रूस ने अपनी नई परमाणु मिसाइल को अगले कुछ महीनों में तैनात करने का एलान किया है. हाल ही में टेस्ट की गई सरमत नाम की यह आईसीबीएम दुनिया में कहीं भी परमाणु हमले कर सकती है.
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रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकॉसमोस के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन ने परमाणु हथियार ढोने में सक्षम नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल को इसी साल पतझड़ (सितंबर-नवंबर) तक सेना में शामिल करने का एलान किया है. एक टेलिविजन इंटरव्यू में रोगोजिन ने कहा, "हमारी योजना पतझड़ के बाद की नहीं है."
रूस ने सरमत नाम की इस मिसाइल का पहला परीक्षण 20 अप्रैल 2022 को किया. फर्स्ट टेस्ट के बाद ही मिसाइल को सेना में शामिल करने का एलान चौंकाने वाला है. आमतौर पर मिसाइलों को कई परीक्षणों से गुजरने के बाद ही सेना को सौंपा जाता है. इस प्रक्रिया में अकसर एक से तीन साल का समय लगता है.
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख के मुताबिक आने वाले दिनों में सरमत के लगातार टेस्ट किए जाएंगे. मिसाइल का पहला टेस्ट बुधवार को उत्तरी रूस के प्लेसेतस्क स्पेसपोर्ट में किया गया. रूस ने इस परीक्षण का वीडियो भी सार्वजनिक किया. इस दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया कि यह हथियार रूस के दुश्मनों को दोबारा सोचने पर मजबूर करेगा. पुतिन ने कहा कि यह आईसीबीएम हर तरह के मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भेद सकती है और धरती पर कहीं भी मार कर कर सकती है.
कोई भी टारगेट भेदने का दावा
सरमत की रेंज 18,000 किलोमीटर है. मिसाइल उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव का लंबा रास्ता लेने के बावजूद धरती के किसी भी हिस्से तक पहुंच सकती है. यह मिसाइल एक बार में 10 परमाणु हथियार ढो सकती है.
फंडिंग और तकनीकी कमियों के कारण सरमत पर कई बरसों से काम चल रहा था. यूक्रेन युद्ध ने रूस को इस मिसाइल को फास्ट ट्रैक में डालने का बहाना दिया है. यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण इस वक्त अमेरिका और रूस, 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के बाद उपजे सबसे जोखिम भरे विवाद में उलझे हैं.
रूसी अधिकारियों का कहना है कि पहली सरमत मिसाइल साइबेरिया के क्रासनोयार्स्क में तैनात की जाएगी. रोगोजिन का कहना है कि यह सुपर हथियार एक ऐतिहासिक लम्हा है. यह अगले 30-40 साल तक रूस के बच्चों और पोते-पोतियों की सुरक्षा तय कर देगा.
पश्चिमी देशों का डर
यूक्रेन में 24 फरवरी 2022 से जारी भीषण जंग के फिलहाल थमने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. सरमत मिसाइल की तैनाती के एलान के बाद लग रहा है कि रूस भी लंबे युद्ध की तैयारी में है. युद्ध अगर सर्दियों तक खिंचा, तो नए समीकरण दिख सकते हैं. जर्मनी, पोलैंड, नीदरलैंड्स जैसे देशों में सर्दियों में घरों को गर्म रखने के लिए बड़े पैमाने पर रूसी गैस इस्तेमाल होती है. रूस से यूरोप बड़ी मात्रा में तेल और कोयला भी खरीदता है. यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोपीय देश सर्दियों के लिए अपना ऊर्जा भंडार भरने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि रूस पर निर्भरता कम से कम या करीबन खत्म की जा सके.
नाटो के सदस्य पश्चिमी देश यूक्रेन को बड़े पैमाने पर हथियार भी दे रहे हैं. अमेरिका, पोलैंड, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स, स्लोवाकिया, लिथुएनिया और जर्मनी जैसे देश अब तक करीब पौने दो अरब डॉलर की सैन्य सामग्री कीव को दे चुके हैं. इसमें कई किस्म के आधुनिक हथियार भी शामिल हैं.
रूसी सेना पर भारी पड़ रहे हैं यूक्रेन को मिले ये हथियार
छोटी सी यूक्रेनी सेना, रूस को इतनी कड़ी टक्कर कैसे दे रही है? इसका जवाब है, यूक्रेन को मिले कुछ खास विदेशी हथियार. एक नजर इन हथियारों पर.
ये अमेरिकी पोर्टेबल एंटी टैंक मिसाइलें हैं. इन्हें आसानी से कंधे पर रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है. पेड़ या इमारत की आड़ में छुपा एक सैनिक भी इसे अकेले ऑपरेट कर सकता है. इस मिसाइल ने यूक्रेन में रूसी टैंकों को काफी नुकसान पहुंचाया है.
