तानाशाही के खिलाफ पहले सम्मेलन पर लोकतंत्र बचाने की अपील
१० दिसम्बर २०२१
पहली ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी’ के उद्घाटन भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि दुनियाभर में आजादियां ऐसे नेताओं के कारण खतरे में हैं जो अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हैं और दमन को सही ठहरा रहे हैं.
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया के सौ से अधिक देशों के नेताओं से अपील की है कि लोकतंत्र को मजबूत करें, मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करें क्योंकि मौजूदा दौर में एकाधिकारवादी सरकारें लोकतंत्र को बड़ी चुनौती दे रही हैं.
अपनी तरह के इस पहले सम्मेलन में बाइडेन ने कहा, "हम इतिहास में एक दोराहे पर खड़े हैं. क्या हम अधिकारों और लोकतंत्र को पीछे खिसक जाने देंगे? या हम मिलकर एक सोच और हौसले के साथ इंसान और इंसानी अधिकारों को आगे की ओर ले जाएंगे?”
पहला ऐसा सम्मेलन
अमेरिका ने पहली बार ‘समिट ऑफ डेमोक्रेसी' नाम से इस सम्मेलन का आयोजित किया है जिसमें दुनियाभर से सौ से ज्यादा नेताओं को बुलाया गया है. इस सम्मेलन को बाइडेन के फरवरी में किए एक ऐलान से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अमेरिका को दुनिया के नेतृत्व की भूमिका में फिर से ले जाएंगे और तानाशाही शासकों को करारा जवाब देंगे.
111 देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए बाइडेन ने कहा, "लोकतंत्र कोई हादसा नहीं है. हमें इसे हर पीढ़ी के साथ बदलना होता है. मेरे विचार से यही हमारे वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है.” बाइडेन ने चीन या रूस जैसे देशों की ओर सीधे कोई उंगली नहीं उठाई, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्मेलन ऐसी ही ताकतों के खिलाफ जनमत बनाने का एक जरिया है. इस समझ की वजह यह भी है कि रूस और चीन के नेताओं को इस सम्मेलन में नहीं बुलाया गया है.
यह बात कई मंचों से कही जा चुकी है कि दुनिया इस वक्त सबसे ज्यादा देशों में लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है. हाल ही में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने एक रिपोर्ट में कहा था कि म्यांमार, अफगानिस्ता और माली में हुए तख्तापलट ने तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया ही है, हंगरी, ब्राजील और भारत भी उन देशों में शामिल हैं जहां लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हुई हैं.
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कमजोर होते लोकतंत्र
लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली संस्था आइडिया के मुताबिक ऐसे देशों की संख्या जिनमें लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं इस वक्त जितनी अधिक है उतनी कभी नहीं रही. इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक लोक-लुभावन राजनीति, आलोचकों को चुप करवाने के लिए कोविड-19 महामारी का इस्तेमाल, अन्य देशों के अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों को अपनाने का चलन और समाज को बांटने के लिए फर्जी सूचनाओं का प्रयोग जैसे कारकों के चलते लोकतंत्र खतरे में है.
अफ्रीकी देशों में बार-बार क्यों हो रहा तख्तापलट
अफ्रीकी देशों में सैन्य तख्तापलट की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसी साल सूडान में दो बार तख्तापलट की कोशिश हुई, एक बार वह विफल हो गया लेकिन दूसरी बार जनरल आब्देल-फतह बुरहान इसमें कामयाब हुए.
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सूडान
सूडान ने इस साल दो ऐसी घटनाओं का अनुभव किया है, एक सितंबर में जो विफल रही और सबसे नया जिसमें जनरल आब्देल-फतह बुरहान ने सरकार और सेना व नागरिक प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई संप्रभु परिषद को भंग कर दिया. 25 अक्टूबर 2021 को सूडान में सेना ने तख्तापलट कर देश में आपातकाल लागू कर दिया.
