रूस ने भारत से चीनी प्रोजेक्ट में शामिल होने को कहा
११ दिसम्बर २०१७
रूस ने भारत से चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना में शामिल होने को कहा है. एशिया और दुनिया भर में व्यापार और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क बनाने की चीन की इस महत्वकांक्षी योजना पर भारत को आपत्ति रही है.
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नई दिल्ली में भारत, चीन और रूस के विदेश मंत्रियों की बैठक में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना की तरफदारी की. लेकिन भारत की इस बारे में सख्त आपत्तियां रही हैं. आपत्ति इसलिए भी है कि क्योंकि पाकिस्तान में इस परियोजना के तहत बनने वाला कोरिडोर कश्मीर के विवादित हिस्से से गुजरता है.
रेलवे, समुद्र मार्गों, बंदरगाहों और पावर ग्रिड के जरिए प्राचीन सिल्क रूट को फिर से साकार करने की इस परियोजना के लिए व्यापक समर्थन जुटाने के मकसद चीन के राष्ट्रपति ने मई 2017 में बीजिंग में एक बड़ा शिखर सम्मेलन बुलाया था. लेकिन भारत इससे दूर ही रहा.
रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को राजनीतिक समस्या के चलते इस परियोजना से दूर नहीं रहना चाहिए, जिसके साथ अरबों डॉलर का निवेश और बहुत से फायदे जुड़े हैं. उन्होंने नई दिल्ली में चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मलाकात के बाद यह बात कही.
क्या है चीन का "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट
900 अरब डॉलर की लागत से चीन कई नए अंतरराष्ट्रीय रूट बनाना चाहता है. वन बेल्ट, वन रोड नाम के अभियान के तहत बीजिंग ये सब करेगा.
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चीन-मंगोलिया-रूस
जून 2016 में इस प्रोजेक्ट पर चीन, मंगोलिया और रूस ने हस्ताक्षर किये. जिनइंग से शुरू होने वाला यह हाइवे मध्य पूर्वी मंगोलिया को पार करता हुआ मध्य रूस पहुंचेगा.
न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज
इस योजना के तहत चीन यूरोप से रेल के जरिये जुड़ चुका है. लेकिन सड़क मार्ग की संभावनाएं भी बेहतर की जाएंगी. 10,000 किलोमीटर से लंबा रास्ता कजाखस्तान और रूस से होता हुआ यूरोप तक पहुंचेगा.
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चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर
56 अरब डॉलर वाला यह प्रोजेक्ट चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत को कश्मीर और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा.
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चाइना-सेंट्रल एंड वेस्ट एशिया कॉरिडोर
सदियों पुराने असली सिल्क रूट वाले इस रास्ते को अब रेल और सड़क मार्ग में तब्दील करने की योजना है. कॉरिडोर कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की को जो़ड़ेगा.
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दक्षिण पूर्वी एशियाई कॉरिडोर
इस कॉरिडोर के तहत चीन की परियोजना म्यांमार, वियतनाम, लाओस, थाइलैंड से गुजरती हुई इंडोनेशिया तक पहुंचेगी.
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चाइना-बांग्लादेश-इंडिया-म्यांमार कॉरिडोर
इस परियोजना के तहत इन चार देशों को सड़क के जरिये जोड़ा जाना था. लेकिन भारत की आपत्तियों को चलते यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है. अब चीन बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ेगा.
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चाइना-नेपाल-इंडिया कॉरिडोर
म्यांमार के अलावा चीन नेपाल के रास्ते भी भारत से संपर्क जोड़ना चाहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने नेपाल को भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल किया है.
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प्रोजेक्ट का मकसद
वन बेल्ट, वन रूट जैसी योजनाओं की बदौलत चीन करीब 60 देशों तक सीधी पहुंच बनाना चाहता है. परियोजना के तहत पुल, सुरंग और आधारभूत ढांचे पर तेजी से काम किया जा रहा है. निर्यात पर निर्भर चीन को नए बाजार चाहिए. बीजिंग को लगता है कि ये सड़कें उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा बनेंगी.
