अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान के एक प्रभावशाली व्यक्ति, आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के एक हालिया भाषण को अफगान तालिबान के नेताओं में मतभेद की एक असामान्य घटना के तौर पर देखा जा रहा है. अगस्त 2021 में जब से तालिबान ने देश पर कब्जा किया है, तब से समूह का नेतृत्व अपारदर्शी रहा है और इस बात के बहुत कम संकेत हैं कि उनके निर्णय कैसे किए जाते हैं.
हाल के महीनों में तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा के निर्देशों का नीति-निर्माण पर गहरा प्रभाव पड़ा है. विशेष रूप से उनके आदेश पर तालिबान सरकार ने छठी कक्षा के बाद महिलाओं और लड़कियों के विश्वविद्यालयों और स्कूलों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया.
तालिबान के फैसले कौन कर रहा है?
लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंधों ने अंतरराष्ट्रीय आक्रोश को पैदा किया, और अफगानिस्तान को ऐसे समय में और अलग-थलग कर दिया जब उसकी अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है और देश का मानवीय संकट बिगड़ रहा है.
प्रतिबंध तालिबान सरकार की पिछली नीतियों को ही दिखाते प्रतीत होते हैं. तालिबान के अधिकारियों ने बार-बार लड़कियों को माध्यमिक विद्यालय में जाने की इजाजत देने का वादा किया है, लेकिन पिछले साल अचानक उन्हें वापस जाने की अनुमति देने के फैसले को उलट दिया.
हक्कानी ने कुछ दिनों पहले खोस्त में एक सेमिनार में कहा, "सत्ता पर एकाधिकार करना और पूरे सिस्टम की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना हमारे हित में नहीं है." हक्कानी के समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किए गए उनके भाषण के वीडियो क्लिप में उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है कि अब जब तालिबान सत्ता में आ गया है तो उसके कंधे पर और जिम्मेदारियां आ गई हैं. हक्कानी ने आगे कहा कि इस जिम्मेदारी के लिए लोगों के साथ धैर्य, अच्छे व्यवहार और संचार की आवश्यकता होती है. हक्कानी ने कहा कि तालिबान को "लोगों के घावों पर पट्टी बांधनी चाहिए" और इस तरह से काम करना चाहिए कि लोग उनसे और धर्म से नफरत न करें.
लड़कियों की शिक्षा पर बैन की आलोचना हो रही है तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP
हक्कानी ने अखुंदजादा का उल्लेख नहीं किया, लेकिन सोशल मीडिया पर कई लोग इस टिप्पणी को तालिबान के सर्वोच्च नेता से जोड़ कर देख रहे हैं. हक्कानी ने महिलाओं की शिक्षा के मुद्दे का भी उल्लेख नहीं किया, लेकिन उन्होंने अतीत में सार्वजनिक रूप से कहा है कि महिलाओं और लड़कियों को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.
हक्कानी की टिप्पणियों पर एक स्पष्ट प्रतिक्रिया में काबुल सरकार के शीर्ष प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने उनका नाम लिए बिना कहा कि आलोचना निजी तौर पर की गई थी. उन्होंने कहा, "अगर कोई किसी नेता, मंत्री या किसी अन्य अधिकारी की आलोचना करता है, तो यह बेहतर है और इस्लामी शिक्षाएं भी कहती हैं कि उसे सार्वजनिक अभिव्यक्ति के बजाय संबोधित व्यक्ति को सीधे और गुप्त रूप से अपनी आलोचना करनी चाहिए."
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कौन हैं हक्कानी?
सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान के एक गुट का नेतृत्व करते हैं, जिसे हक्कानी नेटवर्क के नाम से जाना जाता है, जिसका नाम उनके परिवार के नाम पर रखा गया है और यह खोस्त के पूर्वी प्रांत में स्थित है. नेटवर्क ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों और पूर्व अफगान सरकारी बलों के खिलाफ वर्षों तक लड़ाई लड़ी और काबुल में नागरिकों और आत्मघाती बम विस्फोटों पर हमले के लिए कुख्यात था. अमेरिकी सरकार ने अपने सैनिकों और अफगान नागरिकों पर हमले के लिए सिराजुद्दीन हक्कानी के सिर पर एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा है.
तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्लाह हैबतुल्लाह अखुंदजादा लगभग कभी भी सार्वजनिक रूप से दिखाई नहीं देते हैं और शायद ही कभी दक्षिणी कंधार प्रांत के तालिबान के गढ़ से बाहर निकले हों. वह उन स्थानीय नेताओं और मौलानाओं के साथ खड़े नजर आते हैं जो महिलाओं के लिए शिक्षा और काम का विरोध करते हैं. उनकी कई वर्षों पुरानी केवल एक ज्ञात तस्वीर है. तालिबान समर्थक विद्वानों की एक सभा को संबोधित करने के लिए तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद ही अखुंदजादा काबुल आए थे.
विदेश नीति पर लिखने वाले और विल्सन सेंटर के डिप्टी डायरेक्टर माइकल कुगेलमैन ने कहा कि तालिबान आम तौर पर पर्दे के पीछे आंतरिक मतभेदों से निपटता है और हक्कानी की टिप्पणी "एक बड़ा तनाव" थी.
कुगेलमैन ने कहा, "तालिबान नेताओं की एक ही व्यापक दृष्टि है, लेकिन कंधार में वे एकांत में रहते हैं और वे दिन-प्रतिदिन के कामों में शामिल नहीं हैं."
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
लड़की को खेलने का भी हक नहीं!
