करीब 50 सालों में पहली बार भारत और चीन के बीच हिमालयी सीमा पर हुई हिंसक मुठभेड़ के एक हफ्ते बाद दोनों पक्षों ने हालात शांत करने पर सहमति बना ली है.
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एलएसी या लाइन ऑफ एक्चूअल कंट्रोल पर 15 जून को हुई हिंसा में भारतीय सेना के 20 लोगों ने जान गंवाई थी. 1975 के बाद से यहां इतने बड़े स्तर की कोई वारदात नहीं हुई थी. इस मुठभेड़ के बाद से दोनों एशियाई महाशक्तियों के बीच तनाव गहराने लगा था और संबंध खराब होते दिख रहे थे.
दोनों पक्षों के बीच बनी सहमति की जानकारी देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि दोनों पक्षों के शीर्ष स्थानीय सैन्य कमांडरों के बीच हुई है और दोनों "हालात को ठंडा करने के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए तैयार हैं." समाचार एजेंसी पीटीआई ने लिखा है कि भारत की तरफ से 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन की ओर से तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक के मेजर जनरल ने बातचीत में हिस्सा लिया. भारत की ओर से अब तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. लद्दाख क्षेत्र में आगे की रणनीति पर भी खुलासे का इंतजार है.
रूस में भारतीय रक्षा मंत्री
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस समय रूस के दौरे पर हैं. 23 जून की देर शाम भारत, चीन और रूस के विदेश मंत्रियों का वर्चुअल सम्मेलन होने से पहले ही भारत-चीन का यह विवाद सुलझा लिया गया. इस बैठक में खास तौर पर कोरोना वायरस महामारी पर चर्चा और दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने की 75वीं वर्षगांठ मनाई जानी है.
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव पहले ही कह चुके थे कि उन्हें नहीं लगता कि भारत और चीन के बीच रूस को मध्यस्थता करने की कोई जरूरत है. इन दोनों ही देशों को रूस बहुत ज्यादा हथियारों का निर्यात करता है. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट छापी है कि राजनाथ सिंह अपने इस दौरे में रूस पर दबाव बनाने की कोशिश करेंगे कि वह भारत को एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम और फाइटर विमानों, टैंकों, पनडुब्बियों के पार्ट्स की फास्ट-ट्रैक डिलिवरी करने का प्रयास करे.
कोरोना काल में भी भारत की समारोही उपस्थिति
यूरोप में विश्व युद्ध खत्म होने की 75वीं वर्षगांठ पर रूस में आयोजित हो रहे कार्यक्रमों में भारतीय रक्षा मंत्री खुद हिस्सा लेने पहुंचे हैं. राजधानी मॉस्को के लाल चौक पर बड़ी सैन्य परेड का आयोजन होना है. विजय दिवस की परेड पहले 9 मई को होनी थी जिसे कोरोना के चलते टाल दिया गया था. अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन रूस में परेड आयोजित करने को लेकर चेतावनी दे चुका है लेकिन रूस ने अपनी योजना नहीं बदली.
सोवियत संघ की ओर से लड़ने वाले करीब 2.7 करोड़ लोग इस विश्व युद्ध में मारे गए थे. हाल ही में रूसी राष्ट्रपति ने एक अमेरिकी जर्नल में इस पर लेख लिखा है कि कैसे नाजी जर्मनी को पहले सोवियत सेनाओं ने हराया और उसी से युद्ध की समाप्ति संभव हुई. ऐतिहासिक रूप से पोलैंड और रूस के इस पर मतभेद रहे हैं कि युद्ध शुरू किसने किया. इसकी शुरुआत 1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर पश्चिम से जर्मनी के हमले से मानी जाती है. इसके बाद फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी पर धावा बोल दिया और उसके बाद सोवियत सेना ने पूर्वी पोलैंड पर कब्जा कर लिया था.
साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 3.6 प्रतिशत तक बढ़ा है. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. सीपरी के रिसर्चर नान तिआन ने बताया, "शीत युद्ध के खत्म होने के बाद सैन्य खर्च का यह चरम है."
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अमेरिका
सभी देशों में पहला स्थान अमेरिका का है, जिसने अनुमानित 732 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.3 प्रतिशत ज्यादा है और पूरी दुनिया में हुए खर्च के 38 प्रतिशत के बराबर है. 2019 अमेरिका के सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार दूसरा साल रहा. इसके पहले, सात साल तक अमेरिका के सैन्य खर्च में गिरावट देखी गई थी.
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चीन
दूसरे स्थान पर है चीन जिसने अनुमानित 261 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.1 प्रतिशत ज्यादा था. पिछले 25 सालों में चीन का खर्च उसकी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ही बढ़ा है. उसका निवेश उसकी एक "विश्व स्तर की सेना" की महत्वाकांक्षा दर्शाता है. तिआन का कहना है, "चीन ने खुल कर कहा है कि वो दरअसल एक सैन्य महाशक्ति के रूप में अमेरिका के साथ प्रतियोगिता करना चाहता है."
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भारत
तीसरे स्थान पर भारत है. अनुमान है कि 2019 में भारत का सैन्य खर्च लगभग 71 अरब डॉलर रहा, जो 2018 में किए गए खर्च से 6.8 प्रतिशत ज्यादा था. विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के ही हैं.
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रूस
2019 में रूस ने अपना सैन्य खर्च 4.5 प्रतिशत बढ़ा कर 65 अरब डॉलर तक पहुंचा दिया. ये रूस की जीडीपी का 3.9 प्रतिशत है और सिपरी के रिसर्चर अलेक्सांद्रा कुईमोवा के अनुसार ये यूरोप के सबसे ऊंचे स्तरों में से है.
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सऊदी अरब
सऊदी अरब ने 61.9 अरब डॉलर खर्च किया. इन पांचों देशों का सैन्य खर्च पूरे विश्व में होने वाले खर्च के 60 प्रतिशत के बराबर है.
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जर्मनी
सिपरी के अनुसार, ध्यान देने लायक अन्य देशों में जर्मनी भी शामिल है, जिसने 2019 में अपना सैन्य खर्च 10 प्रतिशत बढ़ा कर 49.3 अरब डॉलर कर लिया. सबसे ज्यादा खर्च करने वाले 15 देशों में प्रतिशत के हिसाब से यह सबसे बड़ी वृद्धि है. रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, जर्मनी के सैन्य खर्च में वृद्धि की आंशिक वजह रूस से खतरे की अनुभूति हो सकती है.
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अब हो सकती है कटौती
सिपरी के रिसर्चर नान तिआन के अनुसार, "कोरोना वायरस महामारी और उसके आर्थिक असर की वजह से यह तस्वीर पलट भी सकती है. दुनिया एक वैश्विक मंदी की तरफ बढ़ रही है और तिआन का कहना है कि सरकारों को सैन्य खर्च को स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च की जरूरतों के सामने रख कर देखना होगा. तिआन कहते हैं, "हो सकता है एक साल से ले कर तीन साल तक खर्चों में कटौती हो, लेकिन उसके बाद के सालों में फिर से वृद्धि होगी."