रूस ने नाटो में अपना दूतावास बंद कर दिया है. मॉस्को में नाटो के दफ्तर को बंद करने के भी आदेश दे दिए गए हैं. हाल ही में नाटो की कार्रवाई के बदले रूस ने यह कदम उठाया है.
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नाटो द्वारा अपने कूटनीतिज्ञों के खिलाफ कार्रवाई का बदला लेते हुए रूस ने नाटो को मॉस्को में अपना दफ्तर बंद करने का आदेश दिया है. उसने नाटो स्थित अपना मिशन भी बंद कर दिया है.
इसी महीने नाटो ने ब्रसेल्स के अपने मुख्यालय में काम कर रहे रूस के आठ आधिकारियों की मान्यता रद्द कर दी थी. पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो ने आरोप लगाया था कि ये अधिकारी रूसी जासूस थे. इसके साथ ही नाटो ने अपने मुख्यालय में मॉस्को के अधिकारियों की संख्या 20 से घटाकर आधी कर दी थी.
तस्वीरों मेंः अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध
अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध
अमेरिका ने सबसे ज्यादा समय तक किसी विदेशी धरती पर युद्ध लड़ा है तो वह है अफगानिस्तान. अमेरिका 9/11 के आतंकी हमले के बाद अफगानिस्तान पर धावा बोला था. तस्वीरों में देखिए अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध.
तस्वीर: U.S. Central Command/dpa/picture alliance
अफगानिस्तान युद्ध
अफगानिस्तान में अमेरिका का अभियान साल 2001 से शुरू होकर 2021 में खत्म हुआ. यह करीब 20 साल तक चला. अफगानिस्तान में 2400 के करीब अमेरिकी सैनिकों की मौत हुई जबकि 20,660 अमेरिकी सैनिक युद्ध के दौरान घायल हुए. तालिबान का कहना है कि उसकी जंग में जीत हुई है.
तस्वीर: Isaiah Campbell/US MARINE CORPS/AFP
वियतनाम युद्ध
वियतनाम में 1964 तक सीआईए और दूसरे स्रोतों से मिली जानकारी को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम में लुकी छिपी जंग शुरू कर दी. जमीन पर 1965 में युद्ध तेज हुआ और 1969 में चरम पर पहुंचा. उस समय तक करीब साढ़े पांच लाख सैनिक इसमें शामिल हो चुके थे. 10 साल की लड़ाई और 58,000 अमेरिकी सैनिकों के मरने के बाद 30 अप्रैल 1975 को साइगोन (हो-ची मिन्ह सिटी) पर वियतनाम का कब्जा हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/UPI
इराक युद्ध
इराक में अमेरिकी फौज साल 2003 से लेकर 2012 तक जंग लड़ी. अमेरिकी हमले के बाद इराक को सद्दाम हुसैन से छुटकारा तो मिला लेकिन लाखों लोग युद्ध के बाद मारे गए. अमेरिका का आरोप था कि इराक के पास सामूहिक विनाश के हथियार हैं. हालांकि इसको साबित नहीं कर पाया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S.Zaklin
द्वितीय विश्व युद्ध
अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में 8 सितंबर 1941 को प्रवेश किया और 1945 तक युद्ध में रहा. करीब तीन साल 8 महीने अमेरिका ने जंग में भाग लिया और उस दौरान हजारों अमेरिकी सैनिक मारे गए.
तस्वीर: picture alliance/Usis-Dite/Lee
कोरियाई युद्ध
अमेरिका ने कोरियाई युद्ध 1950 से लेकर 1953 तक लड़ा. यह युद्ध 3 साल एक महीने तक चला था.
तस्वीर: picture-alliance/CPA Media/Pictures From History
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मॉस्को ने नाटो के इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने जवाबी कार्रवाई करते हुए नाटो के दफ्तर को बंद करने का आदेश दिया. सोमवार को उन्होंने ऐलान किया कि रूस नाटो में अपना मिशन भी बंद कर रहा है.
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सारे संपर्क खत्म
लावरोव ने कहा कि नाटो ने साबित कर दिया है कि वे "किसी तरह के सहयोग या बातचीत में रुचि नहीं रखते और हमें नहीं लगता कि यह दिखावा करने की भी कोई जरूरत है कि निकट भविष्य में कुछ बदलने वाला है. रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि नाटो के साथ संपर्क बेल्जियम में रूसी दूतावास के जरिए रखा जा सकता है.
लावरोव ने कहा, "नाटो के इस जानबूझकर उठाए गए कदम के नतीजतन किसी तरह के कूटनीतिक काम के हालात नहीं बचे हैं. और नाटो की कार्रवाई के प्रतिक्रियास्वरूप हम नाटो मे अपन स्थायी मिशन बंद कर रहे हैं. साथ ही मुख्य सैन्य दूत का काम भी बंद किया जाएगा, जो संभवतया 1 नवंबर से बंद हो सकता है या उसमें कुछ दिन लग सकते हैं.”
रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "नाटो की कार्रवाई यह पुष्ट करती है कि वे राजनीतिक और सैन्य तनाव करने के लिए समानता के स्तर पर बातचीत या किसी साझे काम के इच्छुक नहीं हैं. संगठन का हमारे देश के प्रति रुख लगातार आक्रामक होता जा रहा है.”
