रोहिंग्या मुसलमानों के कई गांवों का सफाया: मानवाधिकार समूह
२१ नवम्बर २०१६
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के कई गांवों को लगभग साफ कर दिया गया है. संगठन ने उपग्रह से मिली तस्वीरों के आधार पर यह बात कही है.
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इस बारे में मिल रही खबरों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि करना अभी संभव नहीं है क्योंकि प्रभावित इलाकों में पत्रकारों और सहायता संगठनों के लोगों के जाने पर कई तरह की पाबंदियां हैं. लेकिन ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि रोहिंग्या लोगों पर सेना की कार्रवाई के दौरान उनके 1,250 घरों को नष्ट किया गया है. बांग्लादेश की सीमा के नजदीक स्थित इस इलाके की उपग्रह से मिली तस्वीरों के आधार पर ये बात कही गई है.
इससे पहले म्यांमार की सरकार ने कहा था कि चरमपंथियों ने लगभग 300 घरों को तबाह कर दिया और "इसका मकसद सरकारी सैनिकों और आम लोगों के बीच अविश्वास के बीज बोना है."
रोहिंग्या: समुद्र पार मायूस उड़ान
घरबार छोड़कर भाग रहे म्यांमार के रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का दक्षिणपूर्वी देशों के तटीय क्षेत्र में डूबना जारी है. इन्हें समुद्री थपेड़ों में छोड़ने वाले मानव तस्करों से बचाने की अंतरराष्ट्रीय समुदाय कर रहा है अपील.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
आचेह में फंसे
ये बच्चे किसी तरह जिंदा बचाए गए. कई दिनों तक बिना भोजन के समुद्र में फंसे रहने के बाद 10 मई को करीब 600 लोगों को चार नावों पर सवार कर इंडोनेशियाई प्रांत आचेह पहुंचाया गया. लगभग इसी समय 1,000 से भी ज्यादा लोगों वाली तीन नावें उत्तरी मलेशिया के लंकावी रिजॉर्ट द्वीप पर पहुंची.
तस्वीर: Reuters/R. Bintang
थकान से टूटे
भूख, भीड़ और बीमारी से पीड़ित शरणार्थी अपनी लंबी कठोर यात्रा से थकने के बाद आराम कर रहे हैं. मानव तस्करी करने वाले इन यात्रियों के जहाज पर छोड़कर भाग गए. संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का मानना है कि राज्यविहीन रोहिंग्या लोग दुनिया मे सबसे ज्यादा सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक हैं.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
कहीं के नहीं
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की करीब 800,000 की आबादी को बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी माना जाता है. कई पीढ़ियों से वहां रहने के बावजूद उन्हें अब भी इस बौद्ध-प्रधान देश में भेदभाव और अत्याचार झेलने पड़ते हैं. यही कारण है कि म्यांमार के रोहिंग्या किसी भी तरह मलेशिया या इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम-प्रधान देश पहुंचना चाहते हैं.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
खतरनाक यात्रा
हर साल हजारों रोहिंग्या समुद्र के रास्ते बेहद कठिन परिस्थितियों में इस लंबी यात्रा की शुरुआत करते हैं. मानव तस्करी करने वाले इन्हें बेहद खराब नावों में ठूस ठूस कर मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में ले जाने की फीस लेते हैं. यूएन का अनुमान है कि इस साल पहली तिमाही में ही ऐसे करीब 25,000 लोगों ने मानव तस्करों की नावों से सफर किया.
तस्वीर: Asiapics
आधुनिक गुलामों का व्यापार
म्यांमार में भेदभाव से बचकर निकलने के लिए रोहिंग्या लोग आमतौर पर किसी एजेंट से संपर्क करते हैं. वह उन्हें बताता है कि लगभर 200 डॉलर की कीमत चुकाने पर उन्हें सीधे मलेशिया ले जाया जाएगा. पूरी यात्रा में उन्हें खाने, पानी, विश्राम की कोई जगह नहीं मिलती बल्कि कई बार तो पिटाई की जा जाती है हत्या भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Yulinnas
थाईलैंड का डर
कई रोहिंग्या लोग थाईलैंड पार करने के लिए तस्करों की सवारी लेने को मजबूर होते हैं. कई बार स्मगलर इन्हें बंदी बना लेते हैं और जंगल कैंपों में तब तक बंधक रखते हैं जब तक उनके घर वालों से फिरौती ना वसूल लें. थाई सरकार को हाल में ऐसी कई सामूहिक कब्रें मिलीं (तस्वीर) जिसके बाद से सरकार ने मानव तस्करों पर और कड़ा रवैया अपनाया है.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
प्रवासियों की बाढ़
पूरा दक्षिणपूर्व एशियाई क्षेत्र प्रवासियों की बड़ी तादाद झेल रहा है. लाखों लोग कई तरह की समस्याओं के शिकार होकर दूसरी जगहों का रुख कर रहे है. हाल के आंकड़े दिखाते हैं कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तस्करी के शिकार हुए लोगों की संख्या सवा करोड़ के पास पहुंच गई है.
ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया डायरेक्टर ब्रैड एड्म्स ने उपग्रह से मिली तस्वीरों को "खतरनाक" बताया है. सैटेलाइट सेंसरों से कई गांवों में आग लगाए जाने का भी पता चला है. उन्होंने कहा, "पांच रोहिंग्या गांवों में ये हमले चिंता का कारण है. म्यांमार की सरकार को जांच कर इसके लिए दोषी लोगों को सजा देनी चाहिए.”
म्यांमार में 11 लाख रोहिंग्या लोग हैं और इनमें से ज्यादातर पश्चिमी प्रांत रखाइन में ही रहते हैं. लेकिन म्यांमार ने इन लोगों को न तो अपनी नागरिकता दी है और न ही बुनियादी अधिकार. म्यांमार की सरकार इन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी मानती है और उन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरे के तौर पर देखा जाता है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि रोहिंग्या लोग दुनिया के सबसे सताए समुदायों में से एक हैं.
म्यांमार में दशकों के सैन्य शासन के बाद इस समय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची की सरकार है. सेना को नियंत्रित न करने के लिए उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है. देश में इस समय चुनी हुई सरकार है लेकिन समूची व्यवस्था में सेना का अब भी अच्छा खासा दखल है. रोहिंग्या लोगों के खिलाफ सेना की कार्रवाई पर भी सवाल उठते रहे हैं.