क्या सिकंदर की मूर्ति की स्थापना में जालसाजी की गई है?
२५ अगस्त २०२३
ग्रीस के संस्कृति मंत्रालय ने मई 2023 में प्राचीन वस्तुओं की वापसी पर खुशी जताई थी. इन प्राचीन वस्तुओं में सिकंदर महान की मूर्ति भी शामिल थी. लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह मूर्ति असली है? एक पड़ताल.
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ग्रीस के इस प्राचीन शासक की कांस्य प्रतिमा को सबसे पहले साल 2000 में स्टीफन लेहमैन ने जर्मन राज्य सैक्सोनी-एनहाल्ट के छोटे से शहर स्टेंडल स्थित विंकेलमान संग्रहालय में देखा था. लेहमैन एक पुरातत्वविद् हैं और उस समय हाले विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे. अब वो रिटायर हो चुके हैं. लेहमैन ऐसी संरक्षित प्राचीन कलाकृतियों पर शोध करने को लेकर काफी उत्सुक थे जिन्हें लेकर काफी हलचल रहती थी.
ऐसा कहा गया था कि सिकंदर महान की यह मूर्ति एक निजी संग्रहकर्ता से उधार ली गई थी. लेहमैन के लिए यह एक बात मायने रखती थी कि कहीं यह नकली तो नहीं है? उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं उस जगह पर था. मैंने इसे देखा और मुझे लगा कि यह बिल्कुल नकली है. इसके असली होने का तो सवाल ही नहीं उठता था.”
‘नकली' कलाकृतियों की सूची
ईसा से करीब 356 साल पहले जन्मे मैसेडोन के अलेक्जेंडर तृतीय को आमतौर पर अलेक्जेंडर महान या सिकंदर महानके नाम से जाना जाता है. वे प्राचीन ग्रीस राज्य के शासक थे. उन्होंने अपने शासन के अधिकांश वर्ष पूरे पश्चिमी एशिया और मिस्र में व्यापक सैन्य अभियानों में बिताए. 30 साल की उम्र तक, उन्होंने इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक का निर्माण कर लिया था जो ग्रीस से लेकर भारत तक फैला था.
मिस्र में निकला गड़ा हुआ खजाना
राजधानी काहिरा के पास सकारा में मिस्र की प्राचीन सभ्यता की कुछ निशानियां मिली हैं. पुरातत्ववेत्ताओं को कांसे की सैकड़ों प्राचीन मूर्तियां और कुछ ताबूत मिले हैं.
तस्वीर: Mohamed Abdel Hamid/AA/picture alliance
हजारों साल से सोये
सकारा आर्कियोलॉजिकल साइट पर सैकड़ों की संख्या में प्राचीन मूर्तियां मिली हैं. इस स्थल पर सन 2018 से खुदाई का काम चल रहा है और बीते सालों में भी कुछ चीजें सामने आई हैं.
तस्वीर: KHALED DESOUKI/AFP/Getty Images
ब्रॉन्ज यानि कॉपर और टिन की मिश्र धातु
यहां ब्रॉन्ज यानि कांसे की बनी करीब 150 कलाकृतियां मिली हैं जिनके 2,500 साल पुराने होने का अनुमान है. इस स्थल पर उसी काल के 250 प्राचीन ताबूत भी मिले हैं जिनमें ममी सुरक्षित रखी मिली हैं.
तस्वीर: Amr Nabil/AP/picture alliance
"सबसे बड़ी खेप"
तत्कालीन मिस्र की राजधानी मेमफिस के पास सकारा में नेक्रोपोलिस यानि कब्रगाह हुआ करती थी. मिस्र के पर्यटन मंत्रालय ने इसे "लेट पीरियड की पहली और सबसे बड़ी खेप" बताया है.
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देवी देवताओं की मूर्तियां
इसमें प्राचीन मिस्र के कई देवी देवताओं की मूर्तियां हैं. इनमें हाथ से पेंट किए गए लकड़ी के ताबूत भी हैं जिन्हें उस समय की मान्यता के अनुसार कई कीमती चीजों के साथ दफनाया गया था.
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प्राचीन पैपाइरस पर प्राचीन लिपी
खुदाई में मिले एक ताबूत के भीतर काफी संरक्षित प्राचीन पैपाइरस मिला है. इस पर प्राचीन लिपी में कुछ लिखा है जिसे विश्लेषण के लिए कायरो के इजिप्शियन म्यूजियम भेजा गया है.
