यूक्रेन युद्ध के कारण चीलों ने बदली राह, चुना लंबा रास्ता
रितिका
२९ मई २०२४
रूस और यूक्रेन के बीच दो साल से भी ज्यादा समय से लड़ाई जारी है. इस युद्ध के कारण चीलों की एक खास प्रजाति ने अपने माइग्रेशन का रास्ता ही बदल दिया.
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रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने पहले से ही संवेदनशील ‘ग्रेटर स्पॉटेड चीलों' की प्रजाति के लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है. साइंस जर्नल ‘करेंट बायॉलजी' में छपी एक स्टडी के मुताबिक, युद्ध के कारण इन चीलों को अपने प्रवासन का रास्ता बदलना पड़ा है. एस्टोनिया यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ साइंसेज और ब्रिटिश ट्रस्ट फॉर ओरनिथॉलजी के शोधकर्ताओं की यह स्टडी युद्धग्रस्त इलाकों में वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित करती है.
संघर्ष और युद्ध केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि जानवरों और पक्षियों को भी प्रभावित करते हैं. युद्ध के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का सीधा संबंध ग्रेटर स्पॉटेड चीलों के प्रवासन में आए बदलाव से है. ये चील प्रजनन के लिए यूक्रेन के रास्ते दक्षिणी बेलारूस जाते हैं. ग्रेटर स्पॉटेड चीलों को 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर रेड लिस्ट' ने संवेदनशील प्रजातियों की श्रेणी में रखा है. चीलों की यह प्रजाति पश्चिमी और केंद्रीय यूरोप, खासकर बेलारूस और पोलेसिया के इलाकों में पाई जाती है.
बड़ी गजब की इंजीनियर होती हैं चींटियां
आम बोलचाल में किसी को कमजोर और मामूली दिखाने के लिए लोग चींटी की उपमा देते हैं. जबकि चींटियां मामूली तो कतई नहीं होतीं. ये नन्ही-सी चैंपियन ईकोसिस्टम की इंजीनियर हैं. चींटियां इतना काम करती हैं कि गिनते-गिनते थक जाएंगे.
तस्वीर: Andrew Deans/Penn State
जहां तहां, मत पूछो कहां कहां
चींटी को आप ग्लोबल सिटीजन कह सकते हैं. बर्फीला आर्कटिक हो या वर्षावन, चींटियां हर परिवेश में पाई जाती हैं. हालांकि कुछ अपवाद भी हैं जहां ये नहीं पाई जातीं, जैसे अंटार्कटिक और आइसलैंड. हमें चींटियों की 12 हजार से ज्यादा प्रजातियों की जानकारी है, लेकिन अभी कई प्रजातियों को खोजा जाना बाकी है.
तस्वीर: Juan Carlos Ulate/REUTERS
इतनी डायवर्सिटी!
चींटियों की सबसे ज्यादा विविधता अमेजन जंगलों और ब्राजीलियन सवाना में पाई जाती है. भांति-भांति की चींटियों की जैसे अपनी अलग ही दुनिया है, जो बेहद समृद्ध और विविध है. कुछ काली, कुछ लाल, कुछ पीली, कई चींटियां भूरी, तो कुछ मिले-जुले रंग की भी होती हैं. कुछ चींटियां मिट्टी में रहती हैं, कुछ पत्तों पर, तो कई हमारे घरों में घूमती मिलती हैं.
तस्वीर: Maurício de Paiva/DW
चींटी का रेशम
चींटियों के स्वभाव में भी बड़ी वैरायटी है. जैसे कार्पेंटर ऐंट, जो लकड़ी तराशकर घर बनाती हैं. एक होती है स्लेव-मेकिंग ऐंट, जो चींटियों की दूसरी प्रजातियों के बच्चे पकड़कर उन्हें अपना गुलाम बनाती हैं और काम करवाती हैं. हार्वेस्टर प्रजाति की चींटी तो किसानों जैसी होती है. वो बीज जमा करती है. वीवर चींटी घोंसला बुनती है और अपने मुंह से रेशम निकालकर उससे घोंसला सीती है.
तस्वीर: Richard Becker/FLPA/IMAGO
चींटी एक सामाजिक प्राणी है...
