सात सदस्यों वाले परिवार का पेट पालने वाली आशा देवी को अब यह भी याद नहीं कि उन्हें कितनी बार खाना छोड़ना पड़ा. कोरोना गांवों में कर्ज और ब्याज की पुरानी समस्या को और बढ़ा रहा है.
विज्ञापन
35 साल की आशा देवी को 20 हजार रुपये के कर्ज लिए अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी. कर्ज लिए हुए छह महीने बीत गए हैं और उन्होंने दूध खरीदना बंद कर दिया है, क्योंकि घर में पैसे नहीं है. खाना बनाने के लिए वह बहुत कम तेल का इस्तेमाल करती हैं और दस दिन में एक ही बार दाल खरीद पाती हैं.
निर्माण कार्य करने वाले उनके पति के पास काम नहीं और वह कर्ज में और डूबती जा रही हैं. उत्तर प्रदेश के एक गांव से आशा समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहती हैं, "मैं कभी भूखे पेट सो जाती हूं. पिछले हफ्ते मैं दो बार भूखे पेट सोई, अब मुझे याद नहीं है."
आशा अपनी कहानी बताते हुए रो पड़ती हैं. वह यूपी के एक गांव में कच्चे मकान में रहती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने गरीबों के लिए मुफ्त में राशन देने का ऐलान किया है. आशा कहती हैं कि राशन तो मिलता है लेकिन उतना नहीं होता है जो परिवार के लिए पर्याप्त हो. पिछले साल कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाया लॉकडाउन शहरों में काम करने वाले लाखों लोगों को बेरोजगार कर गया. वे अपने गांवों में वापस लौटने को मजबूर हुए और कर्ज के चक्कर में फंस गए.
गांव में काम नहीं, कर्ज लेने को मजबूर
भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के आठ गांवों के समूह में 75 परिवारों के साथ साक्षात्कार से पता चलता है कि घरेलू आय में औसतन 75 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई और लगभग दो तिहाई परिवारों ने कर्ज लिया है.
आशा का पति पंजाब में निर्माण मजदूर था लेकिन काम नहीं होने की वजह से उसे गांव लौटना पड़ा. अब वह गांव में काम की तलाश में जुटा है. इसी गांव के अन्य पुरुष भी बेरोजगार हो गए हैं और हर सुबह इस उम्मीद के साथ ईंट भट्टे के पास जमा होते हैं कि उन्हें काम मिलेगा.
दुनिया को मिले 52 लाख नए करोड़पति
2020 में जब पूरी दुनिया महामारी की मार से बेहाल थी, धन बढ़ रहा था. क्रेडिस स्विस की हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2020 में दुनिया में 52 लाख नए करोड़पति जुड़े हैं. किन देशों में सबसे ज्यादा करोड़पति जुड़े, जानिए...
तस्वीर: Ed Jones/AFP
नंबर 6: ब्रिटेन
दुनिया में करोड़पतियों की संख्या कुल आबादी के एक फीसदी से ज्यादा हो गई है. सिर्फ ब्रिटेन में 2020 में दो लाख 58 हजार नए करोड़पति जुड़े हैं, यानी उनकी कुल संपत्ति एक मिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गई.
तस्वीर: Dominic Lipinski/empics/picture alliance
नंबर 5: फ्रांस
2020 में दुनिया में कुल पांच करोड़ 61 लाख करोड़पति थे. सिर्फ फ्रांस में तीन लाख नौ हजार नए करोड़पति जुड़े.
तस्वीर: ROBIN UTRECHT/picture alliance
नंबर 4: जापान
क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट दिखाती है कि महामारी के दौरान सरकार द्वारा खर्चे गए और अनुदान में दिए गए धन का फायदा अमीरों को हुआ. जापान में इस साल तीन लाख 90 हजार नए लोगों की आय एक मिलियन डॉलर यानी पांच करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई.
तस्वीर: Yuri Smityuk/TASS/dpa/picture alliance
नंबर 3: ऑस्ट्रेलिया
पिछले एक साल में ऑस्ट्रेलिया में तीन लाख 92 हजार नए लोगों की कुल संपत्ति एक मिलियन डॉलर को पार कर गई.
तस्वीर: picture alliance/dpa/DUMONT Bildarchiv
नंबर 2: जर्मनी
जर्मनी में एक मिलियन डॉलर से ज्यादा संपत्ति वाले लोगों में छह लाख 33 हजार लोग और जुड़ गए, जो दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा संख्या है.
2020 में करोड़पतियों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी अमेरिका में देखी गई. वहां 17 लाख 30 हजार नए लोगों की कुल संपत्ति एक मिलियन डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच करोड़ रुपये को पार कर गई.
