परमाणु समझौते से जुड़े रहने के लिए प्रतिबद्ध रूस, ईरान
११ जनवरी २०१८
रूस के विदेश मंत्री सेर्गेइ लावरोव और ईरान के उनके समकक्ष मोहम्मद जवाद जरीफ ने बुधवार को ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर बहुपक्षीय समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
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आधिकारिक रूप से संयुक्त समग्र कार्ययोजना (जेसीपीओए) समझौते के रूप में पहचाने जाने वाले इस समझौते के तहत दोनों ने अपने दायित्वों को पूरा करने की प्रतिबद्धता को दोहराया है. दोनों की ओर से जारी एक संयुक्त बयान के मुताबिक, "अमेरिका की गतिविधियों से जेसीपीओए समझौते का काम में बाधा आ सकती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के काम में मुश्किल खड़ी हो सकती है और परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में बहुपक्षीय प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है."
ईरान, जर्मनी और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों - ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका के बीच जुलाई 2015 में जेसीपीओए समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत ईरान आर्थिक मदद और खुद पर लगे अंतराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाने की एवज में अपने परमाणु हथियार कार्यक्रमों को रोकने पर सहमत हुआ था.
क्यों सड़कों पर उतर आए ईरान के लोग?
ईरान में कई साल बाद इतने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं. अलग अलग शहरों में सड़कों पर उतरे ये हजारों लोग आखिर कौन हैं और क्या चाहते हैं, चलिए जानते हैं.
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कब हुई शुरुआत?
ईरान में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत 28 दिसंबर को मशाद शहर से हुई, जब बढ़ती महंगाई के खिलाफ सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए. अगले दो दिनों के भीतर ये प्रदर्शन राजधानी तेहरान समेत कई और शहरों तक पहुंचे गए.
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प्रदर्शनों का कारण?
कुछ प्रदर्शनकारी बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक असामनात के खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं. वहीं बहुत से लोग सरकार की नीतियों से खफा हैं. प्रदर्शनों के दौरान, "रोहानी मुर्दाबाद", "फलस्तीन को भूल जाओ", और "गजा नहीं, लेबनान नहीं, मेरी जिंदगी ईरान के लिए है" जैसे नारे लग रहे हैं.
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प्रतिबंधों की मार?
कुछ लोग आम जनता पर पड़ रहे आर्थिक बोझ की वजह ईरान की विदेश नीति को बता रहे हैं जो कई क्षेत्रीय संकटों में उलझा है, तो कइयों की राय में, ईरान पर लगे प्रतिबंधों का असर अब जनता की जेब पर होने लगा है. कुल मिलाकर लोग सरकार से नाराज हैं.
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सरकार समर्थक भी सड़कों पर
ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी और सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई का समर्थन करने वाले कट्टरपंथियों ने भी सड़क पर उतर कर अपनी आवाज बुलंद की. हालांकि सरकार समर्थक इन प्रदर्शनाकरियों की संख्या सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों से काफी कम दिखी.
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कितने शहरों में प्रदर्शन?
अब तक एक दर्जन से ज्यादा शहरों से प्रदर्शनों होने की खबर है, जिनमें जनजान, केरमानशाह, खोरामाबाद, अबार, अराक, दोरुद, इजेह, तोनेकाबोन, तेहरान, करज, मशाद, शहरेकोर्द और बांदेर अब्बास शामिल हैं.
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क्या कहती है सरकार?
राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा है कि लोगों में बढ़ रही हताशा को वह समझते हैं और जनता को प्रदर्शन करने का हक है. लेकिन उन्होंने कहा कि हिंसा और तोड़फोड़ को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
ईरानी सरकार का कहना है कि इन प्रदर्शनों को फैलाने के लिए सोशल मीडिया और खासकर टेलीग्राम का इस्तेमाल किया गया. इसके बाद सरकार ने कई मैसेजिंग एप्स पर रोक लगा दी है. सरकार ने टेलीग्राम से हिंसा भड़काने वाले अकाउंट्स को बंद करने के लिए कहा है.
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कितने हताहत?
ईरान में हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों में अब तक कम से कम 21 लोगों के मारे जाने की खबर है. इसके अलावा सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है. प्रदर्शनों के कारण ईरान की सरकार को तीखी आलोचना झेलनी पड़ रही है.
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क्या बोला विश्व समुदाय?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों को गिरफ्तार ना करने के लिए कहा है. उन्होंने कहा, "दमनकारी व्यवस्था हमेशा नहीं रह सकती. दुनिया देख रही है." जर्मनी और फ्रांस ने भी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाई है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप शुक्रवार को परमाणु संधि पर कोई फैसला ले सकते हैं. इससे पहले गुरूवार को ब्रसेल्स में भी इस पर चर्चा होगी. यूरोपीय संघ ने कहा है कि यदि अमेरिका इस संधि को तोड़ता है, तो यह दुनिया को असुरक्षित बनाने की ओर एक बड़ा कदम होगा. ब्रसेल्स में ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के विदेश मंत्री ईरान के साथ मिल कर परमाणु संधि को भविष्य में भी सफलतापूर्वक लागू रखने पर चर्चा करेंगे. हालांकि यूरोपीय संघ के प्रमुख राजनयिक फेडेरिका मोघेरिनी ने कहा है कि वे परमाणु संधि को बाकी के मामलों से अलग रखेंगे. उन्होंने कहा कि ईरान को देश में फैली अशांति पर जवाब देना होगा. पिछले दिनों सरकार विरोधी प्रदर्शनों में ईरान में 21 लोगों की जान गयी है.
