बिहार में अपराध और दंबगई के मामले इन दिनों सुर्खियो में है. इलाज के अभाव में बलात्कार पीड़ित दलित बच्ची की मौत के बाद अब मामला एक बलात्कार पीड़ित के मददगार की पिटाई का है, जिसकी जान बड़ी मुश्किल से बची है.
बिहार में कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें अपराधियों ने पीड़ितों पर केस वापस लेने के लिए उन पर हमले किएतस्वीर: Gina Sanders - Fotolia.com
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गया में बीते दिनों बलात्कार के आरोपियों ने उस ग्रामीण चिकित्सक को एक पेड़ से बांध कर पीटा, जो पीड़िता के घर कथित तौर पर उसकी मां का इलाज करने पहुंचा था. उसे इतना पीटा गया कि वह लहुलूहान हो गया. गांव में कोई उसकी मदद करने नहीं आया. एक बच्ची ने डॉक्टर जीतेंद्र यादव को पिटते देखा तो भाग कर मुख्य सड़क पर पहुंची और संयोगवश वहां से गुजर रही की पुलिस की गाड़ी को रोक कर इसकी जानकारी दी.
पुलिस को देख बदमाश भाग गए. पुलिसकर्मियों ने उस डाक्टर को मुक्त कराया और फिर पास की क्लिनिक में ले जा कर इलाज कराया. बाद में उसे मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक बताया गया कि डॉक्टर जीतेंद्र जिस महिला के घर आया था, उस घर की एक बच्ची के साथ साल 2021 में उस गांव के ही तीन-चार लोगों ने बलात्कार किया था. मामला अदालत में है.
पीड़िता की मां का कहना है कि बलात्कार के आरोपी लगातार मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहे थे. इससे पहले भी मारपीट की थी. कुछ लोगों का कहना है कि आरोपियों को शक था कि डॉ जीतेंद्र मुकदमा लड़ने में पीड़िता की मां की मदद कर रहे हैं. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. उसके बाद इस मामले में एक जांच टीम गठित की गई है.
डॉक्टर को पीटे जाने के पहले ही मुजफ्फरपुर जिले में ही रेप के दो मामले को लेकर बिहार की सियासत गर्म थी. विपक्षी दल लगातार एनडीए सरकार पर निशाना साध रहे थे. दलित समुदाय की एक दस साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या की कोशिश की गई थी. इस बच्ची की छह दिनों बाद पटना मेडिकल कालेज अस्पताल में मौत हो गई. इसके इलाज मेें लापरवाही की बात को लेकर सरकार की खूब किरकिरी भी हुई. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर डॉक्टर की पिटाई का पोस्ट डालने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया.
भारत में आपराधिक मामलों में महिला नेता भी पीछे नहीं
भारत में महिला सांसदों और विधायकों पर आई एक नई रिपोर्ट दिखा रही है कि आपराधिक मामलों के मोर्चे पर महिला नेताओं का रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है. जानिए किस तरह की पृष्ठभूमि है भारत की महिला नेताओं की.
तस्वीर: India's Press Information Bureau/REUTERS
28 प्रतिशत महिला नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले
गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने लगभग सभी मौजूदा महिला सांसदों और विधायकों के हलफनामों के आधार पर बताया है कि इन कुल 512 महिला नेताओं में से 143 (28 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से 24 महिला नेता लोकसभा की सदस्य हैं, 37 राज्यसभा की सदस्य हैं और 109 विधायक हैं.
तस्वीर: AB Rauoof Ganie/DW
हत्या और हत्या की कोशिश के भी मामले
512 में से 78 (15 प्रतिशत) महिला नेताओं के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें 14 लोकसभा की सदस्य हैं, सात राज्यसभा की सदस्य हैं और 57 विधायक हैं. इनमें से तीन के खिलाफ हत्या के आरोप के मामले और 12 के खिलाफ हत्या की कोशिश के मामले दर्ज हैं.