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ग्रैंड इजिप्शियन म्यूजियम में ठिकाना
यहां के सभी ताबूतों को बाद में ग्रैंड इजिप्शियन म्यूजियम भेजा जाएगा. वहां फिलहाल निर्माण कार्य चल रहा है. यह गीजा की मीनारों के पास स्थित है और 2022 के अंत तक खुल जाएगा.
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लेहमैन ने मूल स्थल की जानकारी के लिए संग्रहालय की सूची में खोज की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने संग्रहालय से काफी पूछताछ की लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला. उन्होंने बार-बार ऐसा किया लेकिन हर बार असफल रहे. वो कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि संग्रहालय उस वक्त खुश नहीं होते जब उनके मुख्य हॉल में प्रदर्शित महत्वपूर्ण वस्तुओं पर सवाल उठाए जाते हैं.”
लेकिन इस सारी बातों ने लेहमैन को ये कहने से नहीं रोका कि ये मूर्ति नकली है. वो कहते रहे. लेहमैन चूंकि खुद एक पुरातत्वविद हैं इसलिए ऐसे संदिग्ध कार्यों के इतिहास को उजागर करना वो अपना कर्तव्य समझते हैं. उन्हें डर है कि एक दुर्लभ प्राचीन खोज जो कि असली नहीं है, वो संग्रहालय सूची में आ सकती है और इस तरह अकादमिक रूप से वैध हो सकती है.
इसीलिए 2015 में, उन्होंने कला के 36 प्राचीन कार्यों को सूचीबद्ध किया जिनके बारे में उनका मानना है कि ये नकली हैं. इनमें सिकंदर महान की यह कांस्य प्रतिमा भी शामिल थी. उन्होंने इस विषय पर हाले विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की और इसे नाम दिया- ‘लॉन्ग एगो इन स्टेंडल'.
कुशल जालसाजी
उन्होंने संग्रहालय पर ‘कपड़े धोने' की मशीन के रूप में दुरुपयोग करने की अनुमति देने का भी आरोप लगाया. विंकेलमान सोसाइटी ने तुरंत उन पर मानहानि का मुकदमा कर दिया. हालांकि, उस समय अदालत ने उस प्रश्न का समाधान नहीं किया जिसमें लेहमैन की वास्तव में रुचि थी. और वह प्रश्न था- क्या मूर्ति वास्तविक है?
लेकिन इसका समाधान करना लगभग असंभव ही होता, क्योंकि प्रदर्शनी के तुरंत बाद कांस्य प्रतिमा गायब हो गईऔर लंबे समय तक यही माना जाता रहा कि वह खो गई.
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लेहमैन का मानना था कि यह जालसाजी एक अंतरराष्ट्रीय कला डीलर माफिया की कारगुजारी है. इस तरह की किसी चीज का पता लगाने के लिए आपको दशकों के अनुभव बहुत सारे ज्ञान और अंतर्दृष्टि की जरूरत होती है.
लेहमैन के पास ये सारे कौशल मौजूद थे और इन सबका फायदा उन्हें तब हुआ जब एक स्विस कलेक्टर ने उन्हें सम्राट ऑगस्टस की कथित प्राचीन मूर्ति उनके पास जांच के लिए भेजी. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो स्वीकार करते हैं, "जब आप विवरण देखते हैं, तो आपको भी संदेह होता है कि क्या यह वास्तव में नकली है. यह जालसाजी इतनी कुशलता से की गई होती होती है कि आपको पता ही नहीं चलेगा.”
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आखिर जालसाज कौन था?
उन्होंने मूर्ति को कंप्यूटर टोमोग्राफी द्वारा स्कैन कराया था. जैसा कि कहा जाता है कि जालसाज प्राचीन सिक्कों को पिघलाकर उनसे नए टुकड़े बनाते हैं. सैद्धांतिक रूप से यह बिल्कुल धोखा है क्योंकि सामग्री वास्तव में 2,000 साल पुरानी है.
लेकिन ऑगस्टस का चित्रण जांच में खरा नहीं उतरा. कुछ मानदंड, जैसे कि क्षय होने की दर उसकी प्राचीनता से मेल नहीं खा रही थी. इसलिए यह साबित किया जा सकता है कि मूर्ति पुरानी नहीं है और हाल ही में बनाई गई थी.
