पन्नू की हत्या की साजिश में भारत की भूमिका पर नया खुलासा
३० अप्रैल २०२४
अमेरिका ने कहा है कि कनाडा और अमेरिका में लोगों की हत्याओं की साजिश में भारत की जासूसी एजेंसियों की भूमिका एक गंभीर विषय है. वॉशिंगटन पोस्ट ने इस बारे में नया खुलासा किया है.
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अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट की खबर पर प्रतिक्रिया में व्हाइट हाउस ने कहा कि कनाडा में एक नागरिक की हत्या और अमेरिका में एक नागरिक की हत्या की साजिश रचने में भारतीय जासूसी एजेंसियों का हाथ होने की खबरें एक गंभीर मामला है.
वॉशिंगटन पोस्ट ने सोमवार को खबर छापी थी कि अमेरिकी नागरिक और खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में और कनाडा में पिछले साल हुई एक सिख नेता हरदीप सिंह निज्जरकी हत्या में भारतीय जासूसी एजेंसी का एक अफसर सीधे तौर पर शामिल था.
नर्व एजेंट की एबीसी
2018 में रूस के पूर्व जासूस सेरगेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी पर नर्व एजेंट से हमला किया गया था. नर्व एजेंट आखिर होता क्या है और कैसे शरीर पर असर करता है?
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क्या होता है नर्व एजेंट?
नर्व एजेंट ऐसे जहरीले रसायन हैं जो सीधे नर्वस सिस्टम यानि तंत्रिका तंत्र पर असर करते हैं. ये दिमाग तक जाने वाले संकेतों को रोक देते हैं, जिससे शरीर ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है. इसका असर सबसे पहले मांसपेशियों पर लकवे के रूप में देखने को मिलता है.
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कैसा दिखता है?
यह पाउडर के रूप में भी होते हैं और गैस के भी, लेकिन ज्यादातर द्रव का इस्तेमाल किया जाता है, जो भाप बन कर उड़ जाता है. अक्सर यह गंधहीन और रंगहीन होता है, इसलिए किसी तरह का शक भी नहीं होता.
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कैसे दिया जाता है?
यह भाप अगर सांसों के साथ शरीर के अंदर पहुंचे, तो कुछ सेकंडों में ही अपना असर दिखा सकती है. कई बार द्रव को त्वचा के जरिये शरीर में भेजा जाता है. ऐसे में असर शुरू होने में कुछ मिनट लग जाते हैं.
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कैसा होता है असर?
नर्व एजेंट के संपर्क में आने वाले व्यक्ति को फौरन ही सांस लेने में दिक्कत आने लगती है. आंखों की पुतलियां सफेद हो जाती हैं, हाथ-पैर चलना बंद कर देते हैं और व्यक्ति कोमा में पहुंच जाता है. ज्यादातर मामलों में कुछ मिनटों में ही व्यक्ति की मौत हो जाती है.
जहर देने के तरीके
कई बार इन्हें खाने में या किसी ड्रिंक में मिला कर दिया जाता है. लेकिन ऐसे में असर देर से शुरू होता है. ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब इन्हें सीधे व्यक्ति पर स्प्रे कर दिया गया हो. इससे वे सीधे त्वचा के अंदर पहुंच जाते हैं.
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क्या है इलाज?
जहर को जहर काटता है. इसके असर को कम करने के लिए एक एंटीडोट दिया जा सकता है लेकिन जरूरी है यह जल्द से जल्द दिया जाए. एंटीडोट देने से पहले यह पता लगाना भी जरूरी है कि किस प्रकार का नर्व एजेंट दिया गया है.
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किस प्रकार के होते हैं?
नर्व एजेंट को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. जी-एजेंट, वी-एजेंट और नोविचोक. शुरुआत 1930 के दशक में हुई जब सस्ते कीटनाशक बनाने के चक्कर में एक घातक जहर का फॉर्मूला तैयार हो गया और यह जर्मन सेना के हाथ लग गया.
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क्या है जी-एजेंट?
'जी' इसलिए क्योंकि यह जर्मनी में बना. 1936 में सबसे पहला जी-एजेंट जीए बना. उसके बाद जीबी, जीडी और जीएफ तैयार किए गए. जीबी को ही सारीन के नाम से भी जाना जाता है. अमेरिका युद्ध की स्थिति में रासायनिक हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल कर चुका है.
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क्या है वी-एजेंट?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने भी नर्व एजेंट बनाना शुरू किया. ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने 1950 के दशक में वीएक्स तैयार किया. वीएक्स के अलावा वीई, वीजी, वीएम और वीआर भी हैं लेकिन वीएक्स सबसे घातक है.
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क्या है नोविचोक?
