छोटे से उपाय से घट सकता है 30 करोड़ कारों के बराबर उत्सर्जन
४ अक्टूबर २०२२
वैज्ञानिकों का कहना है कि कचरे के निपटारे का तरीका बदलकर समुदाय और देश अपना मीथेन उत्सर्जन कम कर सकते हैं. इसी हफ्ते प्रकाशित एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा है कि बहुत मामूली से उपायों से भी बड़ा अंतर लाया जा सकता है.
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ग्लोबल अलायंस फॉर इनसिनरेटर ऑल्टरनेटिव्स (GAIA) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन कम करने में कचरे का निवारण बड़ी भूमिका निभा सकता है. सोमवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया कि हमारे सामने मुंह बाए खड़े जलवायु परिवर्तनके संकट से निपटने में कचरे से खाद बनाने जैसे मामूली दिखने वाले उपाय भी बहुत काम के हो सकते हैं.
दुनियाभर की सरकारों ने मीथेन उत्सर्जन कम करने का प्रण लिया है. मीथेन को कार्बन डाई ऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह कम समय में कार्बन डाई ऑक्साइड से 80 गुना ज्यादा सौर रेडिएशन सोखती है. मीथेन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के सबसे बड़े मानवीय स्रोतों में मवेशी और कचरे का निपटारा शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के मुताबिक इन गतिविधियों से कुल उत्सर्जन का 30 प्रतिशत हिस्सा आता है. उसके बाद तेल और गैस उद्योगों का नंबर है जो 19 फीसदी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं. कचरे के ढेरों यानी लैंडफिल्स का योगदान 17 प्रतिशत है.
30 करोड़ कारों बराबर उत्सर्जन
जीएआईए की रिपोर्ट कहती है कि खासकर शहरों में कचरे के निपटारे में मामूली बदलाव कर उत्सर्जन में भरी कमी लाई जा सकती है जो सालाना 30 करोड़ कारों द्वारा होने वाले उत्सर्जन के बराबर होगी. इस रिपोर्ट के लेखकों ने ‘जीरो वेस्ट' जैसी रणनीतियों का अध्ययन किया. इनमें ऑर्गैनिक, रीसाइकलयोग्य और अन्य कचरे को अलग-अलग करने जैसे तरीके शामिल हैं.
प्लास्टिक कचरे से ढक गया पानी
पानी के ऊपर रंग बिरंगी प्लास्टिक की एक चादर जैसी बिछ गयी है. जहां तक नजर जाये प्लास्टिक ही प्लास्टिक दिखता है जो कचरे के साथ बह कर आया है. यह नजारा अल सल्वाडोर की लेक सुचितलान का है.
तस्वीर: MARVIN RECINOS/AFP
हर तरह की प्लास्टिक
गैस वाली ड्रिंक की बोतलें, दवाइयों के पैकेट, टूटी चप्पलें हर तरह के प्लास्टिक का कचरा आपको 13,500 हेक्टेयर में फैली झील की सतह पर नजर आ रहा है. यह झील एक बिजलीघर के लिये पानी के भंडार के रूप में काम करती है और यूनेस्को इसे अंतरराष्ट्रीय रूप से अहम दर्जा देता है.
तस्वीर: CAMILO FREEDMAN/AFP
मछलियों को गहराई में धकेला
यह झील देश में ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है. स्थानीय मछुआरों का कहना है कि इस प्रदूषण ने तिलापिया और सिचिल्ड मछलियों को झील की बहुत गहराई में धकेल दिया है. इतनी गगहराई तक मछलियों के जाल भी नहीं पहुंच सकते.
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मछुआरों का काम बंद
कई महीनों से मछुआरों को मछलियां नहीं मिल रही हैं तो अब उनमें से कुछ ने सैलानियों को झील की सैर कराने का काम शुरू कर दिया है. आखिर पेट पालने के लिये कुछ तो सहारा चाहिये. हालांकि झील की ऐसी हालत देख करक सैलानियों का आना भी कम हो गया है.
तस्वीर: MARVIN RECINOS/AFP
जलकौवों का बसेरा
झील से रोजी चलाने में मछुआरों को यहां रह रहे 15 लाख से ज्यादा जलकौवों से भी मुकाबला करना पड़ता है जो यहां आये तो थे प्रवासी के रूप में लेकिन अब यहीं के हो कर रह गये हैं. ये जलकौवे भी झील की मछलियां खा जाते हैं और स्थानीय लोगों के लिये किसी मुसीबत से कम नहीं.
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झील के जीवों की मुश्किलें
कचरे के इस ढेर के बीच से बत्तख अपना रास्ता बनाते हुए तैरते हैं, छोटे छोटे कछुवे इन्हीं प्लास्टिक की बोतलों पर बैठ कर धूप सेंकते हैं और दुबले पतले घोड़े इसी झील का गंदा पानी पीकर अपनी सेहत बिगाड़ते हैं.
तस्वीर: MARVIN RECINOS/AFP
झील की सफाई
झील की देखभाल के लिये जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन ने दर्जनों लोगों को झील साफ करने के काम पर लगाया है. ये लोग हाथों से प्लास्टिक का कचरा निकाल रहे हैं. कुछ स्थानीय लोग भी इनकी मदद के लिये आये हैं लेकिन इन लोगों का कहना है कि इस काम में 3-4 महीने लग जायेंगे.
