अमेरिका और यूरोपीय संघ यूक्रेन के इलाके में रूसी सैन्य कार्रवाई की आशंका में रूस पर नए प्रतिबंध की चेतावनी दे रहे हैं. रूसी बैंकों को स्विफ्ट से निकालने का उपाय पहले ही खारिज हो गया है तो फिर इनके पास बचा क्या है?
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अमेरिका और यूरोप के राजनयिक रूस पर नए प्रतिबंध लगाने की लगातार चेतावनी दे रहे हैं ताकि रूसी सेना को यूक्रेन में घुसने से रोका जा सके. हालांकि यह उलझन बनी हुई है कि आखिर रूस पर क्या कार्रवाई होगी. मंगलवार को जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने यूक्रेन और रूस की यात्रा के दौरान कहा कि अगर मौजूदा संकट का कूटनीतिक हल नहीं निकलता है तो रूस को इसकी "ऊंची कीमत चुकानी होगी."
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी पिछले महीने रूस को कुछ इसी तरह की चेतावनी देकर "गंभीर नतीजों" की बात कही थी. रूस ने यूक्रेन की सीमा पर एक लाख से ज्यादा की फौज जमा कर रखी है और सैन्य कार्रवाई की आशंका को रोकने के लिए ये नेता रूस पर दबाव बनाने की कोशिश में है. दिक्कत यह है कि वो क्या कदम उठाएंगे, यह तय नहीं हो पा रहा है.
स्विफ्ट से बाहर करने का विकल्प
कुछ दिन पहले अफवाह उड़ी कि सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलिकम्युनिकेशंस यानी स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से रूस के बैंकों को बाहर कर दिया जाएगा. हर दिन 3.5 करोड़ लेन देन में करीब 5 हजार अरब डॉलर का भुगतान करने वाले सिस्टम से बाहर होने का मतलब रूस की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा नुकसान होगा. रूसी बैंकों के लिए अंतरराष्ट्रीय भुगतान हासिल करना मुश्किल हो जाएगा और ऐसे में रूसी मुद्रा रुबल बहुत कमजोर हो जाएगी. इसके साथ ही रूस में ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों पर खासतौर से बहुत बुरा असर पड़ेगा.
सिर्फ एक पड़ोसी है इन देशों का
आम तौर पर एक देश की सीमा कई देशों से लगती है, लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे देश हैं जिनका बॉर्डर सिर्फ एक ही देश के साथ हैं. आइए डालें इन देशों पर एक नजर:
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Roussakis
ब्रूनेई
दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में बसे छोटे से देश ब्रूनेई की सीमा सिर्फ मलेशिया से लगती है. पौने छह हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश के सुल्तान हसनैन बोल्किया अपनी दौलत के लिए जाने जाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/landov/Z. Jie
कनाडा
क्षेत्रफल के हिसाब से कनाडा रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. लेकिन इसकी सीमा सिर्फ अमेरिका से लगती है. बाकी चारों ओर समुद्र है.
तस्वीर: DW
डेनमार्क
यूरोपीय देश डेनमार्क की सीमा सिर्फ जर्मनी से लगती है. इसके उत्तर में नॉर्वे और स्वीडन हैं. लेकिन बीच में समंदर है और उनसे डेनमार्क की जमीनी सीमा नहीं मिलती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. B. Fishman
डोमेनिक रिपब्लिक और हैती
कैरेबियन इलाके का देश डोमेनिक रिपब्लिक सिर्फ हैती के साथ सीमा साझा करता है. ठीक यही बात हैती पर भी लागू होती है. एक ही द्वीप पर ये दो देश बसे हैं.
गाम्बिया
पश्चिमी अफ्रीका में बसे गाम्बिया का नक्शा देखने में बहुत दिलचस्प लग सकता है. इसकी सीमाएं सिर्फ सेनेगल से मिलती हैं. सेनेगल के नक्शे में गाम्बिया मुंह जैसा नजर आता है.