रूसी भाषा में नोविचोक का मतलब है नया. इन्हें 70 और 80 के दशक में सोवियत संघ में बनाया गया था. इनमें से एक ए-230, वीएक्स की तुलना में पांच से आठ गुना ज्यादा जहरीला होता है और मिनटों में जान ले सकता है.
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कैसे ट्रांसपोर्ट होते हैं?
यह इतने जहरीले होते हैं कि इन्हें ले जाने वाले पर भी खतरा बना रहता है. जरा सा संपर्क भी जानलेवा साबित हो सकता है. इसलिए इनके लिए खास तरह की शीशी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कस कर बंद किया जाता है. साथ ही ट्रासंपोर्ट करने वाला खास तरह के कपड़े भी पहनता है.
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कहां से आया?
नर्व एजेंट कोई आम जहर नहीं है जिसे घर पर बना लिया जाए. यह सैन्य प्रयोगशालाओं में बनाया जाता है और हर एक फॉर्मूले में थोड़ा बहुत फर्क होता है. इसलिए हमले के मामले में पता किया जाता है कि फॉर्मूला कौन से देश का है. इसके अलावा जिस शीशी या कंटेनर में जहर लाया गया, उसकी बनावट से भी पता किया जाता है.
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कितना असरदार?
नर्व एजेंट के हमले के बाद बचने की संभावना बहुत ही कम होती है. हालांकि खतरा कितना ज्यादा है, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि जहर किस मात्रा में दिया गया है.
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व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरिन ज्याँ-पिएरे ने मीडिया से बातचीत में कहा, "यह एक गंभीर मामला है और हमें इसे बहुत ज्यादा गंभीरता से ले रहे हैं. हम अपनी चिंताएं जाहिर करते रहेंगे.”
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में विक्रम यादव नाम के एक भारतीय अफसर का नाम लिखा है. रिपोर्ट कहती है, "अमेरिकी आरोप पत्र के मुताबिक यादव ने सिख कार्यकर्ता गुरपतवंत सिंह पन्नू की जानकारियां साझा की थीं, जिनमें न्यूयॉर्क के घर का पता भी शामिल था. यादव ने लिखा कि जैसे ही संभावित हत्यारे इस बात की पुष्टि कर देंगे कि पन्नू घर पर है, हमारी तरफ से आगे बढ़ने की इजाजत मिल जाएगी.”
भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को “बेबुनियाद और एक गंभीर मामले के साथ निराधार छेड़छाड़” बताया. रिपोर्ट प्रकाशित होने के एक दिन बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “अमेरिकी सरकार के संगठित अपराधियों, आतंकवादियों और अन्य तत्वों के गिरोहों पर जताई गई सुरक्षा चिंताओं के बारे में भारत सरकार द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय समिति जांच कर रही है. इस पर अटकलें और गैरजिम्मेदाराना टिप्पणियां उचित नहीं हैं.”
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रॉ के अधिकारियों के नाम
यादव की पहचान अब तक सार्वजनिक नहीं की गई थी. अखबार लिखता है, "यादव की पहचान और संबंध इस बात का पक्का सबूत है कि हत्या की साजिश भारत की जासूसी एजेंसियों के अंदर से ही रची गई थी. सीआईए, एफबीआई और अन्य एजेंसियों ने इस मामले में विस्तृत जांच की है और मोदी के करीबियों से संभावित संपर्कों का नक्शा बनाया है. पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक रॉ के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को भी मामले में नामित किया गया है.”
जासूसों का शहर
कोल्ड वॉर के दौरान, बर्लिन पूर्वी और पश्चिमी ब्लॉक का फ्रंटियर शहर था. ऐसे में यहां जासूसों का जमावड़ा हुआ करता था. शहर में जासूसी के इस अतीत से जुड़े कई अहम ठिकाने अब भी मौजूद हैं. देखिए ऐसे ही कुछ चर्चित ठिकाने.
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चेकपॉइंट चार्ली
चेकपॉइंट चार्ली बर्लिन के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों के बीच का सबसे चर्चित क्रॉसिंग पॉइंट था. अक्टूबर 1961 में सोवियत और अमेरिका के बीच बढ़े तनाव का यह बड़ा केंद्र था. हालांकि यह प्रकरण दोनों ओर से बिना एक भी गोली चले खत्म हो गया था. बरसों बाद पता चला कि एक अंडरकवर जासूस जो कि वेस्ट बर्लिन का एक पुलिस अफसर उसने उस समय सोवियत को अमेरिकी सैनिकों की खुफिया जानकारी दी थी.
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ग्लीनिके पुल
ग्लीनिके पुल भी बर्लिन के दोनों हिस्सों की सीमाओं के आर-पार जाने का बड़ा मशहूर रास्ता हुआ करता था. कई मौकों पर इस पुल के ऊपर सोवियत और पश्चिमी देशों ने एक-दूसरे के पकड़े हुए जासूसों की अदला-बदली की. इसीलिए इसे "ब्रिज ऑफ स्पाइज" भी कहा जाता था. 2015 में स्टीवन स्पीलबर्ग ने इसी नाम से एक फिल्म बनाई, जिसमें जासूसों की अदला-बदली का यह रोमांचक इतिहास दिखाया गया है.
