रूस ने यूक्रेन सीमा के पास बुख नाम का एक खास मिसाइल सिस्टम तैनात किया है. माना जाता है कि 2014 में इसी से मलेशियन एयरलाइंस का विमान गिराया गया था. इस प्लेन क्रैश के दोषी को कैसे खोजा गया. जानिए इस रिपोर्ट में.
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12 दिसंबर को जी7 समूह के विदेश मंत्रियों की बैठक में रूस और यूक्रेन के तनाव पर मुख्य रूप से चर्चा हुई. बैठक में रूस को चेतावनी दी गई कि यूक्रेन के खिलाफ किसी भी तरह की सैन्य आक्रामकता के गंभीर नतीजे होंगे. अंतरराष्ट्रीय कानूनों में सीमा बदलने के इरादे से किसी भी तरह बल प्रयोग की सख्त मनाही है.
खबरों के मुताबिक, रूस ने यूक्रेन सीमा के पास बड़ी संख्या में सैनिक और सैन्य उपकरण तैनात कर दिए हैं. कई हल्कों में इसे यूक्रेन पर हमले की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है.
क्या है क्रीमिया एनेक्सेशन?
2014 में रूस ने यूक्रेन के इलाके क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. पश्चिमी देश तब क्रीमिया पर हुए कब्जे को तो नहीं रोक पाए थे लेकिन उन्होंने इतना किया कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए.
पश्चिमी देश नहीं चाहते कि रूस किसी भी सूरत में 2014 जैसी घटना दोहराए. इसीलिए वे रूस को लगातार चेतावनी दे रहे हैं. पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात कर यूक्रेन पर तनाव घटाने की कोशिश की. लेकिन ये तमाम कोशिशें रूस की आक्रामकता कम नहीं कर पाई हैं.
क्या है बुख से जुड़ा विवाद?
रूस ने यूक्रेन सीमा के पास एक खास मिसाइल सिस्टम तैनात किया है. इसका नाम है, Buk-M1 (बुख-एम1). बुख की तैनाती से जुड़ी इस आशंका का एक विवादित अतीत भी है, जो जुड़ा है सात साल पुरानी एक बड़ी घटना से. आरोप है कि 2014 में इसी बुख का इस्तेमाल करके रूस ने बीच हवा में मिसाइल दागकर मलयेशियन एयरलाइन्स की फ्लाइट 17 को गिरा दिया था.
बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइल में क्या है फर्क
मिसाइल आधुनिक समय में युद्ध के अहम हथियार बनते जा रहे हैं. आम तौर पर मिसाइल को उनके प्रकार, लॉन्च मोड, रेंज, संचालन शक्ति, वॉरहेड और गाइडेंस सिस्टम के आधार पर बांटा जाता है. एक नजर मिसाइलों के प्रकार पर.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/Department of Defense
क्रूज और बैलेस्टिक
मिसाइल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं. एक क्रूज मिसाइल होता है जिसके तहत सबसोनिक, सुपरसोनिक और हाईपर सोनिक क्रूज मिसाइल आते हैं. ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल है और ब्रह्मोस 2 हाइपरसोनिक मिसाइल है. वहीं दूसरा बैलेस्टिक मिसाइल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
क्रूज मिसाइल
क्रूज मिसाइल एक मानवरहित स्व-चालित वाहन है जो एयरोडायनामिक लिफ्ट के माध्यम से उड़ान भरता है. इसका काम एक लक्ष्य पर विस्फोटक या विशेष पेलोड गिराना हैं. यह जेट इंजन की मदद से पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर उड़ान भरते हैं. इनकी गति काफी तेज होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Tass/Ministry of Defence of the Russian Federation
बैलेस्टिक मिसाइल
बैलिस्टिक मिसाइल एक ऐसी मिसाइल है जो अपने स्थान पर छोड़े जाने के बाद तेजी से ऊपर जाती है और फिर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से नीचे आते हुए अपने लक्ष्य को निशाना बनाती है. बैलेस्टिक मिसाइल को बड़े समुद्री जहाज या फिर संसाधनों से युक्त खास जगह से छोड़ा जाता है. पृथ्वी, अग्नि और धनुष भारत के बैलिस्टिक मिसाइल हैं.
