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पचास साल में पहली बार चांद पर पहुंचने की कोशिश में रूस

११ अगस्त २०२३

रूसी स्पेस एजेंसी फिर से चांद पर पहुंचने की कोशिश में जुट गई है. करीब 50 साल पहले सोवियत यूनियन के दौर में चांद पर पहुंचने के बाद रूस की यह पहली कोशिश है. मिशन का लक्ष्य है, चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास जमा पानी खोजना.

उड़ान भरने के बाद रूस का सोयूज-2.1बी रॉकेट
सोयूज-2.1बी रॉकेट शुक्रवार की सुबह लॉन्च किया गयातस्वीर: Sergei Savostyanov/TASS/dpa/picture alliance

करीब पचास साल बाद रूस फिर से चांद पर पहुंचने की कोशिश कर रहा है. रूस चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बनना चाहता है. लूना-25 नाम का स्पेसक्राफ्ट, सोयूज रॉकेट की मदद से वॉस्तोचनी कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया.

रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस के प्रमुख यूरी बोरिसोव के मुताबिक लॉन्च सफल रहा. रूसी स्पेस एजेंसी का कहना है कि रॉकेट पांच दिन में चांद पर पहुंच जाएगा. इसके बाद रूसी मिशन का क्राफ्ट तीन संभावित लैंडिग साइट में से किसी एक पर उतरने से पहले चांद के ऑर्बिट में सात दिन बिताएगा.

 

चांद पर पानी की खोज

लूना-25 मिशन का लक्ष्य चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना है. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए रूसी, अमेरिकी, चीनी, भारतीय, जापानी और इस्राएली मिशन कई वर्षों से होड़ कर रहे हैं. दरअसल यहां पर जमी हुई अवस्था में पानी मिलने की संभावना है. लूना-25 मिशन भी इसी जमे पानी की खोज करेगा. इसके लिए वह यहां पर चांद की सतह को 6 इंच खोदेगा.

लूना-25 के लिए वैज्ञानिक उपकरणों के प्लानिंग ग्रुप के प्रमुख मैक्सिम लित्वाक ने बताया, "वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका सबसे अहम काम, उस जगह पर लैंड करना होगा, जहां पहले कोई नहीं पहुंचा." उनके मुताबिक, "जहां लूना-25 को लैंड होना है, वहां की मिट्टी में बर्फ होने के संकेत मिले हैं, इन संकेतों को ऑर्बिट से मिले डाटा में देखा जा सकता है."

असल मकसद राजनीतिक होड़

रूस और विदेश मामलों पर नजर रखने वाले जानकारों के मुताबिक इस मिशन की भू-राजनैतिक भूमिका भी है. रूसी अंतरिक्ष कार्यक्रम के विश्लेषक विताली इगोरोव ने कहा, "चंद्रमा का अध्ययन लक्ष्य ही नहीं है. लक्ष्य है, दो महाशक्तियों, चीन-अमेरिका और कुछ अन्य देशों के बीच राजनीतिक होड़, जो अंतरिक्ष की महाशक्ति का खिताब हासिल करना चाहते हैं."

वॉस्तोचनी कॉस्मोड्रोम नाम के जिस स्पेस स्टेशन से इस मिशन को लॉन्च किया गया, पिछले साल यहीं पर हुए एक कार्यक्रम में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था, "मुसीबतों और हमें रोकने के बाहरी प्रयासों के बावजूद हम अपने पूर्वजों की आकांक्षाओं के मुताबिक चल रहे हैं."

भारतीय मिशन भी चांद के रास्ते पर

लूना-25 की प्रतिस्पर्धा भारतीय स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान-3 से होगी. भारत का चंद्रमिशन पहले ही लॉन्च किया जा चुका है. दोनों ही देशों का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक-दूसरे से पहले उतरने का होगा. चंद्रमा पर लैंडिंग की संभावित तारीख 25 अगस्त मानी जा रही है.

फिर चांद छूने की कोशिश करेगा भारत

चंद्रयान-3 का कार्यक्रम चंद्रमा की सतह पर दो हफ्ते तक अलग-अलग तरह के वैज्ञानिक परीक्षण करने का है. जबकि लूना-25 चंद्रमा की सतह पर एक साल तक अपने वैज्ञानिक परीक्षण करता रहेगा.

अंतरिक्ष कार्यक्रमों के मामले में रूसी महत्वाकांक्षा

साल 1959 में ही सोवियत रूस चांद पर मिशन को लैंड कराने वाला पहला देश बन गया था. हालांकि बाद में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की होड़ मंगल और अन्य ग्रहों की ओर मुड़ गई. 1991 में सोवियत यूनियन के विघटन के बाद से ही रूस धरती की कक्षा के बाहर कोई मिशन नहीं भेज पा रहा था.

क्या चंद्रयान से पहले चांद पर पहुंच जाएगा रूस का रॉकेट?

अब रूस ने पश्चिमी देशों की ओर से लगे प्रतिबंधों के बावजूद अपने अंतरिक्ष अभियान को जारी रखने का फैसला किया है. इसके लिए उसने अपने उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले यूरोपियन स्पेस एजेंसी के कलपुर्जों को रूस में ही बने पुर्जों से बदल दिया है. लूना-25 की लॉन्चिंग एक बड़े रूसी अंतरिक्ष अभियान का हिस्सा है, जिसके तहत रूस 2040 तक चंद्रमा पर एक स्पेस स्टेशन का निर्माण करना चाहता है.

एडी/एनआर (एएफपी/एपी/रॉयटर्स)

हर रात चांद निकलने की जगह के साथ-साथ टाइम भी बदलता है

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