रूस यूरोप को गैस सप्लाई करने के बजाए उसे जला रहा है. मॉस्को पर आरोप लग रहे हैं कि वह जानबूझकर ऐसा कर रहा है.
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के डाटा के मुताबिक, रूसी कंपनी गाजप्रोम 17 जून से लगातार गैस जला रही है. यह गैस पोर्तोवा कंप्रेसर स्टेशन में जलाई जा रही है. आग की धधक इतनी बड़ी है कि उसे रूस के पड़ोसी देश फिनलैंड से भी देखा जा सकता है.
यूक्रेन युद्ध से पहले इस गैस का ज्यादातर हिस्सा नॉर्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन से यूरोप भेज दिया जाता था. लेकिन अब रूस यूरोप को दी जाने वाली गैस में कटौती कर रहा है. जर्मन मीडिया में इस तरह की रिपोर्टें भी हैं कि जो गैस जर्मनी को मिलनी चाहिए थी, रूस उसी को जला रहा है. जर्मन अखबार दी वेल्ट के मुताबिक जिस जगह गैस जलाई जा रही है, वह प्वाइंट नॉर्ड स्ट्रीम1 का स्टेशन है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों से नाराज रूस ने बीते जुलाई मध्य से गैस की सप्लाई बहुत कम कर दी है.
रूस की सरकारी गैस कंपनी गाजप्रोम, जर्मनी को 80 फीसदी कम गैस सप्लाई कर रही है. गाजप्रोम का कहना है कि टरबाइन और दूसरी तकनीकी समस्याओं के कारण ये कटौती की जा रही है. जर्मनी ने गाजप्रोम के इस बयान को बहाना करार दिया है. बर्लिन का कहना है कि मॉस्को गैस को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है.
यूक्रेन युद्ध से पहले जर्मनी अपनी कुल गैस सप्लाई का 55 फीसदी हिस्सा रूसी गैस से पूरा करता था. जर्मनी के अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, स्पेन, डेनमार्क, फिनलैंड, पोलैंड, इटली, नीदरलैंड्स और स्विटजरलैंड जैसे देशों में कई कारखाने और बिजलीघर रूसी गैस से चलते हैं. यूरोपीय संघ के 27 देश करीब 38 फीसदी गैस रूस से खरीदते हैं.
पेट्रोलियम रिफाइनरी में गैस को जलाना एक सामान्य प्रक्रिया है. हालांकि जिस कदर रूस अचानक बड़ी मात्रा में गैस जलाने लगा है कि उससे कई चीजें पता चलती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि रूस हर दिन जमीन से खूब गैस निकालता तो है लेकिन उसके पास उसे स्टोर करने करने के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं.
नेचुरल गैस और एलएनजी में अंतर
जमीन की गहराई से निकालनी जाने वाली प्राकृतिक पेट्रोलियम गैस को 162 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ठंडा और कंप्रेस कर तरल अवस्था में बदला जा सकता है. ऐसा करने से गैस का घनत्व बेहद कम हो जाता है और इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) नाम दिया जाता है. तरल में बदलने के बाद ही गैस को टैंकरों के जरिए ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है. लेकिन तरल में बदलने की प्रक्रिया खर्चीली है. इस ईंधन को बिना तरल में बदले गैसीय अवस्था में ट्रांसपोर्ट करने के लिए पाइपलाइन की जरूरत पड़ती है. नॉर्ड स्ट्रीम1 यही काम करती है.
कच्चे तेल से क्या क्या मिलता है
कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल या डीजल ही नहीं मिलता है, इससे हर दिन इस्तेमाल होने वाली ढेरों चीजें मिलती हैं. एक नजर कच्चे तेल से मिलने वाले अहम उत्पादों पर.
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ब्यूटेन और प्रोपेन
कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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तरल ईंधन
प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है. फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है.
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नैफ्था
पेट्रोल, कैरोसिन और डीजल बनाने की प्रक्रिया में जो अपशेष मिलता है, उससे बेहद ज्वलनशील तरल नैफ्था भी बनाया जाता है. नैफ्था का इस्तेमाल पॉकेट लाइटरों में किया जाता है. उद्योगों में नैफ्था का इस्तेमाल स्टीम क्रैकिंग के लिए किया जाता है. नैफ्था सॉल्ट का इस्तेमाल कीड़ों से बचाव के लिए किया जाता है.
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नैपाम
कच्चे तेल से मिलने वाला नैपाम विस्फोटक का काम करता है. आग को बहुत दूर भेजना हो तो नैपाम का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह धीमे लेकिन लगातार जलता है. पेट्रोल या कैरोसिन के जरिए ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बहुत जल्दी जलते हैं और तेल से वाष्पीकृत भी होते हैं.
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मोटर ऑयल
गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है.
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ग्रीस
मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.
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पेट्रोलियम जेली
आम घरों में त्वचा के लिए इस्तेमाल होने वाला वैसलीन भी कच्चे तेल से ही निकलता है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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मोम
ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था.
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चारकोल
असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है.
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प्लास्टिक
कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.