लेहमैन को संदेह है कि यह प्रतिमा स्पैनिश मास्टर के नाम से मशहूर किसी व्यक्ति की जालसाजी वर्कशॉप की है जिसकी अभी तक पहचान नहीं की जा सकी है. यह व्यक्ति चाहे कोई भी हो, उसके यहां अक्सर प्राचीन शासकों की प्रतिमाएँ बनती हैं और उन्हें एक सुंदर आकार दिया जाता है. चेहरा तो इतना बेहतरीन बनाया जाता है मानो जादू हो. और निश्चित तौर पर, नकली सामान बनाने वाले ऐसी कलाकृतियां बनाते हैं जिनकी कला और पुरावशेषों के बाजार में इस समय मांग है.
कड़े संघर्ष से उभरी हैं कुमारटुली की महिला मूर्तिकार
दुर्गा पूजा के लिए दुर्गा की मूर्तियों को बनाने के काम से महिलाओं को पारंपरिक रूप से बाहर ही रखा गया है. लेकिन कोलकाता के कुमारटुली की महिला मूर्तिकारों ने कड़े संघर्ष के बाद इस क्षेत्र में अपने लिए जगह बना ही ली है.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
कुमारटुली की महिला मूर्तिकार
पितृसत्तात्मक समाज में कई पेशों की तरह मूर्तियां बनाने में भी पूरी तरह से पुरुषों का एकाधिकार था. लेकिन अब समय बदल रहा है. कोलकाता के कुमारटुली में कई महिला मूर्तिकारों ने लंबे संघर्ष के बाद अपने लिए जगह बना ली है. अब तो इन्हें कई पुरुष मूर्तिकारों से भी ज्यादा ख्याति हासिल कर ली है.
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पहली महिला मूर्तिकार
माना जाता है कि कुमारटुली की पहली महिला मूर्तिकार थीं कामक्षाबाला पाल. उन्होंने जो उदाहरण प्रस्तुत किया उससे दूसरी महिलाओं को भी हौसला मिला और वो भी आगे बढ़ीं. पाल अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा की शुरुआत ने एक नई कहानी की ही रचना कर दी.
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मिलिए मूर्तिकार माला से
माला के पिता एक मूर्तिकार थे और वो नहीं चाहते थे की घर की बेटी इस क्षेत्र में कदम रखे. लेकिन 1985 में उनकी मौत के बाद माला के बड़े भाई गोविंदा ने उन्हें प्रोत्साहित किया और फिर वो भी एक मूर्तिकार बन गईं.
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देश-विदेश में माला की मूर्तियां
आज माला पाल अपने आप में एक ब्रांड हैं. उनकी बनाई मूर्तियां देश के अंदर ही नहीं बल्कि कई यूरोपीय देशों तक में पहुंच चुकी हैं. माला को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. इस साल उनकी हाथों से बनाई दुर्गा की मूर्तियां स्विट्जरलैंड, यूक्रेन और दूसरे देशों में भेजी गई हैं.
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नए मूर्तिकारों को प्रशिक्षण
माला ने दिल्ली के हस्तशिल्प अकादमी से प्रशिक्षण भी हासिल किया है. अब वो मूर्तियां बनाने के अलावा अपनी कार्यशाला में भविष्य के मूर्तिकारों को प्रशिक्षण भी देती हैं.
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चिना पाल की ख्याति
कुमारटुली की चिना पाल आज एक मशहूर नाम हैं. वो पिछले कई सालों से मूर्तियां बना रही हैं. पिछले दो साल तो कोविड-19 महामारी की वजह से बेकार गए, लेकिन इस साल चिना और उनके साथियों के पास सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है.
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तोड़ दी जाती थीं उनकी मूर्तियां
चिना कहती हैं, "हमसे पिछली पीढ़ी की महिलाएं बस घरों के अंदर काम करती थीं. उस समय वो अपने पिताओं और अन्य पुरुष रिश्तेदारों की सहायिकाओं के रूप में काम करती थीं, लेकिन जब से मैंने अपनी अलग पहचान बनाना शुरू किया तब से मैं कई लोगों की आंखों में खटकने लगी. मेरी बनाई मूर्तियां अगर घर के बाहर रखी जाती थीं, तो अक्सर लोग उन्हें या तो तोड़ देते थे या उनमें आग लगा देते थे.