तस्वीर: Georg Moritz/picture alliance/dpa
स्टासी म्यूजियम, बर्लिन
स्टेट सिक्यॉरिटी मिनिस्ट्री, पूर्वी जर्मनी की कुख्यात जासूसी और सर्विलांस एजेंसी थी. इसका प्रचलित संक्षिप्त नाम स्टासी है. एक बड़ी आम सी दिखने वाली इमारत में इसका मुख्यालय हुआ करता था. अब इसे म्यूजियम बना दिया गया है. कई दफ्तर और कॉन्फ्रेंस रूम अपनी पुरानी शक्ल में सहेजकर रखे गए हैं. ये टेलिफोन इसी संग्रह का हिस्सा हैं, जो पूर्वी जर्मनी के जासूसी प्रमुख एरिष मिल्के के दफ्तर में लगे थे.
तस्वीर: Paul Zinken/picture alliance/dpa
मारियनफेल्ड रिफ्यूजी सेंटर म्यूजियम
पूर्वी जर्मनी से भागकर आने वाले कई लोगों को पश्चिमी बर्लिन स्थित मारियनफेल्ड रिफ्यूजी सेंटर में पनाह मिलती थी. इस सेंटर ने करीब 13 लाख शरणार्थियों को जगह दी. ये शरणार्थी पूर्वी जर्मनी और सोवियत से जुड़ी खुफिया जानकारियां हासिल करने में भी काम आते थे. पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियां इन शरणार्थियों की विस्तृत तफ्तीश करके सोवियत के राज जानने की कोशिश करती थीं.
इस टावर का अतीत बड़ा रोमांचक है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों की बमबारी से बर्लिन तहस-नहस होकर मलबे का ढेर बन गया. युद्ध के बाद उस मलबे को हटाने में बरसों लग गए. शहर के बाहर जहां मलबा जमा किया गया, वहां पहाड़ सा बन गया. 1960 के दशक में इसी पहाड़ पर अमेरिकी की नेशनल सिक्यॉरिटी एजेंसी ने यह टावर बनाया. मकसद था, सोवियत ब्लॉक की जासूसी और खुफिया बातचीत को सुनना.
तस्वीर: Ina Hensel/picture alliance/Zoonar
अलाइड म्यूजियम
यह म्यूजियम बर्लिन के सेलेनडॉर्फ जिले में है. कोल्ड वॉर के दौरान यह इलाका अमेरिकी नियंत्रण में था. यह सैलानियों के लिए खुला है. यहां आप कोल्ड वॉर के तनाव भरे माहौल को अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों के नजरियों से देख सकते हैं. यहां का प्रमुख आकर्षण है, एक जासूसी सुरंग का हिस्सा. अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों ने सोवियत की बातचीत में सेंध लगाने के लिए यह सुरंग बनाई थी.
तस्वीर: picture alliance/Prisma Archivo
जर्मन स्पाई म्यूजियम
यह म्यूजियम पॉस्टडामर प्लाट्स के नजदीक है. कोल्ड वॉर के दौर में यहां बर्लिन को दो हिस्सों में बांटने वाली दीवार हुआ करती थी. यहां आप जासूसी में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के दिलचस्प उपकरण देख सकते हैं. इस म्यूजियम में जाकर आप बेहतर समझ पाएंगे कि बर्लिन को जासूसों का शहर क्यों कहा जाता था. ना केवल बड़ों के लिए, बल्कि बच्चों के लिए भी ये बड़ी रोमांचक जगह है.
तस्वीर: Christian Behring/picture alliance / POP-EYE
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अमेरिकी अधिकारियोंने पिछले साल नवंबर में आरोप लगाया था कि खालिस्तान समर्थक अमेरिकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की विफल साजिश के पीछे भारतीय अधिकारी काम कर रहा था.
भारत ने इस मामले में अपनी जांच के बाद कहा था कि जो व्यक्ति इस घटना में शामिल था, वह भारतीय जासूसी एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए अब काम नहीं करता है.
इससे पहले पन्नू की हत्या की साजिश रचने के आरोप पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि यह "चिंता का विषय" और "भारत सरकार की नीति के विपरीत" है.
खालिस्तान समर्थक पन्नू
अमेरिका में रह कर पन्नू सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) नाम का संगठन चलाता है. यह संगठन सिखों के लिए अलग खालिस्तान की मांग करता है. इसे 2007 में अमेरिका में स्थापित किया गया था. इसका संस्थापक पन्नू ही है. पन्नू ने पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है और फिलहाल अमेरिका में वकालत कर रहा है. वह एसएफजे का कानूनी सलाहकार भी है.
