वैज्ञानिकों ने स्तन कैंसर के लिए एक दवा बनाई है जो मरीजों की जीने की अवधि बढ़ा रही है. इस दवा का असर जिन मरीजों पर हो रहा है, उन्हें नई श्रेणी में रखा जाएगा.
स्तन कैंसर हर साल हजारों महिलाओं की जान लेता हैतस्वीर: Channel Partners/Zoonar/picture alliance
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पहली बार वैज्ञानिकोंको एक ऐसी दवा बनाने में कामयाबी मिली है, जो स्तन कैंसर की वजह बनने वाले प्रोटीन को निशाना बनाती है. यह दवा ट्यूमर के खिलाफ काम करती प्रतीत हुई है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह दवा स्तन कैंसर का इलाज नहीं है लेकिन कैंसर थेरेपी की प्रक्रिया में यह दवा इलाज की नई संभावनाएं खोल सकती है.
अबर तक स्तन कैंसर को दो श्रेणियों में बांटा जाता रहा है. एक है HER2-positive, जिसमें कैंसर कोशिकाओं में प्रोटीन सामान्य से ज्यादा होता है. दूसरी श्रेणी को HER2-negative कहा जाता है. रविवार को डॉक्टरों ने कहा अब एक नई श्रेणी HER2-low बनाई जाएगी जो कि स्तन कैंसर के इलाज में मार्गदर्शक होगी.
कैंसर की नई श्रेणी
डॉक्टरों का मानना है कि HER2-negative श्रेणी के वे मरीज जिन्हें स्तन कैंसर के प्राथमिक से बाद के चरणों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है, संभव है कि वे HER2-low श्रेणी के मरीज हों और इस दवा के योग्य हों.
यह दवा असल में एक एनहर्तु है, यानी एक एंटीबॉडी कीमोथेरेपी इंजेक्शन जिसे आईवी के जरिए दिया जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कैंसर कोशिकाओं में मौजूद HER2 प्रोटीन कोशिकाओं को खोजकर उन्हें ब्लॉक कर देती है. इसके लिए यह कैंसर कोशिकाओं के भीतर एक ताकतवर रसायन छोड़ती है, जो कैंसर को खत्म करता है. यह नई तरह की दवाओं की श्रेणी में आती है जिन्हें एंटीबॉडी-ड्रग कहा जाता है.
बढ़ रहा है भारत में कैंसर
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले चार सालों में भारत में कैंसर के मामलों में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अगले पांच साल में मामले 12 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं.
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बढ़ता कैंसर
राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार इस समय भारत में कैंसर के लगभग 14 लाख मामले हैं. पिछले चार सालों में इन मामलों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2016 में देश में अनुमानित 12.6 लाख मामले थे.
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रफ्तार बढ़ने की संभावना
कैंसर रजिस्ट्री के मुताबिक अगले पांच साल में कैंसर के मामलों में 12 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. 2025 तक देश में 15.7 लाख मामले होने का अनुमान है.
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ज्यादा महिलाएं प्रभावित
पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाएं कैंसर से पीड़ित हैं. 2020 में 6.8 लाख पुरुषों के मुकाबले 7.1 लाख महिलाओं के कैंसर से पीड़ित होने का अनुमान है. 2025 में पुरुषों में कैंसर के 7.6 लाख मामले और महिलाओं में 8.1 लाख मामले होने की आशंका है.
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बच्चों में कैंसर
सभी उम्र के कैंसर पीड़ितों की तुलना में 14 साल तक के बच्चों में कैंसर का अनुपात देश के अलग अलग इलाकों में 0.7 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत तक है. ये अनुपात उत्तर भारत में सबसे ज्यादा दिल्ली में है (लड़कों में 4.7 प्रतिशत और लड़कियों में 2.6 प्रतिशत), दक्षिण में हैदराबाद में, पश्चिम में लड़कों में औरंगाबाद और लड़कियों में बर्षि ग्रामीण.
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तंबाकू से नुकसान
कैंसर के सभी मामलों में तंबाकू से होने वाले कैंसरों की संख्या सबसे अधिक (27 प्रतिशत) है. 2020 में कैंसर के 3,77,830 मामलों के पीछे तंबाकू के कारण होने का अनुमान है. 2025 तक इस संख्या के बढ़ कर 4,27,273 हो जाने की आशंका है.
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स्तन कैंसर की ऊंची दर
महिलाओं में होने वाले कैंसर में सबसे बड़ी संख्या (14.8 प्रतिशत) स्तन के कैंसर की है. 2020 में जहां 2,05,424 स्तन कैंसर के मामले होने का अनुमान है, 2025 तक स्तन कैंसर के मामले बढ़ कर 2,32,832 हो जाने की संभावना है.
