भारत में अब गोद लेने के लिए कम बच्चे उपलब्ध हैं और इसकी वजह है बच्चों के ज्यादा अपहरण होना. सरकारी आंकड़े यह जानकारी दे रहे हैं.
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आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले मुल्क में इस वक्त गोद लेने के लिए सिर्फ 1700 बच्चे उपलब्ध हैं. और गोद लेने के इच्छुक परिवारों की संख्या 12,400 है. 2015-16 में कुल 3010 बच्चे गोद लिए गए.
गोद लेने के मामलों और प्रक्रिया पर नजर रखने वाले सरकारी अधिकारी इन आंकड़ों को सीधे तौर पर बच्चों के अपहरण की बढ़ती संख्या से जोड़ते हैं. पिछले दो महीने में ही देश में बच्चों की तस्करी करने वाले दो बड़े गिरोह पकड़े गए हैं. सेंट्रल अडॉप्शन रिसॉर्स अथॉरिटी (कारा) के प्रमुख दीपक कुमार कहते हैं कि गोद लेने के लिए उपलब्ध बच्चों की संख्या तो गोद लेना चाहने वाले परिवारों से ज्यादा होनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं. वह बताते हैं, "हम ऐसी उम्मीद तो करते हैं लेकिन गिरोह हैं और कई मामलों में एजेंसियां भी बेऔलाद माता-पिता को बच्चे बेच रही हैं."
देखिए, आज भी कहां कितने गुलाम हैं
2017 में कहां कितने गुलाम
दुनिया में दासता आज भी जारी है. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक आज भी तीन करोड़ 58 लाख आधुनिक गुलाम हैं. बीते एक साल में शीर्ष 10 देशों की कतार में कई नए देश शामिल हुए हैं. भारत यहां सबसे ऊपर दिखता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Hamed
नंबर 10, इंडोनेशिया
इंडोनेशिया में सात लाख से ज्यादा लोग गुलाम हैं. यह शीर्ष के 10 देशों में इसी साल शामिल हुआ है.
तस्वीर: AP
नंबर 9, डीआर कांगो
इस अफ्रीकी देश में एक साल के भीतर दासों की संख्या दोगुनी हो गई है अब यहां 8 लाख से ज्यादा गुलाम हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Kurokawa
नंबर 8, नाइजीरिया
यहां 8 लाख 75 हजार गुलाम हैं.
तस्वीर: Reuters
नंबर 7, रूस
दुनिया की ताकत बनने को लड़ते रूस में 10 लाख गुलाम हैं.
देश की 1.13 फीसदी आबादी यानी करीब 21 लाख 34 हजार लोग गुलाम हैं.
तस्वीर: DW/I. Jabeen
नंबर 2, चीन
दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में 33 लाख गुलाम हैं. आबादी के लिहाज से 0.247 फीसदी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/X. Congjun
नंबर 1, भारत
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एक करोड़ 83 लाख लोग गुलाम हैं. ये भारत की कुल आबादी का 1.4 फीसदी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Berehulak
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भारतीय कानून के मुताबिक एक कानूनी प्रक्रिया के बाद ही ऐसे बच्चों को गोद लेने लायक माना जाता है, जो उनके माता-पिता ने छोड़ दिए हों या फिर पुलिस को कहीं से मिले हों. गोद लेने के लिए बच्चों को उपलब्ध करवाने से पहले एक सख्त कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए. अगर कोई माता-पिता अपने बच्चे को गोद देना चाहते हैं तो उन्हें एक बार फैसला लेने के बाद अपने फैसले पर विचार के लिए 60 अतिरिक्त दिन दिए जाते हैं. प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए पिछले साल से इसे ऑनलाइन कर दिया गया है. अब इंतजार कर रहे बच्चे और परिवार दोनों की सूची वेबसाइट पर उपलब्ध है.
लेकिन कुमार कहते हैं कि कई बार बच्चे इन दलालों के हाथ पहले लग जाते हैं. दिसंबर महीने में ही मुंबई पुलिस ने एक गिरोह को पकड़ा जो अकेली मांओं को बच्चे गोद देने के लिए तैयार कर रहा था. पूरे देश में फैला यह गिरोह अकेली मांओं से बच्चे लेकर उन्हें बेऔलाद लोगों को बेच देता था. इसी तरह पश्चिम बंगाल में एक गिरोह पकड़ा गया जो अस्पतालों से नवजात शिशु चुराता था. इन चोरों को बच्चा होने के पहले ही पता चल जाता था क्योंकि अस्पताल का स्टाफ इनके साथ मिला हुआ था. स्टाफ के लोग बच्चे के परिजनों को बताते थे कि बच्चा स्वस्थ नहीं है इसलिए उसे संरक्षण के लिए रखा गया है. और तब चोर उन्हें चुरा लेते थे.
