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समाज

भारत में बढ़ते सड़क हादसों पर अंकुश जरूरी

प्रभाकर मणि तिवारी
१० फ़रवरी २०२१

बीते लगभग एक साल से भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना और इस महामारी के चलते मरने वालों के आंकड़े सुर्खियों में हैं. लेकिन भारत में सड़क हादसों में होने वाली मौतें इस आंकड़े को भी पीछे छोड़ रही हैं.

Indien Verkehrsunfälle
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी माना है कि सड़क हादसे कोरोना महामारी से भी खतरनाक हैं. देश में रोजाना ऐसे हादसों में 415 लोगों की मौत हो जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्ष 2030 तक सड़क हादसों में मरने और घायल होने वालों की तादाद घटा कर आधी करने का लक्ष्य रखा है. नितिन गडकरी ने कहा है कि सरकार उससे पांच साल पहले यानी 2025 तक ही इस लक्ष्य तक पहुंचने की दिशा में ठोस पहल कर रही है.

गडकरी के मुताबिक, देश में हर साल साढ़े चार करोड़ सड़क हादसों में डेढ़ लाख लोगों की मौत हो जाती है और साढ़े चार लाख लोग घायल हो जाते हैं. उन्होंने ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए तमाम राज्यों को तमिलनाडु मॉडल अपनाने की सलाह दी है. वहां हादसों में 38 फीसदी और इनमें होने वाली मौतों में 54 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे हादसों में होने वाली मौतों की तादाद सरकारी आंकड़ों के मुकाबले ज्यादा है. दूर-दराज के इलाकों में होने वाले हादसों की अक्सर खबर ही नहीं मिलती.

लॉकडाउन के बाद बढ़े हादसे

बीते साल कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन के दौरान तमाम सड़क परिवहन ठप होने की वजह से हादसों में भारी कमी दर्ज की गई थी. लेकिन उसके बाद अनलॉक के दौरान इन हादसों में वृद्धि दर्ज की गई है. केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में देश में 4.49 लाख सड़क हादसे हुए थे. उनमें 4.51 लाख लोग घायल हुए और 1.51 लाख लोगों की मौत हो गई. इसमें कहा गया है कि देश में रोजाना 1,230 सड़क हादसे होते हैं जिनमें 414 लोगों की मौत हो जाती है.

इससे पहले अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन (आईआरएफ) की रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया भर में 12.5 लाख लोगों की प्रति वर्ष सड़क हादसों में मौत होती है. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया भर में वाहनों की कुल संख्या का महज तीन फीसदी हिस्सा भारत में है, लेकिन देश में होने वाले सड़क हादसों और इनमें जान गंवाने वालों के मामले में भारत की हिस्सेदारी 12.06 फीसदी है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 1.52 लाख लोगों की मौत हुई थी जबकि साल 2017 में यह आंकड़ा डेढ़ लाख लोगों का था. सड़क हादसों में मारे गए लोगों में से 54 फीसदी हिस्सा दुपहिया वाहन सवारों और पैदल चलने वालों का है. यानी नई सड़कों के निर्माण और ट्रैफिक नियमों के कड़ाई से पालन की तमाम कवायद के बावजूद इन आंकड़ों पर कोई अंतर नहीं पड़ा है.

कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में जो लॉकडाउन लगाया गया था उससे सड़क हादसों में लगभग बीस हजार लोगों की जान जाने से बचाई गई. अप्रैल से लेकर जून 2020 तक सड़क हादसों में 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई.

लगातार बढ़ते सड़क हादसों की वजह क्या है?

केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 67 फीसदी हादसे निर्धारित सीमा से तेज गति से चलने वाले वाहनों की वजह से होते हैं. 15 फीसदी हादसे बिना वैध लाइसेंस के गाड़ी चलाने वालों के कारण होते हैं. सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि करीब 10 फीसदी हादसे ओवरलोड वाहनों के कारण होते हैं और 15.5 फीसदी मामले हिट एंड रन के तौर पर दर्ज किए जाते हैं. इसके साथ ही करीब 26 फीसदी हादसे लापरवाही से वाहन चलाने या ओवरटेकिंग की वजह से होते हैं.

केंद्रीय मंत्री गड़करी का कहना है कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) की तकनीकी खामियां ही सड़क हादसों की सबसे प्रमुख वजह हैं. विभिन्न एजंसियों की ओर से तैयार की गई इन त्रुटिपूर्ण रिपोर्टों के चलते ज्यादातर हादसे ट्रैफिक चौराहों पर होते हैं. हालांकि सरकार का दावा है कि मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम के लागू होने के बाद सड़क हादसों में कुछ कमी दर्ज की गई है.

अंकुश के उपायमंत्री नितिन गडकरी का कहना है, "सरकार इन हादसों की तादाद घटा कर आधी करने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है. उच्चाधिकार सड़क सुरक्षा परिषद के पहले चेयरमैन की नियुक्ति एक सप्ताह के भीतर कर दी जाएगी.” उनका कहना है कि राज्य सरकारों को सड़क सुरक्षा चुस्त करने के लिए इंसेटिव देने की खातिर सरकार ने 14 हजार करोड़ का एक समर्थन कार्यक्रम शुरू किया है. इसमें से आधी रकम एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक की ओर से मिलेगी जबकि आधी केंद्र सरकार देगी.

मंत्री के मुताबिक सरकार देश के हाइवे नेटवर्क पर पांच हजार से ज्यादा उन जगहों की शिनाख्त का काम कर रही है जो हादसों के लिहाज से सबसे संवेदनशील हैं. उसके बाद जरूरी दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे. इसके साथ ही 40 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबे हाइवे की सुरक्षा जांच कराई जा रही है.

सरकारी दावे तो अपनी जगह हैं लेकिन सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हादसों पर अंकुश लगाने के लिए इनके अलावा भी बहुत कुछ करना जरूरी है. मिसाल के तौर पर सबसे पहले राज्य सरकारों के साथ मिल कर वाहन चालकों में जागरूकता पैदा करनी होगी. इसके साथ ही ट्रैफिक नियमों के कड़ाई से पालन के जरिए यह सुनिश्चित करना होगा कि तमाम वाहन निर्धारित गति से ही चलें. लोक निर्माण विभाग (सड़क) के एक पूर्व इंजीनियर संजय कुमार जायसवाल कहते हैं, "इस समस्या के कई पहलू हैं. इनमें लाइसेंस जारी करने से पहले तमाम मानकों की कड़ाई से जांच करना भी शामिल हैं. खासकर कोरोना महामारी के दौर में सार्वजनिक परिवहन कम होने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन की वजह से कारों व दोपहिया वाहनों की बिक्री तो बढ़ी है. लेकिन उस लिहाज से सड़कों का विस्तार नहीं हो सका है.”जायसवाल का कहना है कि विदेशों की तर्ज पर तमाम राज्यों में साइकिल की सवारी को बढ़ावा देने और इसके लिए अलग सुरक्षित लेन बनाना भी इस काम में काफी मददगार साबित हो सकता है.

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