तस्वीर: Reuters/Courtesy Israel Ministry of Defense
सरफेस टू सरफेस मिसाइल
लॉन्च मोड के आधार पर भी मिसाइलों को कई तरह से बांटा गया है. सरफेस टू सरफेस मिसाइल एक निर्देशित लक्ष्य पर वार करती है. इसे वाहन पर रखकर या किसी जगह पर इंस्टॉल कर लॉन्च किया जाता है. आमतौर पर इसमें रॉकेट मोटर लगा होता है या फिर कभी-कभी लॉन्च प्लेटफॉर्म से विस्फोटक के माध्यम से छोड़ा जाता है.
तस्वीर: Reuters
सरफेस टू एयर मिसाइल
इस मिसाइल का उपयोग जमीन से हवा में किसी निशाने को भेदने के लिए किया जाता है, जैसे कि हवाईजहाज, हेलिकॉप्टर या फिर बैलेस्टिक मिसाइल. इस मिसाइल को आमतौर पर एयर डिफेंस सिस्टम कहते हैं क्योंकि ये दुश्मनों के हवाई हमले को रोकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Ammar
लैंड टू सी मिसाइल
इस मिसाइल को जमीन से छोड़ा जाता है जो दुश्मनों की समुद्री जहाज को निशाना बनाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E. Noroozi
एयर टू एयर मिसाइल
एयर टू एयर (हवा से हवा में मार करने वाली) मिसाइल को किसी एयरक्राफ्ट से छोड़ा जाता है, जो दुश्मनों के एयरक्राफ्ट को नष्ट कर देती है. इसकी गति 4 मैक (करीब 4800 किलोमीटर प्रतिघंटा) होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/File/Lt. Col.. Leslie Pratt, US Air Force
एयर टू लैंड मिसाइल
एयर टू लैंड मिसाइल को सेना के विमान से छोड़ा जाता है जो समुद्र, जमीन या दोनों जगहों पर निशाना लगाती है. इस मिसाइल को जीपीएस सिग्नल के माध्यम से लेजर गाइडेंस, इफ्रारेड गाइडेंस या ऑप्टिकल गाइडेंस से निर्देशित किया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/J. Moore
सी टू सी मिसाइल
इस मिसाइल को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि यह समुद्र में मौजूद अपने दुश्मनों के जहाज या पनडुब्बियों को नष्ट कर देती है. इसे समुद्री जहाज से ही लॉन्च किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/U.S Navy
सी टू लैंड मिसाइल
इस तरह के मिसाइल को समुद्र से लॉन्च किया जाता है जो सतह पर मौजूद अपने दुश्मन के ठिकानों को नष्ट कर देती है.
तस्वीर: AP
एंटी टैंक मिसाइल
एंटी टैंक मिसाइस वह होती है जो दुश्मनों के सैन्य टैंकों और अन्य युद्ध वाहनों को नष्ट कर देती है. इसे एयरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर, टैंक या कंधे पर रखे जाने वाले लांचर से भी छोड़ा जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Militant Photo
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यह घटना 17 जुलाई 2014 को हुई . उस रोज मलयेशियन एयरलाइन्स की विमान संख्या 17 ने एम्सटर्डम से उड़ान भरी. विमान को जर्मनी, पोलैंड और यूक्रेन होते हुए मलयेशिया की राजधानी कुआलालंपुर जाना था. विमान की लोकेशन पूर्वी यूक्रेन के आकाश में थी, जब कॉकपिट में लगे वॉइस रिकॉर्डर ने विमान के बाहर से आई एक तेज आवाज को दर्ज किया.
यह आवाज कॉकपिट के बाईं ओर ऊपर की तरफ से शुरू होकर दाहिनी ओर बढ़ती गई. यह आवाज तकनीकी भाषा में प्रेशर वेव जैसी थी. यह वैसी ही आवाज थी, जो धमाके के समय आती है. ठीक इसी वक्त विमान बीच हवा में टूट गया. उसका मलबा एक बड़े इलाके में बिखर गया. इस घटना में विमान में सवार सभी 298 लोग मारे गए. इनमें 80 बच्चे भी शामिल थे.
किसके नेतृत्व में हुई जांच?
