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रिंग ऑफ फायर जहां सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं

२४ अप्रैल २०१९

रिंग ऑफ फायर की वजह से 2004 में भारत में सुनामी आई थी. इसमें 10,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. क्या है रिंग ऑफ फायर और इसके खतरे, आइए जानते हैं.

Philippinen Porac Rettungsarbeiten nach Erdbeben
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Marquez

भूकंप का सामान्य अर्थ धरती का हिलना होता है. इसका कारण पृथ्वी के अंदर मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स में होने वाली हलचल होती है. इन हलचलों के कारण प्राकृतिक और मानव जनित दोनों होते हैं. पृथ्वी पर सबसे ज्यादा भूकंप और ज्वालामुखी प्रभावित इलाके को वैज्ञानिकों ने रिंग ऑफ फायर का नाम दिया है. यह इलाका प्रशांत महासागर के क्षेत्र में आता है. दुनिया में आने वाले सभी भूकंपों के 90 प्रतिशत भूकंप इसी इलाके में आते हैं.

कितनी बड़ी है रिंग ऑफ फायर?

इस क्षेत्र में करीब 450 सक्रिय और शांत ज्वालामुखी मौजूद हैं. यह क्षेत्र एक अर्धवृत के आकार में है. इस क्षेत्र का विस्तार फिलीपींस सी प्लेट, प्रशांत प्लेट, यूआन दे फूका और कोकोस प्लेट और नाज्का प्लेट के बीच में है. इस इलाके में पृथ्वी के प्लेट टेक्टोनिक्स में बदलाव होता रहता है जिसके कारण इस इलाके में बहुत सी भूगर्भीय घटनाएं होती रहती हैं. इस क्षेत्र में इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंज, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन द्वीप, फिजी. मेलानेशिया, माइक्रोनेशिया और पोलेनेशिया के साथ उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी समुद्र तट आते हैं. इन जगहों पर हमेशा भूकंप का खतरा बना रहता है. हालांकि हर जगह पर भूकंप की तीव्रता अलग-अलग कारणों पर निर्भर रहती है. 

इस रिंग में इतने ज्वालामुखी क्यों हैं

ठोस और द्रवित चट्टानों के बीच में टेक्टोनिक प्लेट्स में हलचल होती रहती है. टेक्टोनिक प्लेट्स के इलाके को अर्थ मेंटल (पृथ्वी का कंठ) कहते हैं. यह पृथ्वी के अंदर मौजूद गर्म द्रवीय कोर और ऊपरी सतह क्रस्ट के बीच होती है. इसकी मोटाई करीब 2,900 किलोमीटर है. इस इलाके में बने अधिकतर ज्वालामुखी टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल के कारण ही बने हैं. इस इलाके में टेक्टोनिक प्लेट्स में सबसे ज्यादा हलचल होती रही है जिसके चलते यहां इतने ज्यादा ज्वालामुखी बन गए हैं. टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल निम्नस्खलन और अपरस्खलन दो तरह की होती है.

क्या होता है निम्नस्खलन?

निम्नस्खलन में एक टेक्टोनिक प्लेट दूसरी टेक्टोनिक प्लेट के नीचे घुस जाती है. इस हलचल की वजह से पृथ्वी में अंदर मौजूद खनिज पिघलने लगते हैं. ये पिघलकर मैग्मा बनाते हैं जिससे आगे ज्वालामुखी बनता है. जब एक ऊपर की एक ठंडी प्लेट नीचे की एक गर्म प्लेट के नीचे घुसती है तो वो गर्म होकर पिघल जाती है. यह मैग्मा बन जाती है. ये मैग्मा सतह पर आने की कोशिश करता है जिससे सतह पर ज्वालामुखी बन जाता है. अगर ऊपर की सतह पर समुद्र होता है तो इस मैग्मा से कई सारे ज्वालामुखीय द्वीप बन जाते हैं. मारियाना द्वीप इसका उदाहरण है.

रिंग ऑफ फायर में आए सबसे तेज भूकंप

सन 1900 के बाद आए भूकंपों में सबसे तेज 22 मई, 1960 को चिली में आया था. इसकी रिष्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 9.5 थी. इसके अलावा 1964 में अलास्का में 9.2, 2004 में उत्तरी सुमात्रा में आया 9.2 की तीव्रता से आया भूकंप जिससे भारत में सुनामी आई और 2011 में आया 9 की तीव्रता का भूकंप जिससे फुकुशिमा परमाणु प्लांट में तबाही मची थी, भी इसी रिंग ऑफ फायर में आए भूकंप हैं. इस इलाके में आने वाले अधिकतर भूकंपों की तीव्रता 8.5 से 9.5 के बीच होती है.

क्या इन भूकंपों का अनुमान लगाया जा सकता है?

इसका जवाब है नहीं. भूकंपों का अभी तक कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है. अगर दो भूकंप एक के बाद एक लगातार आएं तो भी इनका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. एक भूकंप का दूसरे भूकंप से संबंध हो ऐसा जरूरी नहीं है. भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि परमाणु बम के परीक्षण से गहरे समुद्र में तेल की खुदाई तक की सभी घटनाओं का भूगर्भ में असर होता है. लेकिन अब तक इसके कोई पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं.

फिलहाल ये रिंग ऑफ फायर लगातार सक्रिय है जिससे वैज्ञानिक चिंतित हैं. जब कोई भूकंप आता है तो ये चिंता कुछ समय के लिए कम होती है लेकिन बीतते समय के साथ बढ़ने लगती है. इस खतरे को टालने के लिए इस रिंग के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सावधान रहना चाहिए. उन्हें भूकंप प्रतिरोधी तकनीकों से अपने घर बनाने चाहिए. देशों को भी सुनामी जैसे खतरों की चुनौती से पार पाने के इंतजाम करके रखने चाहिए.

जु्ल्फिकार अब्बानी

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