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पश्चिम बंगाल में क्यों कड़ी चुनौती है एसआईआर

प्रभाकर मणि तिवारी
४ नवम्बर २०२५

भारत में मतदाता सूची के एसआईआर यानी विशेष गहन पुनरीक्षण के दूसरे दौर में पश्चिम बंगाल सबसे बड़ी चुनौती है. ममता बनर्जी सरकार जहां इसके विरोध में सड़कों पर उतर आई है, वहीं बीजेपी भी जवाबी रणनीति के साथ तैयार है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एसआईआर के विरोध में मंगलवार को कोलकाता में रैली निकाली
ममता बनर्जी की पार्टी ने एसआईआर की प्रक्रिया जारी रहने के दौरान पूरे राज्य में ऐसी रैलियां निकालने की योजना बनाई हैतस्वीर: Prabhakar/DW

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एसआईआर के विरोध में मंगलवार को कोलकाता में रैली निकाली. आज से ही एसआईआर की शुरुआत होनी है. पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी के अलावा तमाम सांसद, विधायक और बड़े नेताओं ने भी उस रैली में हिस्सा लिया. पार्टी ने एसआईआर की प्रक्रिया जारी रहने के दौरान पूरे राज्य में ऐसी रैलियां निकालने की योजना बनाई है.

तृणमूल कांग्रेस की इस रैली के जवाब में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी भी उत्तर 24-परगना जिले के आगरपाड़ा एक रैली निकाली.

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पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी अरिंदम नियोगी के मुताबिक, राज्य के 294 विधानसभा क्षेत्रों में कुल 7.6 करोड़ वोटर हैं, इनमें से 2.4 करोड़ वोटरों के नाम का मिलान वर्ष 2002 की सूची से कर लिया गया है. यानी इन करीब 32 फीसदी वोटरों को फार्म के साथ कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. यहां एसआईआर के लिए 80 हजार बूथ लेवल आफिसर्स (बीएलओ) नियुक्त किए गए हैं.

आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज

एसआईआर के एलान के साथ ही राज्य में आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार तेज हो रहा है.सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने चेताया है कि अगर एक भी वैध वोटर का नाम मतदाता सूची से कटा तो पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से इसका कड़ा विरोध करेगी. दूसरी ओर, बीजेपी ने कहा है कि पार्टी को अपने 'अवैध बांग्लादेशी वोटबैंक' के हाथ से निकलने की आशंका है.

तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने डीडब्ल्यू से कहा, "पार्टी मतदाता सूची में पारदर्शिता की पक्षधर रही है. लेकिन किसी भी वैध वोटर का नाम इस सूची से नहीं काटा जाना चाहिए. हम ऐसी किसी कार्रवाई का कड़ा विरोध करेंगे."

उधर, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस वोट बैंक हाथ से निकलने के डर से ही एसआईआर का विरोध कर रही है. उसे मालूम है कि इस कवायद से मतदाता सूची में शामिल अवैध बांग्लादेशी लोगों के नाम हट जाएंगे. वह तृणमूल का मजबूत वोट बैंक रहा है."

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सीपीएम के सचिव मोहम्मद सलीम ने डीडब्ल्यू से कहा, "एसआईआर में पारदर्शिता बरतते हुए सही मतदाता सूची प्रकाशित होनी चाहिए." उनका सवाल है कि जनसंख्या की गिनती के बिना ही बीजेपी के प्रदेश और केंद्रीय नेता कैसे इस बात का दावा कर रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची से एक करोड़ नाम हटाए जाएंगे?

डिजिटल योद्धा और वार रूम

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने 'आमी बांग्लार डिजिटल योद्धा' यानी 'मैं बंगाल का डिजिटल योद्धा हूं' कार्यक्रम शुरू किया है तो इसके मुकाबले बीजेपी ने डिजिटल सेना तैयार करने के लिए 'नमो युवा योद्धा' कार्यक्रम शुरू करने का एलान किया है.

तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताते हैं, "पार्टी की योजना हर बूथ पर कम से कम 10 डिजिटल योद्धाओं को तैनात करने की है. इसके जरिए जहां एसआईआर के दौरान किसी गड़बड़ी का मुकाबला किया जा सकेगा वहीं अगले साल होने वाले चुनाव से पहले भारी तादाद में युवाओं को पार्टी से जोड़ा जा सकेगा."

सांसद अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ पार्टी ने राज्य में एसआईआर की प्रक्रिया की निगरानी के लिए सभी 294 विधानसभा क्षेत्रों में 'वॉर रूम' खोलने का भी फैसला किया है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इनकी निगरानी इलाके के विधायक के जिम्मे होगी. जहां पार्टी के विधायक नहीं हैं वहां इसका जिम्मा ब्लॉक अध्यक्ष के पास रहेगा. हर वॉर रूम में लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन के साथ ही तकनीकी पहलुओं की देख-रेख और डेटा प्रबंधन के लिए कम से कम पांच ऐसे वॉलंटियर रहेंगे जो तकनीकी रूप से दक्ष हों.