तस्वीर: DW
आयरलैंड और ब्रिटेन
आयरलैंड की सीमा सिर्फ उत्तरी आयरलैंड के साथ लगती है जो ब्रिटेन का हिस्सा है. 1919 में आयरलैंड को ब्रिटेन से आजादी मिली थी. ब्रिटेन की जमीनी सीमा भी किसी और देश से नहीं लगती.
तस्वीर: picture alliance / D. Kalker
लेसोथो
लेसोथो चारों तरफ से दक्षिण अफ्रीका से घिरा है. 4 अक्टूबर 1966 को इसे ब्रिटेन से आजादी मिली थी और वहां संवैधानिक राजशाही है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
मोनाको
दुनिया के सबसे छोटे देशों में शामिल मोनाको का क्षेत्रफल सिर्फ 2.02 वर्ग किलोमीटर है और वहां की आबादी है लगभग 37 हजार. इसकी सीमा सिर्फ फ्रांस से मिलती है.
प्रशांत क्षेत्र में स्थित देश पापुआ न्यू गिनी की सीमाएं सिर्फ इंडोनेशिया के प्रांत पापुआ से लगती है. अपनी विविधताओं के लिए मशहूर पापुआ न्यू गिनी 1975 में ऑस्ट्रेलिया से आजाद हुआ था.
तस्वीर: dapd
पुर्तगाल
जिन देशों का सिर्फ एक पड़ोसी है उनमें पुर्तगाल भी शामिल है. इसकी पूर्वी और उत्तरी सीमा स्पेन से मिलती हैं जबकि पश्चिमी और दक्षिण सीमाएं अटलांटिक महासागर को छूती हैं.
तस्वीर: DW/H.-J. Allgaier
कतर
मध्य पूर्व के छोटे लेकिन अमीर देश कतर की सीमा सऊदी अरब के अलावा किसी और देश से नहीं मिलती. दोहा की राजधानी कतर में 2022 का वर्ल्ड कप फुटबॉल होना है.
सैन मारिनो
लगभग 61 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला सैन मैरिनो चारों चरफ से इटली से घिरा है. लगभग दो हजार साल से सैन मारिनो एक अलग देश है.
तस्वीर: MARCEL MOCHET/AFP/Getty Images
दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया की सीमा सिर्फ उत्तर कोरिया से मिलती है. 1948 में कोरियाई प्रायदीप दो देशों में बंट गया और तभी से दोनों के बीच कटु संबंध हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Jung Yeon-Je
पूर्वी तिमोर
लंबे संघर्ष के बाद 2002 में पूर्वी तिमोर को इंडोनेशिया से आजादी मिली. उसकी सीमा सिर्फ इंडोनेशिया के वेस्ट तिमोर से मिलती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Oelrich
वेटिकन सिटी
दुनिया का सबसे छोटा देश वेटिकन सिटी चारों तरफ से इटली से घिरा है. 0.44 वर्ग किलोमीटर की आबादी वाला वेकिटन दुनिया के कैथोलिक ईसाइयों का सबसे पवित्र स्थल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Onorati
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भले ही यह उपाय पुतिन को जंग से दूर करने की दिशा में असरदार माना जा रहा हो, लेकिन जर्मन अखबार हांडेल्सब्लाट ने सरकार के सूत्रों के हवाले से बताया कि इस उपाय पर फिलहाल विचार नहीं हो रहा है. अखबार का कहना है कि इसकी बजाय रूसी बैंकों पर प्रतिबंध लगाए जा सकता है.
रूसी बैंकों पर निशाना
हांडेल्सब्लाट का कहना है कि इस उपाय को भी खारिज कर दिया गया है क्योंकि इससे वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता पैदा होगी और वैकल्पिक भुगतान तंत्र को विकसित करने के लिए पहल होगी. पश्चिमी देश इस बात की अनदेखी नहीं कर सकते. रूस और चीन ने हालांकि पहले ही अपने लिए स्विफ्ट का विकल्प तैयार कर लिया है, हालांकि इसमें स्विफ्ट की तरह पूरी दुनिया अभी शामिल नहीं है.
