यूक्रेन पर बैठक बुलाने का अमेरिकी प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पास हो गया. हालांकि भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. बैठक में दोनों पक्षों के बीच जमकर बहस हुई.
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोमवार को माहौल उस वक्त गर्म हो गया जब अमेरिका और रूस के राजनयिक सीधे बहस में उलझ गए. रूस ने पश्चिमी देशों पर यूक्रेन को लेकर तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया. रूस ने कहा कि अमेरिका ने यूक्रेन में खालिस नात्सियों को सत्ता में बिठा दिया है.
अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने जवाब में कहा कि यूक्रेन की सीमा पर एक लाख रूसी सैनिकों का जमावड़ा पिछले कई दशकों में यूरोप में सबसे बड़ा है. थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा, "बिना किसी तथ्यात्मक आधार के वे यूक्रेन और पश्चिमी देशों पर आक्रामक होने का आरोप लगा रहे हैं ताकि हमला करने का माहौल तैयार कर सकें.”
क्यों हुई गर्मागर्मी?
यह गर्मागर्मी तब हुई जब रूस की एक बैठक को रोकने की कोशिश नाकाम हो गई. यह पहला मौका था जब यूक्रेन पर सभी पक्षों ने सीधे-सीधे अपनी बात रखी. हालांकि यूएन की सबसे शक्तिशाली संस्था ने कोई फैसला नहीं लिया.
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इस बैठक के कुछ घंटे बाद रूस की सरकार ने अमेरिका के तनाव घटाने के प्रस्ताव का लिखित जवाब भेजा. हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस जवाब के बारे में विस्तार से कुछ भी बताने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा करना अनुत्पादक होगा और वे अपने जवाबी प्रस्ताव पर फैसला रूस पर छोड़ रहे हैं.
अब तक यूक्रेन के मुद्दे पर अमेरिका और रूस के बीच बातचीत नाकाम ही रही है और तनाव लगातार बढ़ रहा है. अमेरिका ने कहा है कि रूस यूक्रेन पर चढ़ाई की तैयारी कर रहा है. रूस इससे साफ इनकार करता है लेकिन उसका कहना है कि नाटो को वादा करना होगा कि यूक्रेन को कभी सदस्यता नहीं दी जाएगी और नाटो हथियारों को रूसी सीमा के पास तैनात नहीं किया जाएगा. नाटो और अमेरिका इस पर सहमति देने को राजी नहीं हैं.
भारत रहा गैरहाजिर
यूएन में रूस के राजदूत वासीली नेबेनजिया ने अमेरिका पर उनके देश के अंदरूनी मामलों में दखल देने का आरोप लगाया. जवाब में थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि पिछले कुछ हफ्तों में रूसी अधिकारियों के साथ 100 से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं और अब वक्त आ गया है कि चर्चा खुले में हो.
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काउंसिल की बैठक कराने पर हुई वोटिंग का प्रस्ताव 10-2 से पास हो गया. रूस और चीन ने इस प्रस्ताव का विरोध किया जबकि भारत, गैबॉन और केन्या ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. हालांकि प्रस्ताव को पास होने के लिए नौ मतों की ही जरूरत थी.
रूस का कहना था कि अमेरिका काउंसिल के सदस्यों को असहज करने के लिए बैठक बुलाना चाहता है. इसके जवाब में अमेरिकी राजदूत ने कहा, "सोचिए आप कितने असहज होंगे अगर आपकी सीमा पर एक लाख सैनिक आकर बैठ जाएं.”
अमेरिका चाहता था कि यह बैठक सोमवार को ही हो जाए क्योंकि यह नॉर्वे की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता का आखिरी दिन था. मंगलवार के फरवरी के लिए अध्यक्षता रूस के पास होगी.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
एयरबस और बोइंग के सामने रूस और चीन की चुनौती
रूस और चीन में बने यात्री विमानों ने एयरबस और बोइंग के कई दशकों से मशहूर विमानों के लिए चुनौती पेश कर दी है. भले ही आज बोइंग और एयरबस के विमानों में दुनिया सैर करती हो लेकिन आने वाले वर्षों में स्थिति बदल सकती है.
तस्वीर: Greg Baker/AFP/Getty Images
यात्री सेवा के लिए सर्टिफिकेट मिला
रूस ने एमसी-21 विमान बनाया है. इसे दिसंबर 2021 में यात्री सेवा में इस्तेमाल करने के लिए सर्टिफिकेट मिल गया और यह इसी साल से रूस में नियमित उड़ान भरने लगेगा. विमान की दो श्रेणियों में कुल 163 यात्रियों को जगह मिल सकती है. पश्चिमी देशों के जानकार इसे एयरबस की ए 320 नियो से बेहतर और कम खर्चीला बता रहे हैं.