हादसे में मारे गए यात्रियों में सबसे ज्यादा 193 लोग नीदरलैंड्स के थे. इसीलिए यूक्रेन ने नीदरलैंड्स से आग्रह किया कि वह इस घटना की जांच का नेतृत्व करे. नीदरलैंड्स ने आग्रह स्वीकार करते हुए जांच का जिम्मा डच सेफ्टी बोर्ड को सौंपा. बोर्ड ने घटना के छह दिन बाद 23 जुलाई 2014 को जांच की कमान संभाली.
इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) के एनेक्स 13 के तहत जांच शुरू हुई. इस जांच के दो मुख्य मकसद थे. पहला, घटना के कारण का पता लगाना ताकि मृतकों के परिजनों को विमान हादसे की सही वजह बताई जा सके. दूसरा, इस घटना के कारणों को ध्यान में रखते हुए एक सुरक्षा नीति बनाना ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को रोका जा सके.
विमान के मलबे से क्या मिला?
जांच दल का कहना है कि जमीन पर मिले विमान के मलबे और कॉकपिट में मौजूद क्रू-सदस्यों की लाशों से उन्हें कुछ खास आकार की धातु की चीजें मिलीं. इनका आकार बो-टाई और क्यूब जैसा था. धातु के इन टुकड़ों को 'फ्रैगमेंट' कहा जाता है. इन फ्रैगमेंटों को समझिए एक विशेष प्रकार का शार्पनेल. इनका इस्तेमाल एक खास श्रेणी के वॉरहेड में किया जाता है. मिसाइल के आगे के हिस्से को वॉरहेड कहते हैं. मिसाइल में जो विस्फोटक या रसायन भरा रहता है, वह इसी वॉरहेड में होता है.
मिसाइल जब किसी लक्ष्य पर हमला करती है, तो अपने निशाने पर यही वॉरहेड दागती है. जांच टीम के मुताबिक, उन्हें घटनास्थल पर जो वॉरहेड मिला था, उसका नाम था- 9N314M. यह वॉरहेड 9M38M1 मिसाइल में फिट होता है. और यह 9M38M1 मिसाइल जिस मिसाइल सिस्टम से दागी जाती है, उसका नाम है- बुख.
सोवियत के दौर का हथियार
सोवियत संघ के पास 2K12 Kub नाम का एक मिसाइल सिस्टम हुआ करता था. इसी की अगली पीढ़ी है बुख. सोवियत संघ ने 1979 में इसका इस्तेमाल शुरू किया था. तब से लेकर अब तक इसके कई नए संस्करण आ चुके हैं. इस मिसाइल सिस्टम को रूस में 9K37 के जेनरिक नाम से जाना जाता है. वहीं नाटो इसे SA-11 कहता है.
दुनिया के बेहतरीन लड़ाकू विमान
जंग की तस्वीर बदल गई है और लड़ाकू विमानों की भूमिका अहम हो गई है. अब इन्हें ज्यादा मारक और फुर्तीला बनाने के साथ ही रडारों की पकड़ में आने से बचाने पर भी जोर है. देखिये दुनिया के सबसे उन्नत और कामयाब लड़ाकू विमानों को.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/South Korea Defense Acquisition Program Administration
एफ-22 रैप्टर
अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन का यह विमान रडारों के लिए लगभग अदृश्य रहता है. इसे अब तक का सबसे आधुनिक, महंगा और उन्नत लड़ाकू विमान माना जाता है. इसके कई सेंसर और विमान से जुड़ी कई तकनीकों को गोपनीय रखा गया है. वर्तमान में अमेरिकी वायुसेना की जान यही विमान है. अमेरिका ने इसे अब तक किसी और देश को नहीं बेचा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Yonhap
एफ-35
एफ-35 को भी लॉकहीड मार्टीन ने ही बनाया है. यह एफ-22 से थोड़ा छोटा है और उसमें एक ही इंजिन है हालांकि कई चीजें इसमें एफ-22 जैसी ही हैं. यह अपनी गुप्त चालों के लिए विख्यात है और आसानी से रडारों की पकड़ में नहीं आता. वायु रक्षा अभियानों में यह कई तरह से उपयोगी है. हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस है और बमों की वर्षा करने में माहिर.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Guez
चेंगदू जे-20
चीन ने इस विमान को रूस की मिग कंपनी की मदद से बनाया है. चीनी वायु सेना ने इसे 2017 में आधिकारिक रूप से अपने बेड़े में शामिल किया. चीन ने इस विमान के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है. यह एक मध्य और लंबी दूरी का लड़ाकू विमान है जो जमीन पर भी हमला कर सकता है. इसमें अमेरिकी एफ-22 विमान से ज्यादा हथियार और ईंधन रखने की क्षमता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/YhC
एफ/ए-18 ई/एफ सुपर हॉर्नेट
वर्तमान में सुपर हॉर्नेट अमेरिकी नौसेना का सबसे काबिल लड़ाकू विमान है. यह विमानवाही युद्ध पोतों से उड़ान भर कर हवा और सतह पर मार कर सकता है. बोइंग कंपनी का बनाया यह विमान ऑस्ट्रेलिया में भी प्रमुख लड़ाकू विमान के रूप में सेवा दे रहा है. इसमें नए इंजिन लगाए गए हैं और ज्यादा मिसाइलें लगाई जा सकती हैं.
