चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने की सोच रहे हैं रूस-चीन
६ मार्च २०२४
रूस और चीन, चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने पर विचार कर रहे हैं. रूस का दावा है कि इससे जुड़ी कई तकनीकी चुनौतियों का समाधान भी मिल गया है.
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रूस की स्पेस एजेंसी रॉस्कॉस्मॉस के प्रमुख यूरी बोरिसोव ने बताया कि दोनों देश साथ मिलकर एक लूनर प्रोग्राम पर काम कर रहे हैं. इसमें रूस "परमाणु अंतरिक्ष ऊर्जा" पर अपनी विशेषज्ञता साझा करेगा.
बोरिसोव ने कहा, "अभी हम गंभीरता से एक प्रॉजेक्ट पर विचार कर रहे हैं, चीन के सहकर्मियों के साथ मिलकर 2033-35 तक चंद्रमा की सतह पर एक ऊर्जा संयंत्र बनाने पर विचार चल रहा है." बोरिसोव ने कहा कि भविष्य में चंद्रमा पर जैसी बसाहटों की योजना है, उसे सोलर पैनलों से पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाएगी.
मशीनों से निर्माण की योजना
न्यूक्लियर पावर प्लांट की संभावित योजना पर बोरिसोव ने आगे बताया, "यह बड़ी गंभीर चुनौती है. इसे ऑटोमैटिक तरीके से करना होगा, इंसानों की मौजूदगी के बिना." बोरिसोव ने यह भी बताया कि रूस परमाणु ऊर्जा पर आधारित कार्गो स्पेसक्राफ्ट बनाने की संभावनाएं भी खंगाल रहा है. उन्होंने दावा किया कि इस प्रॉजेक्ट से जुड़े तमाम तकनीकी पक्षों को सुलझाया जा चुका है, लेकिन अभी एक समाधान तलाशना बाकी है कि न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा कैसे किया जाएगा.
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इससे पहले अमेरिका में कुछ जानकारों ने अंदेशा जताया था कि रूस उपग्रहों के खिलाफ एक नए तरह के परमाणु हथियार को इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है, लेकिन बोरिसोव ने इन आशंकाओं को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि रूस की अंतरिक्ष में परमाणु हथियार भेजने जैसी कोई योजना नहीं है.
हमें चांद चाहिए: कहानी, इंसान और चांद की
इंसानी विकास का क्रम, चांद को देखने-समझने की क्रमवार यात्रा भी है. इसके पड़ावों में कौतुक भी है, भक्ति भी. वो कभी प्रेम-कामना का रूपक है, कभी भाग्य बांचने की कक्षा. देखिए इस यात्रा की कुछ झलकियां.
हजारों साल पहले जब हमारे पुरखे रात के आसमां को तकते होंगे, तो दूर ऊंचाई में दिखता होगा एक रोशन गोला. कभी उजली रोशनी में डूबा, कभी मलाई की परत सा पीला, तो कभी बुझा-बुझा, निस्तेज. घटता-बढ़ता. दिन में दिखने वाले उस भभकते गोल से बिल्कुल अलग, जिसकी रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं. तब चांद विस्मय और कौतुक का विषय रहा होगा.
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
पहला कैलेंडर
सुबह होती है. सूरज उगता है. दिन ढलता है. चांद उगता है. हमारे लिए इस क्रम में कुछ नया नहीं, कोई कौतुहल नहीं. लेकिन प्राचीन मानवों के लिए यह तयशुदा चक्र समय मापने का एक भरोसेमंद जरिया था. इंसानों का सबसे शुरुआती कैलेंडर. कैंब्रिज आर्कियोलॉजिकल जर्नल में छपे एक पेपर में शीत युग के कुछ गुफा चित्रों को चांद पर आधारित कैलेंडरों का सबसे शुरुआती साक्ष्य माना गया.
तस्वीर: BORJA SUAREZ/REUTERS
जब इंसान शिकारी था...
शीत युगीन कई गुफा चित्रों में खास तरह के डॉट और डैश मिलते हैं, जो जानवरों के चित्र के नजदीक बने हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये चिह्न अलग-अलग मौसमों में जानवरों के बर्ताव को दिखाते हैं. चूंकि तब मानव शिकार पर निर्भर थे, ऐसे में प्रजनन चक्र जैसी जानकारियां उनके लिए बेहद अहम थीं. अनुमान है कि इन जानकारियों के लिए लूनर कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: RAMI AL SAYED/AFP
चंद्र देवता
आगे चलकर जब मानव सभ्यताएं विकसित हुईं, तो कई जगहों पर चांद धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताओं का हिस्सा बना. मसलन प्राचीन मिस्र में खोंसू, चंद्रमा के देवता माने जाते थे. विश्वास था कि इंसान के मरने के बाद की यात्रा में खोंसू उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं. सुमेरियन सभ्यता में नाना/सेन को चंद्रमा का देवता माना जाता था. वो सबसे लोकप्रिय देवताओं में थे.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
आज भी होती है चंद्रमा की पूजा
कई संस्कृतियों में चांद को पूजे जाने का भी चलन रहा है. प्राचीन रोम में देवी लूना, चंद्रमा का ही दिव्य रूप थीं. रूस ने चंद्रमा पर जो मिशन भेजा, उसका नाम भी लूना ही था. भारत के कई हिस्सों में आज भी चंद्रमा की पूजा होती है. यहूदी परंपरा में "रोश होदेश" चांद का महीना माना जाता है. इसकी शुरुआत शुक्लपक्ष के चांद की पहली झलक से शुरू होती है. इस्लाम में भी रमजान और ईद का चांद के देखे जाने से नाता है.