तस्वीर: Ed Jones/AFP
6 तस्वीरें1 | 6
ग्रामीण भारत में पैसों का संकट
देहात इलाकों में बड़ा कर्ज और कम आय आर्थिक सुधार को रोकेगी, जिसे सरकार पैदा करने की कोशिश कर रही है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे निजी बचत और निवेश भी प्रभावित होगा. अर्थशास्त्री और बेंगलुरु स्थित बीएएसई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति के मुताबिक, "इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा और यह रिकवरी को लंबा खींचेगा. निजी खपत और निवेश दोनों को नुकसान होगा. लोगों के हाथों में पैसे देने के तरीकों पर ध्यान देना होगा."
55 साल के कोमल प्रसाद कहते हैं, "गांव के करीब-करीब सभी लोग कर्ज में हैं...बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है." प्रसाद के छोटे से गौरिया गांव की आबादी करीब दो हजार है. 35 साल की जुग्गी लाल कहती हैं उन्हें अपने अपाहिज पति के लिए दवा खरीदने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. उनके पास काम नहीं है और उन्होंने 60 हजार रुपये का कर्ज ले रखा है.
जुग्गी लाल कहती हैं, "हर सुबह मैं यही सोचती हूं कि क्या काम मिलेगा, मेरा दिन कैसे पार होगा?"
एए/सीके (रॉयटर्स)
महामारी की वजह से दुनिया में बढ़े संघर्ष
वैश्विक शांति सूचकांक के मुताबिक महामारी के दौरान दुनिया में संघर्ष के स्तरों में बढ़ोतरी हुई है. जानिए कहां कहां और किस किस तरह के संघर्ष के स्तर में इजाफा हुआ है.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
लगातार बढ़ रहे झगड़े
इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने कहा है कि 2020 में पिछले 12 सालों में नौवीं बार दुनिया में झगड़े बढ़ गए. संस्थान के वैश्विक शांति सूचकांक के मुताबिक कुल मिला कर संघर्ष और आतंकवाद के स्तर में तो गिरावट आई, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शन बढ़ गए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
हिंसक घटनाएं
जनवरी 2020 से अप्रैल 2021 के बीच सूचकांक ने पूरी दुनिया में हुई महामारी से संबंधित 5,000 से ज्यादा हिंसक घटनाएं दर्ज की. 25 देशों में हिंसक प्रदर्शनों की संख्या बढ़ गई, जबकि सिर्फ आठ देशों में यह संख्या गिरी. सबसे खराब हालात रहे बेलारूस, म्यांमार और रूस में, जहां सरकार ने प्रदर्शनकारियों का हिंसक रूप से दमन किया.
तस्वीर: AP/picture alliance
सबसे कम शांतिपूर्ण देश
रिपोर्ट ने अफगानिस्तान को दुनिया का सबसे कम शांतिपूर्ण देश पाया. इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिण सूडान और इराक को सबसे कम शांतिपूर्ण देशों में पाया गया. अफगानिस्तान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और मेक्सिको में आधी से भी ज्यादा आबादी ने उनकी रोज की जिंदगी में हिंसा सबसे बड़ा जोखिम बनी हुई है.
तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP
सबसे शांतिपूर्ण देश
आइसलैंड को एक बार फिर सबसे शांतिपूर्ण देश पाया गया. आइसलैंड ने यह स्थान 2008 से अपने पास ही रखा हुआ है. पूरे यूरोप को ही कुल मिला कर सबसे शांतिपूर्ण प्रांत का दर्जा दिया गया है. हालांकि संस्थान के मुताबिक वहां भी राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है.
तस्वीर: Getty Images/M. Cardy
अमेरिका में भी बढ़ी अशांति
इस अवधि में अमेरिका में भी नागरिक अशांति काफी तेजी से बढ़ी. हालांकि ऐसा सिर्फ महामारी की वजह से ही नहीं हुआ. इसमें ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के विस्तार और जनवरी 2021 में यूएस कैपिटल पर हुए हमले का भी योगदान है.
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
कई मोर्चों पर स्थिति बेहतर
दुनिया में कई स्थानों पर हत्या की दर, आतंकवाद की वजह से होने वाली मौतों की संख्या और जुर्म के मामलों में काफी गिरावट देखने को मिली.
तस्वीर: Hadi Mizban/AP/picture alliance
और बढ़ेगी अनिश्चितता
संस्थान के संस्थापक स्टीव किल्लीलिया का कहना है कि महामारी के आर्थिक असर की वजह से अनिश्चितता और बढ़ेगी, विशेष रूप से ऐसे देशों में जहां महामारी के पहले से ही हालात अच्छे नहीं थे. इस आर्थिक संकट से बाहर निकलने की प्रक्रिया भी काफी असमान रहेगी, जिससे मतभेद बढ़ेंगे. (डीपीए)