एपी के एक फोटोग्राफर ने कुछ अफगान महिलाओं की तस्वीरें खीचीं. इनमें ये महिलाएं अपने पसंदीदा खेल के साजो-सामान के साथ पोज कर रही हैं. ये तस्वीरें उनसे छीने जा रहे सपनों की ऐसी झलकियां हैं, जिन्हें देखकर दिल टूट जाता है.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
महिलाओं को आसानी से नहीं मिले मौके
तालिबान के आने से पहले भी अफगानिस्तान के एक बड़े रूढ़िवादी तबके को महिलाओं की खेलों में हिस्सेदारी से दिक्कत थी. वो मानते थे कि ये लड़कियों-महिलाओं की "लाज-शरम" और घर की चारदीवारी में सीमित रहने की कथित परंपरागत भूमिका के मुताबिक नहीं है. लेकिन फिर भी अफगानिस्तान की पूर्व सरकार ने महिलाओं की खेल में हिस्सेदारी को बढ़ावा दिया.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
तालिबान के आने से सब बदल गया
स्कूलों-कॉलेजों में क्लब और लीग शुरू हुए. कई खेलों में महिलाओं की टीम राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगी, लेकिन तालिबान के आने से सब बदल गया. 20 साल की सरीना मिक्स्ड मार्शल आर्टिस्ट थीं. सरीना अगस्त 2021 का एक दिन याद करती हैं, जब वो काबुल स्पोर्ट्स हॉल में एक स्थानीय टूर्नमेंट में खेल रही थीं. तभी खबर फैली कि तालिबानी लड़ाके काबुल के बाहरी हिस्से तक पहुंच गए हैं. सारी लड़कियां और महिलाएं डरकर भाग गईं.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
खेलना अपराध बना दिया गया
वो आखिरी मुकाबला था, जब सरीना ने खेल सकी थीं. बाद के दिनों में उन्होंने लड़कियों को चुपचाप मार्शल आर्ट सिखाने की कोशिश की, लेकिन तालिबान ने उन्हें पकड़ लिया. हिरासत में उन्हें बेहद जलील किया गया. फिर कभी ना खेलने के वादे पर रिहाई मिली. सरीना जैसी ही कहानी 20 साल की नूरा की भी है. नूरा को फुटबॉल खेलने में बड़ा मजा आता था. वो मां की मार खातीं, पड़ोसियों की फब्तियां सुनतीं, मगर खेलना नहीं छोड़ा.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
खेलने की बात भी राज रखनी पड़ी
जब तालिबान ने अफगान महिलाओं का खेलना बैन किया, तो नूरा मजबूर हो गईं. नूरा ने छुटपन में गली के लड़कों संग फुटबॉल खेलना शुरू किया था. लड़कियों की एक स्थानीय टीम में शामिल हो गईं. उन्होंने ये बात अपने पिता के सिवा बाकी सब से छिपाकर रखी. 13 साल का होने पर वो अपनी हमउम्र लड़कियों में सबसे अच्छी फुटबॉल खिलाड़ी चुनी गईं. नूरा की तस्वीर के साथ ये खबर टीवी पर भी दिखाई गई.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
जूते और यूनिफॉर्म जला दिए गए
टीवी पर तस्वीर दिखाया जाना नूरा के लिए बड़ी मुसीबत बन गया. उनकी मां ने गुस्से में उन्हें पीटा-धमकाया. फिर भी नूरा ने चुपके से खेलना जारी रखा. उनकी टीम नेशनल चैंपियनशिप जीती और ये खबर टीवी पर आई. फिर नूरा की पिटाई हुई. मां ने उनके जूते और यूनिफॉर्म को जला दिया. नूरा छिपकर अवॉर्ड लेने गईं. वहां स्टेज पर अवॉर्ड लेते हुए जब लोगों ने तालियां बजाईं, तो नूरा पड़ीं.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo
मगर ये खुशी के आंसू नहीं थे
नूरा बताती हैं, "बस मैं जानती थी कि उस पल मैं अकेलेपन और जिंदगी की मुश्किलों के चलते रो रही थी." विरोध के चलते नूरा को फुटबॉल तो छोड़ना पड़ा, लेकिन उन्होंने खेलना नहीं छोड़ा. वो बॉक्सिंग करने लगीं. जिस रोज तालिबान काबुल में घुसा, नूरा की कोच ने उनकी मां को फोन करके कहा कि नूरा को एयरपोर्ट जाना चाहिए. मगर नूरा की मां ने कोच का मेसेज बेटी को नहीं बताया क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि नूरा बाहर जाए.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo
नूरा ने अपनी जान लेने की कोशिश की
जब तक नूरा को कोच का भेजा संदेश मिला, बहुत देर हो चुकी थी. निराश नूरा ने कलाई की नसें काट लीं. नूरा को अस्पताल ले जाया गया. वो बच तो गईं, लेकिन उनके सपने मार डाले गए. नूरा बताती हैं कि बस लड़कियों के खेलने पर पाबंदी नहीं लगी, बल्कि जो पहले कभी खेला करती थीं, उन्हें धमकाया और परेशान भी किया जा रहा है. अकेले में, घर के भीतर भी ना खेलने के लिए कहा जाता है.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo
जारी है दमन
तालिबान ने नूरा और उनके परिवार को भी धमकाया. नूरा कहती हैं, "जब से तालिबान आया, मुझे लगता है मैं मर चुकी हूं." ऐसी आपबीती बस नूरा की नहीं है. खेल से जुड़ी रहीं कई अफगान लड़कियों और महिलाओं ने एपी को बताया कि तालिबान ने उन्हें डराया-धमकाया है. कुछ के घर आकर, तो कुछ को फोन करके चेतावनी दी गई. निशाना बनाए जाने के डर से ही इन महिलाओं ने तस्वीर खिंचवाते हुए भी खुद को बुर्के में छुपाया.