग ने उनकी टिप्पणी को "राष्ट्रीय सैन्य कार्रवाइयों को बदनाम करने का प्रयास” बताया है.
अली खान महमूदाबाद आयोग के सामने हाजिर तो नहीं हुए लेकिन उन्होंने अपने वकील के जरिए जवाब भेज दिया है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में अली खान महमूदाबाद कहते हैं, "मेरी टिप्पणियों को पूरी तरह से गलत समझा गया है. मुझे जारी किए गए समन में यह उजागर नहीं किया गया है कि मेरी पोस्ट महिलाओं के अधिकारों या उनके लिए बने कानूनों के विपरीत कैसे है. मेरी पोस्ट में तो इस बात की सराहना की गई है कि सशस्त्र बलों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को चुना ताकि इस तथ्य को उजागर किया जा सके कि हमारे गणतंत्र के संस्थापकों का सपना, एक ऐसे भारत का था जो अपनी विविधता में एकजुट है, वो अभी भी जीवित है. मैंने तो कर्नल कुरैशी का समर्थन करने वाले दक्षिणपंथी सदस्यों की भी सराहना की और उन्हें आम भारतीय मुसलमानों के लिए भी यही रवैया अपनाने के लिए कहा है, जो रोजाना उत्पीड़न का सामना करते हैं. इसके अलावा मेरी टिप्पणियों में दूर-दूर तक कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे महिला-विरोधी माना जा सके.”
हैरानी की बात ये है कि अली खान महमूदाबाद की एक सोशल मीडिया पोस्ट पर हरियाणा के चौंकन्ने महिला आयोग की नजर तो चली गई लेकिन मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह की बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी और भाषा पर किसी आयोग की नजर नहीं गई, किसी नेता की नजर नहीं गई और यहां तक कि मुख्यमंत्री की भी नहीं, जिनकी कैबिनेट के अहम सदस्य हैं विजय शाह.
दरअसल, विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए कहा था, "हमारे मोदी जी समाज के लिए जी रहे हैं. जिन्होंने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े थे, उन्हीं कटे-पिटे लोगों को हमने उन्हीं की बहन भेज करके उनकी ऐसी की तैसी करवाई. उन्होंने कपड़ा उतार-उतार कर हमारे हिन्दुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने भेजा. अब मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते थे इसलिए उनके समाज की बहन को भेजा कि तुमने हमारी बहनों को अगर विधवा किया है तो तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा कर रही है.”
धार्मिक आधार पर भेदभाव
इस दोहरे रवैये को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शीबा फहमी कहती हैं कि इस मामले में पहले तो अली खान महमूदाबाद जी को सीधे कोर्ट जाना चाहिए और पूछना चाहिए कि ये संस्थाएं कैसा काम कर रही हैं. उनके मुताबिक, "एक तरफ मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह हैं जिनके खिलाफ कोई आयोग नहीं संज्ञान नहीं ले रहा है. दूसरी ओर, अली खान हैं, प्रोफेसर हैं और उन्होंने वही बात कही है जो जमीन पर दिख रही है. लेकिन उन्हें तुरंत नोटिस जारी हो जाता है. तो ये तो सीधे तौर पर संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का मखौल उड़ा रहे हैं ये आयोग और धर्म के आधार पर भेदभाव कर रहे हैं.”
मानवाधिकार से जुड़े मामलों पर काम कर रहीं दिल्ली स्थित वकील तमन्ना पंकज कहती हैं कि सीधे तौर पर ये घटनाएं बता रही हैं कि किस तरह कानूनी प्रक्रियाओं और कार्रवाई में भेदभाव किया जाता है. उनके मुताबिक, "आप बीजेपी के हैं तो पुलिस या कोई संस्था कुछ नहीं कहेगी. देखा जाए तो सीधे तौर पर यह सुरक्षा उन्हें सरकार से मिल रही है. हालांकि ऐसे मामलों में पुलिस को अपना काम करना चाहिए लेकिन कोर्ट को ऑर्डर देना पड़ रहा है.”
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तमन्ना पंकज के मुताबिक, ऐसा लंबे समय से हो रहा है और वास्तव में इस तरह के बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई हुई होती तो शायद इसमें कमी आती लेकिन वास्तव में उन्हें बढ़ावा ही मिल रहा है. वो कहती हैं, "पिछले दिनों हुई धर्म संसद को देख लीजिए, क्या कुछ कहा जाता है, एक धर्म के खिलाफ कितनी घृणात्मक बातें कही जाती हैं, लेकिन पुलिस कोई काम नहीं करती है. तमाम उदाहरण हैं, जुबैर का मामला है. वास्तव में पिछले दस साल का यह विकास है. जहां तक संवैधानिक संस्थाओं की बात है तो कोई भी संवैधानिक संस्था रह कहां गई है, वहां तो विचारधारा के लोग बैठे हैं. सीधे तौर पर कहें तो पहचान देखकर कार्रवाई हो रही है.”
हाईकोर्ट ने खुद लिया संज्ञान
मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह के खिलाफ कार्रवाई तो दूर, उनकी पार्टी ने अब तक उन्हें नोटिस तक नहीं दिया है और वो अपने मंत्री पद पर बने हुए हैं. हां, उन्होंने माफी जरूर मांगी है लेकिन हाईकोर्ट के एफआईआर संबंधी आदेश के खिलाफ सुप्रीम भी पहुंच गए हैं. ये अलग बात है कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें जमकर धिक्कारा और शुक्रवार को सुनवाई करने को तैयार हुआ है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई की बेंच ने शाह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा. "संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से जिम्मेदारी से काम करने की उम्मीद की जाती है. वह किस तरह का बयान दे रहे हैं? क्या एक मंत्री के लिए इस तरह के बयान देना उचित है?"
वहीं, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में भी गुरुवार को इस मामले में सुनवाई हुई. एफआईआर पर नाखुशी जताते हुए हाईकोर्ट ने अदालत की निगरानी इस मामले की जांच का आदेश दिया है.