यूक्रेन को अमेरिका और तुर्की ने बड़ी मात्रा में हमलावर ड्रोन मुहैया कराए हैं. बीते एक दशक में तुर्की हमलावर ड्रोन टेक्नोलॉजी में बहुत आगे निकल चुका है. अमेरिकी ड्रोन भी अफगानिस्तान में जांचे परखे जा चुके हैं. यूक्रेन को मिले इन ड्रोनों ने रूसी काफिले को काफी नुकसान पहुंचाया है.
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S-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम
स्लोवाकिया की सरकार ने यूक्रेन को रूस में बने S-300 एयरक्राफ्ट एंड मिसाइल डिफेंस सिस्टम दिया है. यह सिस्टम 100 किलोमीटर की दूरी से लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का पता लगा लेता है. इस सिस्टम के मिलने के बाद यूक्रेन के ऊपर रूसी लड़ाकू विमानों का प्रभुत्व कमजोर पड़ चुका है.
तस्वीर: AP
MI-17 हेलिकॉप्टर
अमेरिका ने यूक्रेन को रूसी MI-17 हेलिकॉप्टर भी दिए हैं. अमेरिका ने काफी पहले रूस से ये हेलिकॉप्टर खरीदे थे. रूस के यही हेलिकॉप्टर अब रूसी सेना के लिए आफत बन रहे हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देश अब तक यूक्रेन को 1.5 अरब डॉलर की सहायता दे चुके हैं.
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NLAW-लाइट एंटी टैंक वीपन
टैंकों को निशाना बनाने वाला बेहद हल्का यह मिसाइल सिस्टम स्वीडिश कंपनी साब बनाती हैं. 12.5 किलोग्राम वजन वाला ये सिस्टम 800 मीटर दूर तक सटीक मार करता है. ब्रिटेन ने अब तक ऐसे करीब 3600 लाइट एंटी टैंक वीपन यूक्रेनी सेना को दिए हैं.
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हमर और रडार सिस्टम
अमेरिका ने यूक्रेन को 70 हमर गाड़ियां दी हैं. साथ ही यूक्रेन को दी गई करोड़ों डॉलर की सैन्य मदद के तहत अमेरिका ने आधुनिक रडार सिस्टम और गश्ती नाव भी दी हैं.
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FIM-92 स्ट्रिंगर
एक इंसान के जरिए ऑपरेट किया जाने वाला FIM-92 स्ट्रिंगर सिस्टम असल में एक पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम है. अमेरिका में बनाया गया यह सिस्टम तेज रफ्तार लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टरों को निशाना बनाता है. अमेरिका और जर्मनी ने ऐसी 1900 यूनिट्स यूक्रेन को दी हैं.
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बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां
जर्मनी ने यूक्रेन की सेना को 80 बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां दी हैं. इन गाड़ियों से फायरिंग और रॉकेट लॉन्च किए जा सकते हैं. जर्मनी ने यूक्रेन को 50 एंबुलेंस भी दिए हैं.
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नीदरलैंड्स के हथियार
यूक्रेन को सबसे पहले सैन्य मदद देने वाले यूरोपीय देशों में नीदरलैंड्स भी शामिल है. डच सरकार ने कीव को 400 एंटी टैंक वैपन, 200 एंटी एयरक्राफ्ट स्ट्रिंगर मिसाइलें और 100 स्नाइपर राइफलें दीं.
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नाइट विजन इक्विपमेंट्स
अमेरिका से मिले नाइट विजन ग्लासेस भी यूक्रेनी सेना की बड़ी मदद कर रहे हैं. पश्चिमी देशों से मिले नाइट विजन चश्मे और ड्रोन, इंफ्रारेड व हीट सेंसरों से लेस है. रूस फिलहाल इस टेक्नोलॉजी में पीछे है.
तस्वीर: Philipp Schulze/dpa/picture alliance
इंटेलिजेंस सपोर्ट
अमेरिका और यूरोपीय संघ के पास ऐसी कई सैटेलाइट हैं जो बेहद हाई रिजोल्यूशन में धरती का डाटा जुटाती हैं. इन सैटेलाइटों और दूसरे स्रोतों से मिला खुफिया डाटा भी इस युद्ध में यूक्रेनी सेना की काफी मदद कर रहा है.
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इस मदद के बावजूद नाटो के देशों ने अभी तक पश्चिम का कोई लड़ाकू विमान यूक्रेन को नहीं दिया है. नाटो ने बार-बार यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित किए जाने की कीव की मांग को भी खारिज किया है. अमेरिका और यूरोप को डर है कि यूक्रेन युद्ध में सीधा दखल देने पर तीसरा विश्वयुद्ध भड़क सकता है. जर्मन सरकार बार-बार यह चेतावनी दे रही है.
मार्च में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुटेरेष ने भी कहा, "परमाणु युद्ध की संभावना, जो कभी कल्पना से भी परे हो चुकी थी, अब वह हकीकत के बहुत करीब लगती है."