संभल की मस्जिद के बारे में पुरातत्व विभाग के दावों पर सवाल
५ दिसम्बर २०२४भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई संभल स्थित शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण मामले में अदालत में अपना जवाब दाखिल कर दिया है. एएसआई ने अपने हलफनामे में कहा है कि मस्जिद में कई तरह के अवैध निर्माण किए गए और नियमित तौर पर होने वाले निरीक्षणों के दौरान एएसआई की टीम को कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
एएसआई ने कोर्ट में जो हलफनामा दिया है उसके मुताबिक, संभल की जामा मस्जिद को साल 1920 में एक संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन उसके बाद से इसमें कई बदलाव किए गए हैं. एएसआई का यह भी कहना है कि इस दौरान मस्जिद के भीतर और बाहर जो भी अवैध निर्माण हुए हैं, उन सबके लिए मस्जिद कमेटी जिम्मेदार है. मस्जिद की देख-रेख का काम शाही जामा मस्जिद कमेटी ही करती है.
यही नहीं, एएसआई ने मुगलकालीन इस मस्जिद को संरक्षित विरासत संरचना बताते हुए उसका नियंत्रण व प्रबंधन सौंपने का भी अनुरोध किया है. एएसआई का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु शर्मा ने डीडब्ल्यू को बताया कि कोर्ट में दिए अपने जवाब में एएसआई ने यह भी कहा है कि सर्वेक्षण करने में उसे मस्जिद की प्रबंधन समिति और स्थानीय निवासियों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था.
विष्णु शर्मा के मुताबिक, "एएसआई ने अपने जवाब में 19 जनवरी 2018 की एक घटना का भी जिक्र किया है जब मस्जिद की सीढ़ियों पर मनमाने तरीके से स्टील की रेलिंग लगाने के लिए मस्जिद की प्रबंधन समिति के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. एएसआई ने यह चिंता भी जताई है कि मस्जिद के ढांचे में अनधिकृत परिवर्तन गैरकानूनी है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए.”
सर्वेक्षण के आदेश
पिछले महीने 19 नवंबर को स्थानीय अदालत ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट कमिश्नर को मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश दिए थे. उसी दिन सर्वेक्षण का काम हुआ भी लेकिन 24 नवंबर को जब सर्वेक्षण टीम दोबारा पहुंची तो बड़ी संख्या में मौजूद लोगों ने विरोध किया और इस दौरान हिंसा भड़क उठी जिसमें चार लोगों की मौत हो गई.
सर्वेक्षण का आदेश उस याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया था, जिसमें दावा किया गया है कि जिस जगह मस्जिद मौजूद है, कभी वहां हरिहर मंदिर हुआ करता था. 24 नवंबर को भड़की हिंसा की जांच के लिए सरकार ने तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता वाले इस आयोग में पूर्व आईएएस अधिकारी अमित मोहन प्रसाद और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार जैन अन्य सदस्य हैं. आयोग को दो महीने में जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया है.
इस बीच, संभल में दस दिसंबर तक धारा 163 लगा दी गई है और किसी भी बाहरी व्यक्ति के वहां जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. बुधवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सांसद प्रियंका गांधी को दिल्ली सीमा पर ही रोक दिया गया जिस वजह से करीब तीन घंटे तक यूपी-दिल्ली सीमा पर लंबा जाम लग गया.
एएसआई पर सवाल
वहीं एएसआई के हलफनामे को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं कि जब अवैध निर्माण की जानकारी थी तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? हालांकि एएसआई ने कार्रवाई का भी जिक्र किया है और मस्जिद प्रबंधन कमेटी के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर का भी जिक्र किया है लेकिन एएसआई के अधिकारियों का यह भी कहना है कि कई बार ऐसे मामलों में एएसआई के हाथ तब बंधे होते हैं जब अवैध अतिक्रमणों को सरकारी संरक्षण मिलता है.