तस्वीर: Getty Images/I. Hitchcock
यूरोफाइटर टाइफून
1986 में जर्मनी, इटली, यूके, और बाद में स्पेन ने मिल कर लड़ाकू विमान बनाने के लिए यूरोफाइटर कंसोर्टियम बनाया था. यह विमान उन्नत यूरोपीय मिसाइलों से लैस है और इसमें आधुनिक विमानन की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है. माना जाता है कि एफ-22 रैप्टर की तुलना में इसकी मारक क्षमता आधी है हालांकि यह एफ-15, फ्रेंच रफाएल, सुखोई 27 जैसे कई और विमानों से काफी बेहतर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A.Schalit
राफाल
फ्रांस की दासो कंपनी ने इसे बनाया है जो फिलहाल वहां की वायु सेना और नौ सेना की सेवा में हैं. अत्याधुनिक तकनीकों से लैस इस विमान की फुर्ती बेजोड़ है. यह एक वक्त में 40 निशानों का पता लगाने के साथ ही उनमें से चार पर एक साथ वार कर सकता है. भारत ने इसी विमान के लिए फ्रांस की सरकार से सौदा किया है.
तस्वीर: AP
सुखोई 35
रूस का यह विमान काफी तेज होने के साथ ही फुर्तीला भी है और लंबी रेंज के साथ ही ज्यादा ऊंचाई पर उड़ने और भारी संख्या में हथियारों को ले कर चल सकता है. इसके 12 डैनों में 8000 किलो तक हथियार ले जाने की क्षमता है. इसके बड़े और ताकतवर इंजन लंबे समय तक उड़ान भरने में मददगार हैं. रूस ने यह विमान सुखोई 27 और मिग 29 की जगह लेने के लिए बनाए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एफ-15 ईगल
एफ-15 ईगल 30 साल से सेवा में है और यह अभी भी शत्रु की रक्षा पंक्ति को तोड़ने वाले विमानों में अग्रणी माना जाता है. इसने 100 से ज्यादा मारक हवाई हमले किए हैं और इसे शीत युद्ध के दौर का सबसे कामयाब लड़ाकू विमान माना जाता है. दुश्मन के इलाके में उड़ान भरते हुए भी यह उनके विमानों का पता लगाने और उन पर हमला करने में सक्षम है.
तस्वीर: Jack Gueza/AFP/Getty Images
मिग-31
नाटो के हवाई हमलों और क्रूज मिसाइलों से बचने के लिए सोवियत रूस ने इस विमान को बनाया था. इसकी रफ्तार तेज है और यह ऊंची उड़ान भर सकता है हालांकि ऐसा करने के क्रम में इसकी फुर्ती थोड़ी कम हो जाती है. दुश्मनों के जहाज को यह दूर से ही अपनी मिसाइलों से ध्वस्त कर देता है. रूसी हवाई सुरक्षा में अहम जिम्मेदारी आज भी इसी विमान की है.
