क्या चंद्रयान से पहले पहुंच जाएगा रूस का रॉकेट लुना-25?
९ अगस्त २०२३
47 साल में पहली बार रूस चांद पर रॉकेट भेजेगा. भारत ने हाल ही में अपना एक यान चांद पर उतरने के लिए भेजा था. अब रूस का यान भी तैयार है.
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आने वाले शुक्रवार को रूस का नया यान चांद की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा. भारत के चंद्रयान की तरह यह भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की ओर उतरने की कोशिश करेगा, जहां पानी होने की संभावना है.
मॉस्को से लगभग 5,550 किलोमीटर पूर्व में वोस्तोचनी से यह यान शुक्रवार को छोड़ा जाएगा, जबकि भारत का यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर चुका है और 23 अगस्त को उसे सतह पर उतरना है.
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बहुत ऊबड़-खाबड़ है, इसलिए वहां किसी यान का उतरना बेहद मुश्किल माना जाता है. लेकिन तब भी विभिन्न देश वहां पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि वहां बर्फ मौजूद है, जिससे ईंधन, पानी और ऑक्सीजन निकाली जा सकती हैं, जो मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं.
भारत ने ऐसे अंतरिक्ष के सपने को हकीकत में बदला
'नंगे भूखों का देश आसमान को छूने चला है' - भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर पश्चिम के कुछ देशों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने ऐसे आलोचकों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
1962
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विक्रम साराभाई के अगुवाई में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की. संस्थापकों में साराभाई के साथ वैज्ञानिक केआर रमणनाथन भी थे.
तस्वीर: Keystone/Getty Images
1963
केरल के थुंबा गांव में पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र बनाने की तैयारी हुई. विषुवत रेखा के करीब होने के वजह से इस जगह का चुनाव किया गया. लेकिन बिल्कुल उपयुक्त जमीन पर सेंट मैरी माग्देलेने चर्च था. साराभाई ने चर्च के पादरी से बातचीत की. अंतरिक्ष में भारत का सपना पूरा करने के लिए चर्च ने भी अपनी जमीन विज्ञान के नाम कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1963
चर्च की जमीन पर बने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन से ही भारत ने पहली बार ऊपरी वायुमंडल तक जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास का पहला प्रक्षेपण था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. D´Souza
1969
अंतरिक्ष रिसर्च को भारत के विकास से जोड़ने के इरादे से एक खास संगठन इसरो की स्थापना की गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना में भी विक्रम साराभाई का अहम योगदान था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1971
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेस सेंटर की स्थापना की गई. लेकिन इसी साल विक्रम साराभाई का निधन भी हुआ. उनके निधन के बाद मशहूर गणितज्ञ सतीश धवन इसरो के चैयरमैन बने. धवन की याद में अब श्रीहरिकोटा के सेंटर को सतीश धवन स्पेस सेंटर कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ISRO
1975
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में लॉन्च किया. पूरी तरह भारत में ही डिजायन की गई इस सैटेलाइट को रूस के सहयोग से अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में यह घटना भी मील का पत्थर है.
तस्वीर: ISRO
1979
भारत ने पहली एक्सपेरिमेंटल रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर-1 अंतरिक्ष में भेजी. इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों से जंगलों और मौसम के बारे में जानकारियां मिली.
तस्वीर: picture-alliance/AP
1980
भारत ने पहली बार अंतरिक्ष तक जाने वाले रॉकेट सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (एसएलवी-3) का परीक्षण किया. इसके सफल परीक्षण के बाद भारत खुद अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हो गया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ही इस प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1980 में इसी रॉकेट की मदद से सैटेलाइट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेजा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kodikara
1984
एक संयुक्त मानव मिशन के तहत सोवियत संघ और भारत ने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा. इसी अभियान के जरिए राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट बने. शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन में आठ दिन बिताए.
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images
1993
भारत ने बेहद भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी बनाया. 1994 के बाद से अब तक पीएसएलवी भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बना रहा. इसने दर्जनों सैटेलाइटें और चंद्रयान व मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम दिया.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
1999
पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल की मदद से भारत ने विदेशी सैटेलाइटों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करना शुरू किया. भारत अब तक 33 देशों की 200 से ज्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
2008
इस मोड़ तक आते आते भारत अंतरिक्ष के मामले में बड़ी शक्ति बन गया. देश ने संचार, प्रसारण, शोध और सामरिक उद्देश्यों के लिए सैटेलाइटों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया. 2008 में चांद को छूने की ख्वाहिश में भारत ने भरोसेमंद पीएसएलवी से चंद्रयान-1 भेजा. यह भी ऐतिहासिक सफलता थी.