आर्कियोलॉजिस्ट देव प्रकाश शर्मा नई दिल्ली के नेशनल म्यूजियम के अलावा बीएचयू म्यूजियम के डायरेक्टर भी रहे हैं. एएसआई की कार्यशैली के बारे में कहते हैं कि सर्वे का काम कोर्ट के आदेश पर होना अलग बात है लेकिन अतिक्रमण के मामले में कई बार उसके सामने अलग दिक्कतें आती हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "कई बार प्रशासन की निष्क्रियता और दखलंदाजी भी इसके लिए जिम्मेदार होती है. वैसे एएसआई संरक्षित स्मारकों के सौ मीटर के भीतर कोई अतिक्रमण नहीं हो सकता लेकिन कई बार राज्य सरकारों की निष्क्रियता से ऐसा हो जाता है.”
संभल के बारे में एएसआई का कहना है कि उनकी टीम को लंबे समय से मस्जिद के अंदर जाने से रोका जाता रहा है, ऐसे में मस्जिद के भीतर उसका मौजूदा स्वरूप कैसा है, इसकी उसे जानकारी भी नहीं है. हालांकि मस्जिद कमेटी इन बातों से इनकार कर रही है. मस्जिद कमेटी के वकील कासिम जमाल कहते हैं कि एएसआई वाले अक्सर जांच के लिए आते हैं और जांच करके चले जाते हैं.
विवादों में एएसआई की भूमिका
पिछले कुछ समय से कई ऐतिहासिक इमारतों, खासकर मस्जिदों और दरगाहों को लेकर याचिकाएं अदालतों में गईं जहां अदालतों ने उन्हें स्वीकार करते हुए उनके सर्वेक्षण के आदेश दिए. कई मामले अभी अदालतों में लंबित भी हैं जिनमें मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि से लगे ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण का मामला भी है. इससे पहले काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर से लगी ज्ञानवापी मस्जिद का भी अदालत के आदेश से सर्वेक्षण हुआ था.
यहां तक कि अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में भी एएसआई ने सर्वेक्षण किया था और खोदाई भी की थी जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी. संवैधानिक पीठ ने कहा था कि ‘एएसआई के मुताबिक, ढहाए गए ढांचे के नीचे इस्लामी ढांचा नहीं था बल्कि प्राचीन मंदिर था, लेकिन एएसआई यह तथ्य स्थापित नहीं कर पाया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई.'
ऐतिहासिक और विवादित स्थलों की खोदाई के संदर्भ में आर्कियोलॉजिस्ट देव प्रकाश शर्मा कहते हैं इन विवादों में एएसआई की कोई भूमिका नहीं होती. उनके मुताबिक, "एएसआई तो अपना काम करता है, जो वस्तुस्थिति होती है उसका वैज्ञानिक तरीके से पता लगता है. एएसआई की जवाबदेही होती है. अत्यंत वैज्ञानिक तरीके से काम होता है.”
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हालांकि लगातार विवादित स्थलों के सर्वे के मामले में उनका कहना है कि जिस ऐतिहासिक विरासत को भारत के लोग जी रहे हैं, उसके भीतर इस तरह हम जाने लगे तो उसकी कोई सीमा नहीं होगी. वो कहते हैं, "यह चीज ठीक नहीं है. इतिहास के विभिन्न युगों में हम सेक्युलर रहे हों या न रहे हों लेकिन इतना तो है कि अलग-अलग राजवंशों के समय में भी अलग-अलग धर्मों और संप्रदायों के लोग एडजस्ट करके चल रहे थे, अंग्रेजों के समय में भी ऐसा रहा और आज भी वैसा ही होना चाहिए. यदि हम गड़े मुर्दे उखाड़ने लगे तो इसकी कोई सीमा नहीं जहां जाकर यह सिलसिला रुक जाए.”
इतिहासकार और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी भी कहते हैं कि एएसआई का काम वैज्ञानिक तरीके से होता है और उन्हें कोई निर्देशित नहीं कर सकता. प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी के मुताबिक, "एएसआई का कामकाज बहुत ही ईमानदारी से होता है. वैज्ञानिक तरीके से ऊपर से नीचे की तरफ खोदाई होती है, हर चीज की वीडियोग्राफी होती है और इसके जरिए वो वस्तुस्थिति को दिखाते हैं. सर्वे और खोदाई में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाता है. हर खोदाई की रिपोर्टिंग होती है, न सिर्फ भारत में बल्कि इंटरनेशनल आर्कियोलॉजिकल सोसायटी में भी उनकी जवाबदेही होती है.”