तस्वीर: MARTIN BERNETTI/AFP
गीत, साहित्य, कविताएं...
लोक परंपरा और साहित्य में चांद के दर्जनों रूप हैं. बच्चों की लोरी में वो चंदा मामा है. बाल कृष्ण की कहानी में यशोदा चांद दिखाकर उन्हें बहलाती हैं. पुराने समय से लेकर आज तक, साहित्य और गीत-संगीत में चांद कई तरह के रूपकों में इस्तेमाल होता आ रहा है. हिंदी फिल्मी गानों को ही लीजिए, तो चांद की उपमा वाले दर्जनों गाने आपको मुंहजुबानी याद होंगे.
1960 के दशक में जब चांद पर जाने की होड़ शुरू हुई, तो यह वाकई मानव सभ्यता के लिए बड़ी छलांग थी. सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों दौड़ जीतना चाहते थे. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. इसके बाद कई "फर्स्ट" वाले पल आए. जैसे, पहली सॉफ्ट लैंडिंग. चांद की सतह की पहली तस्वीर. चांद के पास से पहली बार गुजरना.
तस्वीर: NASA/CNP/AdMedia/picture alliance
वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन...
फिर आई चांद के इतिहास की सबसे यादगार तारीख: 16 जुलाई, 1969. इसी दिन नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद की जमीन पर पैर धरा. बाद में अपना अनुभव बताते हुए नील ने ऐतिहासिक पंक्ति कही: वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड. तस्वीर में: चांद की जमीन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते का निशान.
तस्वीर: NASA/Heritage Images/picture alliance
इतना अविश्वसनीय कि बहुतों को अब भी संदेह
यह इतनी अद्भुत उपलब्धि थी, इतनी हैरतअंगेज कि कई लोग आज तक इसपर यकीन नहीं कर पाए हैं. कन्सपिरेसी थिअरीज के कई मुरीद आज भी कहते हैं कि वो लैंडिंग एक झूठ थी. उनके तर्कों की एक मिसाल: जब चांद पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो झंडा फहराया कैसे? 2019 का एक चर्चित वायरल वीडियो है, जिसमें बज आल्ड्रिन ऐसे ही एक "लैंडिंग डिनायर" से नाराज होकर उसे घूंसा मारते हैं.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
फिर से दौड़ लगी है...
अगस्त 2007 में एक रूसी झंडे की खूब चर्चा हुई. यह झंडा आर्कटिक की तलछटी में लगाया गया था. वहां के संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए यह रूस की सांकेतिक दावेदारी मानी गई. तब पश्चिमी देशों ने रूस को याद दिलाया कि ये 15वीं सदी नहीं है कि झंडा गाड़ो और कहो, आज से ये जमीन हमारी! हाल के दशकों में चंद्रमा के लिए फिर से एक दौड़ शुरू हुई है. तो क्या चंदा किसी दिन रूप और शीतलता के रूपकों से हटकर संसाधन बन जाएगा?
तस्वीर: ingimage/IMAGO
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रूस चंद्रमा पर खनन की महत्वाकांक्षी योजना के बारे में भी बात कर चुका है. हालांकि, हालिया सालों में रूस की अंतरिक्ष योजनाएं बहुत कामयाब नहीं रही हैं. पिछले साल रूस के लूना-25 अंतरिक्षयान ने चंद्रमा पर सुरक्षित लैंड होने की नाकाम कोशिश की थी. इसके बाद रूस ने कहा कि वो आगे भी चंद्रमा पर अभियान भेजेगा और चीन के साथ मिलकर मानव मिशन भेजने और यहां तक कि चंद्रमा पर एक बेस बनाने की संभावनाएं भी तलाशेगा.
चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम
मार्च 2021 में रूस और चीन ने चंद्रमा पर एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च स्टेशन बनाने के समझौते पर दस्तखत किए थे. चीन का अपना एक अलग लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम भी है. चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत तो धीमी रही, लेकिन बीते सालों में वह ना केवल बहुत तेजी से बढ़ा है, बल्कि उसकी महत्वाकांक्षाएं भी बहुत विशाल हुई हैं.
1957 में जब तत्कालीन सोवियत संघ ने दुनिया का पहला सैटेलाइट लॉन्च किया, उसके बाद जल्द ही चीन ने भी अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की घोषणा की. लेकिन उसे अपना उपग्रह छोड़ने में 13 साल लग गए. साल 1992 में उसने मानव को अंतरिक्ष में भेजने की एक योजना आधिकारिक तौर पर शुरू की.
अक्टूबर 2003 में यांग लिवेई अंतरिक्ष पहुंचने वाले चीन के पहले इंसान बने. चीन के लूनर प्रोग्राम के तहत 2013 में पहली बार चांग ई-3 चंद्रमा की सतह पर उतरा. 2020 में चीन का चांग ई-5 चंद्रमा से नमूने लेकर पृथ्वी पर आया. पिछले महीने चीन ने कहा था कि वह साल 2030 तक अपने पहले अंतरिक्षयात्री को चांद पर उतारने की तैयारी कर रहा है.
चीन का अंतरिक्ष अभियान बस चंद्रमा तक सीमित नहीं है. 2021 में चीन के तियानवेन-1अभियान ने मंगल ग्रह की सतह पर एक रोवर उतारने में सफलता पाई. अमेरिका के बाद अकेला चीन ही अब तक मंगल पर रोबोटिक रोवर उतार पाया है. अब चीन 2033 तक यहां एक मानव अभियान भेजने की तैयारी कर रहा है.