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एक दिन में 4200 टन कचरा
पर्यावरण मंत्री फर्नांडो लोपेज का कहना है कि देश में हर दिन 4200 टन कचरा पैदा होता है इनमें से करीब 1200 टन नदियों, समुद्र तटों और गलियों में फैल जाता है.
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सबसे बुरा हाल होंडुरास का
यह तकलीफदेह नजारा होंडुरास के कैरेबियाई समुद्रतटों के लिये आम बात हो गई है. करीब 200 किलोमीटर लंबा समुद्रतट खूबसूरत वनस्पतियों और खजूर के पेड़ों से घिरा है लेकिन अब कई जगहों पर रेत की जगह सिर्फ प्लास्टिक कचरा दिखता है.
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पड़ोसी देश का कचरा
होंडुरास में हजारों टन कचरा बह कर पड़ोसी देश ग्वाटेमाला की नदियों से आता है. स्थानीय प्रशासन और पर्यावरण कार्यकर्ता इसे लेकर विरोध जता रहे हैं और दोनों देशों के बीच यह तनाव का कारण भी बन रहा है. हर साल लास वकास नदी से करीब 20,000 टन प्लास्टिक का कचरा बह कर आता है.
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समुद्र में 1.1 करोड़ मीट्रिक टन कचरा
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम का कहना है कि हर साल समुद्रों में 1.1 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा पहुंच रहा है. अगले 20 वर्षों में इसके बढ़ कर तीन गुना हो जाने की आशंका जताई गई है. आने वाले दिनों में यह समस्या कई और जगह विकराल रूप में सामने आयेगी.
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शोधकर्ता कहते हैं कि इन तरीकों से कचरे के निवारण की पूरी व्यवस्था में से मीथेन कम नहीं होगी लेकिन इन नीतियों से मानवीय कारणों से मीथेन के उत्सर्जन में 13 फीसदी की कमी लाई जा सकती है. रिपोर्ट कहती है कि कचरा कम करने ना सिर्फ मीथेन घटेगी बल्कि निर्माण, यातायात और चीजों के उपभोग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी.
जीएआईए के नील टांगरी कहते हैं, "बेहतर कचरा निवारण जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक उपाय है. इसमें तड़क-भड़क वाली या महंगी नई तकनीकों की जरूरत नहीं है. यह सिर्फ अपने उपभोग और उत्पादन पर ज्यादा ध्यान देने और जिस चीज की जरूरत नहीं है उसके निपटारे के बारे में सोचने का मामला है.”
रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि कचरे का निवारण पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक अहम कदम होगा. उन्होंने दुनिया के आठ शहरों के कचरे के निवारण की व्यवस्था में परिवर्तन के मॉडल बनाकर यह दिखाया कि अगर इन मॉडलों को अपनाया जाए तो ये शहर लगभग कचरे से होने वाले उत्सर्जन को 84 फीसदी तक कम कर सकते हैं.
मिस्र के शहर गीजा में प्लास्टिक का विशालतम पिरामिड बनाया जा रहा है. नील नदी से मिली प्लास्टिक की बोतलों से यह पिरामिड बन रहा है.
तस्वीर: Mohamed Abd El Ghany/REUTERS
गिजा में पिरामिड
पर्यावरण के लिए काम करने वाली गैरसरकारी संस्था वेरीनाइल ने यह प्रोजेक्ट शुरू किया है.
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जुटे हैं स्वयंसेवी
इस काम में स्वयंसेवी लगे हैं जो एक सामुदायिक रिसाइक्लिंग यूनिट में प्लास्टिक की बोतलों को अन्य कचरे से अलग कर रहे हैं.
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जागरूकता के लिए
संस्था का मकसद है कि नील नदी के प्रदूषण के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए.
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तीन सौ किलोग्राम प्लास्टिक
संस्था का कहना है कि उसने तीन सौ किलोग्राम से ज्यादा प्लास्टिक जमा कर लिया है.
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चाहिए 7,500 किलोग्राम
पिरामिड को बनाने में 7,500 किलोग्राम से ज्यादा प्लास्टिक की जरूरत होगी.
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तीन साल से काम जारी
तीन साल से काम कर रही वेरीनाइल संस्था को मिस्र के पर्यावरण मंत्रालय का समर्थन भी हासिल है.
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पिछले साल ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन में सौ से ज्यादा देशों ने ‘ग्लोबल मीथेन प्लेज' के तहत इसके उत्सर्जन में कमी करने का प्रण लिया था. इसके तहत 2020 तक मीथेन का उत्सर्जन 30 फीसदी कम करने की प्रतिज्ञा की गई है. लेकिनमीथेन उत्सर्जन करने वाले कई बड़े देशों ने इस प्रतिज्ञा को नकार दिया. इनमें रूस, चीन और ईरान के साथ-साथ भारत भी शामिल है.
जीएआईए की रिपोर्ट के बारे में यूएन एनवॉयर्नमेंट प्रोग्राम के इंटरनेशनल रिसॉर्स पैनल के यानेत्स पोटोच्निक कहते हैं, ”यह रिपोर्ट दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने में कचरे के निवारण की कितनी अहम भूमिका है. यह रिपोर्ट इस जरूरत को जाहिर करती है कि हमारी उत्पादन और उपभोग की आदतों में बदलाव करके कचरे को जड़ से खत्म करना कितना जरूरी है और इसके लिए उपलब्ध सभी तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.”