वहीं व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने हांडेल्सब्लाट की रिपोर्ट को खारिज किया है. प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "ऐसा कोई विकल्प टेबल पर नहीं है. अगर रूस हमला करता है तो इसके गंभीर नतीजे क्या होंगे, इस पर हम अपने यूरोपीय सहयोगियों से चर्चा कर रहे हैं."
अखबार का कहना है कि रूसी बैंकों को इस बार कैसे निशाना बनाया जाएगा, इस बारे में बहुत कम ही जानकारी सामने आई है. हालांकि जर्मनी इस तरह की पाबंदियों से बचना चाहता है क्योंकि तब यूरोप के लिए रूस से आयात होने वाले तेल और गैस के लिए भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा.
उत्तर कोरिया की तरह अलग थलग
मंगलवार को फाइनेंशियल टाइम्स ने खबर दी कि जिस तरह के प्रतिबंध उत्तर कोरिया और ईरान पर लगाए गए हैं, वही रूस पर भी लग सकते हैं यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था से रूस को एक तरह से बाहर कर देना. 2012 में ईरान उस वक्त तक का दुनिया का पहला देश बना जिसे स्विफ्ट से बाहर किया गया. यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंध के तहत हुआ था.
टाइम बम जैसे विवाद
दुनिया भर में कुछ ऐसे विवाद हैं जो कभी भी युद्ध भड़का सकते हैं. ये सिर्फ दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को लड़ाई में खींच सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Mihailescu
दक्षिण चीन सागर
बीते दशक में जब यह पता चला कि चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया के बीच सागर में बेहद कीमती पेट्रोलियम संसाधन है, तभी से वहां झगड़ा शुरू होने लगा. चीन पूरे इलाके का अपना बताता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल चीन के इस दावे के खारिज कर चुका है. बीजिंग और अमेरिका इस मुद्दे पर बार बार आमने सामने हो रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Xinhua/Liu Rui
पूर्वी यूक्रेन/क्रीमिया
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप को यूक्रेन से अलग कर दिया. तब से क्रीमिया यूक्रेन और रूस के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है. यूक्रेन क्रीमिया को वापस पाना चाहता है. पश्चिमी देश इस विवाद में यूक्रेन के पाले में है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/Y. Rafael
कोरियाई प्रायद्वीप
उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते हैं. उत्तर कोरिया भड़काता है और दक्षिण को तैयारी में लगे रहना पड़ता है. दो किलोमीटर का सेनामुक्त इलाका इन देशों को अलग अलग रखे हुए हैं. उत्तर को बीजिंग का समर्थन मिलता है, वहीं बाकी दुनिया की सहानुभूति दक्षिण के साथ है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Martin
कश्मीर
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा कश्मीर दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य मौजूदगी वाला इलाका है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर तीन बार युद्ध भी हो चुका है. 1998 में करगिल युद्ध के वक्त तो परमाणु युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan
साउथ ओसेटिया और अबखासिया
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन इलाकों पर जॉर्जिया अपना दावा करता है. वहीं रूस इनकी स्वायत्ता का समर्थन करता है. इन इलाकों के चलते 2008 में रूस-जॉर्जिया युद्ध भी हुआ. रूसी सेनाओं ने इन इलाकों से जॉर्जिया की सेना को बाहर कर दिया और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Basayev
नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख के चलते अजरबैजान और अर्मेनिया का युद्ध भी हो चुका है. 1994 में हुई संधि के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस इलाके को अर्मेनिया की सेना नियंत्रित करती है. अप्रैल 2016 में वहां एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बने.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Baghdasaryan
पश्चिमी सहारा
1975 में स्पेन के पीछे हटने के बाद मोरक्को ने पश्चिमी सहारा को खुद में मिला लिया. इसके बाद दोनों तरफ से हिंसा होती रही. 1991 में संयुक्त राष्ट्र के संघर्षविराम करवाया. अब जनमत संग्रह की बात होती है, लेकिन कोई भी पक्ष उसे लेकर पहल नहीं करता. रेगिस्तान के अधिकार को लेकर तनाव कभी भी भड़क सकता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Batiche
ट्रांस-डिनिएस्टर
मोल्डोवा का ट्रांस-डिनिएस्टर इलाका रूस समर्थक है. यह इलाका यूक्रेन और रूस की सीमा है. वहां रूस की सेना तैनात रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम और मोल्डोवा की बढ़ती नजदीकी मॉस्को को यहां परेशान कर सकती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Mihailescu
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यूरोप और अमेरिका 2014 में क्राइमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद रूस के बैंकों और कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. इन प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस की हथियार और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों की यूरोपीय और अमेरिकी वित्तीय बाजारों तक पहुंच को सीमित करना था. हालांकि जर्मनी के कारोबारी नेता रूस पर लगे प्रतिबंधों को कम करने की मांग कर रहे है क्योंकि अगर और प्रतिबंध लगाए गए तो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी जर्मनी का भी बहुत नुकसान होगा.