तस्वीरों में, सेक्स बस पैसे के लिए नहीं होता
सेक्स बस पैसे के लिए नहीं होता
मानव व्यापार किसी भी देश में हो सकता है. इसके पीड़ित किसी भी उम्र, लिंग और नस्ल के हो सकते हैं. कोई आपका अपना भी खरीदा या बेचा जा सकता है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने बताए पांच भ्रम जिन्हें दूर करना जरूरी है.
तस्वीर: DW/K. Gänsler
भ्रम 1
मानव व्यापार मतलब सेक्स के लिए खरीद बेच प्रॉस्टिट्यूशन में धकेलने के लिए इंसानों की खरीद-बेच होती है. लेकिन मानव व्यापार के और भी कई भयानक रूप हैं. मसलन, बेगार कराने के लिए बहुत बड़ी संख्या में इंसानों की खरीद-बिक्री होती है. मसाज पार्लर, मिठाई की दुकानों, किसानी, रेस्तरां और यहां तक कि घरेलू कामकाज के लिए भी ऐसा होता है.
तस्वीर: DW/A. Kriesch/J.-P. Scholz
भ्रम 2
मानव तस्करी और मानव व्यापार एक ही हैं दोनों में एक बड़ा फर्क है. तस्करी में इंसानों को छिपा कर या अवैध कागजात के आधार पर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है और वहां उन्हें बेचा जाता है. मानव व्यापार, जिसे ट्रैफिकिंग कहते हैं, पीड़ित के घर के आसपास भी हो सकता है. उन्हें वहां भी खरीदा या बेचा जा सकता है.
भ्रम 3
पीड़ित व्यापारियों को जिम्मेदार मानते हैं ऐसा नहीं है. बहुत से मामलों में तो मानव व्यापार के पीड़ित खुद को ही जिम्मेदार मानते हैं. वे कुछ ऐसा कहते हैं, जैसे कि मुझे ज्यादा समझ नहीं थी. मैं उसके साथ गया ही क्यों अथवा मैंने उसका भरोसा क्यों किया या मैं घर से क्यों भागा. यहां तक कि कई बार तो पीड़ित को पता ही नहीं होता कि उसकी हालत के लिए कोई और जिम्मेदार है.
तस्वीर: Sia Kambou/AFP/Getty Images
भ्रम 4
पीड़ित मदद चाहते हैं ना. हो सकता है कि पीड़ित कभी आपसे मदद न मांगें. कुछ पीड़ित तो कानून-व्यवस्था पर भरोसा ही नहीं करते. कुछ को लगता ही नहीं है कि वे पीड़ित हैं और उनका शोषण हो रहा है. शिकागो की लोयोला यूनिवर्सिटी में मानव व्यापार की एक्सपर्ट मेलिना हेली कहती हैं कि कई बार पीड़ितों को ड्रग्स का आदी बना दिया जाता है. फिर वे वही चाहते हैं.
तस्वीर: Bear Guerra
भ्रम 5
सेक्स ट्रैफिकिंग पैसे पर चलती है सेक्स ट्रैफिकिंग के लिए पैसे का लेन-देन हर बार नहीं होता. बहुत बार सेक्स के बदले ड्रग्स, अल्कोहल, रहने की जगह, खाने का सामान या जरूरत की और छोटी-मोटी चीजें भी दी जाती हैं. ड्रग्स के लिए सेक्स व्यापार तो ट्रैफिकिंग के सबसे बड़ी बीमारियों में से है.
तस्वीर: imago/EQ Images
5 तस्वीरें1 | 5
एक अडॉप्शन एजेंसी के मालिक बताते हैं कि अक्सर गोद लेने के इच्छुक परिवार उन्हें फोन करते हैं और कहते हैं कि एक बच्चा मिल रहा है, हमें खरीद लेना चाहिए क्या. हाल ही में महाराष्ट्र में दो एजेंसियों को बंद किया गया. ये एजेंसियां बच्चे बेच रही थीं और कीमत होती थी दो लाख से छह लाख रुपये तक.