तस्वीर: Reuters/Norwegian NATO QRA Bod
एफ-16 फाइटिंग फाल्कन
एफ 16 वास्तव में एफ-15 ईगल का ही हल्का और कम खर्चीला संस्करण है. एफ-15 से उलट यह हवा और जमीन दोनों जगहों पर वार कर सकता है. लॉकहीड मार्टिन ने बड़ी संख्या में यह विमान बनाए हैं और फिलहाल यह अमेरिका समेत 26 देशों की सेना में शामिल है. ये विमान छोटे और फुर्तीले हैं और इसका कॉकपिट पायलट को ज्यादा साफ देखने में मददगार है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Schoonakker
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यह मध्यम श्रेणी का जमीन से हवा में वार करने वाला एक ताकतवर मिसाइल सिस्टम है. यह मिसाइल सिस्टम 70 से 80 हजार फीट की ऊंचाई तक वार करने में सक्षम है. अगर यह सिस्टम विमान जैसे किसी निशाने पर एक मिसाइल दागे, तो 99 फीसदी संभावना है कि वह विमान क्रैश हो जाएगा. जानकारों के मुताबिक, यह सिस्टम डेढ़ मिनट के भीतर छह अलग-अलग लक्ष्यों पर मिसाइलें दाग सकता हैं.
इसमें कैसी मिसाइलें इस्तेमाल होती हैं?
जानकारों के मुताबिक, इसमें दो तरह की मिसाइलें इस्तेमाल होती हैं. एक 9M38M1 और दूसरी 9M38. इन दोनों मिसाइलों में 70 किलो वजनी उच्च-क्षमता वाले विस्फोटक फ्रैगमेंटों से भरा वॉरहेड लगा होता है. ये वॉरहेड 9N314 और 9N314M के नाम से जाने जाते हैं. जांचकर्ताओं ने घटनास्थल से 9N314M वॉरहेड के हिस्से मिलने की बात कही थी.
जांच टीम ने 9N314M वॉरहेड के डिजाइन के आधार पर ही इस हादसे के साथ रूस का नाम जोड़ा. इस वॉरहेड में दो परतें होती हैं, जिनके भीतर खास आकृति वाले फ्रैगमेंट भरे होते हैं. अंदर की परत में बो-टाई के आकार वाले फ्रैगमेंट होते हैं. बाहर की परत में चौकोर फ्रैगमेंट होते हैं. जब वॉरहेड को डेटोनेट किया जाता है, तो इसका खोल कई टुकड़ों में बंट जाता है.
रूसी एस-400 सिस्टम में क्या खास है?
अमेरिकी प्रतिबंधों की चिंता किए बिना भारत रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है. आखिर ऐसा क्या खास है इसमें.
तस्वीर: picture alliance/dpa
बेहतर होते रिश्ते
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ साझा बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देश बहुत तेजी से एक दूसरे के करीब आए हैं. उन्होंने कहा, "वक्त के साथ हमारे देशों के संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं."
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क्या है एस-400
रूस में तैयार एस-400 एक ऐसा सिस्टम है जो बैलेस्टिक मिसाइलों से बचाव करता है. यह ना सिर्फ दुश्मन की तरफ से दागी जाने वाली मिसाइलों का पता लगाता है बल्कि उन्हें हवा में ही मार गिराने की क्षमता भी रखता है.
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सिर्फ पांच मिनट
एस-400 एक मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम है जिसे पांच मिनट के भीतर तैनात किया जा सकता है. इसमें कई तरह के रडार, ऑटोनोमस डिटेक्शन और टारगेटिंग सिस्टम और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम लगे हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa
100 टारगेट
यह सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी से और 30 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर उड़ने वाले सभी तरह के विमानों और बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलों का पता लगा सकता है. यह एक साथ 100 हवाई टारगेट्स को भांप सकता है.
तस्वीर: Imago/Itar-Tass
अमेरिका की चिंता नहीं
भारत इस सिस्टम के लिए 5 अरब डॉलर तक खर्च करने को तैयार है. हालांकि अमेरिका ने साफ कहा है कि रूस से रक्षा समझौता करने पर भारत को प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं. लेकिन भारत इससे बेपरवाह दिख रहा है.