"सामाजिक जीव," ये शब्द जैसे चींटियों के लिए बना है. कई बार तो चींटियों के एक मुहल्ले में लाख-दो लाख नहीं, बल्कि दसियों लाख चींटियां साथ रहती हैं. चींटियों का संसार हम इंसानों की तरह पुरुषसत्तात्मक नहीं होता. यहां मादाओं का दबदबा है. चाहे खाना लाना हो, दुश्मन से लड़ना हो, चींटियां सारे काम मिलकर करती हैं. वो अपने घायल साथियों का इलाज भी करती हैं.
तस्वीर: A. Hartl/blickwinkel/picture alliance
मजदूर चींटियां
चींटी सेना की मुखिया होती है, रानी चींटी. कुछ चींटियां सैनिक की भूमिका निभाती हैं, बाकी चींटियां मजदूर होती हैं. ये कामगार चींटियां बड़ी मेहनती होती हैं. वो बड़ी रानी चींटियों और उनके अंडों की देखभाल करती हैं. खाना भी खोजकर लाती हैं. नर चींटों का काम बस इतना है कि रानी के साथ मेटिंग करें और दुनिया से विदा हो जाएं.
तस्वीर: Richard Becker/FLPA/IMAGO
स्मार्ट वर्क
चींटियां, साथी चींटियों को देखकर सीखती और फैसला लेती हैं. मसलन, सारी कामगार चींटियां एकसाथ खाना खोजने नहीं जाती हैं. अगर उनसे पहले निकलीं साथी चींटियां बहुत सारा खाना लेकर लौटें, तो मुहल्ले में मौजूद बाकी कामगार चींटियों को समझ आता है कि कहीं कुछ अच्छा हाथ लगा है. फिर वो भी उसी दिशा में खाना लेने भागती हैं. यानी हार्ड वर्क और स्मार्ट वर्क, दोनों.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
धरती के कितने काम की आती हैं चींटियां
चींटियां अनाज, सब्जी, पत्ते जैसी ऑर्गेनिक चीजों को डीकंपोज करने, यानी उन्हें सड़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं. जब वो मिट्टी खोदकर भीतर-भीतर अपनी कॉलोनी बनाती हैं, तब वो मिट्टी में ऑक्सीजन का संचार बढ़ाती हैं. इससे मिट्टी की सेहत दुरुस्त होती है और वो उपजाऊ बनती है.
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ईकोसिस्टम की इंजीनियर
पौधे और जानवर, मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को इस्तेमाल करते हैं. फिर उनके मरने, खत्म होने और फिर सड़ने से ये पोषक तत्व वापस पर्यावरण में मिल जाते हैं. इसे न्यूट्रिएंट साइक्लिंग कहते हैं. इसमें अहम भूमिका निभाने के कारण चींटियों को ईकोसिस्टम का इंजीनियर कहा जाता है.
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पेस्ट कंट्रोल
वो बड़ी मात्रा में न्यूट्रिएंट्स खाती हैं और उनका पुनर्वितरण भी करती हैं. वो मरे हुए जानवरों को खाकर डिकंपोजिशन को बढ़ाती हैं. साथ ही, कीड़े-मकोड़ों को खाकर वो पेस्ट कंट्रोल भी करती हैं. चीन में तो सदियों से पेस्ट कंट्रोल के लिए चींटियां पाली जाती हैं.
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संतरे को बचाने वाली चींटियां
बायोसाइंस जर्नल की एक रिपोर्ट में 1915 का एक वाकया दर्ज है, जब अमेरिकी कृषि विभाग ने कुछ विशेषज्ञों को चीन भेजा. उन्हें संतरे की ऐसी किस्में खोजनी थीं, जिन पर सिट्रस कैंकर नाम के कीड़ों का असर ना हो. उन्हें चीन में एक गांव मिला, जिनका मुख्य पेशा चींटी पालना था. वो रेशम के कीड़े पालते थे और उन्हें चींटियों को खिलाते थे. फिर वो मोटी रकम लेकर संतरा उगाने वाले किसानों को बेच देते थे.