तस्वीर: picture alliance/Indian Space Research Organisati/ISRO
2014
जनवरी 2014 में भारत ने पहले अंतरग्रहीय मिशन का आगाज करते हुए मंगलयान भेजा. सितंबर में मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान ने अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी का एक और झंडा गाड़ा.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Sajjad Hussain
2017
एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइटों की उनकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने सबको चौंका दिया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/Manjunath Kiran
2018
15 जुलाई को भारत ने चंद्रमा के लिए अपना दूसरा मानवरहित मिशन चंद्रयान-2 भेजा. चंद्रयान-1 के जरिए दुनिया को चांद पर पानी होने के ठोस सबूत मिले. चंद्रयान-2 अब रिसर्च को और गहराई में ले जाएगा.
तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri
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रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकॉसमोस ने कहा कि लुना-25 नाम का एक यान पांच दिन यात्रा कर चांद पर पहुंचेगा और उसके बाद पांच से सात दिन तक कक्षा में रहेगा. तब वह किन्हीं तीन में एक जगह उतरने की कोशिश शुरू करेगा.
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भारत से मुकाबला?
जितनी जल्दी में रूस का यह अभियान तैयार किया गया है, उससे लगता है कि वह भारत के चंद्रयान-3 से पहले भी चंद्रमा पर उतर सकता है. हालांकि रोसकॉसमोस ने किसी तरह के मुकाबले से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि दोनों अभियान एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आएंगे और दोनों के लैंडिंग एरिया अलग-अलग हैं.
एजेंसी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "उनके एक दूसरे के साथ दखलअंदाजी करने या टकराने की कोई संभावना नहीं है. चंद्रमा पर सबके लिए खूब जगह है. बीते अप्रैल में जापान की एक निजी अंतरिक्ष कंपनी ने चंद्रमा पर लैंडिंग की कोशिश की थी लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली थी.
चंद्रयान-3 दो हफ्ते तक ही चंद्रमा पररहकर प्रयोग करेगा जबकि लुना-25 करीब एक साल तक वहां रहेगा. 1.8 टन वजनी इस यान में 31 किलोग्राम वजन के वैज्ञानिक उपकरण होंगे. वह चांद की सतह से 15 सेंटीमीटर गहराई तक के मिट्टी के नमूने जमा करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि मानव जीवन के लिए जरूरी बर्फ यानी जमा हुआ पानी वहां मौजूद है या नहीं.
वॉयजर मिशन: ब्रह्मांड का अनोखा मुसाफिर
नासा ने वॉयजर 2 अंतरिक्षयान से संपर्क फिर से बहाल कर लिया है. इससे दोबारा डेटा भी मिलने लगा है. 1977 में वॉयजर अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना हुआ था. इसकी पृथ्वी पर कभी वापसी नहीं होगी. जानिए क्यों बहुत खास है वॉयजर मिशन...