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पाइपलाइन पर सहमति
उदाहरण के लिए रूस और जर्मनी के बीच बाल्टिक सागर से गुजरने वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन का निर्माण पिछले साल पूरा हो गया. हालांकि अभी तक इसके काम शुरू करने के लिए जर्मन प्रशासन से मंजूरी नहीं मिली है. पाइपलाइन और ज्यादा बड़ी मात्रा में रूसी गैस को पश्चिमी यूरोप लेकर आएगी. हालांकि यूक्रेन और अमेरिका समेत इस प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले देश कह रहे हैं कि इससे यूरोप और ज्यादा रूस की ऊर्जा पर निर्भर हो जाएगा. यूरोपीय संघ और अमेरिका जर्मनी पर नॉर्ड स्ट्रीम 2 की मंजूरी को रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं. इस कदम को रूस पर प्रतिबंधों के रूप में पेश किया जा रहा है.
फिल्म-टीवी से निकल कर सत्ता संभालने वाले सितारे
यूक्रेन की जनता ने देश की सत्ता की बागडोर एक्टर-कॉमेडियन वोलोदिमीर जेलेंस्की को सौंपी है. दुनिया हैरान है, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब बिना किसी राजनीतिक अनुभव के कोई शख्स सत्ता के शिखर तक पहुंच गया हो.
तस्वीर: Reuters/V. Ogirenko
डॉनल्ड ट्रंप
अमेरिका के रियल एस्टेट टायकून और रिएल्टी टीवी स्टार डॉनल्ड ट्रंप ने भी साल 2017 में राष्ट्रपति चुनाव जीतकर दुनिया को हैरान कर दिया था. ट्रंप के पास कभी भी राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य अनुभव नहीं रहा. ट्रंप एक टीवी शो भी होस्ट किया करते थे.
तस्वीर: A. H. Walker/Getty Images
रॉनल्ड रीगन
अमेरिका के 40वें राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन राजनीति में आने से पहले हॉलीवुड में बतौर अभिनेता दो दशक से भी लंबी पारी खेल चुके थे. वह पहले ऐसे अमेरिकी थे जिन्होंने सिनेमा से निकलकर देश की सत्ता संभाली. साल 1966 में पहली बार रीगन कैलोफोर्निया प्रांत के गवर्नर बने और फिर 1981 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने.
तस्वीर: picture-alliance/Newscom/DoD
सिल्वियो बर्लुस्कोनी
अपने विवादित टेलीविजन कार्यक्रमों के चलते काफी चर्चित रहे इटली के मीडिया टायकून सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने साल 1994 से लेकर 2011 के बीच तीन बार इटली का प्रधानमंत्री पद संभाला. बर्लुस्कोनी पर पैसे देकर कॉल गर्ल के साथ संबंध बनाने को लेकर विवाद हुआ था. इसके अलावा भी उनका नाम कई बार सेक्स स्कैंडलों में आता रहा.