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कैंसर से मृत्यु दर
पुरुषों में कैंसर से मृत्यु दर देश के अलग अलग इलाकों में 14.7 प्रतिशत से 71.9 प्रतिशत के बीच है और महिलाओं में 9 प्रतिशत से 63 प्रतिशत के बीच है. सबसे ऊंची मृत्यु दर (67.2 प्रतिशत) महाराष्ट्र के बर्षि ग्रामीण इलाके में की गई है.
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पूर्वोत्तर में बढ़ता संकट
हर 1,00,000 लोगों की आबादी पर पुरुषों में कैंसर के सबसे ज्यादा मामले मिजोरम के आइजॉल जिले में हैं (269.4) और सबसे कम महाराष्ट्र के उस्मानाबाद और बीड जिलों में हैं (39.5). महिलाओं में आबादी के अनुसार सबसे ज्यादा मामले अरुणाचल प्रदेश के पापुमपारे जिले में हैं (219.8) और सबसे कम महाराष्ट्र के उस्मानाबाद और बीड जिलों में हैं (49.4).
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इस दवा को मान्यता तो पहले ही मिल चुकी थी लेकिन अप्रैल में अमेरिका की फूड ऐंड ड्रग अथॉरिटी ने इसे नई श्रेणी के मरीजों के महत्वपूर्ण खोज का भी दर्जा दिया. नया अध्ययन कहता है कि इस दवा के कारण मरीजों की कैंसर के बिना जीने की अवधि लंबी हुई है और उनके कैंसर की प्रगति की रफ्तार धीमी हुई जिससे उनके जीने की संभावना सामान्य कीमोथेरेपी लेने वाले मरीजों की तुलना में बढ़ी.
कैसे हुआ अध्ययन?
अध्ययन में HER2-low स्तन कैंसर की श्रेणी वाले 500 मरीजों में कीमोथेरेपी की तुलना एनहर्तु से की गई. इन मरीजों में कैंसर फैल चुका था या फिर उस स्टेज पर पहुंच गया था, जहां उसे सर्जरी से ठीक नहीं किया जा सकता था. दवा लेने वाले मरीजों में कैंसर का प्रसार लगभग 10 महीने तक थमा रहा जबकि सामान्य इलाज कराने वाले मरीजों में यह साढ़े पांच महीने ही रुका. दवा ने जीने की अवधि को भी औसतन छह महीने बढ़ा दिया.
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लैंगोन हेल्थ सेंटर में स्तन कैंसर के मरीजों की देखभाल करने वाले विभाग की निदेशिका डॉ. सिल्विया एडम्स ने बताया कि यह खोज इलाज को नई दिशा दे सकती है. उन्होंने कहा, "यह अभ्यास बदलने वाला अध्ययन है. यह ऐसे मरीजों की जरूरत पूरी करती है जिन्हें मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर है.”
कैसे जीते हैं ‘कैंसर सर्वाइवर’
कैंसर का इलाज है और बहुत से कैंसर पीड़ित कई बार महीनों तो कई बार सालों में इस बीमारी को हरा कर अपने सामान्य जीवन में लौटते भी हैं. लेकिन कैंसर के इलाज के बाद का 'न्यू नॉर्मल' कई सावधानियों और बदलावों से भरा होता है.
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इलाज के बाद का 'न्यू नॉर्मल'
अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट ने बताया है कि इलाज खत्म होने के बाद के कुछ महीने बड़े बदलावों का समय होते हैं. सर्वाइवर यह समझना शुरु करते हैं कि अब उनका नया सामान्य जीवन कैसा होगा. अकसर यह उनके पहले के सामान्य जीवन से काफी अलग होता है. ज्यादातर लोग जीवन को नए नजरिए से देखने लगते हैं.
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फॉलो-अप मेडिकल केयर
सभी कैंसर सर्वाइवरों को फॉलो-अप केयर की जरूरत होती है. इससे उन्हें और उनकी देखभाल करने वाले परिजनों को पता चलता है कि लाइफस्टाइल में कैसे अंतर लाने होंगे और कौन से बड़े फैसले लिए जाने चाहिए. रिसर्च दिखाती है कि जो लोग फॉलो-अप को गंभीरता से लेते हैं, वे ज्यादा लंबा और बेहतर बाकी का जीवन जी पाते हैं.
