गृह राज्य से दूर रह रहे करोड़ों भारतीय मतदाताओं के लिए मतदान में हिस्सा लेना एक चुनौती रहा है. चुनाव आयोग पहली बार एक ऐसी ईवीएम का प्रदर्शन करने वाला है, जिससे अपने गृह राज्य से दूर प्रवासी भी चुनावों में वोट दे सकेंगे.
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चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि उसने एक नए ईवीएम का प्रारूप विकसित किया है, जिसके जरिए एक बार में एक मतदान केंद्र से कई निर्वाचन क्षेत्रों में मत डाला जा सकेगा. आयोग इस नए ईवीएम का प्रदर्शन 16 जनवरी, 2023 को करेगा. इसके लिए उसने सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया है.
पार्टियों को नया ईवीएम पसंद आता है या नहीं, यह तो प्रदर्शन के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यह एक बड़ी समस्या के समाधान की तरफ चुनाव आयोग का पहला कदम है. भारत में करोड़ों मतदाता अपने गृह राज्यों से दूर रहते हैं और कड़े चुनाव नियमों की वजह से मतदान नहीं कर पाते हैं.
चुनाव आयोग ने बताया कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 45.36 करोड़ लोग प्रवासी थे, यानी अपने गृह राज्य से दूर रह रहे थे. यह संख्या उस समय की आबादी का करीब 37 प्रतिशत थी. लोग नौकरी, व्यापार, शादी जैसे कई कारणों की वजह से अपने गृह राज्यों से दूर चले जाते हैं.
45 करोड़ वोटों का सवाल
कई मतदाताओं के लिए हर चुनाव में मतदान के लिए लौटना मुश्किल हो जाता है. नई जगह पर मतदाता के रूप में पंजीकरण करवाना भी आसान नहीं होता. इन वजहों से कई लोग कई साल तक मतदान में हिस्सा नहीं ले पाते हैं.
कुछ विशेष श्रेणियों के मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग पोस्टल बैलट, यानी डाक से मतदान का इंतजाम करता है. इनमें सेना के जवान, अधिकारी और आवश्यक सेवाएं देने वाले सरकारी विभागों के कर्मचारी शामिल हैं.
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हाल ही में चुनाव आयोग ने 80 साल से ज्यादा उम्र के मतदाताओं, विकलांग मतदाताओं और कोविड के मरीजों को भी डाक द्वारा मतदान की इजाजत दी थी. पिछले दिनों हुए गुजरात विधान सभा चुनावों में 8.6 लाख बुजुर्ग और विकलांग मतदाताओं ने डाक द्वारा मतदान के लिए पंजीकरण करवाया था.
उदासीनता भी जिम्मेदार
प्रवासी मतदाताओं की संख्या काफी बड़ी है, इसलिए लंबे समय से चुनाव आयोग से मांग की जा रही थी कि इस समस्या का स्थायी समाधान निकाले. नया ईवीएम उसी दिशा में एक कदम है. आयोग ने कहा है कि "प्रवासन की वजह से मताधिकार से वंचित रहना तकनीकी विकास के युग में एक विकल्प नहीं है."
आयोग ने जानकारी दी कि 2019 के लोक सभा चुनावों में सिर्फ 67.4 प्रतिशत मतदान हुआ था और आयोग इस बात पर चिंतित है कि 30 करोड़ से भी ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते.
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हालांकि प्रवासन मतदान ना करने का इकलौता कारण नहीं है. कई लोगों में मतदान को लेकर उदासीनता भी रहती है. चुनाव आयोग के मुताबिक यह शहरी मतदाताओं और युवा मतदाताओं में ज्यादा देखने को मिलती है. इसके निवारण के लिए आयोग समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाता है.
किस देश में चुनावों पर होता है सबसे ज्यादा खर्च
लोक सभा चुनाव हों या विधान सभा चुनाव या स्थानीय निकायों के चुनाव, भारत में चुनावों में बेतहाशा खर्च किया जाता है. लेकिन क्या ऐसा सिर्फ भारत में होता है? आइए जानते हैं इस मामले में बाकी दुनिया का हाल.
तस्वीर: Raminder Pal Singh/NurPhoto/imago images
भारत का सबसे महंगा चुनाव
कुछ लोगों का मानना है कि भारत में 2019 में हुए लोक सभा चुनाव देश के इतिहास में सबसे महंगे चुनाव थे. निजी संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक इन चुनावों में 600 अरब रुपये, या उस समय के हिसाब से आठ अरब डॉलर से थोड़ा ज्यादा, खर्च हुए.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
अमेरिका, 2016
स्वतंत्र शोध संस्था सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (सीआरपी) ने अनुमान लगाया है कि अमेरिका में 2016 में हुए चुनावों में लगभग भारत जितना ही, यानी करीब आठ अरब डॉलर, खर्च हुआ.
तस्वीर: Brendan Smialowski/AFP/Getty Images
अमेरिका, 2020
सीआरपी के अनुमान के मुताबिक 2020 में अमेरिका में हुए चुनावों में 16 अरब डॉलर से भी ज्यादा खर्च हुए. यह संभवतः पूरी दुनिया में सबसे महंगे चुनाव थे.
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
अमेरिका, 2022
स्वतंत्र शोध संस्था सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (सीआरपी) ने अनुमान लगाया है कि अमेरिका में 2022 में हुए मध्यावधि चुनावों में करीब नौ अरब डॉलर खर्च हुए हैं. इसमें से जॉर्जिया में सीनेट की सीट के लिए हुआ चुनाव सबसे ज्यादा महंगा रहा. यहां 40 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा खर्च किया गया.
तस्वीर: Oliver Contreras - Pool via CNP/picture alliance
ब्राजील
ब्राजील में 2022 में हुए चुनावों में वहां की स्थानीय मुद्रा रियाइस में 12.6 अरब खर्च हुआ, जो करीब 2.4 अरब डॉलर के बराबर है. अनुमान है कि वोटरों को लुभाने के लिए जो रकम खर्च हुई उसे मिला दें तो यह धनराशि काफी ज्यादा हो जाएगी.
तस्वीर: Andre Penner/AP Photo/picture alliance
ब्रिटेन
इन सबकी तुलना में कई अमीर देशों में चुनावी अभियान पर इतना खर्च नहीं होता. जैसे ब्रिटेन में 2019 में हुए संसदीय चुनावों में अभियान बस महीने भर से थोड़े ज्यादा समय तक चला और उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च पर कड़ा नियंत्रण रखा गया. ब्रिटेन के चुनाव आयोग के मुताबिक 2019 के चुनावों में करीब 5.6 करोड़ पौंड या करीब 6.8 करोड़ डॉलर खर्च हुए.
तस्वीर: Frank Augstein/AP Photo/picture alliance
फ्रांस
फ्रांस में भी चुनावी खर्च पर कड़ा नियंत्रण है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2022 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनावों में सभी उम्मीदवारों ने कुल मिला कर 8.3 करोड़ यूरो या करीब 8.8 करोड़ डॉलर खर्च किए. राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने सबसे ज्यादा, 1.67 करोड़ यूरो, खर्च किए. (रॉयटर्स)