भारत की जरूरत
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए अहम मानता है. पाकिस्तान भारत का पुराना प्रतिद्वंद्वी है तो चीन से साथ हजारों किलोमीटर लंबा सीमा विवाद अनसुलझा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Naveed
और किसके पास?
चीन ने भी रूस से एस-400 सिस्टम की छह बटालियन खरीदने के लिए 2015 में एक समझौता किया था, जिसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हो गई. तुर्की और सऊदी अरब जैसे देश भी रूस से एस-400 सिस्टम खरीदना चाहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Kolesnikova
अमेरिकी सिस्टम से बेहतर
अमेरिका निर्मित एफ-35 जैसे लड़ाकू विमान भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं हैं. एस-400 एक साथ ऐसे छह लड़ाकू विमानों से निपट सकता है. एस-400 को अमेरिका के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम से ज्यादा प्रभावी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/RIA Novosti
जांचा परखा
यह डिफेंस सिस्टम 2007 से काम कर रहा है और मॉस्को की सुरक्षा में तैनात है. लड़ाई के कई मोर्चों पर इसे परखा जा चुका है. 2015 में रूस ने इसे सीरिया में तैनात किया था. क्रीमिया प्रायद्वीप में भी इसे तैनात किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/V. Savitsky
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मलयेशियन एयरलाइन्स का विमान जिस इलाके में क्रैश हुआ, वह पूर्वी यूक्रेन में पड़ता है. यहां यूक्रेन और रूस समर्थित विरोधी गुट के बीच गृह युद्ध चल रहा था. जिस इलाके से मिसाइल दागी गई, वह रूस समर्थित विद्रोही गुट के कब्जे में था. जांच टीम का कहना था कि उन्हें पक्की जानकारी है कि घटना के समय रूस ने बुख को इस इलाके में तैनात किया हुआ था. और इस पूरे क्षेत्र में कथित तौर पर यही एक सिस्टम था, जिसकी मिसाइलों के वॉरहेड के भीतर बो-टाई आकार के फ्रैगमेंट पाए जाते हैं.
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कई तरह की आशंकाएं थीं
जांच टीम ने बहुत विस्तृत पड़ताल की थी. विमान को हुए नुकसान, मृतकों की लाश, विमान के भीतर लगे तकनीकी सिस्टम की जांच, सारे आंकड़े बहुत सावधानी और वैज्ञानिक तरीके से खंगाले गए. क्या विमान के भीतर हुई किसी तकनीकी खामी के चलते हादसा हुआ? क्या आसमान से गिरी बिजली के चलते घटना हुई? यहां तक कि यह छानबीन भी हुई कि कहीं अंतरिक्ष से गिरा मलबा तो इस हादसे की वजह नहीं?
हर तरह की आशंकाओं को तौलने के बाद दावा किया गया कि बुख मिसाइल सिस्टम से दागे गए मिसाइल ने विमान के बाएं हिस्से पर वार किया. इसी के चलते विमान बीच हवा में टूट गया और उसके टुकड़े हो गए.
बुख कैसे पहुंचा पूर्वी यूक्रेन?
आरोप है कि जिस बुख सिस्टम से मिसाइल दागी गई, वह पश्चिमी रूस के कुर्स्क में तैनात रूसी सेना की 53वीं ऐंटीएयरक्राफ्ट ब्रिगेड के पास था. यूक्रेन में रूस के समर्थन वाला विरोधी गुट पिछड़ रहा था. यूक्रेन के लड़ाकू विमानों के चलते विद्रोही अलगाववादी गुट को भारी नुकसान हो रहा था. उनके हाथ से इलाके निकल रहे थे. बड़ी संख्या में उनके लड़ाके मारे जा रहे थे.
आरोप है कि विद्रोही गुट को बढ़त दिलाने के लिए रूस ने पूर्वी यूक्रेन में सैन्य सहायता पहुंचाई. और इसी सैन्य खेप का हिस्सा था बुख. जांचकर्ताओं के मुताबिक 17 जुलाई, 2014 को तड़के सुबह यह सिस्टम गुपचुप रूस से सीमा पार करवाकर पूर्वी यूक्रेन में दाखिल कराया गया. यहां से उसे एक ट्रेलर पर लादकर विरोधी गुट के कब्जे वाले दोनेत्स्क शहर और फिर स्निजनये शहर ले जाया गया.