तस्वीर: ZUMA/imago images
176 सालों में बनने वाला खास संयोग
1965 में गणनाओं से पता चला कि अगर 1970 के दशक के अंत तक अंतरिक्षयान लॉन्च किया जाए, तो वो आउटर प्लैनेट के चारों विशाल ग्रहों- बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण तक पहुंच सकता है. अंतरिक्षयान को 176 सालों में बनने वाले एक ऐसे अनूठे अलाइनमेंट से मदद मिल सकती है, जिससे वो इन चारों में से हर एक ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर अगले की ओर घूम सकता है. तस्वीर में: 1998 में वॉयजर की ली नेप्च्यून की तस्वीर
तस्वीर: NASA/JPL
जुड़वां यात्री
इसके बाद शुरू हुआ "द मरीनर जूपिटर/सैटर्न 1977" प्रोजेक्ट. मार्च 1977 में मिशन का नाम बदलकर वॉयजर रखा गया. इस मिशन के दो हिस्से हैं, वॉयजर 1 और वॉयजर 2. ये जुड़वां अंतरिक्षयान हैं. योजना के मुताबिक, वॉयजर 2 को वॉयजर 1 के बाद बृहस्पति और शनि ग्रह तक पहुंचना था. इसीलिए पहले रवाना होने के बावजूद इसका क्रम 2 है, 1 नहीं. फोटो में: 14 जनवरी, 1986 को वॉयजर 2 द्वारा ली गई यूरेनस की तस्वीर
तस्वीर: NASA/JPL
1977 में शुरू हुई यात्रा
वॉयजर 2 ने 20 अगस्त, 1977 को फ्लोरिडा के केप केनावरल से सफर शुरू किया. वॉयजर 1 ने भी 5 सितंबर, 1977 को यहीं से यात्रा शुरू की. दुनिया ने अंतरिक्षयान से ली गई पृथ्वी और चांद की जो पहली तस्वीर देखी, उसे 6 सितंबर 1977 को वॉयजर 1 ने ही भेजा था. 40 साल से ज्यादा वक्त से ये दोनों अंतरिक्ष के ऐसे सुदूर हिस्सों की खोजबीन कर रहे हैं, जहां धरती की कोई चीज पहले कभी नहीं पहुंची. फोटो: शनि ग्रह का सिस्टम
तस्वीर: NASA/abaca/picture alliance
बृहस्पति के राज बताए
5 मार्च, 1979 को वॉयजर 1 बृहस्पति के सबसे नजदीक आया. इसी से पता चला कि इस ग्रह पर सक्रिय ज्वालामुखी हैं. यह भी पता चला कि इसका "ग्रेट रेड स्पॉट" असल में एक बड़ा तूफान है और बृहस्पति पर भी बिजली गिरती है. जुलाई 1979 में वॉयजर 2 की भी बृहस्पति से मुलाकात हुई. इसी के मार्फत पहली बार बृहस्पति के छल्लों "रिंग्स ऑफ जूपिटर" की तस्वीर मिली. वॉयजर 2 ने बृहस्पति के चांद "मून यूरोपा" को भी करीब से देखा.
तस्वीर: Science Photo Library/IMAGO
शनि के चंद्रमा
नवंबर 1979 में वॉयजर 1 ने शनि ग्रह के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन को सबसे करीब से देखा. इसी यात्रा में मिले डेटा से पहली बार हमारी पृथ्वी से परे टाइटन पर नाइट्रोजन युक्त वातावरण की जानकारी मिली. इससे यह संभावना मिली कि टाइटन की सतह के नीचे तरल मीथेन और इथेन मौजूद हो सकती है. 1981 में वॉयजर 2 ने भी शनि के कई बर्फीले चंद्रमाओं को देखा.
तस्वीर: NASA/EPA/dpa/picture alliance
सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह
जनवरी 1986 में वॉयजर 2 के मार्फत इंसानों ने यूरेनस का क्लोज-अप देखा. पहली बार पता लगा कि यहां तापमान माइनस 195 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. यानी, यूरेनस या अरुण हमारे सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह है. अगस्त 1989 में वॉयजर 2, नेप्च्यून या वरुण को सबसे पास से देखने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. फिर इसने सौर मंडल के बाहर अपनी यात्रा शुरू की. तस्वीर में: वॉयजर 2 की भेजी तस्वीरों से बनाई गई यूरेनस की फोटो
तस्वीर: NASA/JPL/REUTERS
सुदूर अंतरिक्ष का यात्री
17 फरवरी, 1998 को पायनियर 10 को पीछे छोड़कर वॉयजर 1 अंतरिक्ष में सबसे सुदूर पहुंचा मानव निर्मित यान बना. 25 अगस्त, 2012 को वॉयजर 1 इंटरस्टेलर स्पेस में दाखिल हुआ. यह ऐसा करने वाली पहली मानव निर्मित वस्तु थी.
तस्वीर: United Archives/picture alliance
हेलियोस्फीयर के पार
फिर 5 नवंबर, 2018 को वॉयजर 2 हेलियोस्फीयर पार कर इंटरस्टेलर स्पेस में घुसा. हेलियोस्फीयर, सूर्य के सुदूर वातावरण की परत है, जो अंतरिक्ष में एक तरह का सुरक्षात्मक चुंबकीय बुलबुला है. वॉयजर 1 और 2 ने हमारे सौर मंडल के सारे बड़े ग्रहों की खोजबीन की. ये ग्रह हैं: बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण.