तस्वीर: Sahiba Chawdhary/REUTERS
तेलंगाना में संख्या ज्यादा
सबसे ज्यादा गंभीर आपराधिक मामलों वाली महिला सांसद/विधायक तेलंगाना (42 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (38 प्रतिशत), गोवा (33 प्रतिशत), बिहार (26 प्रतिशत), मेघालय (25 प्रतिशत), पंजाब (21 प्रतिशत) और केरल (21 प्रतिशत) से हैं.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
टीडीपी और आप में संख्या ज्यादा
इनमें से सबसे ज्यादा महिला नेता टीडीपी (45 प्रतिशत), आप (31 प्रतिशत), कांग्रेस (20 प्रतिशत), एसपी (14 प्रतिशत), बीजेपी (11 प्रतिशत) और तृणमूल कांग्रेस (11 प्रतिशत) से हैं.
तस्वीर: Saqib Majeed/ZUMA Wire/imago images
अरबपति महिला नेता
कुल 512 महिला सांसदों/विधायकों में से 17 (तीन प्रतिशत) अरबपति हैं. इनमें छह लोकसभा की सदस्य हैं, तीन राज्यसभा सदस्य हैं और आठ विधायक हैं. इन 512 महिला नेताओं की कुल संपत्ति 10,417 करोड़ है. इनकी औसत सम्पत्ति 20.34 करोड़ है.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
तेलंगाना इसमें भी आगे
महिला नेताओं की सबसे ज्यादा औसत संपत्ति (74.22 करोड़) तेलंगाना में पाई गई. इसे बाद नंबर है दादरा और नगर हवेली और दमन और दिउ (71.44 करोड़) और हरियाणा (63.72 करोड़) का.
तस्वीर: Bhawika Chhabra/REUTERS
71 प्रतिशत हैं ग्रेजुएट
कुल 363 (71 प्रतिशत) महिला नेताओं ने ग्रेजुएशन या उससे आगे पढ़ाई की है. 125 (24 प्रतिशत) ने सिर्फ पांचवीं से बारहवीं क्लास तक पढ़ाई की है. 12 डिप्लोमा धारक हैं और 12 ने खुद को सिर्फ साक्षर बताया है.
तस्वीर: Mahesh Kumar A./picture alliance/AP
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अपराधी की ओर से केस वापस लेने का दबाव
सामाजिक कार्यकर्ता मनिता श्रीवास्तव कहती हैं, "बलात्कार करने वाले या उनके सहयोगियों ने जो अपराध किया वह तो है ही, लेकिन उस गांव में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो उन बदमाशों को रोक सकता था." पूरा गांव मूकदर्शक बना रहा.
कई बार पुलिस जब किसी को पकड़ने जाती है या फिर कथित तौर पर मनमानी करती है तब तो यही लोग एकजुट होकर उन पर हमला करने या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को छुड़ाने में लग जाते हैं.पुलिस ने इस मामले में दस नामजद लोगों में से तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. जीतेंद्र के बयान पर इस मामले में तीन महिलाएं भी नामजद की गई है.
दंबगई का यह पहला मामला नहीं है. बीते साल अगस्त में भी मुजफ्फरपुर कोर्ट परिसर में एक बलात्कार पीड़िता को ही मुकदमा वापस नहीं लेने पर सरेआम पीटा गया था. सड़क पर गिरी पीड़िता बचाने की गुहार लगाती रही, लेकिन पूरे परिसर में कोई उसे बचाने नहीं आया. उसके परिजन जब बचाने पहुंचे तो उनके साथ भी मारपीट की गई. पुलिस के आने के बाद ही हमलावर भागे.
इस मामले में आरोपी युवक ने शादी का झांसा देकर लड़की का यौन शोषण किया था और शादी का दबाव बनाने पर वह मुकर गया था. इस मामले में जमानत याचिका खारिज होने पर उसके घरवाले और दूसरे आरोपी केस उठाने का दबाव बना रहे थे.
पटना में एक दलित बच्ची ने बलात्कार के बाद इलाज के अभाव में दम तोड़ दियातस्वीर: Pappi Sharma/ANI Photo
आरोप कुछ और वास्तविकता कुछ
नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, "कई बार मामला जब सामने आता है तो आरोप बड़ा ही आश्चर्यजनक और गंभीर होता है, किंतु जांच के दौरान या बाद में स्थिति बिल्कुल उलट जाती है. किंतु तब तक सोशल मीडिया के इस दौर में सरकार और पुलिस-प्रशासन की भद्द पिट चुकी होती है. लोग उसे ही नजीर के तौर पर ले लेते हैं. इसलिए इन मामलों में धैर्य रखने की जरूरत है."