तस्वीर: picture-alliance/IPP
अर्नाल्ड श्वार्जनेगर
हॉलीवुड के मशहूर कलाकार अर्नाल्ड श्वार्जनेगर भी सिनेमा से सीधे राजनीति में आए थे. यह बॉडी बिल्डर, एक्शन हीरो साल 2003 से 2011 तक कैलिफोर्निया प्रांत का गवर्नर रहा. कैलिफोर्निया अमेरिका का सबसे अमीर प्रांत माना जाता है.
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जोसेफ एस्ट्राडा
100 से भी अधिक फिल्मों में काम कर चुके फिलीपींस के मशहूर फिल्म अभिनेता जोसेफ एस्ट्राडा ने भी साल 1969 में राजनीति में कदम रखा. पहले वे मेयर बने, फिर सीनेटर और फिर देश के उपराष्ट्रपति भी बने. साल 1998 में एस्ट्राडा को राष्ट्रपति चुना गया लेकिन साल 2001 में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद उनके खिलाफ विद्रोह हुआ और उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी.
तस्वीर: Reuters/Romeo Ranoco
जिमी मोरालेस
ग्वाटेमाला में टीवी कॉमेडियन जिमी मोरालेस भी साल 2015 में देश के राष्ट्रपति चुने गए. राजनीति मोरालेस के लिए नई थी लेकिन उन्होंने जनता से भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा किया. मोरालेस ने साल 2007 में फिल्म, "ए प्रेसीडेंट इन द सोमब्रेरो" की थी. इस फिल्म में उनका किरदार एक चरवाहे का था जो बदलती परिस्थितियों में देश का राष्ट्रपति बन जाता है.
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व्यातुतास लैंड्सबर्गिस
लिथुआनिया के संगीतकार व्यातुतास लैंड्सबर्गिस ने अपने देश में आजादी के आंदोलन का नेतृत्व किया. सोवियत संघ से निकलने के बाद लैंड्सबर्गिस साल 1990 में देश के राष्ट्रपति बने.
तस्वीर: lrs.lt
मिशेल मार्टेली
कैरेबियाई देश हैती में पॉपुलर कार्निवाल सिंगर मिशेल मार्टेली को देश के युवा स्वीट मिकी भी कहते हैं. मार्टेली ने साल 2011 के राष्ट्रपति चुनाव में 67 फीसदी वोट हासिल कर चुनाव जीत लिया और साल 2016 तक देश पर शासन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. M. Casares
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जर्मनी के विदेश मामलों की कमेटी के चेयरमैन मिषाएल रोथ ने मंगलवार को एआरडी टीवी चैनल से कहा कि पाइपलाइन का इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के खिलाफ करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. रोथ का कहना है, "अगर हम सचमुच प्रतिबंध लगाने पर आते हैं और मुझे अब भी उम्मीद है कि हम इससे बच सकते हैं तो हम उन चीजों को खारिज नहीं कर सकते जिनकी मांग यूरोपीय संघ में हमारे सहयोगी कर रहे हैं."
जर्मनी की चुप्पी
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की यूरोपीय परिषद के रफाएल लॉस ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि जर्मनी ने रूस को रोकने में यूक्रेन की मदद की दिशा में बहुत कम ही काम किया है. लॉस ने कहा, "पिछले कुछ दिनों में जो इस मुद्दे पर सारी बातचीत हुई है उसमें उन्हीं मुद्दों की चर्चा हुई है जो जर्मनी बातचीत की मेज पर नहीं रखना चाहता, जैसे कि नॉर्ड स्ट्रीम 2, हथियार देना और स्विफ्ट."
लॉस ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि यूरोप में यह धारणा बन रही है कि रूस और अमेरिका में बातचीत यूरोपीय नेताओं की अनदेखी करके हो रही है. उन्होंने याद दिलाया कि यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल इस बात से कितने खफा थे कि यूरोपीय संघ इस मामले में कोई अर्थपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है.
इस बीच रूस के वित्त मंत्री ने पिछले हफ्ते चेतावनी दी कि और प्रतिबंध दुखद होंगे लेकिन उनका देश उन्हें सह लेगा. उनका कहना है, "अगर यह खतरा आता है तो मेरे ख्याल से हमारी वित्तीय संस्थाएं इसे संभाल लेंगी."