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10 साल की उम्र से
कांची पाल ठाकुर दादा द्वारा स्थापित परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं. उनके पति मूर्तिकार नहीं हैं बल्कि किसी और पेशे में हैं और काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं. लेकिन कांची 10 साल की उम्र से मूर्तियां बनाने के काम से जुड़ी हुई हैं और आज एक जानी मानी मूर्तिकार हैं.
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45 मूर्तियां
इस साल कांची पाल छोटी, बड़ी कुल 45 मूर्तियां बना रही हैं. काम इतना है कि उन्होंने दो महीने पहले ही ऑर्डर लेना बंद कर दिया था. कांची कहती हैं, "पिछले दो साल बर्बाद हो गए लेकिन इस साल मां ने दोनों हाथों से कमाने का मौका दिया है."
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माया पाल की कार्यशाला
माया पाल ने अपने पति की मृत्यु के बाद उनका मूर्तियां बनाने का व्यवसाय संभाला. उन्होंने अपने बेटे और तीन बेटियों के साथ मिल कर काम आगे बढ़ाया.
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बेटियां करती हैं मदद
बेटे की पुलिस में नौकरी लग जाने और बेटियों की शादी के बाद माया की जिम्मेदारियां बढ़ गईं. लेकिन पूजा के समय चूंकि काम काफी ज्यादा बढ़ा हुआ है, उनकी तीनों बेटियां नियमित रूप से उनके पास आती हैं और उनकी मदद करती हैं. तीनों बेटियां मूर्तियां बनाने में और विशेष रूप से आंखें बनाने में पारंगत हैं.
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पति की मृत्यु के बाद
काकोली पाल के पति की 2003 में मृत्यु हो जाने के बाद उन पर उनके दो बच्चों को अकेले पालने का बोझ आ पड़ा. ऐसे में उन्होंने घर के पेशे को ही चुना और मूर्तिकार बन गईं. आज उनकी दोनों बेटियां कॉलेज में पढ़ती हैं.
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22 मूर्तियां
काकोली को इस साल दुर्गा की 22 मूर्तियां बनाने के पैसे मिले हैं. हर साल उनकी छोटी से कार्यशाला में कोई न कोई प्रतिमा बन ही रही होती है. वो कहती हैं, "ऐसे ही चल रहा है."
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रोजगार का सृजन
मीनाक्षी पाल उत्तराधिकार के मोर्चे पर सबसे आगे हैं. वो अपने पिता की पांच कार्यशालाओं के साथ साथ अपने ससुर की एक कार्यशाला की भी मालिक हैं. इन छह कार्यशालाओं की बदौलत वो कई कारीगरों को रोजगार भी दे पाती हैं. वो कहती हैं, "अब पूरे साल काम की कोई कमी नहीं रहती."
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संघर्ष जारी है
इन सभी महिलाओं ने लंबी लड़ाई लड़ी है और इनका संघर्ष आज भी जारी है. कई लोग महिला मूर्तिकारों को स्वीकारते ही नहीं हैं. महिलाओं के लिए काम करने के लिए इनके कारीगरों को भी दूसरी लोग कड़वी बातें कह जाते हैं, जिस वजह से कुशल कारीगर मिलने में दिक्कत होती है. इसके बावजूद ये महिलाएं लड़ती जा रही हैं और आगे बढ़ती जा रही हैं. हो सकता है आने वाले दिनों में उन्हें देख कर और भी महिलाएं आगे आएंगी. (सुब्रता गोस्वामी)
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लेहमैन कहते हैं, "पुरातात्विक वस्तुओं के मूल्य के संबंध में, कांस्य प्रतिमाएं प्रीमियर श्रेणी में हैं. वे बहुत खास हैं और निश्चित रूप से वे सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं.”
लाभदायक व्यवसाय
मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट में कई साल क्यूरेटर रह चुके ऑस्कर व्हाइट मस्करेला कहते हैं कि जब भी इस तरह की कोई चीज सामने आती है, तो उसे खरीदने के इच्छुक लोगों की कोई कमी नहीं होती. वो कहते हैं, "हम पैसे की बात कर रहे हैं जो प्रमुख फैक्टर है. पैसा, पैसा और अधिक पैसा.”