एक दिन पहले ही मुजफ्फरपुर में एक महिला ने पहले तो घर में घुसकर बलात्कार की कोशिश करने और विफल रहने पर तेजाब फेंकने का आरोप लगाया, लेकिन जब थाने में गंभीरता से पूछताछ की गई तो उसने बयान बदल दिया. बलात्कार की कोशिश का मामला पारिवारिक विवाद और लूटपाट में बदल गया.
मनिता कहती हैं, "गलत आरोप लगाने को किसी भी हाल में उचित नहीं ठहराया जा सकता. ऐसा करने वालों को भी दंडित किया जाना चाहिए. इसका खामियाजा भी आमजन को ही भुगतना पड़ता है. आज क्या स्थिति है, जब लोग पुलिस के पास लड़का या लड़की के लापता होने की शिकायत लेकर जाते हैं तो पुलिस इस प्रथमदृष्टया प्रेम प्रसंग का ही मामला मानती है. ऐसी धारणा आखिर कैसे और क्यों बनी."
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राजनीति में भी दबंगई
बिहार की राजनीति में भी दंबगई के मामले सामने आते रहते हैं. हाल में ही मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट प्रखंड मुख्यालय स्थित अंचल कार्यालय में आरजेडी विधायक निरंजन राय के भाई रंजीत राय ने जमकर हंगामा किया. बताया गया कि वे अपने किसी व्यक्ति का काम करने का दबाव डाटा ऑपरेटर अमित कुमार पर बना रहे थे और हंगामे के बाद भी जब सफल नहीं हुए तो डाटा इंट्री ऑपरेटर का लैपटॉप और डोंगल लेकर भाग निकले.
कहां हैं सबसे ज्यादा कैदी और भारत की रैंकिंग
अपराध और न्याय नीति अनुसंधान संस्थान (आईसीपीआर) की रिपोर्ट ‘वर्ल्ड प्रिजन ब्रीफ‘ के अनुसार, दुनिया के सबसे ज्यादा कैदी अल सल्वाडोर की जेलों में हैं. जहां कैदियों और आबादी के बीच अनुपात अधिक है, वे छोटे देश हैं.
तस्वीर: Anindito Mukherjee/dpa/picture alliance
अल सल्वाडोर (प्रति 100,000 निवासियों पर 1,086)
कैदियों की जनसंख्या दर में अल सल्वाडोर दुनिया में सबसे ऊपर है. यह आंकड़ा देश में गिरोहों की हिंसा और संगठित अपराध के मुद्दों की गंभीरता को दिखाता है, जिसके कारण कठोर कानूनी उपायों और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों की स्थिति पैदा हुई है. अपराध प्रबंधन में आ रही चुनौतियों और जेलों में अत्यधिक भीड़भाड़ की समस्याएं बनी हुई हैं.
तस्वीर: Edgar Romero/AP/picture alliance
क्यूबा (प्रति 100,000 निवासियों पर 794)
दूसरी सबसे अधिक जेल जनसंख्या दर क्यूबा में है. यह क्यूबा के सख्त कानूनों और सरकार के विरोध को नियंत्रित करने के लिए अपनाए जाने वाले कठोर उपायों का परिणाम हो सकता है. यह दर देश में राजनीतिक और सामाजिक तनावों का प्रतीक भी हो सकती है, जहां कानूनों का इस्तेमाल अक्सर विपक्ष को दबाने के लिए किया जाता है.
रवांडा की ऊंची जेल जनसंख्या दर आंशिक रूप से 1994 के नरसंहार की विरासत है, जिसमें अपराधियों को सजा देने के प्रयास जारी हैं. देश में कठोर कानूनों के कारण भी गिरफ्तारी की संख्या अधिक है.
तस्वीर: Moses Sawasawa/AP/picture alliance
तुर्कमेनिस्तान (प्रति 100,000 निवासियों पर 576)
तुर्कमेनिस्तान की ऊंची कैदी दर का संबंध इसके तानाशाही शासन से है, जो राजनीतिक दमन के लिए जेलों का प्रयोग करता है. असहमति के प्रति सरकार की असहिष्णुता और जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून का प्रयोग इस ऊंचे आंकड़े में भूमिका निभाता है.