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डॉक्टर से लगातार संपर्क
इलाज पूरा होने के बाद भी डॉक्टर से मिलना जारी रखना होता है. अलग अलग कैंसर से उबरने वालों का रिकवरी प्लान भी काफी अलग होता है. आम तौर पर कैंसर सर्वाइवरों को इलाज खत्म होने के पहले 2-3 सालों में हर 3 से 4 महीने पर डॉक्टर से मिलना होता है. उसके बाद साल में एक या दो बार देखा जाता है कि इलाज के साइड इफेक्ट्स का क्या हुआ और कहीं कैंसर वापस तो नहीं लौट रहा.
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सेहत की देखभाल की लंबी चौड़ी योजना
कैंसर के वापस लौटने का डर एक बड़ी चुनौती होती है जिससे निपटने के लिए सर्वाइवर अपने खानपान और व्यायाम के अलावा तमाम तरह के तनाव और कैमिकल्स से दूर रहने की कोशिश करते हैं. डॉक्टर मरीज के साथ मिलकर उनके लिए ऐसा वेलनेस प्लान बनाने में मदद करते हैं, जो ना केवल शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक जरूरतों का भी ख्याल रखे.
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इलाज के कारण हुए शारीरिक असर
कैंसर के कड़े इलाज के कई साइड इफेक्ट रह जाते हैं. सर्वाइवर को ध्यान रखना होता है कि कैंसर के लौटने के लक्षण दिखने पर उसे पता चल सके. लगभग सभी को अकसर थकान और कुछ याद रखने या ध्यान लगाने में परेशानी महसूस होती है. कई लोगों को दर्द, मुंह या दांतों में सूजन, निगलने में दिक्कत, ब्लैडर या पेट पर कंट्रोल कम होने की समस्या आती है.
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शारीरिक कमियों के साथ जीना सीखना
साइड इफेक्ट वाली कुछ परेशानियां ठीक हो जाती हैं तो कुछ जीवन भर रहती हैं. कई लोगों को इलाज के निशानों से शर्म आती है, जैसे त्वचा का बदला हुआ रंग, बालों का गिरना, जख्म के निशान, कटे फटे अंग या वजन का बढ़ना या घटना. इसे लेकर एक किस्म का गुस्सा और दुख लगभग सभी सर्वाइवर महसूस करते हैं.
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सेक्स लाइफ में अंतर
अपने शरीर के बारे में बुरा महसूस करने के कारण कई लोगों की सेक्स लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है. ब्रेस्ट कैंसर या गर्भाशय के कैंसर का इलाज करवा कर ठीक होने वाली करीब आधी महिलाओं और आधे से भी अधिक प्रोस्टेट कैंसर के पुरुष सर्वाइवरों में लॉन्ग टर्म सेक्शुअल प्रॉब्लम देखी गई है. ऐसा सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन के कारण तो होता ही है, साथ ही भावनात्मक कारणों से भी होता है.
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भावनाओं की उथल पुथल
शरीर के साथ साथ सर्वाइवर्स के सोचने और महसूस करने का तरीका भी बदलता है. लोग जिन जीवन-मूल्यों के साथ बड़े होते हैं, उन्हीं से तय होता है कि वे कैंसर के साथ और उसके बाद बीमारी को लेकर क्या सोचते हैं. कुछ सर्वाइवर अपने परिवार के लिए और मजबूत संबल बनना चाहते हैं, तो कुछ को करीबी लोगों से कहीं ज्यादा सहारे की जरूरत महसूस होती है.
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जीवन के मायने बदलना
लगभग सभी के लिए कैंसर झकझोर कर रख देने वाला अनुभव होता है. ठीक होने को वे पुनर्जन्म जैसा मानते हैं और अपने जीवन के हर पहलू को फिर से परखते हैं. जैसे कि अपनी नौकरी, अपने दोस्त, करीबी और उस दिली तमन्ना को पूरा करने की कोशिश करते हैं, जो पहले उन्होंने टाल कर रखी थी. कई लोग धर्म और आध्यात्म में डूब जाते हैं और वहीं से ताकत बटोरते हैं.
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कितने कैंसर पीड़ित बन पाते हैं सर्वाइवर
कैंसर के मामले में सर्वाइवल रेट पांच साल की इकाई में गिनी जाती है. जैसे कि लेट स्टेज में पता चलने वाले कैंसर की सर्वाइवल रेट 5 फीसदी है, तो इसका मतलब हुआ कि ऐसे 100 में से केवल 5 मरीज ही सर्वाइवर बनते हैं. अलग अलग तरह के कैंसर में यह दर अलग अलग होती है.