जानें, अफगानिस्तान में अमेरिका की 7 गलतियां
अफगानिस्तान में अमेरिका की 7 गलतियां
जिस तालिबान को हराने के लिए अमेरिका ने 20 साल जंग लड़ी, आज वह अफगानिस्तान पर काबिज है. अमेरिकी संस्था स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन ने इसी महीने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें सात सबक बताए गए हैं.
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images
स्पष्ट रणनीति नहीं
सिगार के मुताबिक विदेश और रक्षा मंत्रालय के पास कोई स्पष्ट रणनीति नहीं थी. तालिबान का खात्मा, देश का पुनर्निर्माण जैसे लक्ष्यों में कोई स्पष्टता नहीं थी.
तस्वीर: Michael Kappeler/AFP/Getty Images
संस्कृति और राजनीति की समझ नहीं
सिगार की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका अफगानिस्तान की संस्कृति और राजनीति को समझ नहीं पाया. इस कारण गलतियां हुईं. जैसे कि वहां ऐसी न्याय व्यवस्था बना दी जिसके अफगान आदि नहीं थे. या फिर अनजाने में एक पक्ष का साथ देकर स्थानीय विवादों को और उलझा दिया.
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images
दूरदृष्टि नहीं
अमेरिका के फैसलों में दूरदृष्टि की कमी को सिगार की रिपोर्ट ने रेखांकित किया है. सफलता के लिए कितना वक्त चाहिए, कितना धन चाहिए, कहां कितने लोग चाहिए इसकी कोई रणनीति नहीं थी. इस कारण ‘20 साल लंबी एक कोशिश’ के बजाय अभियान ‘एक-एक साल लंबी 20 कोशिशों’ में तब्दील हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ISAF
अधूरी योजनाएं
सिगार कहता है कि बहुत सारी विकास योजनाएं शुरू तो हुईं लेकिन पूरी नहीं की गईं. सड़कें, अस्पताल, बिजली घर आदि बनाने पर अरबों डॉलर खर्चे गए लेकिन उनकी देखभाल के लिए कोई जवाबदेही नहीं थी. लिहाजा वे या तो अधूरे रह गए या बर्बाद हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Marai
कुशल लोगों की कमी
सिगार की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिकी सेना और मददगार संस्थाओं के पास जमीन पर कुशल लोगों की कमी थी. इस कारण एक साल बाद जब एक दल घर गया तो नए लोग आए जिनके पास समुचित अनुभव नहीं था. इस कारण प्रशिक्षण में कमी रह गई.
तस्वीर: DW/S. Tanha
परेशान लोग
अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर लोग हिंसा से परेशान और डरे हुए थे जो आर्थिक विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बना. अफगान सेना को तैयारी का कम समय मिला और उसकी तैनाती जल्दबाजी में हुई.
तस्वीर: AP/picture alliance
गलतियों से सीख नहीं
सिगार का आकलन है कि अमेरिकी सरकार ने योजनाओं की समीक्षा पर समय नहीं बिताया और गलतियों से सबक नहीं लिया. इसलिए वही गलतियां दोहराई जाती रहीं.
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images
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मंत्रालय ने कहा कि ‘रूस के खतरे' को जानबूझ कर बढ़ाया-चढ़ाया जा रहा है ताकि संगठन के अंदर सदस्यों के बीच एकता मजबूत की जा सके और आधुनिक भू-राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता दिखाई जा सके.
नाटो की प्रतिक्रिया
रूस की कार्रवाई को नाटो ने अफसोसनाक बताया है. नाटो प्रवक्ता ओआना लंगेस्कू ने कहा, "हमें इन कदमों पर अफसोस है. रूस पर नाटो की नीति अविरुद्ध है. रूस की आक्रामक कार्रवाइयों के जवाब में हमने अपनी सुरक्षा और प्रतिरोधी कदमों को मजबूत किया है, पर साथ ही नाटो-रूस काउंसिल के जरिए बातचीत के रास्ते भी खुले रखे हैं.”
जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने लग्जमबर्ग में कहा कि मॉस्को का यह कदम मुश्किलें बढ़ाएगा और पिछले कुछ समय से जारी शीतकाल को और लंबा खींचेगा, जिससे रिश्तों में तनाव बढ़ेगा.
मास ने कहा, "बीते सालों में जर्मनी नाटो के भीतर लगातार रूस से बातचीत करने के लिए जोर लगाया है. और हमें एक बार फिर मानना होगा कि रूस अब नहीं है. यह बहुत अफसोस की बात है.”
रूसी मिशन का दफ्तर ब्रसेल्स में नाटो के मुख्यालय वाले भवन में नहीं है बल्कि पड़ोस में है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद नाटो ने उसके साथ व्यवहारिक सहयोग बंद कर दिया था लेकिन उच्च स्तरी बैठकों और सैन्य स्तर पर सहयोग के रास्ते खुले रखे थे.
लगातार बढ़ते तनाव के बीच रूस ने कई बार इस बात पर आपत्ति जताई है कि नाटो की सेनाएं रूसी सीमा के पास तैनात हैं और यह उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है. रूस और नाटो एक दूसरे पर सैन्य अभ्यास के जरिए अस्थिरता बढ़ाने का आरोप भी लगाते रहे हैं.