तस्वीर: Stanislav Krasilnikov/TASS/picture alliance
अमेरिकन समोआ (प्रति 100,000 निवासियों पर 538)
अमेरिकी क्षेत्र होने के नाते, अमेरिकन समोआ की जेल जनसंख्या दर मुख्य भूमि जैसी ही समस्याओं का प्रतीक है. इसमें इसकी छोटी जनसंख्या के मुकाबले उच्च अपराध दर शामिल है. क्षेत्र की कानून और न्याय व्यवस्था भी अमेरिकी नीतियों से प्रभावित है और ऊंची जेल जनसंख्या दर में भूमिका निभाती है.
तस्वीर: AP
अमेरिका (प्रति 100,000 निवासियों पर 531)
अमेरिका बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एकमात्र अपवाद है, जहां जेल में बंद लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है. यह कठोर अपराध नीतियां, अनिवार्य सजा का कानून और नशीले पदार्थों के खिलाफ अभियान जैसे कई कारणों का परिणाम है. विकसित राष्ट्र होने के बावजूद अमेरिका में कैदियों की अधिक दर अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी अधिक है.
तस्वीर: Kate Brumback/AP Photo/picture alliance
पनामा (प्रति 100,000 निवासियों पर 522)
इस सूची में पनामा की उपस्थिति ड्रग तस्करी और संगठित अपराध से निपटने के उसके संघर्ष को दिखाती है, जिससे बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां होती हैं. देश की रणनीतिक स्थिति ड्रग तस्करों के लिए फायदे का काम करती है, जिससे उच्च अपराध और कैदी जनसंख्या दरों जैसी समस्याएं बढ़ती हैं.
तस्वीर: Daniel Becerril/REUTERS
टोंगा (प्रति 100,000 निवासियों पर 516)
टोंगा एक छोटा द्वीप राष्ट्र है. यहां कैदियों की संख्या काफी अधिक है. यह संभवतः न्याय और पुनर्वास के वैकल्पिक रूपों के लिए सीमित संसाधनों के कारण है. देश की कानूनी प्रणाली अपराध से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर सजा देने पर निर्भर हो सकती है, जिससे जेलों में भीड़भाड़ की समस्या पैदा होती है.
तस्वीर: Santiago Arcos/REUTERS
भारत (प्रति 100,000 निवासियों पर 41)
भारत की जेलों में हर एक लाख लोगों पर लगभग 41 कैदी हैं. बड़ी आबादी की तुलना में यह संख्या काफी कम है. हालांकि, भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए, कुल कैदियों की संख्या काफी बड़ी है और कुल संख्या के मामले में भारत सबसे अधिक कैदियों वाले देशों में शामिल है. न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी और बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों के कारण भारत में जेलों में भीड़भाड़ की समस्या बनी हुई है.
तस्वीर: Anindito Mukherjee/dpa/picture alliance
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एसएसपी सुशील कुमार का कहना था, "अंचल कार्यालय में विवाद हुआ था. जांच के बाद आवश्यक कार्रवाई की जाएगी." इससे पहले अप्रैल में भोजपुर जिले के जेडीयू नेता प्रिंस बजरंगी का एक वीडियो वायरल हुआ. इस वीडियो में वे आरा सदर अस्पताल में एक गार्ड के साथ मारपीट करते और उसे पिस्टल दिखाते नजर आ रहे थे. कहा गया कि वे किसी मित्र का इलाज कराने सदर अस्पताल पहुंचे थे, जहां अस्पताल में तैनात गार्ड रामस्वरुप से उनका विवाद हो गया था. रामस्वरुप ने स्थानीय थाने में एफआइआर भी कराई थी.
राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, "ऐसे मामले समाज में नजीर बन जाते हैं और लोगों का मनोबल बढ़ाते हैं. विधायक के भाई का लैपटॉप लेकर भागने को ही देखिए. अगर किसी आम आदमी ने ऐसा किया होता तो वह सरकारी संपत्ति छीनने के आरोप में तत्काल पकड़ लिया गया होता और शायद जेल भी भेज दिया जाता."