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गिनी
5 सितंबर 2021 को पश्चिची अफ्रीकी देश गिनी में विद्रोही सैनिकों ने तख्तापलट करने के बाद राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को हिरासत में ले लिया और संविधान को अवैध घोषित कर दिया.
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माली
मई 2021 में सेना ने विद्रोह करते हुए चुनी हुई सरकार को उखाड़ दिया और सत्ता खुद संभाल ली. एक साल के भीतर ही माली में सेना ने दो बार सरकार के कामकाज में दखल देने की कोशिश की.
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चाड
इदरीस डेबी इस साल अप्रैल में सरकार विरोधी उग्रवादियों से लड़ते हुए मारे गए थे जिसके बाद उनके बेटे महामत इदरीस डेबी देश के अंतरिम राष्ट्रपति बने. डेबी की मौत के बाद फैसला लिया गया था कि महामत के नेतृत्व में बनी एक सैन्य परिषद अगले 18 महीनों तक शासन करेगी.
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जिम्बाब्वे
अफ्रीकी देशों में तख्तापलट पिछले एक दशक से जारी है. साल 2017 में सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और रॉबर्ट मुगाबे को गिरफ्तार कर लिया.
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बुरकीना फासो
पश्चिमी अफ्रीका में बुरकीना फासो ने सबसे सफल तख्तापलट का झेला जिसमें सात सफल अधिग्रहण और केवल एक असफल तख्तापलट हुआ है.
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मध्य अफ्रीकी गणराज्य
खनिज संपन्न मध्य अफ्रीकी गणराज्य में 2013 में तख्तापलट हुआ था. सेलाका विद्रोहियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकोइस बोजोजी को पद से हटा दिया था.
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तख्तापलट से बढ़ी चिंता
सितंबर में यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चिंता व्यक्त की कि "सैन्य तख्तापलट वापस आ गए हैं." उन्होंने सैन्य हस्तक्षेपों के जवाब में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच एकता की कमी को जिम्मेदार ठहराया था.
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आइडिया ने 1975 से अब तक जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट कहती है, "पहले से कहीं ज्यादा देशों में अब लोकतंत्र अवसान पर है. ऐसे देशों की संख्या इतनी अधिक पहले कभी नहीं रही, जिनमें लोकतंत्र में गिरावट हो रही हो."
रिपोर्ट में ब्राजील, भारत और अमेरिका जैसे स्थापित लोकतंत्रों को लेकर भी चिंता जताई गई है. रिपोर्ट कहती है कि ब्राजील और अमेरिका में राष्ट्रपतियों ने ही देश के चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए जबकि भारत में सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है.
अमेरिका ने कहा है कि दुनिया में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार कांग्रेस के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि 42.44 करोड़ डॉलर की राशि उपलब्ध करवाई जा सके. इस राशि का इस्तेमाल कई कदमों के लिए किया जाएगा जिनमें स्वतंत्र न्यू मीडिया को मजबूत करना भी शामिल है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
भविष्य में ये 10 बदलाव चाहते हैं युवा
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने 187 देशों के लगभग 20 हजार युवाओं से पूछा कि वे भविष्य में क्या चाहते हैं. जानिए वे 10 चीजें जो युवा बदलना चाहते हैं.
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समझदारी भरा उपभोक्तावाद
सर्वे में शामिल ज्यादातर युवाओं ने कहा कि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले उपभोग को फायदेमंद बनाया जाए. कंपनियों की जिम्मेदारी तय की जाए और बड़े कॉरपोरेट जगत में बदलाव के लिए निवेशकों को जनता के साथ मिलकर काम करना चाहिए. भविष्य में खाने के उत्पादन और कुदरत को बचाने के लिए सभी को फौरन कदम उठाने चाहिए.