तृणमूल कांग्रेस ने चूंकि पहले ही डिजिटल योद्धाओं की सेना तैयार करने का एलान कर दिया था. ऐसे में 'नमो युवा योद्धा' को बीजेपी की जवाबी रणनीति माना जा रहा है. लेकिन बीजेपी के नेता इससे सहमत नहीं हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शमीक भट्टाचार्य डीडब्ल्यू से कहते हैं, "आगामी विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के 'भ्रष्टाचार' का मुकाबला करने और 'विकसित बंगाल' गढ़ने के मकसद से ही यह पहल की गई है." पार्टी ने इसके लिए एक वेबसाइट शुरू की है. उसकी मदद से कोई भी अपना नाम पंजीकृत करा सकता है. इसके अलावा एक टोल फ्री नंबर भी जारी किया है. इस पर मिस्ड कॉल देकर भी इस सेना का हिस्सा बना जा सकता है.

पलायन की होड़

एसआईआर के एलान के बाद से बंगाल के सीमावर्ती इलाके में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों में स्वदेश पलायन की होड़ मच गई है.  उत्तर 24-परगना से लगी बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ के एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि बीते करीब एक सप्ताह से पहिया उल्टा घूमने लगा है. पहले सीमा पार कर भारत में घुसने के प्रयास के दौरान बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार होते थे. लेकिन अब यहां से वापसी के दौरान पकड़े जा रहे हैं. बीते पांच दिनों के दौरान पूरे राज्य में गिरफ्तार लोगों की तादाद दो सौ तक पहुंच गई है.

यहां इस बात जिक्र प्रासंगिक है कि सीमा पार से घुसपैठ बीजेपी का सबसे प्रमुख मुद्दा रहा है. वह लगातार तृणमूल कांग्रेस पर घुसपैठ को बढ़ावा देने और ऐसे लोगों के नाम मतदाता सूची में शामिल करने के आरोप लगाती रही है. पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा का आरोप है कि एसआईआर के दौरान पकड़े जाने के डर से ही अवैध रूप से आने वाले बांग्लादेशियों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया है.

लेकिन तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सीमा की सुरक्षा का जिम्मा बीएसएफ का है और वह गृह मंत्रालय के अधीन है. आखिर इतने लोग सीमा पार कर बंगाल में कैसे पहुंचे? इसका जवाब तो बीएसएफ और केंद्र सरकार को देना चाहिए." उनका दावा है कि राज्य की मतदाता सूची में किसी भी अवैध वोटर का नाम शामिल नहीं है. घोष का आरोप है कि केंद्र सरकार और बीजेपी ने एसआईआर की आड़ में वैध वोटरों के नाम सूची से हटाने की योजना बनाई है. लेकिन तृणमूल कांग्रेस उनको इस मंसूबे में कामयाब नहीं होने देगी. लोकतांत्रिक तरीके से इसका मुकाबला किया जाएगा.

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बीएलओ को सुरक्षा की मांग

इस बीच, बूथ लेवल आफिसर्स (बीओएलओ) ने इस कवायद के दौरान हिंसा की आशंका जताते हुए मुख्य चुनाव अधिकारी से पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की है. राज्य में 80,681 बीएलओ हैं. लेकिन इनमें से करीब एक हजार ने पहले ही एसआईआर में शामिल होने से इंकार कर दिया है. चुनाव आयोग ने उन सबको कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

'इलेक्शन स्टाफ एंड बीएलओ यूनाइटेड फोरम' की ओर से मुख्य चुनाव अधिकारी को सौंपे गए ज्ञापन में सुरक्षा पर चिंता जताई गई है. संगठन के महासचिव स्वपन मंडल ने डीडब्ल्यू को बताया,"फील्ड में काम करने वाले ज्यादातर बीएलओ डरे हुए हैं. उनको लगातार धमकियां मिल रही हैं और कई जगह उनके साथ हाथापाई की भी खबरें मिली हैं.ऐसे में उनकी सुरक्षा हमारी सबसे पहली प्राथमिकता है."

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सत्तारूढ़ पार्टी के कड़े विरोध और उसे बीजेपी की ओर से मिलने वाली कड़ी चुनौती के कारण राज्य में एसआईआर का शांतिपूर्ण पूरा करना चुनाव आयोग के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "बिहार या दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां जमीनी परिस्थिति अलग है. यहां सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी शुरू से ही इस प्रक्रिया का कड़ा विरोध कर रही है और अब वह सड़कों पर उतर आई है. तमिलनाडु ने इस कवायद के खिलाफ अदालत में जाने का फैसला भले किया है, बंगाल में चुनौती सबसे कठिन है."

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