मस्करेला ने डीलरों को कला दीर्घाओं और कला मेलों की तरह बाजार में नकली सामान लाते हुए देखा है. लेकिन उनके मुताबिक, मुख्य जगह नीलामी घर हैं. वो कहते हैं, "कई बार मुझे एहसास हुआ कि न सिर्फ डीलर ही बल्कि संग्रहकर्ता भी, नीलामी में अपनी नकली वस्तुएं बेच रहे थे.”
वो कहते हैं, "मैंने एक बार एक डीलर से इसके बारे में बात की तो वो सिर्फ मुस्कराकर रह गया. दरअसल, वे क्या करते हैं, वे अपने खुद के स्टोर में नकली सामान बेचने की बजाय, वे ऐसी वस्तुओं को झूठे नाम के साथ नीलामी के लिए रखते हैं और फिर कहते हैं कि यह प्राचीन कलाकृति आती है किसी पुराने संग्रह से आई है. ये जालसाज
लोग किसी काल्पनिक उद्गमस्थल, किसी काल्पनिक चीज की खोज कर लेते हैं. इस तरह, ये डीलर व्यक्तिगत रूप से खरीदारों के सामने नहीं आते हैं.”
ग्रीस में पुनर्स्थापना
सिकंदर महान की कांस्य प्रतिमा न्यूयॉर्क कला व्यापार से रॉबिन सिम्स की गैलरी से आती है. ब्रिटिश को प्राचीन वस्तुओं के अवैध व्यापार में प्रमुख व्यक्तियों में से एक माना जाता है और तब से वह छिप गया है। उनकी कंपनी को ख़त्म कर दिया गया और विभिन्न देशों में संग्रहीत कला वस्तुओं को जब्त कर लिया गया। इसलिए सिकंदर महान की कांस्य मूर्ति भी लूटी गई कला के रूप में पहचानी गई 351 वस्तुओं में से एक के रूप में ग्रीस वापस आ गई। अलेक्जेंडर "नंबर 11" है।
स्टीफ़न लेहमैन को इस मुद्दे के बारे में एक यूनानी सहकर्मी से पता चला, जिसने उन्हें एक तस्वीर के साथ एक अखबार की कतरन भेजी थी। "उन्होंने अभी लिखा, 'क्या यह हो सकता है?' और मैंने देखा और एक बक्सा देखा, और अंदर पैक किया गया था 'स्टैंडल से अलेक्जेंडर।' संलग्न पाठ में कहा गया है कि यह जिनेवा में अपराधी रॉबिन सिम्स के कला गोदाम से एक टुकड़ा था... और इसलिए यह फिर से प्रकट हुआ."
- सुजैन कॉर्ड्स, सौन्ये स्टॉर्म
सीवर में मिला रोमन राजा
बड़ी मजेदार कहानी है. रोम के एक राजा की आदमकद मूर्ति बड़े नाटकीय ढंग से खोजी गई. मूर्ति एक गटर की खुदाई में मिली.
तस्वीर: Guglielmo Mangiapane/REUTERS
सीवर में कैसे पहुंचा राजा?
रोम के एक राजा की मूर्ति गटर से मिली. प्राचीन रोम पहले राजमार्ग अपायन वे के नजदीक एक सीवर की मरम्मत का काम चल रहा था.
तस्वीर: Guglielmo Mangiapane/REUTERS
संगमरमर की मूर्ति
मरम्मत के लिए जब कुछ खुदाई की गई तो मजदूरों को कुछ अनोखा दिखाई दिया. यह सफेद था और चमक रहा था.
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किसकी थी मूर्ति?
थोड़ी सावधानी से खुदाई की गई तो पता चला कि यह एक मूर्ति है. पर यह मूर्ति किसकी है, उन लोगों को नहीं पता था तो विशेषज्ञ बुलाए गए.
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पहचान की कोशिश
पुरातत्वविद फ्रांचेस्का रोमाना पाओलियो बताती हैं कि उन्होंने पहले तो सफाई की और फिर मूर्ति के किरदार की पहचान की कोशिशें शुरू कर दीं.
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हर्क्युलिस का अंदाज
रोमन नायक हर्क्युलिस के अंदाज में लेटा हुआ यह शख्स हर्क्युलिस जैसा दिखना चाह रहा था लेकिन वो था नहीं.
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क्या यह डेसियस है?
उनका अंदाजा है कि यह मूर्ति डेसियस नामक राजा से मिलती-जुलती है, जिसने 249-215 एडी के दौरान रोम पर राज किया था.