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पौधों और चींटियों का करीबी रिश्ता
पौधों की कई प्रजातियां बीजों के वितरण के लिए चींटियों पर निर्भर हैं. सीड डिस्पर्सल की यह प्रक्रिया पौधों की प्रजातियों के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है. एक ही प्रजाति के पौधे बहुत करीब उगेंगे, तो मिट्टी से एक जैसे पोषक तत्व खींचेंगे. पानी के लिए होड़ मचेगी. बीज फैलने से पौधे बड़े इलाके में फैलते हैं. उनके फलने-फूलने की संभावना बढ़ती है.
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धरती पर कितनी चींटियां होंगी?
अंदाजा लगाइए, कितनी चींटियां रहती होंगी इस ग्रह पर. कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने एक अनुमान दिया. उन्होंने कहा, दुनिया में लगभग 20 मिलियन बिलियन (टाइपो नहीं है) चींटियां होंगी. इतनी बड़ी गिनती आसानी से समझने के लिए बस इतनी कल्पना कीजिए कि पृथ्वी पर जितने इंसान हैं, उनमें से हर एक के मुकाबले तकरीबन 25 लाख चींटियां. तो अब कभी चींटी को मामूली समझने की गलती मत कीजिएगा.
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युद्ध के कारण चीलों ने चुना लंबा रास्ता
अध्ययन के मुताबिक, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ही इन चीलों के माइग्रेशन के रास्ते में बदलाव देखा गया. शोधकर्ताओ ने 19 चीलों के प्रवासन का अध्ययन किया और पाया कि यूक्रेन में बनी स्थितियों के कारण इन्होंने प्रवासन के लिए लंबा रास्ता चुना. रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 में युद्ध शुरू हुआ था.
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शोधकर्ताओं ने मार्च और अप्रैल 2022 के दौरान चीलों के प्रवासन का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि इन चीलों ने 2019 और 2021 में जो रास्ता लिया था, उसे इस बार नहीं चुना. युद्ध शुरू होने के बाद इन चीलों ने औसतन 85 किलोमीटर अधिक लंबा रास्ता तय किया. इनमें से कुछ चीलों ने तो 250 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की.
युद्ध से पहले जहां 90 फीसदी चील अपने प्रवासन के दौरान यूक्रेन में रुका करते थे, वहीं युद्ध के बाद यह आंकड़ा घटकर 32 फीसदी हो गया. कुछ चील तो माइग्रेशन के दौरान यूक्रेन से पूरी तरह दूर रहे. इन चीलों ने ना सिर्फ अपने प्रवासन का रास्ता बदला, बल्कि आराम करने का वक्त भी घटा दिया. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन चीलों ने अपना समय और ताकत दोनों ही प्रवासन के रास्ते पर खर्च कर दिए.
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चीलों का प्रजनन हो सकता है प्रभावित
वैज्ञानिकों का मानना है कि इन चीलों ने खासकर ऐसे रास्तों को नजरअंदाज किया, जहां सैन्य गतिविधियां अधिक थीं. यूक्रेन के अलावा इन पक्षियों के प्रवासन के रास्ते में कहीं और कोई बदलाव नजर नहीं आया.
अध्ययन बताते हैं कि धमाके और तेज आवाजों से वन्यजीव प्रभावित होते हैं, इसलिए संभव है कि युद्धग्रस्त क्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों के कारण ही इन चीलों ने अपने प्रवासन के रास्ते को बदला होगा. शोधकर्ताओं ने मुताबिक, इन बदलावों के कारण प्रवासन में अधिक उर्जा तो लगती ही है, साथ ही पक्षियों की मौत का जोखिम भी बढ़ता है. बिना किसी आराम के इतना लंबा सफर तय करने की यह प्रक्रिया इन चीलों के प्रजनन को प्रभावित कर सकती है.
वैज्ञानिकों को आशंका है कि यूक्रेन की मौजूदा स्थिति सिर्फ इन चीलों के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य विलुप्त होती प्रजातियों के लिए भी खतरे का संकेत हो सकती हैं. पर्यावरण में हुए बदलाव वन्य जीवों के प्रवासन को भी लंबे वक्त के लिए प्रभावित कर सकते हैं.