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डिजिटल पहुंच
88.9 फीसदी युवाओं ने कहा कि इंटरनेट की पहुंच को एक मूलभूत अधिकार बना देना चाहिए. लगभग 26 फीसदी मानते हैं कि उनका देश अगले दस साल में भी सभी को इंटरनेट देने की स्थिति में नहीं है. युवाओं की मांग है कि इंटरनेट ब्लैकआउट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
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मिथ्या सूचनाओं की रोकथाम
सर्वे में शामिल 38.4 प्रतिशत लोगों ने फेक न्यूज यानी फर्जी खबरों के प्रसार को सोशल मीडिया का सबसे बड़ा नुकसान बताया. 19.5 प्रतिशत युवा निजता का हनन और 11.4 फीसदी हेट स्पीच को सबसे बड़ा नुकसान मानते हैं. युवा चाहते हैं कि टेक कंपनियों को ज्यादा पारदर्शी होना चाहिए और सरकारों को ऐसी नीतियां लानी चाहिए जिनसे खतरनाक सामग्री से लोगों को बचाया जा सके.
तस्वीर: Facebook
भविष्य का लोकतंत्र
युवा चाहते हैं कि मानवतावादी दानी लोग युवा और प्रगतिशील आवाजों को सरकारों में लाने के लिए उनका साथ दें. मीडिया की मोनोपॉली के खिलाफ कानून बनें और राजनीति ज्यादा समावेशी हो.
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सामाजिक सुरक्षा और समावेशी नौकरियां
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक असमानता से लड़ने के लिए पांच करोड़ डॉलर से अधिक की संपत्ति पर ग्लोबल टैक्स लगना चाहिए. अपने कर्मचारियों को अधिक स्किल सिखाने वाली कंपनियों को टैक्स का लाभ मिलना चाहिए. यूनिवर्सिटी की बेहद महंगी फीस कम होनी चाहिए और सिलेबस आज के जॉब मॉर्किट के हिसाब से होना चाहिए.
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ग्लोबल वॉर्मिंग
सरकारों को उन समुदायों पर निवेश करना होगा जिन्हें ग्लोबल वॉर्मिंग से खतरा ज्यादा है. ऐसी कंपनियों को धन न दिया जाए जो नए जीवाश्म ईंधन खोज रहे हैं. कंपनियों को ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. 70 प्रतिशत से ज्यादा युवा मानते हैं कि वे ऐसे नेता को वोट देंगे जो ग्लोबल वॉर्मिंग को मुद्दा मानता है और उसके लिए कदम उठाएगा.
युवाओं ने इच्छा जताई है कि सरकारें हरेक को मानिसक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएं. इन समस्याओं के बारे में जागरूकता के लिए निवेश हो और यूनिवर्सिटी के सिलेबस का हिस्सा बनाया जाए.
तस्वीर: Colourbox
लोगों की सुरक्षा
कानून के दायरे में कुछ लोगों को मिलने वाला गलत लाभ खत्म किया जाना चाहिए. बंदूकों पर प्रतिबंध होना चाहिए और ऐसी हिंसा के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. घरेलू और यौन हिंसा के बारे में कदम उठाए जाने की जरूरत है. और न्याय व्यवस्था को इस तरह काम करना चाहिए कि कमजोर तबकों को सुरक्षा मिले.
तस्वीर: Frank Hoermann/SVEN SIMON/imago images
अगली पीढ़ी का पूंजीवाद
सरकारों को टेक कंपनियों के लिए नीतियां बनानी चाहिए जो लोगों के हित में हों. यूनिवर्सिटी में ईएसजी यानी एनवायर्नमेंट, सोशल ऐंड कॉरपोरेट गवर्नेंस को सिलेबस का हिस्सा बनाना चाहिए. कंपनियों में टेक-एथिक्स जरूरी होने चाहिए.
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स्वास्थ्य सेवाएं
ज्यादातर युवा मानते हैं कि कोविड-19 वैक्सीन, टेस्ट और इलाज सबके लिए उपलब्ध होने चाहिए. सरकार को स्वास्थ्यकर्मियों और उनके परिजनों को प्राथमिकताएं देनी चाहिए. स्वास्थ्य सेवाओं का डिजिटाजेशन होना चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/empics/The Canadian Press/J. Hayward