चश्मदीदों ने क्या बताया?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुख सिस्टम की इस यात्रा के दौरान कई स्थानीय लोगों, पत्रकारों और ड्राइवरों ने इसे देखा था. चश्मदीदों ने देखा कि रूस की एक सैन्य टुकड़ी और विद्रोही गुट के कई लड़ाके भी इस कारवां में साथ थे.
जिंदा मिसाइलों से बना गांव
01:15
मगर रूस इन आरोपों से इनकार करता रहा. उसका दावा था कि मिसाइल यूक्रेन के अधिकार क्षेत्र वाले हिस्से से दागी गई. अपने आरोप को साबित करने के लिए रूस ने उपग्रह से ली गईं कुछ तस्वीरें भी साझा की. मगर डच जांचकर्ताओं ने कहा कि वे तस्वीरें फर्जी थीं और फोटोशॉप की मदद से छेड़छाड़ करके नकली सबूत तैयार किए गए थे.
298 लोगों की हत्या का मुकदमा
नीदरलैंड ने जांच पूरी हो जाने के बाद मार्च 2020 में MH17 क्रैश में मारे गए सभी 298 मृतकों की हत्या का केस शुरू किया. इस केस में चार लोगों पर उनकी गैरहाजिरी में मुकदमा चला. इनमें तीन रूस और एक यूक्रेन का नागरिक बताए जाते हैं. आरोपियों में से एक है, इगोर गिरकिन. इल्जाम है कि इगोर रूसी खुफिया एजेंसी 'फेडरल सिक्यॉरिटी सर्विस' (FSB) में अफसर रह चुके हैं. उन पर अप्रैल 2014 में यूक्रेन के स्लावआंस्क शहर पर हुए कब्जे का नेतृत्व करने का भी आरोप है.
दूसरे आरोपी हैं सेरगी डुबिंस्की. वह दोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक की मिलिटरी इंटेलिजेंस सर्विस के मुखिया हैं. आरोपियों में तीसरा नाम सेरगी के सहयोगी ओलेग पुलातोव का है. बताया जाता है कि ये तीनों रूसी सैन्य खुफिया एजेंसी जीआरयू के साथ करीब से जुड़े हैं. आरोप है कि पूर्वी यूक्रेन में विद्रोही गुट तक हथियार पहुंचाने का काम जीआरयू की ही देख-रेख में हो रहा था. चौथे आरोपी लियोनिड जीएनआर में फील्ड कमांडर है और यूक्रेनी मूल का है.
अभी क्या हो रहा है?
रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाई हुई हैं. रूस के उप विदेश मंत्री सेर्गई रिबकोफ ने मौजूदा तनाव की तुलना 1962 के क्यूबन मिसाइल संकट से की. पुतिन ने हाल ही में कहा कि पूर्वी यूक्रेन की स्थिति नरसंहार जैसी लग रही है. ऐसे बयानों के चलते कई विशेषज्ञों को आशंका है कि कहीं पुतिन यूक्रेन पर चढ़ाई करने की भूमिका तो नहीं बना रहे हैं.
रूस एक और कारण गिना रहा है. यह है, नाटो विस्तार का विरोध. 2008 के नाटो सम्मेलन में ऐलान हुआ था कि यूक्रेन और जॉर्जिया नाटो में शामिल होंगे. रूस इस प्रस्ताव का विरोधी है. पश्चिमी देश कह चुके हैं कि नाटो में प्रस्तावित यह विस्तार हाल-फिलहाल में नहीं होने जा रहा. लेकिन रूस का कहना है कि नाटो यूक्रेन और जॉर्जिया से जुड़े अपने ऐलान को आधिकारिक तौर पर वापस ले.
कई जानकारों की राय है कि रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव के जरिए एकसाथ कई हित साधने की कोशिश कर रहे हैं. वह युद्ध की धमकियों के बहाने रूस का अंतराष्ट्रीय प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. वह पिछले दो दशकों से नाटो के विस्तार की योजनाओं से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि शायद वह इन योजनाओं पर पूर्णविराम लगाने के साथ-साथ पश्चिमी देशों को रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध वापस लेने के लिए भी राजी कर पाएं.