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अमेरिका नहीं, चीन
डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दुनिया भर के देशों को अमेरिका से मोहभंग हो रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है. बीजिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की धुरी बनाने का सपना देख रहा है. इसी वजह से इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
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रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि उनकी बैठक में चीनी परियोजना को लेकर भारत की आपत्तियों पर भी चर्चा हुई. उनके मुताबिक, "मैं जानता हूं कि भारत को वन बेल्ट वन रोड की अवधारणा को लेकर समस्याएं हैं. हमने इस बारे में चर्चा की है. लेकिन इस सिलसिले में किसी खास समस्या पर सारी चीजें नहीं निर्भर हो जानी चाहिए."
दुनिया को जोड़ने निकला है चीन
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उन्होंने कहा कि रूस के साथ साथ मध्य एशिया और यूरोप के सभी देशों ने आर्थिक सहयोग बढ़ाने वाली चीनी परियोजना के लिए अपनी सहमति दी है. उन्होंने कहा हैं, "ये तथ्य हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि भारत के पास योग्य राजनयिक और राजनेता हैं जो ऐसा रास्ता खोज लेंगे जिससे आपको इस प्रक्रिया का फायदा हो."
शीत युद्ध के जमाने में भारत के अहम सहयोगी रहे रूस की तरफ से इस तरह का बयान साफ दिखाता है कि तीन सदस्यों वाले इस समूह के भीतर आपस में किस तरह के मतभेद हैं. चीन, रूस और भारत के इस समूह को 15 साल पहले विश्व मामलों में अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने के लिए बनाया गया था. लेकिन चीन और भारत के बीच मुख्य तौर पर सीमा विवाद के चलते इस समूह के कभी असल सहयोग देखने को नहीं मिला.
दूसरी तरफ, भारत अब पहले से कहीं ज्यादा अमेरिका की तरफ चला गया है. भारत सोवियत काल के हथियारों से लैस अपनी सेना को अमेरिका से अरबों डॉलर के हथियार खरीद तेजी से आधुनिक बना रहा है.
वहीं भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि तीनों देशों के बीच आर्थिक मुद्दों और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के विषय पर बहुत रचनात्मक बात हुई.
रिपोर्ट: एके/एनआर (रॉयटर्स)
ये भी पहुंचे सिल्क रोड सम्मेलन में
चीन के सिल्क रूट सम्मेलन में 100 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. भारत ने इसका बहिष्कार किया. रूस और तुर्की के नेताओं सहित यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भी मौजूद थे जिन्होंने चीन से अपना बाजार खोलने की मांग की.
बड़ा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
चीन के लिए 1949 में साम्यवादी गणतंत्र की स्थापना के बाद से सबसे बड़ी विदेशनैतिक पहल थी जिसमें 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधि आए.
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पाकिस्तान
शी जिन पिंग ने चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर को न्यू सिल्क रोड पहलकदमी का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट बताया है. भारत इसका विरोध कर रहा है.
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अर्जेंटीना
अर्जेंटीना के राष्ट्रपति मॉरित्सियो मकरी और उनकी पत्नी का स्वागत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी पत्नी पेंग लीयुआन ने किया.
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चिली
चिली की राष्ट्रपति मिशेल बाखेलेट ने भी बीजिंग में हुए न्यू सिल्क रूट सम्मेलन में हिस्सा लिया.
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तुर्की
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान अपनी पत्नी के साथ शी जिनपिंग और उनकी पत्नी से मिले.
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रूस
चीन से दोस्ती तलाश रहे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सिल्क रोड सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे.
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जर्मनी
जर्मन वाणिज्य मंत्री सिप्रिस ने सम्मेलन में हिस्सा लिया और चीन से अपना बाजार खोलने की मांग की.