तस्वीर: Marina Lystseva/TASS/dpa/picture alliance
यात्रियों के लिए ज्यादा आराम
विमान की बॉडी पतली होने के बावजूद यात्रियों को इसमें बोइंग ए-320 की तुलना में 11 सेंटीमीटर और बोइंग 737 की तुलना में 21 सेंटीमीटर ज्यादा जगह मिलेगी. हालांकि यह जगह इतनी ज्यादा नहीं है कि एक कतार में छह से ज्यादा सीटें लगाई जा सकें. मतसब साफ है कि यात्रियों के कोहनी रखने के लिए और सीटों के किनारे ज्यादा जगह होगी.
तस्वीर: Andreas Spaeth/DW
सैकड़ों विमानों के लिए ऑर्डर मिले
कंपनी के पास फिलहाल एमसी-21 के 175 विमानों के ऑर्डर हैं और सैकड़ों विमानों के लिए एमओयू पर दस्तखत हो चुके हैं. रूस की घरेलू एयरलाइनों से ही कंपनी को बड़े ऑर्डर मिल रहे हैं. कंपनी ने कई और मॉडल भी दुबई में पेश किए है हालांकि उन्हें अभी यात्री सेवा के लिए सर्टिफिकेट नहीं मिला है.
तस्वीर: Andreas Spaeth/DW
पश्चिमी देशों की कंपनियों पर निर्भर
हालांकि इस विमान को बनाने में रूस को पश्चिमी देशों के बनाए कई हिस्सों की जरूरत होगी जिनसे मिल कर विमान के इंजन और दूसरी चीजें बनेंगी. एमसी-21 का करीब 40 फीसदी हिस्सा ऐसा ही हैं. मौजूदा राजनीतिक हालात में रूस पश्चिमी देशों की सप्लाई पर भरोसा नहीं कर सकता. एक और दिक्कत है कि वह ईरान जैसे देशों के विमान नहीं बेच पाएगा जो उसके बड़े ग्राहक हो सकते हैं.
तस्वीर: Andreas Spaeth/DW
चीन ने बनाया सी 919
सी 919 को चीन ने बनाया है और इसने भी यात्री सेवा में इस्तेमाल के लिए जरूरी शर्तें पूरी कर ली है. पहले इसे भी इस साल से सेवा में उतारने की तैयारी थी लेकिन अब इसे कुछ और समय के लिए आगे बढ़ा दिया गया है.
तस्वीर: Andy Wong /AFP/Getty Images
300 से ज्यादा विमानों के ऑर्डर
सी 919 में 158-168 यात्रियों के बैठने की जगह है. इस विमान ने पहली उड़ान 2017 में भरी थी और अब यह यात्री सेवा में उतारे जाने के लिए तैयार है. अब तक कंपनी को 300 से ज्यादा विमानों के लिए ऑर्डर मिल चुके हैं. कंपनी कुछ और मॉडलों पर भी काम कर रही है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
नए जमाने के लिए नए विमान
सी 919 और एमसी-21, दोनों विमान दो इंजन और पतली बॉडी वाले हैं. इन्हें आज के दौर की चुनौतियों को ध्यान में रख कर खासतौर से तैयार किया गया है. इनके मुकाबले बोइंग 737 को 1967 में लॉन्च किया गया था जबकि एयरबस का ए320 पहली बार 1987 में एयरलाइनों के लिए पेश किया गया.
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चीन आगे निकल सकता है
चीन में पहले से ही दूसरी कंपनियों के विमान बड़ी संख्या में एसेंबल किए जा रहे हैं. वहां स्थानीय स्तर पर विमानों की मांग भी बहुत ज्यादा है. बाजार के विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन के पास विमान तैयार करने का जरूरी कौशल और बुनियादी ढांचा मौजूद है. कई लोग तो इस मामले में उसे यूरोप से बेहतर मानते हैं. ऐसे में कोई हैरानी नहीं कि वह ज्यादा तेजी से आगे निकलेगा.
तस्वीर: Aly Song/AFP/Getty Images
सर्टिफिकेट मिलने में देरी
चीन ने 2017 में अपना पहला विमान तैयार कर लिया था और उसके बाद छह और विमान तैयार हो चुके हैं. हालांकि उसे अनुमति मिलने में देरी हो रही है. बीते साल से लेकर अब तक कुल 276 टेस्ट फ्लाइट होनी थी लेकिन उनकी महज 34 उड़ानें ही संभव हो पाईं.
तस्वीर: Andreas Spaeth/DW
एयरबस और बोइंग पर दबाव
यात्री विमानों के आकाश में इन दोनों कंपनियों का दबदबा है लेकिन बीते सालों में बोइंग और एयरबस के कुछ नए मॉडलों के विमान या तो बनाने बंद कर दिए गए या फिर मुश्किलों में घिर गए. कोरोना का दौर भी विमान कंपनियों के लिए बहुत संकट लेकर आया. अब इसमें रूस और चीन की चुनौती भी शामिल हो जाएगी.