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अब वैज्ञानिकों का काम नई श्रेणी HER2 को सही रूप से परिभाषित करना है ताकि सही मरीजों को यह इलाज मिल सके. विशेषज्ञों ने कहा कि इन मरीजों की करीब से निगरानी की जाएगी.
इस दवा का खर्च लगभग 14 हजार डॉलर यानी दस लाख रुपये महीना से भी ज्यादा होता है और इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं. इस दवा का एक साइडइफेक्ट फेफड़ों पर देखा गया. अध्ययन के दौरान तीन मरीजों की फेफड़ों के रोग से मौत हो गई. डॉक्टरों को सुनिश्चित करना होगा कि मरीज सांस की दिक्कत होने पर फौरन सूचित करें ताकि दवा को बंद किया जा सके और मरीजों को स्टेरॉयड दिए जा सकें.
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मरीजों के लिए भी नई है श्रेणी
इस अध्ययन के नतीजे रविवार को शिकागो में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी की सालाना बैठक में पेश किए गए. यह अध्ययन न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपा है. इस अध्ययन के लिए खर्च टोक्यो स्थित दाईची सांक्यो और ब्रिटेन स्थिति एस्ट्राजेनेका ने दिया था. इन दोनों कंपनियों ने मिलकर ही इस दवा को विकसित किया है.
विशेषज्ञों के मुताबिक मरीजों को यह दवा तब तक लेनी है जब तक कि उनके लिए इसके परिणाम असहनीय ना हो जाएं. अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता डॉ. शानू मोदी हैं जो न्यूयॉर्क के मेमॉरियल सलोन केटरिंग कैंसर सेंटर में काम करती हैं. मोदी बताती हैं कि बहुत से लोगों के लिए कैंसर की यह नई श्रेणी होगी. उन्होंने कहा, "बहुत से लोगों ने, जिनमें मरीज भी शामिल हैं HER2-low स्तन कैंसर के बारे में नहीं सुना होगा. अब हमारे पास एक ऐसी दवा है जो खास इस श्रेणी के लिए है और HER2 के कम स्तर को निशाना बना सकती है. यह दवा असल में HER2-low स्तन कैंसर को श्रेणीबद्ध करने में मददगार है. पहली बार इन मरीजों को श्रेणीबद्ध किया जा सकेगा.
वीके/सीके (एपी)
अपने स्तनों का ख्याल क्यों नहीं रखती महिलाएं
जीवन की शुरुआत यहीं से होती है. बच्चा पैदा होते ही सबसे पहले मां का दूध ही पीता है. फिर भी इन्हें उतनी अहमियत नहीं मिलती जितनी मिलनी चाहिए. स्तन पूरे शरीर की सेहत का संकेत दे सकते हैं.
तस्वीर: NDR
अचानक बढ़ोतरी
स्तनों के आकार में अचानक हुई बढ़त किसी समस्या का संकेत हो सकती है. हालांकि ऐसा प्रेग्नेंसी, गर्भनिरोधक दवाओं या हॉर्मोनल बदलावों से भी हो सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अचानक कमी
स्तन के आकार में अगर अचानक कमी होती है तो यह एस्ट्रोजन लेवल के घटने का संकेत हो सकता है.
तस्वीर: Colourbox/K.Dmitrii
एक्स्ट्रा लार्ज
कुछ अध्ययन लार्ज साइज ब्रा को कैंसर से जोड़कर देखते हैं. हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Hörhager
आकार में बदलाव
स्तनपान और उम्र बढ़ने की वजह से त्वचा में लचीलापन कम हो जाता है. इस वजह से आकार बदलता है.
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गांठ
स्तन में गांठ हर बार चिंताजनक नहीं होती. कई बार पीरियड्स के दौरान भी गांठ बन जाती है और इसमें दर्द भी हो सकता है. लेकिन सावधानी जरूरी है.
तस्वीर: Colourbox
बदन दर्द
कंधों में दर्द की बहुत सारी वजह हो सकती हैं लेकिन गलत साइज की ब्रा भी एक वजह है.
तस्वीर: Lars Zahner/colourbox
आयरन की कमी
अगर स्तनों में दर्द है तो यह आयरन की कमी का संकेत हो सकता है. 2004 में हुए एक अध्ययन ने दिखाया कि स्तनों में दर्द होने पर आयोडीन की मात्रा बढ़ाई गई तो आराम हुआ.
तस्वीर: Fotolia/S. Bähren
निपल्स का आकार
अगर निपल्स के आकार में अचानक बदलाव होता है तो डॉक्टर से तुरंत मिलना चाहिए. यह कैंसर का संकेत भी हो सकता है.