भारत-कनाडा विवाद: क्या क्या है दांव पर
कनाडा में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या को लेकर भारत और कनाडा के बीच गंभीर कूटनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. अगर विवाद और गहराया तो इसका असर दोनों देशों के रिश्तों के कई पहलुओं पर पड़ सकता है. आखिर क्या क्या है दांव पर?
तस्वीर: AFP
व्यापारिक रिश्तों पर असर
जून, 2023 में दोनों देशों ने कहा था कि एक महत्वपूर्ण व्यापार संधि पर इसी साल हस्ताक्षर हो जाएंगे. लेकिन सितंबर में कनाडा ने बताया कि उसने भारत के साथ इस प्रस्तावित संधि पर बातचीत को रोक दिया है. अनुमान लगाया जा रहा था कि इस संधि से दोनों देशों के बीच व्यापार में करीब 541 अरब रुपयों की बढ़ोतरी हो सकती थी.
तस्वीर: Paul Chiasson/ZUMA Press/IMAGO
किन चीजों का होता है व्यापार
दोनों देशों के बीच व्यापार में लगातार बढ़ोतरी की वजह से 2022 में दोनों देशों के बीच 666 अरब रुपयों का व्यापार हुआ. भारत ने करीब 333 अरब रुपयों का सामान कनाडा से आयात किया और उतने ही मूल्य का सामान कनाडा निर्यात किया.
तस्वीर: Adrian Wyld/AP/picture alliance
भारत में है कनाडा की दालों की मांग
भारत में कनाडा से आयातित दालों की मांग बढ़ती जा रही है. इसके अलावा भारत कनाडा से कोयला, खाद, न्यूजप्रिंट, कैमरे, हीरे आदि जैसे सामान भी आयात करता है. कनाडा भारत से दवाएं, कपड़े, गाड़ियों के पुर्जे, हवाई जहाज के उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसी चीजें आयात करता है.
तस्वीर: Olena Yeromenko/Zoonar/picture alliance
अरबों रुपयों का निवेश
कनाडा भारत का 17वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. उसने पिछले 22 सालों में करीब 299 अरब रुपयों का भारत में निवेश किया है. इसके अलावा कनाडा के पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय स्टॉक और डेट बाजारों में अरबों रुपयों का निवेश किया है. कनाडा का पेंशन फंड भारत के रियल एस्टेट, रिन्यूएबल ऊर्जा और वित्तीय क्षेत्रों में मार्च 2023 तक 1,248 अरब रुपयों का निवेश कर चुका है.
तस्वीर: Andrew Vaughan/The Canadian Press/picture alliance
कंपनियों को क्या फायदा हुआ है
बॉम्बार्डियर और एसएनसी लावलीन जैसी 600 से भी ज्यादा कनाडा की कंपनियों की भारत में मजबूत उपस्थिति है. भारत की तरफ से टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस जैसी कम से कम 30 कंपनियों ने कनाडा में अरबों रुपये लगाए हैं और हजारों नौकरियों को पैदा दिया है.
तस्वीर: Arnulf Hettrich/imago images
भारतीय छात्रों की पसंद
2018 में भारत कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा रहा. 2022 में तो उनकी संख्या में करीब 47 प्रतिशत का उछाल आया और यह संख्या 3,20,000 पर पहुंच गई. कनाडा में पढ़ रहे कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 40 प्रतिशत भारतीय छात्र हैं.
तस्वीर: NurPhoto/picture alliance
सिखों के लिए इस विवाद के क्या मायने हैं
कई समीक्षकों का कहना है कि दोनों देशों के रिश्ते खराब होने से पंजाब में रह रहे हजारों सिख परिवारों के आर्थिक हितों पर असर पड़ेगा, क्योंकि उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य कनाडा में रहता है और उन्हें हर साल वहां कमाए हुए डॉलरों का एक हिस्सा भेजता है. कनाडा में पिछले 20 सालों में सिखों की आबादी में दोगुने से भी ज्यादा बढ़ोतरी आई है और अब वह बढ़ कर देश की कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत हो गई है. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Chris Helgren/REUTERS
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पन्नू की हत्या की कथित साजिश का खुलासा नवंबर में उस समय हुआ था जब कनाडा ने दो महीने पहले आरोप लगाया था कि उसके पास सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की जून में हत्या में भारत सरकार के शामिल होने के पक्के संकेत हैं.
कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया राज्य के सरी में हरदीप सिंह निज्जर की एक गुरुद्वारे के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. भारत सरकार निज्जर को आतंकवादी मानती थी और उन्हें उग्रवादी अलगाववादी संगठन का नेता बताती है. हालांकि निज्जर के समर्थक इसे सरासर गलत बताते हैं.