सूत्रों के मुताबिक बुधवार तक राष्ट्रपति ट्रंप ने संधि से जुड़ा कोई फैसला नहीं किया है. वहीं ब्रिटेन के विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि ब्रिटेन "व्हाइट हाउस में अपने मित्रों से आग्रह कर रहा है" कि इस संधि को खत्म ना किया जाए. इस से पहले ईरान ने तीखे स्वर में कहा था कि अगर अमेरिका इस समझौते से दूर होता है, तो ईरान "उपयुक्त और भारी प्रतिक्रिया" देने के लिए तैयार है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने कई बार कहा है कि ईरान समझौते के अनुसार अपना वादा निभा रहा है और उसने कभी भी इसका हनन नहीं किया है.
डॉनल्ड ट्रंप ने अक्टूबर 2017 में इस समझौते को रद्द करने का आह्वान करते हुए ईरान पर समझौते का कई बार उल्लंघन करने का आरोप लगाया था, जिसे ईरान ने सिरे से खारिज कर दिया था. ट्रंप आरोप लगाते रहे हैं कि ईरान परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए करता है, जिससे अमेरिका समेत दुनिया की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. वहां ईरान इससे इनकार करता रहा है.
आईएएनएस/आईबी
क्या है हाइड्रोजन बम?
सितंबर महीने की शुरुआत में उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम के परीक्षण का दावा किया. उत्तर कोरिया से बाहर के विशेषज्ञों के लिए इन दावों की पुष्टि करना मुश्किल है लेकिन यह मुमकिन हो सकता है. आखिर ये हाइड्रोजन बम है क्या?
उत्तर कोरिया ने सितंबर महीने में अपना छठा परमाणु परीक्षण करने के साथ यह दावा भी किया कि उसने पहली बार हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है. कई और देश भी हैं जिन्होंने हाइड्रोजन बमों का परीक्षण किया है.
अमेरिका ने हाइड्रोजन बम का पहला सफल परीक्षण किया था. इस दौरान 10 हजार किलोटन ऊर्जा का उत्पन्न हुआ था जो हिरोशिमा और नागासाकी पर गिरे बम की तुलना में कई सौ गुना ज्यादा है. माना जा रहा है कि उत्तर कोरिया के बम से 140 किलोटन ऊर्जा निकली होगी.
तस्वीर: AP
हाइड्रोजन बम का असर
यह मार्शल द्वीप का बिकिनी अटॉल है जहां अमेरिका ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था. इस परीक्षण की वजह से इस विशाल गड्ढे का निर्माण हुआ इसके साथ ही यहां की कोरल रीफ बुरी तरह से प्रभावित हुईं.
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भारी उष्मा ऊर्जा की जरूरत
हाइड्रोडन बमों को थर्मोन्यूक्लियर बम भी कहा जाता है क्योंकि संलयन की प्रक्रिया के लिए बहुत ज्यादा उष्मा उर्जा की जरूरत होती है. हाइड्रोजन बमों की प्रक्रिया दो चरणों वाली होती है. पहले चरण में परमाणु नाभिक का विखंडन होता है. इसके बाद हाइड्रोजन आइसोटोप आपस में जुड़ना शुरू करते हैं जो इस प्रक्रिया का दूसरा चरण है.
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मिसाइल में फिट हो सकता है
यह वो परमाणु बम है जो जापान पर गिराया गया था, यह काफी बड़ा था. इसे गिराने के लिए खास क्षमता से लैस लड़ाकू विमान की जरूरत होती है. बहुत ज्यादा ताकवर होने के कारण हाइड्रोजन बमों को इतने छोटे आकार में बनाया जा सकता है कि इन्हें मिसाइल के जरिये गिराया जा सके.
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पांच देशों के पास हैं हाइड्रोजन बम
दुनिया के पांच सबसे ज्यादा ताकतवर देशों के पास हाइड्रोजन बम है. तस्वीर में ब्रिटेन का डगलस डकोटा विमान दिख रहा है. मध्य प्रशांत महासागर के क्रिसमस द्वीप पर रॉयल एयर फोर्स के इंजीनियर इसे हाइड्रोजन बम के परीक्षण के लिए तैयार कर रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/Fox PhotosHulton Archive
हाइड्रोजन बम गिराने वाला विमान
यह है बी 52 बमवर्षक विमान जिस पर क्रूज मिसाइलें लगी हैं. इस विमान को अमेरिका ने हाइड्रोजन बम गिराने के लिए तैयार किया था हालांकि इसका इस्तेमाल नहीं हुआ. अमेरिका वायु सेना अब इसका इस्तेमाल दूसरे पारंपरिक बम गिराने के लिए करती है.
तस्वीर: AP
प्रशांत महासागर में परीक्षण
इस पुरानी तस्वीर में प्रशांत महासागर के उन इलाकों को देखा जा सकता है जहां अमेरिका ने हाइड्रोजन बमों के परीक्षण की तैयारी की थी. इनमें से ज्यादातर परीक्षणों को अंजाम दे दिया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Gunder
पांच देशों के पास हैं हाइड्रोजन बम
दुनिया के पांच सबसे ज्यादा ताकतवर देशों के पास हाइड्रोजन बम है. इनमें अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन शामिल हैं. इन देशों ने परमाणु क्षमता को अपने देश में तो खूब विस्तार किया है लेकिन साथ ही कोशिश भी की है कि दूसरे देशों तक यह तकनीक नहीं पहुंचे.
तस्वीर: Imago/Zuma Press
और भी हैं हाइड्रोजन बम वाले देश
भारत और पाकिस्तान के साथ ही उत्तर कोरिया ने परमाणु ताकत हासिल कर ली है. इन देशों के पास हाईड्रोजन बम भी हैं. इस्रायल एक और देश है जिसके पास परमाणु ताकत है लेकिन वह इसके बारे में ना तो कोई दावा करता है ना ही इससे इनकार.