गोल्डन रेकॉर्ड: पृथ्वी का पैगाम
दोनों वॉयजर पर एक अद्भुत चीज है; 12 इंच की गोल्ड प्लेटेड कॉपर डिस्क. इसे कहा जाता है, गोल्डन रेकॉर्ड. अगर कभी पृथ्वी से परे जीवन के किसी रूप से इनकी मुलाकात हुई, तो ये गोल्डन रेकॉर्ड उन तक हमारे अस्तित्व का संदेश पहुंचाएंगे. पृथ्वी का जीवन, जीवन की विविधता, हमारी संस्कृति... सबका हाल सुनाएंगे. साथ ही, गोल्डन रेकॉर्ड कैसे बजाया जाए, इसके लिए सांकेतिक निर्देश भी हैं.
तस्वीर: ZUMA/imago images
संगीत और ध्वनियां भी हैं
इस रेकॉर्ड की सामग्रियों को नासा की एक कमिटी ने चुना था, जिसके अध्यक्ष मशहूर अमेरिकी खगोलशास्त्री कार्ल सागन थे. इनमें हमारे सौर मंडल का मानचित्र है. यूरेनियम का एक टुकड़ा है, जो रेडियोएक्टिव घड़ी का काम करता है और अंतरिक्षयान के रवाना होने की तारीख बता सकता है. पृथ्वी पर जीवन का स्वरूप बताने के लिए इनकोडेड तस्वीरें हैं. संगीत और कई ध्वनियां भी हैं. तस्वीर: कार्ल सागन
तस्वीर: IMAGO/UIG
अभी कहां हैं दोनों वॉयजर
वॉयजर एक अनंत यात्रा का राहगीर है, जो ब्रह्मांड में आगे बढ़ता रहेगा. नासा के "आईज ऑन द सोलर सिस्टम" ऐप पर आप दोनों वॉयजर यानों की यात्रा और लोकेशन देख सकते हैं. अभी तो वॉयजर अपने पावर बैंक की मदद से डेटा भेजते हैं, लेकिन 2025 के बाद इसके पावर बैंक धीरे-धीरे कमजोर होते जाएंगे. इसके बाद भी ये मिल्की वे में तैरना-टहलना जारी रखेगा. चुपचाप, शायद अनंत काल तक.
तस्वीर: Canberra Deep Space Com. Complex/NASA/ZUMA/picture alliance
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रूसी विज्ञान अकादमी में शोधकर्ता लेव जेलेनी कहते हैं, "चांद तो पृथ्वी के सातवें महाद्वीप की तरह है. इसलिए हम तो वहां जाकर उसका संधान करने के लिए अभिशप्त हैं.”
दो साल से टल रहा अभियान
वैसे, लुना-25 को पहले अक्तूबर 2021 में छोड़ा जाना था लेकिन यह अभियान लगभग दो साल से टलता आ रहा है. पहले यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए भी अपना पायलट-डी नेविगेशन कैमरा इस यान के साथ भेजना चाहती थी ताकि उसका परीक्षण हो सके लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद ईएसए ने खुद को अभियान से अलग कर लिया.
शुक्रवार 7.30 बजे इस यान के यान के प्रक्षेपण के लिए रूस के सुदूर पूर्व में एक गांव से लोगों को हटाया जा रहा है, क्योंकि दस लाख में से एक की संभावना हो सकती है कि लुना-25 धरती पर गिर जाए. उस स्थिति में लोगों को किसी तरह का नुकसान ना हो, इसलिए उन्हें घरों से दूर ले जाया जा रहा है.
स्थानीय अधिकारी आलेक्सेई मासलोव ने बताया कि शाक्तिंस्की गांव के 26 निवासियों को ऐसी जगह ले जाया जाएगा जहां से वे प्रक्षेपण देख सकें. उन्हें मुफ्त नाश्ता दिया जाएगा और साढ़े तीन घंटे में वे अपने घरों को छोड़ दिये जाएंगे. इलाके के शिकारियों और मछुआरों को भी चेतावनी जारी की गयी है.